दाल
{{Taxobox | name = दालें | image = 3 types of lentil.jpg | image_width = 250px | image_caption = विभिन्न प्रकार की दालें | regnum = पादप | divisio = मैग्नोलियोफाइटा | classis = मैग्नोलियोप्सीडा | ordo = फैबेलेस | familia = फैबेसी | subfamilia = [[फैबोएडी] | tribus = विसीयई | genus = लेन्स | species = L. culinaris | binomial = Lens culinaris | binomial_authority = मेडिकस }}
भारत में कई प्रकार की दालें प्रयोग की जाती हैं। दालें अनाज में आतीं हैं। इन्हें पैदा करने वाली फसल को दलहन कहा जाता है। दालें हमारे भोजन का सबसे महत्वपूर्ण भाग होती हैं। दुर्भाग्यवश आज आधुनिकता की दौड़ में फास्ट फूड के प्रचलन से हमारे भोजन में दालों का प्रयोग कम होता जा रहा है, जिसका दुष्प्रभाव लोगों, विशेषकर बच्चों एवं युवा वर्ग के स्वास्थ्य पर पड़रहा है।[१] दालों की सर्व प्रमुख विशेषता यह होती है कि आँच पर पकने के बाद भी उनके पौष्टिक तत्व सुरक्षित रहते हैं। इनमें प्रोटीन और विटामिन बहुतायत में पाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख दालें हैं:
- अन्य
खेसरी , गौर, लोबिया, कुल्थी, मटर, सोयाबीन
दाल मिल
दालें मानव आहार में प्रोटीन की आवश्यकता पूर्ति का प्रमुख स्रोत है लगभग ३ प्रतिशत प्रोटीन की पूर्ति दालों द्वारा की जाती है भोजन में प्रयोग आने वाली दालें मुख्यत: छिलका रहित दो टुकड़ों वाली होती हैं अत: दलहनों से दाल बनाने के लिए उनके ऊपर का छिलका उतारना सर्वप्रथम तथा प्रमुख क्रिया है इसके लिए दानों को उपचारित किया जाता है और तत्पश्चात् ही उनका संसाधन किया जाता है पुरानी पद्वति द्वारा दाल बनाने में लगभग १ से १५ प्रतिशत तक दाल की हानि संसाधन क्रिया में होती है अत: दालों की उपलब्धि बढ़ाने के लिए उन्नत उत्पादन तकनीक के साथ ही साथ संसाधन की भी उन्नत तकनीक एवं उपकरणों का उपयोग किया जानं चाहिए इसी दिशा में केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल तथा अन्य संस्थानों में शोध किये गये हैं।[२]
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Indian Pulses Through the Millennia - Asian Agri-History Foundation, Secunderabad
- वेब दुनिया पर
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ http://opaals.iitk.ac.in/deal/embed.jsp?url=livelihood/machine2.jspसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]