दादरा और नगर हवेली
भारत का केन्द्र-शासित प्रदेश | |
राजधानी | सिलवास |
सबसे बड़ा शहर | सिलवास |
जनसंख्या | 3,43,709 |
- घनत्व | 700 /किमी² |
क्षेत्रफल | 491 किमी² |
- ज़िले | 1 |
राजभाषा | हिन्दी, गुजराती, मराठी[१] |
गठन | 11 अगस्त 1961 |
सरकार | |
- प्रशासक | प्रफुल्ल खोदा पटेल |
- उपराज्यपाल | |
- मुख्यमंत्री | |
- विधानमण्डल | |
- भारतीय संसद | लोक सभा (1 सीट) |
- उच्च न्यायालय | मुम्बई उच्च न्यायालय |
डाक सूचक संख्या | 396 |
वाहन अक्षर | DN |
आइएसओ 3166-2 | IN-DN |
www |
दादरा और नगर हवेली (साँचा:lang-gu, साँचा:lang-mr, साँचा:lang-pt) भारत का एक क्षेत्र है। यह पहले एक केन्द्र शासित प्रदेश था और अब दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव केंद्र शासित प्रदेश का भाग है। यह दक्षिणी भारत में महाराष्ट्र और गुजरात के बीच स्तिथ है, हालाँकि दादरा, जो कि इस प्रदेश कि एक तालुका है, कुछ किलोमीटर दूर गुजरात में स्तिथ एक विदेशी अन्तः क्षेत्र है। सिलवासा इस प्रदेश की राजधानी है। यह क्षेत्र दमन से 10 से 30 किलोमीटर दूर है। [२]
इस प्रदेश पर 1779 तक मराठाओं का और फिर 1954 तक पुर्तगाली साम्राज्य का साशन था। इस संघ को भारत में 11 अगस्त 1961 में शामिल किया गया।[३] 2 अगस्त को मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।[४]
दादरा और नगर घवेली प्रमुख रूप से ग्रामीण क्षेत्र है जिसमे 62% से अधिक आदिवासी रहते है।[५] संघ राज्य क्षेत्र 40 प्रतिशत हिस्सा आरक्षित वनों से घिरा है जो नाना प्रकार के वनस्पति और पशु को निवास प्रदान करते है।[६] समुद्री तट से समीपता के कारण, गर्मियों में तापमान ज्यादा ऊपर नहीं जाता। दमनगंगा यहाँ की प्रमुख नदी है जो अरब सागर में जाकर मिलती है।
घने वन तथा अनुकूल जलवायु को देखते हुए यहाँ पर्यटन क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गई है। यात्रियों के ठहरने के लिए अनेक होटल्स और रिज़ॉर्ट्स हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हर साल तारपा उत्सव, पतंग उत्सव और विश्व पर्यटन दिवस आदि आयोजित किए जाते हैं।[३] पर्यटन स्थल होने के साथ साथ ये एक महत्वपूर्ण ओद्योगिक केन्द्र भी है। प्रदेश में कुल तीन ओद्योगिक व्ययस्थापन मौजूद हैं जिनमे कुल 290 प्लाट हैं।[७]
इतिहास
दादरा और नगर हवेली का गहरा इतिहास हमलावर राजपूत राजाओं द्वारा क्षेत्र के कोली सरदारों की हार के साथ शुरू होता है। मराठों ने राजपूतों को हरा कर 18वीं सदी के मध्य में अपना शासन स्थापित किया। मराठों और पुर्तगालियों के बीच लंबे संघर्ष के बाद 17 दिसंबर (दिसम्बर) 1779 को मराठा पेशवा माधव राव II[८][९] ने मित्रता सुनिशचित करने के खातिर इस प्रदेश के 79 गावों को 12,000 रुपए का राजस्व क्षतिपूर्ति के तौर पर पुर्तगालियों को सौंप दिया। जनता द्वारा 2 अगस्त,1954 को मुक्त कराने तक पुर्तगालियों ने इस प्रदेश पर शासन किया। 1954 से 1961 तक यह प्रदेश लगभग स्वतंत्र रूप से काम करता रहा जिसे ‘स्वतंत्र दादरा एंव नगर हवेली प्रशासन’ ने चलाया। लेकिन 11 अगस्त 1961 को यह प्रदेश भारतीय संघ में शामिल हो गया और तब से भारत सरकार एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में इसका प्रशासन कर रही है। पुर्तगाल के चंगुल से इस क्षेत्र की मुक्ति के बाद से ‘वरिष्ठ पंचायत’ प्रशासन की परामर्शदात्री संस्था के रूप में कार्य कर रही थी परंतु इसे 1989 में भंग कर दिया गया और अखिल भारतीय स्तर पर संविधान संशोधन के अनुरूप दादरा और नगर हवेली जिला पंचायत और 11 ग्राम पंचायतों की एक प्रदेश परिषद गठित कर दी गई।[३]
पुर्तगाली शासन से मुक्ति
भारत की 1947 में आज़ादी के बाद, पुर्तगाली प्रांतों में सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी तथा दूसरे स्थानों के बसे भारतीयों ने गोवा, दमन, दिउ, दादरा एवं नगर हवेली के मुक्ति का विचार पाला।[१०] भारत के स्वतंत्र होने से पहले से ही महात्मा गाँधी की भी यही विचारधारा थी और उन्होने ये पुष्टि भी की - "गोवा (व अन्य अस्वतंत्र इलाके) को मौजूद मुक्त राज्य (भारत) के कानूनों के विरोध में एक अलग इकाई के रूप में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।[११]
जब भारत ने 26 जनवरी 1950 को गणतंत्रता हासिल की तब फ़्रांसिसी सरकार ने भारत के पूर्वी तट पर अपनी क्षेत्रीय संपत्ति खाली करने का निर्णय लिया परंतु (परन्तु) पुर्तगाली सरकार ने तब भी भारत में अपने जड़ गड़ाए रखे। फलस्वरूप गोवा, दादरा, नगर हवेली तथा अन्य क्षेत्रों में स्वतंत्रता आंदोलन (आन्दोलन) और गहरा हो गया। फिर लिस्बन में एक भारतीय दूतावास खोला गया ताकि गोवा के हस्तांतरण पर चर्चा की जा सके। लेकिन पुर्तगाली सरकार ने ना ही सिर्फ गोवा की मुक्ति के बारे में बात करने से मना कर दिया बल्कि उन्होंने पहले से ही लागु दमनकारी उपायों को परिक्षेत्रों में तेज कर दिया। 1953 मे पुर्तगाली सरकार से समझौते के लिए एक और प्रयास किया गया - इस बार उन्हें ये भी आश्वासन दिलाया गया कि परिक्षेत्रों की सांस्कृतिक पहचान उनके स्थानांतरण के बाद भी संरक्षित रहेगी और कानूनों व रीति रिवाजों को भी अपरिवर्तित रखा जायेगा। फिर भी वे पहले की तरह अपने हठ पर कायम बने रहे और यहाँ तक कि भारत द्वारा की गई पहल का जवाब देने से भी इनकार कर गए। फलस्वरूप लिस्बन में स्तिथ भारतीय दूतावास को जून 1953 में बंद कर दिया गया।[१२]
गोवा सरकार के एक बैंक कर्मचारी - अप्पासाहेब कर्मलकर ने नेशनल लिबरेशन मूवमेंट संगठन (NLMO) की बागडोर संभाली ताकि वोह पुर्तगाली-सशैत प्रदेशों को मुक्ति दिला सकें। साथ ही साथ आजाद गोमान्तक दल(विश्वनाथ लावंडे, दत्तात्रेय देशपांडे, प्रभाकर सीनरी और श्री. गोले के नेतृत्व में), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (रजा वाकणकर और नाना कजरेकर के नेतृत्व में) के स्वयंसेवक दादरा और नगर हवेली को मुक्त कराने के लिए सशस्त्र हमले की तय्यारी कर रहे थे। वाकणकर और काजरेकर ने स्थलाकृति अध्ययन और स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं, जो पुर्तगाली क्षेत्र की मुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे थे, से परिचय के लिए 1953 में दादरा और नगर हवेली का कई बार दौरा किया। अप्रैल, 1954 में तीनो संगठनो ने मिलकर एक संयुक्त मोर्चा (युनाइटेड फ्रंट) निकाला और एिंल्फसटन बगीचे कि एक बैठक में, एक सशस्त्र हमले की योजना बनाई। स्वतंत्र रूप से, एक और संगठन, युनाइटेड फ्रंट ऑफ गोअन्स ने भी इसी तरह की एक योजना बनाइ।[१०]
दादरा की मुक्ति
फ्रांसिस मैस्करेनहास और विमान देसी के नेतृत्व में युनाइटेड फ्रंट ऑफ गोअन्स के करीब 15 सदस्यों ने 22 जुलाई 1954 की रात को दादरा पुलिस स्टेशन में हमला बोला। उन्होंने उप-निरीक्षक अनिसेतो रोसारियो की हत्या कर दी।[१३] अगले ही दिन पुलिस चौकी पर भारतीय तिरंगा फहराया गया और दादरा को मुक्त प्रान्त घोषित कर दिया गया। जयंतीभाई देसी को दादरा के प्रशाशन हेतु पंचायत का मुखिया बना दिया गया।
नारोली की मुक्ति
28 जुलाई 1954 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आज़ाद गोमान्तक दल के स्वयंसेवक ने नारोली के पुलिस चौकी पर हमला बोला और पुर्तगाली अफसरों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया और नारोली को आजाद किया। अगले दिन, 29 जुलाई को स्वतंत्र नारोली की ग्राम पंचायत की स्थापना हुई।[१०]
सिलवासा की मुक्ति
कप्तान फिदाल्गो के नेतृत्व में अभी भी पुर्तगाली सेना ने नगर हवेली में स्तिथ सिलवासा में अड्डा जमाया हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आज़ाद गोमान्तक दल के स्वयंसेवकों ने मौका देखते ही सिलवासा की परिधि में स्थित पिपरिया पर कब्जा जमा लिया। करीब आते देख कप्तान फिदल्गो ने स्वतंत्रता सेनानियों को आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी परन्तु वे सिलवासा की और बढ़ चले। अपने निश्चित पराजय को देखते हुए कप्तान फिदल्गो 150 सैन्य करमचारियों के साथ सिलवासा से 15 किमी दूर खान्वेल भाग गए। 2 अगस्त 1954 को सिलवासा मुक्त घोषित कर दिया गया।[१०]
कप्तान फिदाल्गो, जो नगर हवेली के अंदरूनी हिस्से में छुपे थे, को आखिरकार 11 अगस्त 1954 में आत्मसमर्पण करना पड़ा। एक सार्वजनिक बैठक में कर्मलकर को प्रथम प्रशाशक के रूप में चुना गया।
भारत में संयोजन
स्वतंत्र होने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय (अन्तरराष्ट्रीय) न्यायलय द्वारा दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी।[१४]
1954 से 1961 तक, दादरा और नगर हवेली वरिष्ठ पंचायत द्वारा संचालित एक मुक्त प्रदेश रहा। 1961 में जब भारत ने गोवा को मुक्त किया तब श्री बदलानी को एक दिन के लिए राज्य-प्रमुख बनाया गया। उन्होंने तथा भारत के प्रधान मंत्री, जवाहर लाल नेहरु, ने एक समझौते पर हस्ताक्षार किया और दादरा और नगर हवेली औपचारिक रूप से भारत में संयोजित कर दिया।
भूगोल
यह केंद्र-साशित प्रदेश दो भिन्न भौगौलिक क्षेत्रों से बना है - दादरा और नगर हवेली। यह कुल ४९१ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तर-पशिम और पूर्व में वलसाड जिले से और दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में ठाणे और नाशिक जिले से घिरा हुआ है। दादरा और नगर हवेली के ज्यादातर हिस्से पहाड़ी है। इसके पूर्वी दिशा में सहयाद्री पर्वत श्रंखला है। प्रदेश के मध्य क्षेत्र में मैदान है जिसकी मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ है। दमनगंगा नदी पश्चिमी तट से ६४ किलोमीटर दूर घाट से निकल कर, दादरा और नगर हवेली को पार करते हुए दमन में अरब सागर से जा मिलती है। इसकी तीन सहायक नदिया - पीरी, वर्ना और सकर्तोंद भी प्रदेश की जल-श्रोत हैं।[१५] प्रदेश का लक्भाग ५३% हिस्से में वन है परन्तु केवल ४०% हिस्सा ही आरक्षित वन में गिना जाता है। समृद्ध जैव - विविधता इसे पक्षियों और जानवरों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बनाता है। यह इसे पारिस्थितिकी पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। सिलवासा वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक उचित पर्यावरण-पर्यटन स्थल।
जलवायु
दादरा और नगर हवेली के जलवायु अपने प्रकार में विशिष्ट है। तट के पास स्थित होने के नाते, यहाँ एक समुद्री जलवायु परिस्थितियां है। ग्रीष्म ऋतु गर्म और नम होती है। मई के महिना सबसे गरम होता है और अधिकतम तापमान 35° तक पहुँच जाता है। वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून हवाएं लती हैं वर्षा ऋतु जून से सितंबर तक रहती है। यहाँ साल में २००-२५० सेमी. वर्षा होती है और इसी कारण इसे पश्चिम भारत का चेरापूंजी कहाँ जाता है। सर्दियाँ काफी सुखद होती है और तापमान १४° से ३०° तक रहता है।[१६][१७]
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ http://www.dnh.nic.in स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, "Dadra and Nagar Haveli government website"
- ↑ अ आ इ http://bharat.gov.in/knowindia/state_uts.php?id=33 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, "History of DNH"
- ↑ http://dnh.nic.in/leave2007.html स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, "Public Holidays of D&N.H."
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ Mehta, J. L. Advanced study in the history of modern India 1707-1813 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ अ आ इ ई P S Lele, Dadra and Nagar Haveli: past and present, Published by Usha P. Lele, 1987,
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web