अनिवार्य सैन्य सेवा

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अनिवार्य सैन्य सेवा देश की सेना में हर नागरिक के अनिवार्य रूप से देश सेवा हेतु सेना में भर्ती को कहते हैं।[१] अनिवार्य सैन्य सेवा की अवधारणा हमे पुरातन काल से ही देखने को मिलती है। इसका वर्तमान प्रारूप १७९० के दशक में हुई फ़्रान्सीसी क्रान्ति से मिलता है जहाँ सेना को ताकतवर बनाने के लिये युवाओं को सेना में अनिवार्य रूप से भर्ती किया गया था। बाद में इसी अवधारणा को यूरोपीय देशों ने शान्तिकाल में लागू किया था, जिसके तहत १ से ८ वर्ष तक की सैन्य सेवा देने के पश्चात नागरिक को केन्द्रीय बलों में भेजा जाता है।

यह विचार काफी विवादित भी है। इसके आलोचक इसे धार्मिक, वैचारिक व राजनैतिक रूप से गलत ठहराते हैं। उनका मानना है कि वैचारिक मतभेद वाली या अलोकप्रिय सरकारों के लिये यह सेवा देना व्यक्तिगत आधिकारों का उल्लंघन है। यही बात जबरदस्ती किये गये युद्धों के समय भी सेवा करने पर लागू होती है। अनिवार्य सैन्य सेवा देने वाले व्यक्तियों के भागने का भी खतरा रहता है, और वह इस कारण से देश छोड़कर दूसरे देशों से शरण भी मांग सकते हैं।[२] इन खतरों से भली-भाँती परिचित होते हुए कुछ देशों ने वैकल्पिक सेवा की अवधारणा प्रारम्भ की है जिसमे सैन्य अभियान के अतिरिक्त सैन्य सेवाएँ और कभी कभी तो सेना के भी बाहर अन्य स्थानों पर सेवाएँ ली जाती हैं, जैसे फिनलैंड में 'सिवीलिपावेलस' (वैकल्पिक नागरिक सेवा), ऑस्ट्रिया तथा स्विट्ज़रलैंड में 'ज़िविलदिएन्स्त' (अनिवार्य सामुदायिक सेवा)। कई पूर्व सोवियत राष्ट्र पुरुषों को न केवल सेना में अनिवार्य रूप से भर्ती करते हैं बल्कि अर्द्धसैनिक बलों जैसे पुलिस के सामान केवल घरेलू सेवाएँ (आन्तरिक टुकड़ी) या ग़ैर युद्ध वाली बचाव सेवाएँ (नागरिक बचाव दल) में भी सेवाएँ लेते हैं, जिनमे से किसी को भी अनिवार्य सैन्य सेवा का विकल्प नहीं माना जाता है।

इक्कीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक बहुत से राष्ट्रों ने अनिवार्य सैन्य सेवा को खत्म कर चुके हैं तथा वे अब पेशेवर सैनिकों पर भरोसा करते हैं, जिसमे स्वैक्षिक सेवाएँ देने वाले स्वयंसेवक भी शामिल होते हैं। बहुत से राष्ट्र जो अनिवार्य सैन्य सेवा को समाप्त कर चुके हैं उनके पास भी युद्धकाल में इसे फिर से लागू करने का विकल्प उपलब्ध है।[३] वे राष्ट्र जो अक्सर बाह्य या आन्तरिक मोर्चों पर युद्ध झेलते रहते हैं, या झेल रहे हैं, उनमे अनिवार्य सैन्य सेवा लागू करने की प्रवृत्ति अधिक दिखती है, जबकि लोकतान्त्रिक देशों में इसे लागू करने की प्रवृत्ति तानाशाही वाले राष्ट्रों से काफी कम है।[४]

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
  2. साँचा:cite news
  3. साँचा:cite web
  4. Asal, Victor; Conrad, Justin; Toronto, Nathan (2017-08-01). "I Want You! The Determinants of Military Conscription". Journal of Conflict Resolution (in अंग्रेज़ी). 61 (7): 1456–1481. doi:10.1177/0022002715606217. ISSN 0022-0027.

बाहरी कड़ियाँ