बांसपार

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बांसपार उत्तर प्रदेश के जनपद महाराजगंज में तहसील सदर, घुघली ब्लॉक के अंतर्गत एक बड़ी एवं प्रसिद्ध ग्रामसभा है।

स्थिति

बांसपार जिला मुख्यालय को गोरखपुर से जोड़ने वाले प्रमुख संपर्क मार्ग पर मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। इसके निकटतम रेलवे स्टेशन खुशहालनगर (3 किलोमीटर), घुघली (10 किलोमीटर), तथा कप्तानगंज जंक्शन (14 किलोमीटर) हैं। यह जनपद के दो ब्लॉक घुघली और परतावल को जोड़ने का महत्वपूर्ण केन्द्र है।

इतिहास

ऐतिहासिक रूप से यह गाँव घृतकौशिक गोत्र के मिश्र ब्राह्मणोंसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] का बसाया हुआ है जो लगभग 4 शताब्दियों पूर्व समीपवर्ती बस्ती जनपद के धर्मपुरा नामक स्थान से आये थे। घने बाँसों से जंगल के पार इस स्थान को साफ कर उन्होंने इसे तथा आसपास के पचास से अधिक गांवों को बसाया। अंग्रेजी काल तक बांसपार 50 से अधिक गांवों का जमीदार रहा। ब्रिटिश काल में यह गाँव राष्ट्रीय मानचित्र पर तब आया जब 1921 में भारतीय राष्ट्रीय़ कांग्रेस की जिला समिति (तत्कालीन गोरखपुर) के जिलाध्यक्ष पद के लिये स्वर्गीय पंडित प्रसाद मिश्र को चुना गया तथा महात्मा गाँधी ने अपने निजी सचिव रघुपति सहाय ‘फ़िराक़ गोरखपुरी’ को संगठन को मजबूत बनाने के लिये छ: महीने के लिये बांसपार भेजा। वर्तमान में बांसपार ग्रामसभा के अंतर्गत अमसहाँ, अमसहीं तथा रामनगर भी आते हैं, जिनकी सम्मिलित जनसंख्या लगभग 7000 है। इस प्रकार यह जनपद के सबसे बड़े गांवों में से एक है।

जनांकिकी एवं विकास की स्थिति

बांसपार मूलत: मिश्र ब्राहमणों का गाँव हुआ करता था, परंतु समय के साथ इसकी जनांकिकी में भी बदलाव हुआ और वर्तमान में यहाँ सभी जातियों, प्रमुखत: हरिजन, पिछड़ी जातियों के मुसलमान, क्षत्रिय, वैश्य तथा अन्य पिछड़ी जातियाँ जैसे लुहार, नाई, तेली के भी परिवार रहते हैं। लेकिन इस इंद्रधनुषी जनांकिकी में आज भी संख्या और उन्नति के मामले में मिश्र ब्राहमणों का आधिक्य है। विकास के दृष्टिकोण से बांसपार अन्य पड़ोसी गाँवों की तुलना में भाग्यशाली रहा है, तथा पूर्णत: विद्युतीकृत है। गाँव के प्राय: सभी मकान पक्के हैं तथा सभी घरों तक शुद्ध पेयजल की आपूर्ति है। मुख्यत: यह पूर्व ग्राम प्रधान विजय कुमार मिश्र के पाँच वर्ष के कार्यकाल की देन है। संचार सुविधा भी उत्कृष्ट तरीके से उपलब्ध है।

शिक्षा

शिक्षा के मामले में बांसपार आगे कहा जायेगा। यहाँ एक प्राथमिक तथा एक माध्यमिक विद्यालय के अतिरिक्त एक योगेश्वर संस्कृत महाविद्यालय भी है, जो जनपद के चुनिंदा महाविद्यालयों में से एक तथा मंडल के सबसे पुराने संस्कृत कॉलेजों में से एक है। वर्तमान में यह महाविद्यालय सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से संबद्ध है। यहां के विद्यालय से पढ़े छात्र शिक्षा के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल कर चुके हैं। बांसपार गांव के ही डॉक्टर सिद्धार्थ कुमार मिश्र ने जैव रसायन से परास्नातक तथा डॉक्टरेट करने के बाद शोध क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है, तथा केन्द्रीय औषधीय एवम सगंध पौध संस्थान (सिमैप, लखनऊ) तथा गोविन्द वल्लभ पंत चिकित्सालय (नई दिल्ली) की सेवा करने के बाद वर्तमान में राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान संस्थान (सियोल, कोरिया) में शोधरत हैं। आज उनके नाम कई अंतर्राष्ट्रीय शोधपत्र[१][२][३] तथा पेटेंट[४] दर्ज हैं। उनकी पत्नी डॉक्टर स्वाति गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्वर्ण पदक विजेता होने के साथ एमिटी विश्वविद्यालय[५] के बाद वर्तमान में सियोल राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में अनुसंधानरत हैं। उनके नाम भी कई अंतर्राष्ट्रीय शोधपत्र[६][७][८] दर्ज हैं| इस वैज्ञानिक दंपति ने पूरे प्रदेश में बांसपार को प्रसिद्धि दिलाई है। सिद्धार्थ के छोटे भाई कार्तिकेय ने वर्ष 2003 की माध्यमिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश की हाईस्कूल परीक्षा में प्रदेश में पाँचवा स्थान प्राप्त किया| वषॆ 2012 मे़ं उन्होंने बहुप्रतिष्ठित संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आय़ोजित केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सहायक कमांडेंट) परीक्षा 2011 में चौथा स्थान प्राप्त कर क्षेत्र का नाम राष्ट्रीय पटल पर अंकित किया है।[९]

प्रमुख व्यक्तित्व

शिवदयाल मिश्र- गांव के संस्थापक

अमरनाथ मिश्र- स्वतंत्रता सेनानी एवं पूर्व विधानसभा सदस्य

योगेश्वर प्रसाद मिश्र- संत, संस्कृत महाविद्यालय के संस्थापक

भुवनेश्वर प्रसाद मिश्र- योगेश्वर मिश्र के पुत्र, गन्ना विकास समिति घुघली के भूतपूर्व अध्यक्ष, योगेश्वर संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक

विजय कुमार मिश्र- ग्राम प्रधान संघ महाराजगंज के पूर्व अध्यक्ष, विधान परिषद सभापति के प्रतिनिधि

सुदामा प्रसाद- अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य

हरिवंश (तूफानी)- जिला पंचायत समिति के पूर्व सदस्य

समीपवर्ती गाँव

संदर्भ सामग्री

साँचा:reflist

बाहरी कड़ियाँ

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