यूनानी भाषा
यूनानी या ग्रीक (साँचा:lang IPA: [eliniˈka] या साँचा:lang, IPA: [eliniˈci ˈɣlosa]), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतन्त्र शाखा है, जो यूनानी लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लम्बा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेण्ट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और लगभग 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है।
यूनानी भाषा के दो विशेष मतलब हो सकते हैं :
- प्राचीन यूनानी भाषा, जिसे एक शास्त्रीय भाषा माना जाता है।
- आधुनिक यूनानी भाषा, जो यूनान की राजभाषा है।
लिपि
सबसे पुरानी ग्रीक "मिसेनियन ग्रीक" (Mycenaean Greek) थी जिसे लिनियर बी (Linear B) लिपि में लिखते थे। इसी तरह का दूसरी प्रणाली भी थी जिसे "किप्रिआट सिलैबरी" (Cypriot syllabary) कहते हैं।
लगभग नौंवी शती ईसा पूर्व से ग्रीक भाषा को ग्रीक-अल्फाबेट के द्वारा लिखा जाता है। पुरानी ग्रीक में केवल बड़े अक्षर (upper-case letters) ही थे। छोटे अक्षरों का विकास तो मध्य काल में हुआ जब स्याही के उपयोग से तेजी से कागज पर लिखने की जरूरत आयी।
आधुनिक ग्रीक वर्णमाला में २४ वर्ण हैं। सभी वर्णों के बड़े रूप तथा छोटे रूप हैं। "सिग्मा" के दो छोटे-रूप प्रचलन में हैं।
बड़े अक्षर (Majuscule form) | ||||||||||||||||||||||||||||||||
Α | Β | Γ | Δ | Ε | Ζ | Η | Θ | Ι | Κ | Λ | Μ | Ν | Ξ | Ο | Π | Ρ | Σ | Τ | Υ | Φ | Χ | Ψ | Ω | |||||||||
छोटे अक्षर (Minuscule form) | ||||||||||||||||||||||||||||||||
α | β | γ | δ | ε | ζ | η | θ | ι | κ | λ | μ | ν | ξ | ο | π | ρ | σ | τ | υ | φ | χ | ψ | ω |
यूनानी भाषा का साहित्य
यूनान (ग्रीस) को हम बिना किसी अतिशयोक्ति के अनेकार्थ में यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा संस्कृति की जननी कह सकते हैं। ग्रीक लोग अत्यन्त चतुर, मेधावी तथा साहसी थे और उनके चरित्र में शारीरिक शौर्य के साथ बौद्धिक साहस का अनुपम सम्मिश्रण था। उनका साहित्य प्रचुर तथा सर्वांगीण था और यद्यपि उसका बहुत सा भाग कालकवलित हो चुका है और एक तरह से उसका भग्नावशेष ही उपलब्ध है, तथापि सुरक्षित अंश ही उसके गौरव का सबल साक्षी है। ग्रीक साहित्य पर विदेशी प्रभावों की छाप नहीं है; वह ग्रीक जाति के वास्तविक गुणों तथा त्रुटियों का प्रतिबिम्ब है। राष्ट्र तथा साहित्य के उत्थान पतन का इतिहास एक ही है और दोनों का सम्बन्ध अटूट है। ग्रीक भाषा का मूल स्रोत, वह प्राचीन भाषा है जो मानव जाति की सभी मुख्य भाषाओं का उद्गम मानी जाती है और जिसको भाषाविशारदों ने "इण्डो-जर्मनिक" नाम दिया है। कालान्तर में यह भाषा यूनान तथा निकटवर्ती एशिया माइनर में अनेक प्रादेशिक भाषाओं में विभक्त हो गई, जिनमें साहित्य की दृष्टि से चार के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं- दोरिक, ऐवोलिक, आयोनिक, तथा ऐतिक। ग्रीक साहित्य के निर्माण में इन चार प्रादेशिक भाषाओं का गौरवपूर्ण योग रहा है।
होमर तथा महाकाव्य साहित्य
ग्रीक काव्यसाहित्य का आरंभ होमर के महाकाव्य- "इलियड" तथा "ओडेसी" से होता है और उनको अपने साहित्य का वाल्मीकि कहना अनुचित नहीं होगा। अंतर केवल इतना ही है कि होमर ग्रीक काव्य के जन्मदाता नहीं थे क्योंकि उनके पहले भी एक लोकप्रिय काव्य परंपरा थी, जिससे वे प्रभावित हुए और जिसके बिखरे हुए तत्वों को एकत्र आकलित कर उन्होंने अपने महाकाव्यों का निर्माण किया। विद्वानों का मत है कि होमर के महाकाव्यों का धीरे-धीरे विकास हुआ और उनके निर्माण में कई व्यक्तियों का हाथ रहा है। होमर की भाषा "मिश्रित आयोनियाक" है और छंद विशेष हेक्सामीटर है। होमर का जन्म अनुमानत: एशिया माइनर के इस्मर्ना नामक स्थान पर ईसा के लगभग 900 वर्ष पूर्व हुआ था। पंरतु उनकी जीवनगाथा अंधकार में है। उनके महाकाव्य वीररस पूर्ण हैं और उनके पात्र देवोपम हैं। देवता भी मानवोचित गुणों तथा मनोविकारों से युक्त हैं, यद्यपि उनकी शक्ति तथा सुंदरता अलौकिक है। मानवजीवन का उत्थान पतन नियति के संकेत पर निर्भर है यद्यपि देवगण भी मनुष्य के सुख दु:ख, जय तथा पराजय के निर्णायक हैं और कुछ देवता को प्रसन्न करने के लिये वीरशिरोमणि तथा शक्तिशाली शासक (अगामेम्नन) भी अपनी कन्या का बलिदान कर देने के लिये सहर्ष तैयार हो सकता है। होमर के महाकाव्यों ने समस्त ग्रीक साहित्य को प्रभावित किया क्योंकि प्रशिक्षित प्रचारकों की टोली यूनान के विभिन्न भागों में घूम घूमकर जनता के सामने उनका पाठ करती थी। ऐसे कथावाचकों का रैप्सोदिस्त कहते थे जो कि हाथ में लारेस वृक्ष की छड़ी लेकर कवितापाठ करते थे और मुख्य स्थलों पर अभिनय भी करते थे।
होमर के प्रभाव के सबसे सबल साक्षी हेसियद हैं जो वोयतिया के नागरिक थे और जिनका प्रसिद्ध काव्य "कार्य ओर दिन" होमर की शैली में लिखा गया है। यद्यपि उनका दृष्टिकोण वैयक्तिक है और उनकी कविता उपदेशात्मक। इसमें उन्होंने अपने आलसी भाई को परिश्रम तथा कृषि की उपादेयता की शिक्षा दी है और राजनीतिक क्षेत्र में न्याय का सबल समर्थन किया है। उनका दूसरा काव्यग्रंथ "थियोग्री" के नाम से प्रसिद्ध है जिसके मुख्य विषय हैं सृष्टि का आरंभ तथा देवताओं की विभिन्न पीढ़ियों का इतिहास। होमर तथा हेसियद ग्रीक पौराणिक साहित्य के परिपोषक माने जाते हैं और उनके ग्रंथों से यह स्पष्ट है कि यूनानी विचार बहुदेवत्ववाद से एक देवाधिकदेव की कल्पना की ओर अग्रसर हो चला था।
एलिगाइअक तथा आईयंविक काव्य
ईसा पूर्व की आठवीं शताब्दी यूनान के इतिहास में राजनीतिक परिवर्तन का युग मानी जाती है, जिसमें राजसत्ता का ह्रास और लोकतंत्र का उदय हो रहा था। यूनानियों के लिये यह गहन चिंतन का समय था जिसका प्रभाव काव्य साहित्य में प्रतिबिंबित है। इन्हीं परिस्थितियों में एक नए काव्यरूप का उद्भव हुआ जिसको "एलिजी" नाम दिया गया। आजकल "एलिजी" में वे कविताएँ अभिहित की जाती हैं जो मृतात्माओं के शोक से संबंधित हो अथवा जिनमें जीवन की क्षणभंगुरता अथवा अतीत वैभव की नश्वरता पर भावपूर्ण प्रकाश डाला गया हो। परंतु प्राचीन ग्रीस में इसके अतिरिक्त भी अन्य सामयिक विषयों का एलेजी में समावेश होता था, ऐसी कविताओं में कवि के व्यक्तिगत भाव उत्सव के अवसरों पर जैसे युद्ध, प्रेम, राजनीति तथा दार्शनिक उपदेश श्रोताओं के समक्ष बाँसुरी के लय के साथ गाकर सुनाए जाते थे। इन कवियों की शैली महाकाव्यों से प्रभावित होते हुए भी उनसे भिन्न थी। होमर के षट्पदीय पद्य की इनमें पंचपदीय कर दिया गया था और ऐसी पंक्तियों का गुंफन विविध रूप के छंदों में होता था। इसी से मिलती जुलती आईयविक (पंचपदीय) कविताएँ थी जिनमें व्यंग्य का गहरा पुट होता था। इस काव्यधारा में उल्लेखनीय नाम आर्कीलोकस, सोलन, थियोग्नाज तथा सिमोनीदिज हैं।
शुद्ध गीतिकाव्य
आत्माभिव्यंजन का स्वतंत्र तथा शुद्ध रूप गीतिकाव्यों में पाया जाता है। प्राचीन ग्रीस में ऐसी कविताएँ वीणा के साथ गाई जाती थीं। शुद्ध गीतिकाव्य यूनान में "इयोलियन" भाषा की देन थी और इसका मुख्य केंद्र "लेस्बाज" था जहाँ ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में काफी राजनीतिक तनाव तथा संघर्ष चला था। सार्वजनिक जीवन के इस पहलू की झलक आल्कीयस के गीतों में मिलती है। परंतु इस क्षेत्र की मुख्य नायिका हैं साफी, जिनके गीतिकाव्य प्रगाढ़ प्रेमभाव से ओतप्रोत हैं। इनकी कविताएँ सखियों को भेजे प्रेमपत्रों की हैं। भाषा, भाव तथा संगीत का ऐसा सुखद समन्वय अन्यत्र दुर्लभ है। स्वयं अफलातून का कविहृदय उसकी याद में गा उठा था- साफी की प्राय: सारी रचनाएँ खंडित हैं। अधिकतर ये मिस्त्र की बालुकाभूमि से प्राप्त हुई।
दीरियाई ग्रीकों ने ईसा पूर्व 12वीं शती के पश्चात् एक ऐसे गीतिकाव्य को विकसित किया जिसका महत्व सार्वजनिक था और जो प्रशिक्षित कोरस रूप में देश तथा राष्ट्र अथवा नगर के पुनीत विजयत्योहारों और धार्मिक अवसरों पर गाए जाते थे। इनमें प्रसिद्ध "कोरस ओड" हैं, जहाँ छंदों की जटिलता, शैली का ओज तथा भावों की गरिमा सुंदर त्रिवेणी का संचारण करती हैं। इस क्षेत्र में सर्वप्रसिद्ध नाम पिंडार का है जिनके प्रभावशाली तथा क्लिष्ट परंतु असाधारण शब्दविन्यास से अलंकृत "आड" आज भी सजीव हैं। इन्हीं के साथ सिमोनिदिज का नाम भी लिया जाता है, जिनकी कविताओं में राष्ट्रीय एकता तथा देशप्रेम का गहरा पुट है और भाषा तथा शैली कलात्मक होते हुए भी अपेक्षाकृत सरल तथा बोधगम्य हैं।
ग्रीक रगंमंच
दु:खान्त तथा सुखान्त नाटक
ग्रीक साहित्य का चरमोत्कर्ष नाटकों में पाया जाता है जिनका केन्द्र एथेंस था और मुख्य भाषा "ऐतिक" थी। ग्रीक नाटक सार्वजनीन जीवन से सम्बन्धित रहे और उनमें मुख्य भावना तथा प्रेरणा धार्मिक थी। ग्रीक दु:खान्त का उद्भव सुरा के देवता दियोनिसस् के सम्मान में आयोजित कीर्तनों तथा आमोदों से हुआ जिसमें पुजारी बकरे का चेहरा लगाए मस्ती से गाते हुए घूमते थे। इन गीतों को "डिथारैव" कहते थे। इसी ने कालान्तर में नाटक का रूप धारण किया जब धर्मिक कोरस दो भागों में विभक्त हो गया- एक ओर देवता का दूत और दूसरी ओर उनके पुजारी। यही दूत नाटक का प्रथम पात्र माना जाता है। ईसापूर्व पाँचवीं शताब्दी के आरम्भ तक ग्रीक नाटक का रूप सुगठित हो चुका था और दु:खान्त नाटक के तीन मुख्य स्तम्भ इस्किलस, साफोक्लीज तथा युरोपिदीज इसी काल में (ई॰पू॰ चतुर्थ शताब्दी) इसको विकसित करने के लिये प्रयत्नशील हुए। इस्किलस ग्रीक दु:खान्त नाटक के पिता माने जाते हैं। यह सैनिक कवि थे और इनके नाटकों में ओजस्वी शैली के साथ ही कल्पना की ऊँची उड़ान तथा प्रगाढ़ देशप्रेम और अटूट धर्मिक विश्वास पाए जाते हैं। प्रधानता काव्यपक्ष की है और नाटकीय तत्व गौण है। अरिस्तीज तथा प्रीमेथ्यूज सम्बन्धी इनके नाटक विशेष प्रसिद्ध हैं। ग्रीक दु:खान्त के विकास में केंद्रीय स्थान इस्किलस के सफल प्रतिद्वन्द्वी सीफोक्लीज का है, जिन्होंने तीसरे पात्र का समावेश कर नाटकीय तत्वों, विशेषकर संवाद का दायरा विस्तृत किया। इनके नाटकों में मानव तथा अलौकिक तत्वों का कलात्मक सामंजस्य है और इनके पात्र, जैसे ईदिपस और ऐतीगोन, असाधारण व्यक्तित्व के होते हुए भी, मानवोचित विशेषताओं से परिपूर्ण है। वातावरण उच्च विचारों से प्रेरित है। यूरीपिदीज के नाटकों में प्राचीन मान्यताओं का ह्रास तथा आधुनिक दृष्टिकोण का उदय स्पष्टत: अंकित है। धार्मिक श्रद्धा के स्थान पर नास्तिकता, आदर्शवाद के स्थान पर यथार्थवाद, असाधारण पात्रों के स्थान पर साधारण पात्र पाठकों के समक्ष आते हैं। वे करुणरस के पोषक थे और उनके संवादों में जटिल तर्कों का समावेश है।
ऐसा माना जाता है कि इस अर्धशताब्दी के अल्पकाल में इस्किलस ने 70, सोफोक्लीज ने 113 और यूरापिदीज ने 92 नाटकों का निर्माण किया जिनमें अधिकांश लुप्त हो गए।
ग्रीक सुखान्त नाटक का उदय भी दियोनिसस देवता की पूजा से ही हुआ, परन्तु इस पूजा का आयोजन जाड़े में न होकर वसन्त में होता था और पुजारियों का जुलूस वैसे ही उद्दण्डता तथा अश्लीलता का प्रदर्शन करता था जैसा भारत में होली के अवसर पर प्राय: देखने में आता है। सुखान्त नाटक के विकास में दीरियाई लोगों का महत्वपूर्ण योग रहा, परन्तु इसका उत्कर्ष तो एतिका से ही सम्बन्धित है क्योंकि प्राचीन ग्रीक सुखान्त नाटक के प्रबल प्रवर्तक अरिस्तोफानिज का कार्यक्षेत्र तो एथेंस ही रहा। इस निर्भीक नाटककार ने ईसा पूर्व 427 से लेकर 40 वर्षो तक ऐसे सुखान्त नाटकों का सृजन किया जिनमें स्वच्छन्द कल्पना की उड़ान के साथ साथ काव्य की मधुरता, निरीक्षण की तीव्रता तथा व्यंगों की विदग्धता का आश्चर्यजनक सम्मिश्रण हैं। इन सुखान्तां में, "पक्षी", "भेक", "मेघ", "रातें" और प्राय: व्यक्तियों पर प्रहार किया गया है। इनमें से अनेक में सुकरात और उसके शिष्यों के राजनीतिक तथा न्याय सम्बन्धी कथोपकथनों, पेरिक्लीज की राजनीति तथा उसकी रखैल अस्पाजिया के तीव्र उपाहास प्रस्तुत हैं। कई स्थानों पर हास्यरस अश्लीलता से पंकिल हो उठा है। प्राचीन सुखान्त नाटकों का परिमार्जन यूनान के मध्यकालीन सुखांत नाटकों में हुआ, जिनमें बर्बरता तथा व्यक्तिगत व्यंगों के स्थान पर शिष्ट प्रहसन को प्रोत्साहन मिला जिसके पात्र प्राय: विभिन्न मानव वर्गी तथा त्रुटियों के प्रतीक होते थे। इस नवीन एवं सुखान्त नाटक के सजीव उदाहरण "प्लातस" तथा "तेरेंस" के रोमन नाटकों में मिलते हैं। मिनैंडर इसके सर्वप्रसिद्ध यूनानी प्रवर्तक थे। इन सुखान्त नाटकों में निम्नकोटि का वासनातत्व प्रधान है।
ग्रीक गद्य का विकास
ग्रीक गद्य का आविर्भाव संसार के अन्य साहित्यों की ही भाँति पद्य के पीछे हुआ। ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी के मध्य में ग्रीक गद्य तथा पद्य के क्षेत्र एक दूसरे से अलग होने लगे और बहुत से विचारों का अभिव्यंजन गद्य के माध्यम से होने लगा। कलात्मक गद्य के निर्माण में प्रसिद्ध ग्रीक इतिहासकारों, हेरोदोतस, थ्युसिदीइदिज तथा जेनोफोन ग्रीक दार्शनिकों जैसे हेराक्लीतस, अफलातून और अरस्तू तथा ग्रीक वाग्मियों तथा वाक्शास्त्रियों (रेटोरिशियनों) का काफी हाथ रहा। शास्त्रियों में मुख्य स्थान सोफिस्तां का था जो एथेंस में वक्ताओं का प्रशिक्षण करते थे और अपने काव्य तथा संगीतमय गद्यभाषणों से असत्य के ऊपर सत्य का मुलम्मा लगाकर लोगों को मुग्ध किया करते थे। इनके अनिष्टकारी प्रभावों का विरोध अफलातून ने मुक्तकंठ से किया और उनके पश्चात् अरस्तू ने इस शास्त्र का वैज्ञानिक विवेचन कर गद्य की विभिन्न शैलियों पर ऐसा प्रकाश डाला कि उनका विवेचन आज तक प्रमाणिक माना जाता है। अफलातून तथा उनके शिष्य अरस्तू दार्शनिक होने के साथ ही साहित्यसमीक्षक भी थे। दोनों की प्रतिभा बहुमुखी थी। परंतु प्लेटो की गद्यशैली साहित्यिक है और उसमें यथास्थान कवित्व का सुंदर पुट है अरस्तू का गद्य नीरस वैज्ञानिक का है जिसमें कलापक्ष गौण है विचारपक्ष मुख्य। यूरोप का समीक्षा साहित्य शताब्दियों तक अरस्तू के काव्यशास्त्र (पोइटिक्स) को बाइबिल के समान ही पुनीत समझता रहा। अरस्तू के शिष्य थियोफ्रेस्त्रस अपनी गद्यरचना "कैरेक्टर्स" के लिये प्रसिद्ध हैं।
प्राचीन साहित्य का अवसानकाल
ईसा पूर्व तृतीय शताब्दी के आरंभ में ग्रीक साहित्य अवसान की ओर अग्रसर होने लगा। सिकंदर के पिता फिलिप द्वितीय ने यूनानी स्वतंत्र राष्ट्रों की सत्ता पर कुठाराघात किया और सिकंदर ने स्वयं अपनी विश्वविजय की युगांतरकारी यात्रा में यूनानी साहित्य तथा संस्कृति को सार्वभौम बनाने का सक्रिय प्रयास किया। इस प्रकार यूनान के बाहर कुछ ऐसे केंद्रों का निर्माण हुआ जहाँ ग्रीक भाषा और साहित्य का अध्ययन नए ढंग से किंतु प्रचुर उत्साह के साथ होने लगा। इन केंद्रों में प्रमुख मिश्र की राजधानी अलेक्जांद्रिया थी जहाँ पर यूनानी साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान के हस्तलिखित ग्रंथों का एक विशाल पुस्तकालय बन गया जिसका विनाश ईसा पूर्व पहली सदी में जनरल आंतोनी के समय हुआ। इस नए केंद्र के लेखक तथा विद्वान् यूनान के लेखकों से प्रभावित तथा अनुप्राणित थे और विशेषकर विज्ञान क्षेत्र में उनका कार्य विशेष सराहनीय हुआ। परंतु साहित्य क्षेत्र में सृजनात्मक प्रतिभा का स्थान आलोचना तथा व्याकरण और व्याख्या साहित्य ने ले लिया। फलस्वरूप पुराने साहित्य की व्याख्या के साथ साथ बहुत से ग्रंथों की विशेषताओं की रक्षा संभव हुई। इस काल की कविता में नवीन तत्वों का विकास स्पष्ट है परंतु उसे साथ ही यह भी प्रकट है कि कविता का दायरा संकुचित हो गया और कविता जनता के लिये नहीं विशेषज्ञों के लिये लिखी जाने लगी। शैली कृत्रिम तथा अलंकारों से बोझिल हो गई और शब्दचयन में भी पांडित्य का आडंबर खड़ा हुआ। कवियों में मुख्य नाम है थियोक्रेतस का जो देहाती जीवन संबंधी गोचारण साहित्य (पैस्टोरल) के स्त्रष्टा माने जाते हैं और एपोलोनियस तथा कालीमैक्स का विशेष संबंध क्रमश: महाकाव्य और फुटकर गीतकाव्य, जैसे "एलिजी" और "एविग्रामों" से है।
ग्रीक-रोमन काल
ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के आसपास यूनान देश पर रोमन आक्रमणकारियों का आधिपत्य हो गया, परंतु उन्होंने ग्रीक साहित्य तथा दर्शन की महत्ता स्वीकार कर उनसे प्रेरित हो अपने राष्ट्रीयसाहित्य का उत्कर्ष करने का निश्चय किया। यही कारण है कि रोमन साम्राज्य के विविध भागों में यूनानी भाषा का प्रचार था और इसी भाषा के माध्यम से साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्ध ग्रंथों का निर्माण हो रहा था। इस साहित्य में मुख्य स्थान गद्य का है जो समीक्षा है। समीक्षकों में सर्वश्रेष्ठ "लांजाइनस" है जिसका प्रसिद्ध किंतु अपूर्ण ग्रंथ "शालीन के विषय में" प्राचीन समीक्षा साहित्य में अफलातून तथा अरस्तू के ग्रंथों का समकक्ष माना जाता है। इस ग्रंथ में साहित्य की शालीनता का विवेचन है और उदाहरण रूप में यूनान तथा रोम की सैकड़ों कृतियों का उल्लेख है। समीक्षक का साहित्य प्रेमप्रगाढ़ है और गद्य शैली में काव्यचमत्कार तथा ओजपूर्ण शब्दविन्यासों की भरमार है।
इस काल के दूसरे प्रसिद्ध तथा प्रभावशाली गद्यलेखक प्लूटार्क (46-120 ई.) हैं जो बायतिया के उच्च कुल में पैदा हुए थे और रोम में रहकर काफी ख्याति प्राप्त कर चुके थे। कन्या की अकाल मृत्यु से प्रेरित हो इन्होंने "कंसोलेशन" की रचना की जो कालांतर में लोकप्रिय हुई। प्लूटार्क प्रसिद्ध दार्शनिक तथा "एपोलो" के भक्त थे और उनके जीवन का अंतिम चरण साहित्यसेवा तथा देवार्चन में व्यतीत हुआ। इनके लेखों तथा भाषणों का संग्रह "मोरेलिया" के नाम से प्रसिद्ध है। प्लूटार्क का सर्वश्रेष्ठ तथा लब्धप्रतिष्ठ ग्रंथ ग्रीक तथा रोमनों का समानांतर चरित है जिसमें इन्होंने अपने इस दावे को सिद्ध किया है कि प्रत्येक रोमन का सामानांतर उदाहरण यूनानी इतिहास में उपलब्ध है। यह रचना संसार के प्रसिद्ध ग्रंथों में गिनी जाती है और इसमें ऐतिहासिक तत्व गौण होते हुए भी महत्वपूर्ण है, परंतु उससे अधिक महत्वपूर्ण है चरित्रचित्रण तथा रोचक कहानी की वह कला जिसने इसे अपने क्षेत्र का अमूल्य रत्न बना दिया है।
इसी युग में ग्रीक गद्य साहित्य ने कतिपय उपन्यासों का सृजन किया जो रोमांस के नाम से प्रसिद्ध हैं क्योंकि जीवन का यथार्थ रूप प्रस्तुत करना इनका मुख्य ध्येय नहीं है और यथार्थता कल्पना तथा अतिरंजन और आश्चर्यजनक घटनाओं से दबकर मृतप्राय हो गई है। इन रोमांस कृतियों में जैसे "तीर का एपोलोनियस", दाफ्नीस तथा क्लों या पास्तोरेलिया-प्रेम तथा असाधारण घटनाचक्र ही केंद्रस्थल है। नायक तथा नायिका का प्रेमोदय, तत्पश्चात् उनका अलगाव और फिर परिस्थितियों की चोट से इधर उधर भटकना, अंत में संयोगवश फिर मिलना और प्रेमसूत्र में एकत्व प्राप्त करना मूलत: यही इन ग्रंथों के मुख्य कथानक का सार है।
इस युग की ग्रीक कविता में मौलिकता तथा सजीवता का अभास है और अधिकांश काव्यसेवी साधारण श्रेणी के हैं। परंतु लूसियन (120-180) ई. का उल्लेख इस दिशा में महत्व का होगा। ग्रीक काव्य में नए जीवन का उसने संचार किया। लूसियन सीरिया में पैदा हुआ था और ग्रीक उसकी मातृभाषा नहीं थी परंतु उसने इस भाषा का इतने प्रेम और लगन से अध्ययन किया कि यह उसकी मातृभाषा हो गई। इसकी विशेष रुझान दर्शन की ओर थी जिससे प्रेरित होकर उसने अपने जीवन के सुनहले काल 40 वर्ष की अवस्था में एथेंस को कुछ समय के लिये अपना निवासस्थान बनाया था। परंतु दार्शनिकों की गंभीरता उसकी स्वभावजन्य चंचलता के विरुद्ध थी जिसके फलस्वरूप उसने समकालीन दार्शनिक आडंबरों के खंडन मंडन में ही अपनी लेखनी को सक्रिय किया। उसकी रचनाओं में "फालेरिस" तथा "मृतकों का डायलाग" विशेष उल्लेखनीय हैं। डायलाग व्यंग्य चित्रों से भरा है और उसमें मानव जाति के विचित्र कारनामों पर टीका टिप्पणी प्रस्तुत की गई है तथा नरक में अवतीर्ण मृतात्माओं की अच्छी जीवन झाँकी मिलती है। इन सभी रचनाओं में धनिकों के व्यवहार तथा विचरों के प्रति लेखक की घृणा तथा कड़ी आलोचना स्वत: प्रमाण है। इस तरह लूसियन की प्रतिभा व्यंगात्मक कटुता से प्रेरित थी और उनका व्यंग्य समकालीन जनजीवन तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने प्राचीन तथा समकालीन सभी धर्मिक आंदोलनों की कड़ी आलोचना की ओर देवताओं के डायलाग्स तथा सीरियक देवी के प्रति जैसी रचनाओं में देवताओं तथा उनके चमत्कारों की भी काफी खिल्ली उड़ाई। इस तरह लूसियन ग्रीस की पुरानी प्रवृति का ही प्रतिनिधि नहीं अपितु उसके समस्त साहित्य का प्रतिनिधि था। लेसियन के साथ ही क्लासिकल ग्रीक भाषा का अवसान हो जाता है और एक मिश्रित भाषा उसका स्थान ग्रहण करना आरंभ करती है क्योंकि उसकी मुख्य प्रेरणा का क्षेत्र ही बदल जाता है।
ग्रीक साहित्य तथा ईसाई धर्म
ईसाई धर्म के साथ ही ग्रीक भाषा में एक नई प्रेरणा का संचार होने लगा। ग्रीक चर्च तथा उसके आधीन बाहरी केंद्रों के नेताओं तथा संतों ने इसी भाषा के माध्यम से धार्मिक तथा आध्यात्मिक समस्याओं तथा भावनाओं का विवेचन तथा विश्लेषण करना आरंभ किया। धार्मिक रचनाओं में कुछ तो व्याख्यात्मक और उपदेशात्मक हैं, जैसे "संत पाल के प्रसिद्ध पत्र" और कुछ का संबंध व्यवस्था तथा संगठन से है, जैसे "फर्स्ट ईप्सिल ऑव कलीमेंट", परंतु अधिकंाश व्याख्यात्मक हैं, जैसे "इप्सिल ऑव बार्नवास"। इन रचनाओं में साहित्य तत्व गौण हैं, परंतु अलेक्जांद्रिया के प्रसिद्ध चर्च-पिता क्लेमेंट तथा ओरिजेन के गंभीर लेख विचारगरिमा के साथ ही साथ साहित्यिक शैली के भी प्रभावशाली उदाहरण हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वप्रसिद्ध ग्रंथ सीजेरा द्वारा लिखित "एक्लेज़ियास्टिकल हिस्ट्री" है जो तत्कालीन चर्च इतिहास का प्रामाणिक ग्रंथ है।
मध्यकालीन ग्रीक-साहित्य
मध्ययुगीन ईसाई लेखकों ने ग्रीक भाषा तथा शैली के माध्यम से प्राचीन यूनानी दर्शन तथा धर्म संबंधी मूल तत्वों का सामंजस्य अपने नए तथा प्रगतिशील धर्म से स्थापित करने का क्रम आरंभ किया। इसके फलस्वरूप पुरानी शैली के बहुत से तत्वों का पुनर्जन्म हुआ और अफलातून तथा अरस्तू के मुख्य सिद्धांतों को ईसाई धर्मशास्त्र में सम्मानपूर्ण स्थान मिला। इस नई विचारधारा के प्रबल समर्थक "बाइज़ैंटियम" के धार्मिक लेखक थे जो ग्रीक साहित्य तथा दर्शन से पूर्णतया अनुप्राणित थे। इसी धार्मिक केंद्र से उन गीतकाव्यों को प्रोत्साहन मिला जो चर्च में विविध पूजा तथा त्योहारों के अवसरों पर गाए जाते थे और आज तक "लितर्गी" तथा "हिम" (क्तन्र्थ्र्द) के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये गीतकाव्य पुरानी छंदपरंपरा को छोड़कर एक नई छंद प्रणाली का अनुसरण करते हैं और इनके बाह्म रूपों में आश्चर्यजनक भिन्नता है। परंतु भाषा इतनी लचीली है कि बिना किसी विशेष प्रयास के उन सभी भिन्न रूपों का उपयुक्त साधन बन जाती है। इन गीतकाव्यों का सर्वोत्तम विकास उन श्रृंखलाबद्ध धार्मिक गीतों में हुआ जो "कैनन" नाम से प्रसिद्ध हैं और जिनके सर्वश्रेष्ठ प्रवर्तक दमिश्क के संत जॉन थे। इस तरह की कविताएँ शताब्दियों तक लिखी जाती रहीं और इनमें शब्द तथा संगीत प्राय: संपृक्त हैं।
इसके साथ ही एक और नई साहित्यधारा का आविर्भाव हुआ जिसका संबंध ईसाई संतों के जीवन तथा चमत्कारों से था। इसमें सत्य तथा कल्पना का संमिश्रण है और इनके लेखक मध्ययुगीन रोमांसों के शैलीतत्वां तथा रोमांचकारी वर्णनों को अपनाते हुए पाठकों के हृदय में सांसारिक मनोरंजन के स्थान पर नैतिक तथा धार्मिक तत्वों के प्रति प्रेम तथा आस्था उत्पन्न करने में संलग्न प्रतीत होते हैं। इन लोकप्रिय ग्रंथों का उद्गम स्थान मिस्त्र के सत आथनी की "जीवनकथा" है जिसके लेखक चौथी शताब्दी के संत अथनासियस माने जाते हैं।
आधुनिक ग्रीक साहित्य
आधुनिक ग्रीक साहित्य के सर्वप्रधान अंग ऐसे पद्य, लेख तथा काव्य हैं जो सर्वसाधारण में प्रचलित भाषा में लिखे गए। वह भाषा जो क्लासिकल के विपरीत "डेमोटिक ग्रीक" के नाम से प्रसिद्ध है। इनमें अधिकांश लोकगीत की श्रेणी में आते हैं और लोकजीवन के उतार चढ़ाव के प्रतिबिंब हैं। इन गीतों की मुख्य प्रेरणा लौकिक है और इनके पढ़ने से महारानी एलिजाबेथ प्रथम के स्वर्णयुग में प्रचलित उन गीतिकाव्यों का स्मरण हो आता है जिनमें जवानी की उमंग, प्रकृतिप्रेम तथा सुरा सुंदरी में उत्कट लिप्सा के साथ ही मधुर पीड़ा भी है जो भौतिक सुख सौंदर्य की क्षणभंगुरता से आविर्भूत होती है। इस पंरपरा में कुछ ऐसे काव्य भी हैं जिनका महत्व ऐतिहासिक है और उद्गम्-स्त्रोत तत्कालीन दुर्घटनाएँ; उदाहरण के लिये हम उन लोकगीतों को ले सकते हैं जो कुस्तुंतुनिया के पतन पर शोक तथा उसके रक्षकों के साहस तथा शौर्य पर संतोष प्रकट करते हैं। इस प्रचुर काव्यसाहित्य के साथ लेखकों का व्यक्तिगत संबंध नहीं के बराबर है। यह लोकजीवन से पोषित हाकर समस्त जाति के सामूहिक विचारों तथा भावनाओं को प्रतिबिंवित करता है।
इसके अतिरिक्त आधुनिक ग्रीक साहित्य का अन्य प्रसिद्ध अंग वह है जिसपर पश्चिमी यूरोप की छाप गहरी है। पूर्व-पश्चिम कायह सम्मिलन मध्ययुगीन धर्मयुद्धों (क्रूसेडों) के समय हुआ जब फ्रांस, इटली इत्यादि देशों के धर्मवीर तुर्कों के विरोध में पूर्व की ओर अग्रसर हुए। इसी के फलस्वरूप प्रेम तथा साहसिक कार्य से संबंधित उन रोमांसों का जन्म हुआ जो मध्यकालीन फ्रेंच उपन्यासों से प्रेरित हैं और जिनका माध्यम देमौतिक ग्रीक है। 17वीं शताब्दी में दो जातियों का यह संमिश्रण क्रीट के प्रसिद्ध नगरों में सर्वाधिक सार्थक सिद्ध हुआ जिसके फलस्वरूप एक नए प्रकार के नाटक का आविर्भाव हुआ जो इतालीय रंगमंच से प्रेरित था। इस साहित्य में सर्वप्रसिद्ध नाम कोर्नारोस का है जो नाम से इटालियन हैं परंतु भाषा जिनकी यूनानी है। अपने "रोतोक्रितस" नामक लोकप्रिय उपन्यास में यह मध्ययुगीन रोमांस को आधुनिक मोड़ देने में सफल हुए हैं। क्रीट में इस नए साहित्य का उत्कर्षकाल केवल 50 वर्ष तक था क्योंकि 1669 ई. में क्रीट के पतन के साथ ही साहित्य का गौरव भी समाप्त हो गया, यद्यपि परवर्ती ग्रीक साहित्य पर इसका काफी प्रभाव पड़ा।
18वीं शताब्दी का उत्तरार्ध ग्रीस की राजनीतिक जागृति का संघर्षकाल था। इस जागृतिकाल में राष्ट्रभाषा का प्रश्न भी विचारणीय था। क्लासिकल ग्रीक, वैजंटियम की विशुद्ध भाषा, जो चर्च की भाषा थी और देमोतिक ग्रीक, जो लोकप्रचलित थी- इन्हों में से किसी एक का आधार मानकर राष्ट्रभाषा का निर्माण करना था। इस संघर्ष में कई असफल प्रयासों के पश्चात् अंत में लोकप्रचलित भाषा की विजय हुई और इस विजय का मुख्य श्रेय आधुनिक ग्रीस के सर्वश्रेष्ठ कवि "दियोनिसियीस सीलोमोंस" की हैं, जिन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि भाषा ही उच्च कोटि का सफल माध्यम हो सकती है। 20वीं शताब्दी के आरंभ तक पद्य तथा गद्य इसी माध्यम से लिखे जाने लगे, जिससे इस भाषा का पर्याप्त विकास तथा परिमार्जन हुआ। इस शताब्दी के मध्य तथा उत्तरार्ध में काव्य तथा उपन्यास ग्रीक साहित्य के विशिष्ट अंग रहे हैं। इस तरह से ग्रीक साहित्य तथा भाषा का इतिहास ईसा के पूर्व एक सहस्त्र वर्ष से आज तक लगभग अक्षुण्ण ही रहा है, यद्यपि इसके प्राचीन गौरव की पुनरावृत्ति बाद के युगों में कभी भी संभव नहीं हुई।
बाहरी कड़ियाँ
सामान्य
- Greek Language, Columbia Electronic Encyclopedia.
- The Greek Language and Linguistics Gateway, useful information on the history of the Greek language, application of modern Linguistics to the study of Greek, and tools for learning Greek.
- The Greek Language Portal, a portal for Greek language and linguistic education.
- The Perseus Project has many useful pages for the study of classical languages and literatures, including dictionaries.
भाषा शिक्षण
- Greek dictionary, tutorial and hangman program with texteditor, this shareware program is aimed at learning New Testament Greek.
- Greek spell checker
- साँचा:el icon komvos.edu.gr, a website for the support of people who are being taught the Greek language.
- New Testament Greek Three graduated courses designed to help students learn to read the Greek New Testament
- a keyboard for typing greek characters for firefoxसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- Books on Greek language that are taught at schools in Greece (page in Greek)
शब्दकोश
- Greek-English/English-Greek dictionary, साँचा:el icon
- Translatum - The Greek translation Vortal (Dictionaries and terminology forum)
- Greek Lexical Aids, descriptions of both online lexica (with appropriate links) and Greek Lexica in Print.
- Online Greek-English and English-Greek dictionary (Modern Greek)
- Online Greek <-> English Dictionary with gender and type of words
- The Greek Language Portal, dictionaries of all forms of Greek (Ancient, Hellenistic, Medieval, Modern)।
- Woodhouse English-Greek dictionary, scanned images from S.C. Woodhouse's 1910 dictionary.
- English to Greek Dictionary, English to Greek Dictionary.
साहित्य
- Books in Greek, an extended list of searchable bibliographic information.
- साँचा:el icon Center for Neo-Hellenic Studies, a non-profit organization set in order to promote Modern Greek Literature and Culture.
- Research lab of modern Greek philosophy, a large e-library of modern Greek texts/books.
- The Treasure of the Greek Language, a large collection of e-books from all stages of Greek language.
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
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- ↑ अ आ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Hellenic Republic: Ministry of Foreign Affairs: Italy: The Greek Community
- ↑ Hellenic Republic: Ministry of Foreign Affairs: France: The Greek Community
- ↑ Norwegian Institute of International Affairs: Centre for Russian Studies: 2002 census स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Greeks around the Globe स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (they are quoting the statistics of the General Secretariat for Greeks Abroad as on October 12, 2004)
- ↑ अ आ इ साँचा:cite web
- ↑ However according to the Human Rights Watch the Greek population in Turkey is estimated at 2,500 in 2006. "From “Denying Human Rights and Ethnic Identity” series of Human Rights Watch" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। Human Rights Watch, 2 जुलाई 2006.
- ↑ साँचा:cite web