मधेपुरा जिला

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मधेपुरा
दौराम मधेपुरा
—  जिला  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश साँचा:flag
राज्य बिहार
ज़िला मधेपुरा
निकटतम नगर सुपौल, सहरसा, पूर्णिया, अररिया, कैमूर और भागलपुर
जनसंख्या
घनत्व
45,015 (साँचा:as of)
क्षेत्रफल १,७८७ कि.मी² (६९० वर्ग मील)
आधिकारिक जालस्थल: madhepura.bih.nic.in

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मधेपुरा भारत के बिहार राज्य का जिला है। इसका मुख्यालय मधेपुरा शहर है। सहरसा जिले के एक अनुमंडल के रूप में रहने के उपरांत ९ मई १९८१ को उदाकिशुनगंज अनुमंडल को मिलाकर इसे जिला का दर्जा दे दिया गया। यह जिला उत्तर में अररिया और सुपौल, दक्षिण में खगड़िया और भागलपुर जिला, पूर्व में पूर्णिया तथा पश्चिम में सहरसा जिले से घिरा हुआ है। वर्तमान में इसके दो अनुमंडल तथा ११ प्रखंड हैं। मधेपुरा धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। चंडी स्थान, सिंहेश्वर स्थान, श्रीनगर, रामनगर, बसन्तपुर, बिराटपुर और बाबा करु खिरहर आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से हैं।

भौगोलिक स्थिति

कोशी नदी के मैदानों में स्थित इस जिले की स्थिति 25°. 34 - 26°.07’ उत्तरी अक्षांश तथा 86° .19’ से 87°.07’ पूर्वी देशान्तर के बीच है। इसके उत्तर में अररिया जिला तथा सुपौल जिला है तथा इसका उत्तरी छोर नेपाल से सिर्फ ६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। पूर्व की दिशा में पूर्णियां जिला, पश्चिम में सहरसा तथा दक्षिण में खगड़िया तथा भागलपुर हैं।

इतिहास

कहा जाता है कि पौराणिक काल में कोशी नदी के तट पर ऋषया श्रृंग का आश्रम था। ऋषया श्रृंग भगवान शिव के भक्त थे और वह आश्रम में भगवान शिव की प्रतिदिन उपासना किया करता था। श्रृंग ऋषि के आश्रम स्थल को श्रृंगेश्‍वर के नाम से जाना जाता था। कुछ समय बाद इस उस जगह का नाम बदलकर सिंघेश्‍वर हो गया। प्राचीन काल में मधेपुरा मिथिला राज्य का हिस्सा था| बाद में मौर्य वंश का भी यहां शासन रहा। इसका प्रमाण उदा-किशनगंज स्थित मौर्य स्तम्भ से मिलता है। मधेपुरा का इतिहास कुषाण वंश के शासनकाल से भी सम्बन्धित है। शंकरपुर प्रखंड के बसंतपुर तथा रायभीर गांवों में रहने वाले भांट समुदाय के लोग कुशान वंश के परवर्ती हैं। मुगल शासक अकबर के समय की मस्जिद वर्तमान समय में सारसंदी गांव में स्थित है, जो कि इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, सिंकंदर शाह भी इस जिले में घूमने के लिए आए थे।

प्रसिद्ध स्थल

सिंहेश्वर स्थान

यहाँ स्थित प्राचीन शिव मंदिर इस जिले का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषया श्रृंग के आश्रम में एक प्राकृतिक शिवलिंग उत्पन्न हुई थी। उस स्थान पर बाद में एक खूबसूरत मंदिर बना। एक व्यापारी जिसका नाम हरि चरण चौधरी था, ने वर्तमान मंदिर का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व करवाया था। यह शिवलिंग एक विशाल चट्टान पर स्थित है, जो कि करीबन 15-16 फीट ऊंचा है। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के दिन भक्तों तथा श्रद्धालुओं की यहाँ अपार भीड़ रहती है।

उदाकिशुनगंज सार्वजनिक दुर्गा मंदिर

मधेपुरा

मनोकामना शक्ति पीठ के रुप में ख्याति प्राप्त उदाकिशुनगंज सार्वजनिक दुर्गा मंदिर न केवल धार्मिक और अध्यात्मिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व को भी दर्शाता है। यहां सदियों से पारंपरिक तरीके से दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है। पूजा के दौरान कई देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है। मंदिर कमिटी और प्रशासन के सहयोग से विशाल मेले का भी आयोजन किया जाता है। अध्यात्म की स्वर्णिम छटा बिखेर रही सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि करीब 250 वर्षों से भी अधिक समय से यहां मां दुर्गा की पूजा की जा रही है। बड़े-बुजूर्गो का कहना है कि करीब 250 वर्ष पूर्व 18 वीं शताब्दी में चंदेल राजपूत सरदार उदय सिंह और किशुन सिंह के प्रयास से इस स्थान पर मां दुर्गा की पूजा शुरू की गयी थी। तब से यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रहा है। उन्होंने कहा कि कोशी की धारा बदलने के बाद आनंदपुरा गांव के हजारमनी मिश्र ने दुर्गा मंदिर की स्थापना के लिए जमीन दान दी थी। उन्हीं के प्रयास से श्रद्धालुओं के लिए एक कुएं का निर्माण कराया गया था, जो आज भी मौजूद है। उदाकिशुनगंज निवासी प्रसादी मिश्र मंदिर के पुजारी के रुप में 1768 ई में पहली बार कलश स्थापित किया था। उन्हीं के पांचवीं पीढ़ी के वंशज परमेश्वर मिश्र उर्फ पारो मिश्र वर्तमान में दुर्गा मंदिर के पुजारी हैं ।प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के दिन भक्तों तथा श्रद्धालुओं की यहाँ अपार भीड़ रहती है।

महर्षि मेंही अवतरण भूमि, मझुआ

यहाँ स्थित भव्य सत्संग आश्रम इस जिले का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है। यहाँ एक भव्य सत्संग आश्रम बना है, जो कि अत्यंत सुन्दर है. यहाँ संत शिशु सूरज जी बड़ी लगन से आश्रम का निर्माण करवाया.

२०वी सदी के महान संत महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज का जन्म मझुआ नामक गांव में हुआ था. इनका जन्म २८-०४-१८८५ ईस्वी को नानाजी के यहाँ हुआ. इनकी माता जी का नाम जनकवती देवी था. स्व श्री चुमन लाल जी व् स्व श्री जय कुमार लाल दास जी इनके मामा जी थे. श्री कामेश्वर लाल दास जी इनके ममेरे भाई हैं, जो की जयकुमार लाल दास जी के सुपुत्र है। https://www.facebook.com/MaharshiMenhiAvtaranBhumicom/

प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्दसी के दिन भक्तों तथा श्रद्धालुओं की यहाँ अपार भीड़ रहती है।

बाबा बिशु राउत पचरासी धाम

मधेपुरा के चौसा प्रखंड सबसे अंतिम छोर पर अवस्थित बाबा बिशु राउत पचरासी धाम लोगो की आस्था का केंद्र है |लोक देव के रूप में चर्चित पशु पलकों के लिए पूजन का महत्पूर्ण केंद्र मन जाता है |13 अप्रैल से शुभारंभ होने वाली पूर्वोतर बिहार के सबसे चर्चित लोक देवता बाबा विशु राउत पचारासी धाम का भव्य मेला का आयोजन लगभग २०० (अनुमानित ) बरसों से आयोजित हो रही है |मालूम हो कि बीते 14 अप्रैल 2015 को सूबे के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार स्वयं मेला का उद्घाटन कर लोक देवता बाबा विशु की प्रतिमा पर दुधाभिषेक किया |इसके पूर्व लालू प्रसाद ने भी अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में कई बार इस मेला में पहुंच कर बाबा विशु राउत की प्रतिमा पर दुधाभिषेक करने के बाद आयोजित आम सभा में पचरासी स्थल को पर्यटन दर्जा देने की घोषणा की गई थी। तत्कालीन पर्यटन मंत्री अशोक कुमार सिंह ने भी इसे पर्यटन का दर्जा देने की घोषणा की थी|

मधेपुरा से ६५किलोमीटर वं चौसा प्रखंड मुख्यालय से 7 किलोमीटर की दुरी पर है|

जानिए बाबा बिशु को: विभिन स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के शासनकाल में 1719 ईसवी में बाबा बिशु का उद्भव हुआ था। कोसी एवं अंग प्रदेश समेत पूर्वोत्तर बिहार में बाबा बिशु ने काफी प्रसिद्धि पाई और इनके प्रताप की वजह से ही पशुपालक अपने पशु के पहले दूध से बाबा का अभिषेक करते हैं। बाबा बिशु की वीरगाथा एवं पशु प्रेम को चरवाहों ने अपनी भाषा में लोकगीत को पिरोकर 349 वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी लगातार गा कर रखा है। लेकिन लोक आस्था का केंद्र विकास से कोसों दूर है। राज्य सरकार की घोषणा के बाद भी इस के पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में उदासीनता एवं लापरवाही बरती जा रही है। बस राजकीय स्थल को पर्यटनस्थल बनाए जाने की बात कमोबेश सभी राजनेताओं ने की है पर आज तक इस दिशा में सच्चे प्रयास का अभाव देखा जा रहा है।

मालूम हो कि संपूर्ण बिहार में खुलने वाले चरवाहा विद्यालय का प्रेरणा स्रोत इसी पर्वतीय स्थल को दिया जाता है भले की चरवाहा विद्यालय बंदी के कगार पर है। बाबा विशु राउत लोक देवता है जो पशुपालक एवं पशुओं के हितार्थ देवता माने जाते हैं। यहां बड़ी संख्या में पैदल चलकर अपने लिए मन्नत मांगते हैं। ऐसी मान्यता है कि समाधि स्थल पर कच्चा दूध चढ़ाया जाता है और दिन गुजर जाने के बाद भी यह दूध खराब नहीं होता है। आज भी महिला समेत लाखों श्रद्धालु एवं पशुपालन दिन के मेले में दुधारू पशुओं का दूध चढ़ाया एवं स्वस्थ रहने की मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की पूजा अर्चना में सैकड़ो मन दूध चढ़ाया जिसे मेला में दूध की धारा बहने लगी।

मालूम हो कि बाबा विशु राउत स्थान में सप्ताह में 2 दिन सोमवार और शुक्रवार को बैरागी (जोनर) लगता है। इस दिन दूर दराज से लोग अपने पशुओं के दूध को लेकर बाबा बिशु को दूध अर्पित करते हैं और प्रसाद के रूप में दही चूड़ा ग्रहण करते हैं। आज शुक्रवार होने के वजह से काफी भीड़ देखने को मिली। यहाँ तक कि लोगों का मेले में पैदल चलना भी दुश्वार था। प्रशासन को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।

इस मेला में उदाकिशुनगंज अनुमंडल पदाधिकरी शेख जियाउल हसन, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अरुण कुमार दुबे प्रसाशनिक व्यवस्था पर नजर गड़ाए हुए थे। मधेपुरा पुलिस अधीक्षक विकास कुमार भी मेले का निरीक्षण करने आए थे लेकिन भीड़ की वजह से मेला से करीब 5 किलो मीटर पहले उनके काफिले को वापिस होना पड़ा।


श्रीनगर

मधेपुरा शहर से लगभग २२ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में स्थित श्रीनगर एक गांव है। इस गांव में दो किले हैं। माना जाता है कि इनसे से एक किले का इस्तेमाल राजा श्री देव रहने के लिए किया करते थे। किले के पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर दो विशाल कुंड स्थित है। जिसमें पहले कुंड को हरसैइर और दूसर कुंड को घोपा पोखर् के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त यहां एक मंदिर भी है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में स्थित पत्थरों से बने स्तंभ इसकी खूबसूरती को और अधिक बढ़ाते हैं।

रामनगर

मुरलीगंज रेलवे स्टेशन से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर रामनगर गांव है। यह गांव विशेष रूप से यहां स्थित देवी काली के मंदिर के लिए जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष काली-पूजा के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।

बसन्तपुर

मधेपुरा के दक्षिण से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर बसंतपुर गांव स्थित है। यहां पर एक किला है जो कि पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है। माना जाता है कि यह किला राजा विराट के रहने का स्थान था। राजा विराट के साले कीचक, द्रौपदी से यह किला छिन लेना चाहते थे। इसी कारण भीम ने इसी गांव में उसको मारा था।

बिराटपुर

सोनबरसा रेलवे स्टेशन से लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर बिराटपुर गांव है। यह गांव देवी चंडिका के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर का सम्बन्ध महाभारत काल से है। कहा जाता है कि इस मंदिर का प्रमुख द्वार विराट के महल की ओर है। 11वीं शताब्दी में राजा कुमुन्दानंद के सुझाव से इस मंदिर के बाहर पत्थर के स्तम्भ बनवाए गए थे। इन स्तम्भों पर अभिलेख देखे जा सकते हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। इसके साथ ही यहां पर दो स्तूप भी है। लगभग 300 वर्ष प्राचीन इस मंदिर में काफी संख्या में भक्तों की भीड़ रहती है। मंदिर के पश्चिम से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा पर्वत है। लोगों का मानना है कि कुंती और उनके पांचों पुत्र पांडव इस जगह पर रहे थे।

बाबा करु खिरहर

बाबा करु खिरहर मंदिर महर्षि खण्ड के महपुरा गांव में स्थित है। बाबा करु खिरहर मंदिर का नाम एक प्रसिद्ध संत के नाम पर रखा गया था। आसाम, बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं बिहार के आस-पास के जिलों से काफी संख्या में लोग यहां आते हैं।

आवागमन

वायु मार्ग

यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पटना स्थित जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। पटना से मधेपुरा 234 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग

मधेपुरा रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन दौरम मधेपुरा है।

सड़क मार्ग

भारत के कई प्रमुख शहरों शहरों से मधेपुरा सड़कमार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा सकते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 31 से होते हुए मधेपुरा पहुंचा जा सकता है।

प्रमुख व्यक्ति

बी.पी. मंडल: बी.पी.मंडल एक राष्ट्रीय स्तर के नेता रहे थे। ये द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भी रहे जिसे मंडल आयोग के नाम से जाना जाता है।

बाहरी कड़ियाँ

इन्हें भी देखें