नरभक्षण
नरभक्षण[१] एक ऐसा कृत्य या अभ्यास है, जिसमें एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का मांस खाया करता है। इसे आदमखोरी भी कहा जाता है। हालांकि नरभक्षण अभिव्यक्ति के मूल में मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य के खाने का कृत्य है, लेकिन प्राणीशास्त्र में इसका विस्तार करते हुए किसी भी प्राणी द्वारा अपने वर्ग या प्रकार के सदस्यों के भक्षण के कृत्य को भी शामिल कर लिया गया है। इसमें अपने जोड़े का भक्षण भी शामिल है। एक संबंधित शब्द, "कैनिबलाइजेशन" (अंगोपयोग) के अनेक अर्थ हैं, जो लाक्षणिक रूप से कैनिबलिज्म से व्युत्पन्न हैं। विपणन में, एक उत्पाद के कारण उसी कंपनी के अन्य उत्पाद के बाजार के शेयर के नुकसान के सिलसिले में इसका उल्लेख किया जा सकता है। प्रकाशन में, इसका मतलब अन्य स्रोत से सामग्री लेना हो सकता है। विनिर्माण में, बचाए हुए माल के भागों के पुनःप्रयोग पर इसका उल्लेख हो सकता है।[२]
खासकर लाइबेरिया[३] और कांगो में, अनेक युद्धों में हाल ही में नरभक्षण के अभ्यास और उसकी तीव्र निंदा दोनों ही देखी गयी।[४] आज, बहुत ही कम जनजातियों में एक कोरोवाई हैं जो सांस्कृतिक अभ्यास के रूप में अभी भी मानव मांस भक्षण में विश्वास करते हैं।[५][६] विभिन्न मेलेनिशियन जनजातियों में रस्म-रिवाज के रूप में और युद्ध में अब भी इसका अभ्यास जारी है।[७] ऐतिहासिक रूप से, औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा आदिम मानव बताये जाने वालों को गुलाम बनाने के कृत्य के औचित्य के लिए नरभक्षण के आरोप का उपयोग किया गया था; सांस्कृतिक सापेक्षवाद की सीमा के परीक्षण के लिए कहा गया कि नरभक्षण मानवविज्ञानियों को चुनौती दे रहा है "स्वीकार्य योग्य मानव आचरण की हद से परे क्या है या नहीं है, इसे परिभाषित करने के लिए."[८] आज, नरभक्षण पर निर्णय आरक्षित करने का रुझान है।[९]
अतीत में दुनिया भर के मनुष्यों के बीच व्यापक रूप से नरभक्षण का प्रचलन रहा था, जो 19वीं शताब्दी तक कुछ अलग-थलग दक्षिण प्रशांत महासागरीय देशों की संस्कृति में जारी रहा; और, कुछ मामलों में द्वीपीय मेलेनेशिया में, जहां मूलरूप से मांस-बाजारों का अस्तित्व था।[१०] फिजी को कभी 'नरभक्षी द्वीप' (कैंनिबल आइलैंड) के नाम से जाना जाता था।[११] माना जाता है कि निएंडरथल नरभक्षण किया करते थे,[१२][१३] और हो सकता है कि आधुनिक मनुष्यों द्वारा उन्हें ही कैनिबलाइज्ड अर्थात् विलुप्त कर दिया गया हो। [१४]
अकाल से पीड़ित लोगों के लिए कभी-कभी नरभक्षण अंतिम उपाय रहा है, जैसा कि अनुमान लगाया गया है कि ऐसा औपनिवेशिक रौनोक द्वीप में हुआ था। कभी-कभी यह आधुनिक समय में भी हुआ है। एक प्रसिद्ध उदाहरण है उरुग्वेयन एयर फ़ोर्स फ्लाइट 571 की दुर्घटना, जिसके बाद कुछ बचे हुए यात्रियों ने मृतकों को खाया. इसके अलावा, कुछ मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति दूसरों को खाने और नरभक्षण करने के मामले में ग्रस्त रहे हैं, जैसे कि जेफरी डाहमर और अल्बर्ट फिश. नरभक्षण पर मानसिक विकार का लेबल लगाने का औपचारिक रूप से विरोध किया गया है।[१५]
धर्म, पौराणिक कथाओं, परी कथाओं और कलाकृतियों में नरभक्षण का विषय दर्शाया गया है; उदाहरणस्वरुप, 1819 में फ्रांसिसी शिला मुद्रक थियोडोर गेरीकौल्ट नेद राफ्ट ऑफ़ द मेडुसा में नरभक्षण को चित्रित किया है। लोकप्रिय संस्कृति में इस पर व्यंग्य किया गया है, जैसे कि मोंटी पायथन के लाइफबोट स्केच में.
नरभक्षण के कारण
"I believe that when man evolves a civilization higher than the mechanized but still primitive one he has now, the eating of human flesh will be sanctioned. For then man will have thrown off all of his superstitions and irrational taboos." —Diego Rivera[१६]
नरभक्षण के कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- सांस्कृतिक कसौटी द्वारा अनुमोनित
- अकाल की चरम परिस्थितियों में विवशता से
- पागलपन या सामाजिक विपथगामिता के कारण (ध्यान रखें कि पागलपन की औपचारिक तालिका, डायग्नोस्टिक एंड स्टटिस्टिकल मैन्युअल ऑफ मेंटल डिसऑडर (Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders) में नरभक्षण का उल्लेख नहीं है। इस विषय पर चिकित्सा साहित्य भी विरल है।[१५])
बुनियादी तौर पर दो प्रकार के नरभक्षी सामाजिक आचरण हैं; अंत:नरभक्षण (endocannibalism) (अपने समुदाय के मनुष्यों का भक्षण) और बहिश्चर्मनरभक्षण (exocannibalism) (अन्य समुदाय के मनुष्यों का भक्षण).
भोजन के लिए किसी मनुष्य की हत्या करने की परिपाटी (मानव घातक नरभक्षण) बनाम किसी मृत मनुष्य का मांस खाने (शव-नरभक्षण) के बीच एक तरह का नैतिक अंतर किया जा सकता है।
सिंहावलोकन
नरभक्षण कृत्यों का आरोप लगाकर उन्हें मानव समाज से अलग करने के लिए, नरभक्षण के खिलाफ सामाजिक कलंक को शत्रु के विरुद्ध एक प्रचार के पहलू के रूप में उपयोग किया जाता रहा। उदाहरण के लिए, जिनसे कैनिबलिज्म (नरभक्षण) शब्द व्युत्पन्न हुआ है, लेसर एंटीलेस की उस कैरीब जनजाति ने 17वीं शताब्दी में अपनी दंतकथाओं के अनुगामी बनकर नरभक्षी के रूप में एक दीर्घकालिक ख्याति अर्जित की। [८] इन दंतकथाओं की सच्चाई और संस्कृति में वास्तविक नरभक्षण की व्यापकता पर कुछ विवाद हैं।
15वीं सदी से लेकर 17वीं सदी तक अपने विस्तार की अवधि के दौरान यूरोपियों ने नरभक्षण की तुलना बुराई और बर्बरता से की। 16वीं सदी में, पोप इनोसेंट चतुर्थ ने नरभक्षण को एक पाप बताते हुए ईसाईयों द्वारा हथियारों के माध्यम से इसके लिए दंडित करने की घोषणा की; और स्पेन की रानी इजाबेला ने आदेश दिया कि स्पेनी औपनिवैशिक सिर्फ उन्हें ही गुलाम बना सकते हैं जो नरभक्षक हैं, इस तरह इस प्रकार के आरोप लगाने के लिए एक आर्थिक हित प्रदान कर दिया। मूल निवासियों को अपने अधीन करने के लिए हिंसक उपायों के प्रयोग के लिए इसे एक औचित्य के रूप में इस्तेमाल किया गया। कोलंबस के पुराने वर्णनों में इस विषय के संबंध में कथित रूप से क्रूर नरभक्षकों के एक समूह का जिक्र है, जो कैरिबियाई द्वीपों और दक्षिण अमेरिका के कैनिबा नामक भागों में रहते रहे, जिसने हमें कैनिबल शब्द दिया। [८]
दक्षिण-पूर्वी पापुआ की कोरोवाई जनजाति विश्व की उन बची हुई अंतिम जनजातियों में एक हो सकती है जो नरभक्षण में लगी हुई हो, हालांकि प्रजातांत्रिक गणराज्य कांगो और लाइबेरिया में बाल सैनिकों या कैदियों को भयभीत करने के लिए सैनिकों/विद्रोहियों द्वारा मानव अंग[१७] खाने की मीडिया की खबर है।[१८] मारविन हैरिस ने नरभक्षण और अन्य वर्जित खाद्य का विश्लेषण किया है। उनका तर्क है कि यह एक आम बात थी जब मनुष्य छोटी टोलियों में रहा करते थे, लेकिन राज्यों के संक्रमण में यह विलुप्त हो गया, अज्टेक्स (Aztecs) एक अपवाद हैं।
न्यू गिनी के फोर जनजाति में श्मशान नरभक्षण का एक सुप्रसिद्ध मामला है, जिसके परिणामस्वरुप प्रायोन अर्थात संक्रामक बीमारी कुरू का प्रसार हुआ। यह अक्सर ही अच्छी तरह से प्रलेखित माना जाता है, हालांकि किसी चश्मदीद गवाह का बयान दर्ज नहीं किया गया है। कुछ विद्वानों का कहना है कि हालांकि अंतिम संस्कार के दौरान मरणोपरांत अंगच्छेदन के अभ्यास रहे हैं, मगर नरभक्षण के नहीं। मारविन हैरिस ने अनुमान लगाया कि यह किसी अकाल की अवधि में हुआ जो यूरोपियों के आगमन का समकालीन रहा और इसे एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में युक्तिसंगत बना दिया गया।
प्राक-आधुनिक चिकित्सा में, नरभक्षण के लिए एक स्पष्टीकरण में कहा गया है कि यह एक काले उग्र स्वभाव से पैदा होता है, जो निलय की परत में बसा रहता है और मानव मांस का लोभ पैदा करता है।[१९]
कुछ शोधों ने, जिन्हें अब चुनौती पेश की गयी है, तब बड़े स्तर पर प्रेस का ध्यान आकर्षित किया था जब वैज्ञानिकों ने कहा था कि प्रारंभिक मानवों में नरभक्षण का अभ्यास रहा हो सकता है। बाद में आधार-सामग्री के पुनर्विश्लेषण से इस परिकल्पना में गंभीर समस्याएं पायी गयीं। मूल शोध के अनुसार, दुनिया भर में आधुनिक मनुष्यों में आम तौर पर पाए जाने वाले आनुवंशिक चिह्नकों (genetic markers) का कहना है कि आज अनेक लोगों में ऐसे जीन हैं जो मस्तिष्क की बीमारी से बचाव करते हैं, जिसका प्रसार मानव मस्तिष्क भक्षण से हुआ हो सकता है।[२०] बाद में इसकी आधार-सामग्री के पुनर्विश्लेषण से पता चला कि आधार-सामग्री का संग्रह पूर्वाग्रह से ग्रस्त था, जिस कारण गलत निष्कर्ष निकाला गया:[२१] कुछ मामलों में घटनाओं को बतौर सबूत 'आदिम' स्थानीय संस्कृति पर थोप दिया गया, जबकि दरअसल अन्वेषकों, समुद्र यात्रा में फंसे लोगों और फरार अपराधियों द्वारा नरभक्षण किये जाते रहे। [२२]
भुखमरी के दौरान
अकाल से पीड़ित लोगों द्वारा अंतिम सहारे के रूप में कभी-कभी नरभक्षण किया जाता रहा है।
- औपनिवेशिक जेम्सटाउन में, उपनिवेशियों ने 1609-1610 के दौरान नरभक्षण का सहारा लिया था, यह समय भुखमरी अवधि के रूप में जाना जाता है। खाद्य आपूर्ति समाप्त हो जाने के बाद, कुछ उपनिवेशियों ने भोजन के लिए कब्रों को खोदकर शव निकालने शुरू किये। इस दौरान, एक व्यक्ति ने सजा पाने से पहले स्वीकार किया कि उसने अपनी गर्भवती पत्नी को मारा, नमक लगाया और उसे खा लिया। इसके लिए सजा के तौर पर उसे ज़िंदा जला दिया गया।[२३]
- अमेरिका में, डोनर पार्टी नाम से ख्यात अधिवासियों के समूह ने जाड़े के समय बर्फ आच्छादित पहाड़ों पर नरभक्षण का सहारा लिया था।
- सर जॉन फ्रेंकलिन अभियान के बचे हुए अंतिम लोगों ने बैक रिवर की ओर किंग विलियम द्वीप के पार अपने अंतिम प्रयास के दौरान नरभक्षण का सहारा लिया।[२४]
- ऐसे अनेक दावे किये जाते हैं कि 1930 के दशक में द्वितीय विश्व युद्ध में लेनिनग्राड पर कब्जे के दौरान, युक्रेन के अकाल के समय बड़े पैमाने पर नरभक्षण हुआ,[२५][२६] और चीनी गृह युद्ध के समय तथा जनता के चीनी गणराज्य में ग्रेट लीप फॉरवर्ड (Great Leap Forward) के दौरान भी.[२७]
- अफवाह हैं कि द्वितीय विश्व युद्घ के दौरान नाजी यातना शिविरों में, जहां कैदी कुपोषण में जी रहे थे, नरभक्षण की अनेक घटनाएं घटीं.[२८]
- प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापानी सेना द्वारा भी नरभक्षण किया गया था।[२९]
- छनकर आयी एक खबर के अनुसार, हाल ही में एक और उदाहरण उत्तर कोरियाई शरणार्थियों द्वारा नरभक्षण का है, जो 1995 और 1997 के बीच किसी समय पड़े अकाल के समय और उसके बाद हुआ।[३०]'
- अपनी पुस्तक द रेक ऑफ़ द डुमारू (The Wreck of the Dumaru) (1930) में लोवेल थॉमस) ने उल्लेख किया है कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विस्फोट से डूब गए डुमारू जहाज के बचे हुए चालक दल के कुछ सदस्यों ने नरभक्षण किया था। टूटे हुए जहाज के जीवित लोगों द्वारा मजबूरी में नरभक्षण का एक अन्य मामला फ्रांसीसी जहाज मेडुसा का है, जो 1816 में समुद्र तट से कोई साठ मील दूर अफ्रीका के समुद्री क्षेत्र बैंक डी'आर्गुइन (Banc d'Arguin) (अंग्रेजी: द बैंक ऑफ़ आर्गुइन) (English: The Bank of Arguin) में फंस गया था।
- 1972 में, मोंटेवीडियो के स्टेला मैरिस कॉलेज की रग्बी टीम और उनके कुछ पारिवारिक सदस्यों से लदी उरुग्वेयाई एयर फ़ोर्स फ्लाइट 571 के जीवित बचे लोगों ने दुर्घटनास्थल में फंसे रहकर नरभक्षण का सहारा लिया था। वे वहां दुर्घटना स्थल पर 13 अक्टूबर 1972 से फंसे हुए थे, जबकि बचाव कार्य 22 दिसम्बर 1972 से शुरू हुआ। जीवित बचे लोगों की कहानी पियर्स पॉल रीड (Piers Paul Read) की 1974 की पुस्तक,Alive: The Story of the Andes Survivors, उस पुस्तक पर 1993 में बनी फिल्म अलाइव और 2008 के वृत्तचित्र: स्ट्रेंडेड: आई'हैव कम फ्रॉम अ प्लेन दैट क्रैशड ऑन द माउंटेंस (Stranded: I’ve Come From a Plane That Crashed on the Mountains) में दर्ज है।
- जार्ड डायमंड ने अपनी "गन्स, जर्म्स एंड स्टील" (Guns, Germs and Steel) में सुझाया है कि मोआई के निर्माण के कारण जंगलों की कटाई से पारिस्थितिकी तंत्र के नाश हो जाने से वहां मच्छीमार नौका बनाने तक के लिए लकडियां नहीं बच पाने से ईस्टर द्वीप में नरभक्षण किया गया।
पौराणिक कथाओं और धर्म का मूल विषय-वस्तु
नरभक्षण इसका चित्रण कई पौराणिक कथाओं में हुआ है और अक्सर ही इसके लिए जिम्मेदार बुरे चरित्र को ठहराया गया है या किसी गलती के लिए चरम प्रतिफल के रूप में देखा गया। ऐसे उदाहरणों में शामिल हंसेल एंड ग्रेटेल (Hansel and Gretel) की डायन और स्लाव लोककथाओं का बाबा यागा हैं।
ग्रीक पौराणिक कथाओं में नरभक्षण पर अनेक कहानियां शामिल है; विशेषकर करीबी पारिवारिक सदस्यों का नरभक्षण, उदाहरण के लिए, थायेस्टस (Thyestes), टेरिअस (Tereus) और खासकर क्रोनस (Cronus), जो रोमन देवालय का शनिदेव था, की कहानियां. टैंटलस (Tantalus) की कहानी भी इसी के अनुरूप है। शेक्सपियर के टाइटस एंड्रोनिकस (Titus Andronicus) का नरभक्षण का दृश्य इन पौराणिक कथाओं से प्रेरित है।
ईसाई परंपरा में, माना जाता है कि कम्युनियन और युकरिस्ट (Eucharist) के रूप में नरभक्षण का प्रारंभ (कुछ मामलों में प्रतीकात्मक) हुआ। कई प्रोटेस्टेंट, सामान्य रूप से, युकरिस्ट को प्रतीकात्मक मानते हैं, जबकि कैथोलिक और कुछ और्थोडॉक्स सिखाते हैं कि युकरिस्ट का शाब्दिक अर्थ, उनकी मान्यता में तत्व परिवर्तन[३१] या फिर सांस्कारिक मिलन[३२] से हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं में दुष्ट आत्माओं को "असुर" या "राक्षस" कहा गया है, जो जंगलों में रहते हैं और अति हिंसा सहित अपने ही तरह के प्राणियों का भक्षण किया करते हैं और अनेक अलौकिक शक्तियों से युक्त होते हैं। लेकिन ये सब शब्द "डीमॉन्स" का हिंदु समतुल्य हैं और वन में निवास करने वाली वास्तविक जनजातियों के लोगों से संबंधित नहीं हैं।
वेंडिगो (Wendigo)( विंडिगो (Windigo), वींडिगो (Weendigo), विंडएगो (Windago), विंडिगा (Windiga), विटिको (Witiko), विह्टीको (Wihtikow) और कई अन्य भिन्न रूप भी) एक पौराणिक प्राणी है, जो अल्गोनक्वियन (Algonquian) लोगों की पौराणिक कथाओं में दिखाई देता है। यह एक दुष्ट नरभक्षी आत्मा है, जो मनुष्य में रूपांतरित हो सकता है, या जो मनुष्य को आविष्ट कर सकता है। जो नरभक्षण में लिप्त रहे वे खास जोखिम में थे[३३] और इस अभ्यास को एक वर्जना के रूप में सुदृढ़ करने के लिए महान व्यक्ति प्रकट होता है। ओजिब्वे (Ojibwe) भाषा में नाम है वीन्डीगू (Wiindigoo) (अंग्रेजी शब्द का स्रोत[३४]), अल्गोनक्वियन भाषा में विड्जिगो (Wìdjigò) और क्री भाषा में विहटिकोव (Wīhtikōw);प्रोटो-अल्गोनक्वियन शब्द था *वि·नटेको·वा (*wi·nteko·wa), संभवतः जिसका मूल अर्थ है "उल्लू" ("owl").[३५]
सांस्कृतिक अपराध के रूप में
साँचा:mbox नरभक्षण की निराधार रिपोर्टों में नरभक्षणता को ऎसी संस्कृतियों से, जो अब तिरस्कृत, भयभीत, या अल्प ज्ञात हैं; अनुपातविहीन दर वाले मामलों से जोड़ा गया है। प्राचीन काल में, नरभक्षण की ग्रीक रिपोर्ट (अक्सर इस संदर्भ में आदमखोरी कहा जाता है), में इसे सुदूरवर्ती गैर-यूनानी जंगलियों से जोड़ा गया, या फिर ग्रीक पौराणिक कथाओं में इसकी पदावनति करके इसे 'आदिम' रसातली (chthonic) दुनिया में बदल दिया गया, जो ओलंपीय देवताओं के आने से पहले आता है: देखें कि किस तरह ओलंपियनवासियों के लिए टैंटलस द्वारा दी गयी नरभक्षी दावत के लिए उसके बेटे पेलोप्स ने मनुष्यों की बलि चढ़ाने से साफ तौर पर इंकार कर दिया था। दक्षिण सागर के सभी द्वीपवासी शत्रुओं के मामले में नरभक्षी थे। जब व्हेलशिप एसेक्स को 1820 में एक व्हेल द्वारा टक्कर मारकर डुबो दिया गया था तब कप्तान ने पाल वाली नौका से हवा की उल्टी दिशा में 3000 मील दूर चिली जाने का फैसला किया, लेकिन हवा की दिशा में 1400 मील मार्किसस जाना नहीं चाहा, क्योंकि उसने सुन रखा था कि मार्किससवासी नरभक्षी हैं। विडंबना यह है कि डूबे हुए जहाज के बचे हुए कई लोगों ने जीवित रहने के लिए नरभक्षण का सहारा लिया।
हालांकि, हरमन मेलविल्ले खुशी से मार्किसन तायपीस (तायपी) के साथ रहे, इन जनजातीय द्वीप समूह को नरभक्षक बताये जाने की अफवाह बहुत ही अनैतिक था, लेकिन वहां नरभक्षण के सबूत भी देखे गये। अपने आत्मकथात्मक उपन्यास तायपी में उन्होंने सिकुड़े हुए सिर देखने का जिक्र किया है और संघर्ष के बाद मारे गये योद्धाओं का जनजातीय सरदारों द्वारा समारोहपूर्वक भक्षण करने के पुख्ता सबूत होने की बात भी कही है।
द मैन-इटिंग मिथ: एन्थ्रोपोलोजी एंड एन्थ्रोपोफेजी (The Man-Eating Myth: Anthropology and Anthropophagy) के लेखक विलियम आरेंस[३६] ने नरभक्षण की रिपोर्टों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किया है और कहा है कि एक समूह के लोगों द्वारा दूसरे समूह के लोगों को नरभक्षी बताना कथित सांस्कृतिक श्रेष्ठता की स्थापना के लिए एक सुसंगत और स्पष्ट वैचारिक और शब्दाडंबरपूर्ण युक्ति है। खोजकर्ताओं, मिशनरियों और मानव-विज्ञानियों द्वारा उद्धृत सांस्कृतिक नरभक्षण के अनेक "क्लासिक" मामलों के विस्तृत विश्लेषण पर आधारित है आरेंस की थीसिस. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अनेक लोग नस्लवाद में फंस गये और अप्रमाणित तथ्यों, या दूसरों के कहे अथवा सुने-सुनाये साक्ष्य पर आधारित रहे। साहित्य की छानबीन में उन्हें एक भी विश्वसनीय चश्मदीद गवाह नहीं मिल पाया। और, जैसा कि वे बताते हैं, किसी व्यवहार के वर्णन से पहले उसका अवलोकन करना मानव-जाति विज्ञान की विशिष्टता है। अंत में उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि नरभक्षण प्रागैतिहासिक काल का व्यापक व्यवहार नहीं रहा था, जैसा कि दावा किया गया; कि अपने जिम्मेदार शोध के आधार पर नहीं बल्कि अपने सांस्कृतिक निर्धारित पूर्वकल्पित ख्यालों के आधार पर मानव विज्ञानी किसी समूह पर नरभक्षक होने का लेबल बड़ी जल्दी में चिपका देते थे। अक्सर असाधारण बनाने के लिए ऐसा किया जाता. उन्होंने लिखा है: साँचा:quote
आरेंस के निष्कर्ष विवादास्पद हैं और इसे उपनिवेशोत्तर संशोधनवाद के एक उदाहरण के रूप में उद्धृत किया गया है।[३७] उनके तर्क अक्सर ही गलत चित्रण करते हैं, जैसे कि "नरभक्षक कभी भी विद्यमान नहीं रहे",साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed] पुस्तक के अंत में वे असल में मानवशास्त्रीय शोध को अधिक जिम्मेदार और चिंतनशील दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान करने लगते हैं। वैसे हर हाल में, पुस्तक नरभक्षण साहित्य की कड़ी छानबीन के एक युग में ले जाती है। आरेंस द्वारा बाद में की गयी स्वीकृति के अनुसार, कुछ नरभक्षण के दावे कमजोर थे तो कुछ अन्य दावे मजबूत थे।
इसके विपरीत, मिशेल डी मोंटैगने के लेख "ऑफ़ कैनिबल्स" (Of cannibals) ने यूरोपीय सभ्यता में एक नए बहुसांस्कृतिक लक्षण से परिचय कराया. मोंटैगने ने लिखा है कि "'बर्बरता' को कोई जो कुछ भी कहे वह अभ्यस्त नहीं है।" इस तरह के शीर्षक का उपयोग करके और एक न्यायपूर्ण स्वदेशी समाज का वर्णन करते हुए, हो सकता है मोंटैगने अपने निबंधों के पाठकों में एक अचंभा उत्पन्न कर देने की इच्छा रखते हों.
लेखा-जोखा
आधुनिक मानवों में विभिन्न समूहों के बीच इसका चलन होता रहा है।[३८] अतीत में, इसका अभ्यास मानवों द्वारा यूरोप,[३९][४०] दक्षिण अमेरिका,[४१] उत्तरी अमेरिका के इरोकुओइअन (Iroquoian) लोगों के बीच, भारत,[४२] कैलिफोर्निया,[४३] न्यूजीलैंड,[४४] सोलोमन द्वीप समूह,[४५] पश्चिम अफ्रीका के हिस्से[६] और मध्य अफ्रीका,[६] पोलिनेशिया के कुछ द्वीप[६] न्यू गिनी,[४६] सुमात्रा,[६] और फिजी[४७] में होता रहा है, नरभक्षण के साक्ष्य उत्तरी अमेरिका की अनासाज़ी संस्कृति के चाको कन्योन के अवशेषों में भी पाए गये हैं।[४८][४९]
प्राक्-ऐतिहासिक
टिम व्हाइट जैसे कुछ मानव विज्ञानियों का मानना है कि उच्च पुरापाषाण युग के आरम्भ के पहले मानव समाज में नरभक्षण आम बात थी। निएंर्डेथल तथा अन्य निम्न/मध्य पुरापाषाण कालीन स्थलों से प्राप्त बड़ी तादाद में पाई गयीं "वध किये गये मानव" की हड्डियों पर यह सिद्धांत आधारित है।[५०] निम्न व मध्य पुरापाषाण युग में भोजन की कमी की वजह से नरभक्षण हुआ हो सकता है।[५१] एक ऐतिहासिक वृतांत के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया की आदिवासी जनजातियां निश्चित रूप से नरभक्षी थीं, लड़ाई में मारे गये लोगों के भक्षण से कभी नहीं चूकते और अपनी लड़ाई की क्षमता के लिए विख्यात व्यक्तियों की कुदरती मौत हो जाने से उन्हें भी हरदम खा लिया जाता था। "... दया के कारण और शरीर के मान के लिए - वे जानते थे कि वह अब कहां है - 'उससे बदबू नहीं आएगी!' "[97]
प्रारंभिक इतिहास
प्रारंभिक इतिहास और साहित्य में अनेक बार नरभक्षण का उल्लेख किया गया है। समारिया की घेराबंदी (2 किंग्स 6:25-30) के दौरान बाइबल में इसका जिक्र है। दो महिलाओं ने अपने बच्चों को खाने के लिए एक समझौता किया: एक मां ने अपने बच्चे को पकाया और दूसरी मां ने उसे खाने के बाद अपने बच्चे को पकाने से इंकार कर दिया। ई.सं.70 में रोम द्वारा यरूशलेम की घेराबंदी के दौरान इसी तरह की कहानी फ्लेविअस जोसेफस द्वारा बताई गयी और ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में रोम द्वारा नुमान्तिया की घेराबंदी के दौरान नरभक्षण और आत्महत्या के कारण नुमान्तिया की आबादी बहुत घट गयी थी। आठ वर्ष तक (ई.पू. 1073-1064) नील नदी में सुखाड़ का असर होने की वजह से हुई अकाल के कारण मिस्र में भी नरभक्षण के सुरक्षित प्रमाण उपलब्ध हैं।
हालांकि आधुनिक समय में, अक्सर अप्रामाणिक दूसरे-तीसरे द्वारा सुनी-सुनायी कहानियों के रूप में नरभक्षण की खबरें आती रहती हैं, जिनकी शुद्धता व्यापक रूप से बदलती रहती है। संत जेरोम ने अपने पत्र एगेंस्ट जोविनिआनस (Against Jovinianus) में चर्चा की कि अपनी विरासत के परिणामस्वरूप लोग अपनी वर्तमान स्थिति में कैसे आये और उसके बाद उन्होंने अनेक लोगों और प्रथाओं के उदाहरणों की सूची बनायी। सूची में, उन्होंने उल्लेख किया कि उन्होंने सुना है कि अट्टीकोटी (Atticoti) मानव मांस खाते हैं और मस्सागेटी (Massagetae) तथा डेरबीसेस (Derbices) (भारतीय सीमा के पास रहनेवाली एक जाति) वृद्धों की हत्या करके उन्हें खाया करते हैं। (--- तिबारेनी उन लोगों को वृद्ध होने पर सूली पर चढ़ाया करते थे जिनसे उन्हें पहले प्यार मिला था---). ; इस स्थान पर इसकी संभावना है कि संत जेरोम का लेखन अफवाहों पर आधारित है और स्थिति की सटीकता का प्रतिनिधित्व नहीं करता.[५२]
शोधकर्ताओं ने प्राचीन काल में नरभक्षण के भौतिक प्रमाण पाए हैं। 2001 में, ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के पुरातत्वविदों को ग्लूस्टरशायर में लौह युग में नरभक्षण के प्रमाण मिले। [५३] ग्रेट ब्रिटेन में हाल में 2000 साल पहले तक नरभक्षण के चलन रहा है।[५४] जर्मनी में, एमिल कार्थौस और डॉ॰ ब्रूनो बर्नहार्ड ने होन्न गुफाओं में (ई.पू.1000 - 700) नरभक्षण के 1,891 निशानों का अवलोकन किया।[५५]
मध्य युग
7वीं सदी की शुरुआत में मुस्लिम-कुरेस युद्धों के दौरान नरभक्षण के मामलों का उल्लेख है। 625 में उहुद युद्ध के समय हम्जाह इब्न अब्दु 1-मुत्तलिब की हत्या के बाद उसका कलेजा हिंद बिन्त 'उत्बाह ने खाया, वह (कुरेस सेना के एक सेनापति) अबू सुफ्यान इब्न हर्ब की पत्नी थी।[५६] हालांकि बाद में उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और वह इस्लामी उम्मयद खलिफात के संस्थापक मुआवियाह की मां थी; बाद में मुआवियाह पर अवांक्षनीय नेता और नरभक्षक का पुत्र होने का कलंक लगा।
नरभक्षण की रिपोर्ट प्रथम धर्मयुद्ध के दौरान भी दर्ज की गयी थी, मा'अर्रात अल-नुमान (Ma'arrat al-Numan) की घेराबंदी के बाद धर्म योद्धाओं ने मृत विरोधियों के शरीर का भक्षण किया। यह भी संभव है कि धर्म योद्धाओं ने मनोवैज्ञानिक युद्ध के हिस्से के रूप में ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया हो। अमीन मालौफ़ ने यरूशलेम की ओर कूच के समय नरभक्षण की अन्य घटनाओं पर भी चर्चा की है और पश्चिमी इतिहास से इनके उल्लेख को नष्ट करने के प्रयासों पर भी गौर किया। हंगरी के निवासी (पवित्र भूमि तक पहुँचने के लिए जो योद्धा उसी रास्ते से कूच कर रहे थे) भी नरभक्षी बताये गये, हालांकि यह शायद गलत था, क्योंकि हंगरीवासियों ने 10वीं सदी में ही मूर्तिपूजक से ईसाई बने। वास्तव में, हंगेरियन के लिए फ्रांसीसी शब्द होंगरे (hongre), अंग्रेजी शब्द ओगरे (ogre) का स्रोत हो सकता है .'[५७]यूरोप के 1315-1317 के महाअकाल के दौरान वहां की भूखी आबादी में नरभक्षण की कई रिपोर्ट आयी। यूरोप की ही तरह उत्तरी अफ्रीका में, अकाल के समय अंतिम उपाय के रूप में नरभक्षण के उल्लेख हैं।[५८]
मुस्लिम अन्वेषक इब्न बतुता ने बताया कि एक अफ्रीकी राजा ने आगाह किया था कि करीब के लोग नरभक्षी हैं (यह इब्न बतुता को घबरा देने के लिए राजा द्वारा किया एक मजाक भी हो सकता है).
यूरोप में थोड़े समय के लिए, एक असामान्य तरह का नरभक्षण शुरू हुआ, जब डामर में संरक्षित हजारों मिस्र की ममी बाहर लायी गयीं और दवा के रूप में बेच दी गयीं। [५९] यह एक व्यापक पैमाने का कारोबार बन गया, 16वीं शताब्दी के अंत तक फलता-फूलता रहा। यह "सनक" समाप्त हो गयी, क्योंकि पता चला कि वास्तव में वो ममी हाल ही में मरे गुलामों की थीं। दो सदी पहले तक, यह विश्वास किया जाता रहा था कि खून रोकने में ममी एक दावा का काम करती है और चूरे के रूप में ([[मानव ममी अवलेह|मानव ममी अवलेह]] देखें) उसे औषधि की तरह बेचा जाता था।[६०]
जब सोंग राजवंश में चीन का दमन हो रहा था, तब लिखी गयी कविता में भी शत्रुओं के भक्षण का उल्लेख है, हालांकि नरभक्षण शायद काव्यात्मक प्रतीक रहा हो, जो शत्रु के विरुद्ध घृणा की अभिव्यक्ति हो (मान जिआंग होंग देखें).
हालांकि इस पर सार्वभौमिक सहमति है कि कुछ मेसोअमेरिकी मानव बलि करते रहे हैं, लेकिन विद्वानों में इस बात पर आम सहमति नहीं है कि क्या प्राग-कोलंबियाई अमेरिका में नरभक्षण का चलन व्यापक था। एक अन्य चरम पर, मानव विज्ञानी मारविन हैरिस, कैनिबल्स एंड किंग्स के लेखक, का कहना है कि चूंकि अज्टेक (Aztec) के भोजन में प्रोटीन की कमी हुआ करती थी, इसलिए शिकार व्यक्ति के मांस को बतुर इनाम एक राजसी भोजन का एक हिस्सा माना जाता था। जबकि अधिकांश प्राक्-कोलंबियाई इतिहासकार मानते हैं कि मानव बलि से संबंधित नरभक्षण का रिवाज था, लेकिन वे हैरिस के इस शोध का समर्थन नहीं करते हैं कि मानव मांस अज्टेक भोजन का कभी भी महत्वपूर्ण भाग रहा है।[६१][६२][६३] दूसरों ने अनुमान लगाया है कि नरभक्षण युद्ध में रक्त-प्रतिशोध एक हिस्सा था।[६४]
प्रारंभिक आधुनिक युग
यूरोपीय अन्वेषकों और उपनिवेशवादियों ने देसी लोगों के बीच नरभक्षण के अभ्यास की अनेक कहानियां अपने देश में सुनायी. रोमन कैथोलिक भिक्षु डिएगो डी लांडा ने युकाटान बिफोर एंड आफ्टर द क्न्क्वेस्ट में युकाटान के उदाहरण दिए हैं, यह पुस्तक रिलेसियन डी लास कोसास डी युकाटन से, 1566 अनुदित है (न्यू यॉर्क: डोवर पब्लिकेशंस, 1978:4). पर्चाओं द्वारा इसी तरह की ख़बरें मिलीं कि पोपायन, कोलंबिया और पोलिनेसिया के मार्कंसस द्वीपों में मानव मांस लौंग पिग कहलाता है (अलाना किंग, सं.,साऊथ सीज, लन्दन में रॉबर्ट लुईस स्टीवेंसन : लुजाक पारागोन हाउस (South Seas, London: Luzac Paragon House), 1987:45-50) में. ब्राजील के सर्गिपे के स्थानीय लोगों में इसके प्रचलन को दर्ज किया गया है, "वे मिलने पर मानव मांस का भक्षण किया करते हैं और अगर किसी महिला का गर्भपात हो जाय तो अकालप्रसूत को बड़े शौक से तुरंत खा लिया जाता है। अगर उसका समय पूरा हो जाता तो वह खुद ही सीप से नाभी-नाल को काट डालती, जिन्हें सेकेंडाइन (secondine) के साथ उबालकर वह खा लेती है।"[६५][६५]
टेक्सास की जनजातियों में नरभक्षण की रिपोर्ट अक्सर कारान्कावा (Karankawa) और टोनकावा (Tonkawa) पर लागू होती रही। [६६][६७] हालांकि नरभक्षी, भयंकर टोनकावा टेक्सास के गोरे अधिवासियों के बड़े अच्छे मित्र थे, उन्होंने उनके तमाम शत्रुओं के खिलाफ उनकी मदद की। [६८] उत्तरी अमेरिकी जनजातियों में नरभक्षण के कुछ रूप को मोंटागनेस और मैने की कुछ जनजातियों के रूप में उल्लेख किया जा सकता है; अल्गोंकिन, आर्मुचिक्वोईस, इरोक्वोईस और मिकमैक; दूर पश्चिम के अस्सिनीबोइन, क्री, फोक्सेस, चिप्पेवा, मियामी, ओटावा, किकापू, इलिनोइस, सीओक्स और विन्नेबागो; दक्षिण में फ्लोरिडा में टीला बनाने वाले लोग और टोनकावा, अटाकापा, कारान्कावा, कड्डू और कोमांचे (?);; उत्तर-पश्चिम और पश्चिम में, महादेश के हिस्सों में, थ्लिंगचाडीन्नेह और अन्य अथापास्कन जनजातियां, त्लिनगिट, हिल्टसुक, क्वाकिउटी, सिमशियन,नूट्का, सिकसिका, कुछ कैलिफोर्नियाई जनजातियां और उटे में यह चलन रहा है। होपी में भी इसकी एक परंपरा है और न्यू मेक्सिको तथा एरिजोना की अन्य जनजातियों में इस रिवाज का उल्लेख है। मोहौक और अटाकापा, टोनकावा और टेक्सास की अन्य जनजातियां अपने पड़ोसियों के बीच "आदमखोर" के रूप में जानी जाती थीं।[६९]
देसी नरभक्षण की सबसे भयंकर कहानियां होने पर भी इन कहानियों की छानबीन बड़ी सावधानी से की गयी, क्योंकि "जंगलियों" की पराधीनता और विनाश को उचित ठहराने के लिए नरभक्षण के आरोप अक्सर ही लगाये जाते रहे। हालांकि, ऐसे अनेक सुरक्षित दस्तावेज हैं जिनसे संस्कृतियों में मृतकों के नियमित भक्षण को दर्शाया गया है, जैसे कि न्यूज़ीलैंड के माओरी. 1809 में एक कुख्यात घटना घटी थी, जिसमे नॉर्थलैंड के व्हानगारोआ प्रायद्वीप के माओरियों ने बोयड जहाज के यात्रियों और चालक दल के 66 लोगों को मारकर खा लिया था। (यह भी देखें: बोयड नरसंहार)माओरी युद्ध में नरभक्षण एक नियमित अभ्यास था।[७०] एक अन्य उदाहरण में, 11 जुलाई 1821 को नगापुही जनजाति ने 2000 दुश्मनों को मार डाला और वे पराजितों को खाने के लिए तब तक युद्धस्थल पर रहे जब तक कि सड़ती लाशों की दुर्गंध उनके लिए असहनीय न हो गयी।[७१] पाई मरिरे धर्म के अतिवादी हौहौ आंदोलन के एक भाग के रूप में नरभक्षण के प्राचीन रिवाज को पुनर्जीवित करने के लिए माओरी योद्धाओं ने 1868-69 में न्यूज़ीलैंड के उत्तरी द्वीप में न्यूजीलैंड सरकार के साथ टिटोकोवारु का युद्ध किया।[७२]
प्रशांत महासागर के अन्य द्वीपों की संस्कृतियां एक हद तक नरभक्षण की अनुमति दिया करती थीं। पोलिनेशिया के मार्क्विसास द्वीपों की सघन आबादी संकरी घाटियों में केंद्रित थीं और ये योद्धा जनजातियां थीं, जो कभी-कभी अपने शत्रुओं का नरभक्षण किया करतीं. मेलानेशिया के कुछ हिस्सों में, 20वीं सदी के आरंभ तक विभिन्न कारणों से नरभक्षण जारी रहा था, इसमें बदला, शत्रु को अपमानित करना, या मृत व्यक्ति के गुणों को खुद में समाहित करना शामिल है।[७३] कहा जाता है कि फिजी के एक जनजाति प्रमुख ने 872 लोगों का भक्षण किया और अपनी इस उपलब्धि को दर्ज करने के लिए एक पत्थर का स्तंभ खड़ा किया।[७४] नरभक्षक जीवन शैली की क्रूरता से भयभीत यूरोपीय नाविक फिजी की समुद्री सीमा के करीब जाने से डरते रहे, उन्होंने फिजी को नरभक्षक द्वीपों का देश नाम दिया।
यह समयावधि जीवित रहने के लिए खोजकर्ताओं और नाविकों द्वारा नरभक्षण का सहारा लेने के उदाहरणों से भरी पड़ी है। 1816 में लठ्ठों के एक बेड़े पर चार दिनों तक दिशाहीन बहने के बाद फ्रांसिसी जहाज मेडुसा के जीवित बचे लोगों ने नरभक्षण का सहारा लिया था और थियोडोर गेरीकौल्ट (Théodore Géricault) की पेंटिंग राफ्ट ऑफ़ द मेडुसा (Raft of the Medusa) ने उनकी दुर्दशा को मशहूर कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका की डोनर पार्टी का दुर्भाग्य भी सुविख्यात है। 20 नवम्बर 1820 को एक व्हेल द्वारा नांटूकेट के एस्सेक्स को डुबो दिए जाने के बाद, (हरमन मेलविले के मोबी-डिक का एक महत्वपूर्ण घटना स्रोत) तीन नौकाओं पर सवार जीवित बचे लोगों ने आपसी सहमति से नरभक्षण का सहारा लिया, ताकि कुछ को बचाया जा सके। [७५] सर जॉन फ्रेंकलिन का विफल ध्रुवीय अभियान भी हताशा में नरभक्षण का एक और उदाहरण है।[७६] भूमि पर, डोनर पार्टी ने कैलिफोर्निया में एक ऊंचे पहाड़ के घाटी मार्ग पर खुद को फंसा हुआ पाया, मैक्सिकन-अमेरिकन युद्ध के कारण उन्हें पर्याप्त आपूर्ति भी नहीं हो पाई, जिससे उन्हें नरभक्षण का सहारा लेना पड़ा.[७७]
आर वी. डुडली एंड स्टीफेंस (1884) 14 QBD 273 (QB) का मामला एक इंग्लिश मामला है, जिसमे एक इंग्लिश याट मिग्नोनेट के चार कर्मी सदस्य केप ऑफ़ गुड होप से कुछ साँचा:convert एक तूफ़ान में दूर बह जाते हैं। कई दिनों के बाद एक सत्रह वर्षीय केबिन कर्मचारी भूख और समुद्री पानी पी लेने की वजह से बेहोश हो जाता है। दूसरों ने (संभवतः एक ने आपत्ति की थी) तब उसे मार कर खा जाने का फैसला किया। उन्हें चार दिन बाद वहां से ले जाया गया। बचे हुए तीन में से दो को हत्या का दोषी पाया गया। इस मामले का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह था कि हत्या के मामले में आवश्यकता को बचाव के लिए ढाल नहीं बनाया जा सकता.
कांगो फ्री स्टेट स्थित लेक मांटुम्बा से 3 अगस्त 1903 को रोजर केसमेंट ने लिस्बन स्थित अपने एक कौंसुलर साथी को लिखा: "यहां के सभी लोग नरभक्षी हैं। तुमने अपने जीवन में कभी भी ऐसे अजीब लोग नहीं देखे होंगे. जंगल में ऐसे बौने (बटवा नाम के) भी हैं जो लंबे मानवों से भी कहीं अधिक बदतर नरभक्षी हैं। वे मनुष्य का कच्चा मांस खा लिया करते हैं! यह एक सच्चाई है।" केसमेंट ने आगे लिखा कि किस तरह हमलावरों ने "घर जाते वक्त वैवाहिक भोज की हांड़ी के लिए एक बौने को मार गिराया...जैसा कि मैंने कहा, बौनों को रसोई की हांड़ी की जरूरत नहीं, वे युद्धस्थल में ही अपने मानव शिकार को खाते और पीते हैं, जब खून गर्म हो्ता है और बहता रहता है। ये कोई परीकथा नहीं हैं मेरे प्यारे कोव्पर, बल्कि इस बेचारे, अंधकारपूर्ण असभ्य देश के केंद्र की एक वीभत्स वास्तविकता है।" (नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ आयरलैंड, एमएस 36,201/3)
आधुनिक युग
द्वितीय विश्वयुद्ध
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आवश्यकता से नरभक्षण के अनेक उदाहरण दर्ज किए गए हैं। उदाहरण के लिए, लेनिनग्राड की घेराबंदी के 872 दिनों के दौरान, 1941-1942 की सर्दियों में सारे पक्षी, चूहे और पालतू पशुओं की समाप्ति के बाद नरभक्षण शुरू हुए. लेनिनग्राड पुलिस ने नरभक्षण को रोकने के लिए एक विशेष प्रभाग तक का गठन किया था।[७८][७९] स्टालिनग्राड पर सोवियत जीत के बाद पाया गया कि घेरे गए नगर में आपूर्ति काट दिए जाने से कुछ जर्मन सैनिकों ने नरभक्षण का सहारा लिया था।[८०]
बाद में, फरवरी 1943 में, लगभग 100,000 जर्मन सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया था। उनमें से लगभग सभी को साइबेरिया या मध्य एशिया के युद्धबंदी शिविरों में भेजा गया, जहां सोवियत बंदीकर्ताओं द्वारा अनेक समय से उनके अल्प-पोषण के कारण उनमे से अनेक ने नरभक्षण का सहारा लिया। 5,000 से भी कम कैदी जीवितावस्था में स्टालिनग्राड लाये गये। हालांकि, आत्मसमर्पण करने से पहले ही घेराबंदी के हालात में अरक्षितता या बीमारी के कारण अपनी कैद के आरंभ में ही अधिकांश कैदी मर गये थे।[८१]
टोक्यो न्यायाधिकरण के ऑस्ट्रेलियाई युद्ध अपराध अनुभाग ने अभियोग पक्ष के वकील विलियम वेब (भावी प्रमुख न्यायाधीश) के नेतृत्व में अनेक लिखित रिपोर्ट और साक्ष्यों को जमा किया जिनसे पता चलता है कि जापानी सैनिकों ने ग्रेटर ईस्ट एशिया को-प्रोस्पेरिटी स्फेयर के अनेक भागों में अपनी ही सेना के अंदर, मृत शत्रुओं और मित्र राष्ट्र के युद्धबंदियों का नरभक्षण किया।[notes १][८२]साँचा:rp इतिहासकार युकी तनाका के अनुसार, "नरभक्षण एक अधिकारी की कमान में पूरे सैन्य दल द्वारा संचालित अक्सर एक व्यवस्थित गतिविधि हुआ करता था।[८३]
कुछ मामलों में, जीवित लोगों के शरीर से मांस के टुकड़े काट लिए गये। एक भारतीय युद्धबंदी, लांस नायक हातम अली (बाद में पाकिस्तान के नागरिक) ने न्यू गिनी में गवाही दी: "जापानियों ने कैदियों का चयन शुरू किया और हर दिन एक कैदी बाहर ले जाया जाता और उसे मार कर सैनिक खा लिया करते थे। मैंने व्यक्तिगत तौर पर ऐसा होते देखा है और यहां लगभग 100 कैदियों को जापानियों ने खाया है। हममें से बाकी बचे लोगों को 50 मील [80 किमी] दूर दूसरी जगह ले जाया गया, जहां बीमारी से 10 कैदियों की मृत्यु हो गई। उस स्थान पर भी, जापानियों ने खाने के लिए कैदियों का चयन करना शुरू कर दिया. जिनका चयन किया जाता, उन्हें एक झोपड़ी में ले जाकर जीवितावस्था में ही उनके शरीर से मांस काटे जाते औए उन्हें एक खाई में फेंक दिया जाता, जहां उनकी मृत्यु हो जाती."[८४]
फरवरी 1945 को चिचिजीमा में हुआ एक और अच्छी तरह से प्रलेखित मामला सामने आया, जिसमें जापानी सैनिकों ने पांच अमेरिकी वायुसैनिकों को मारकर खा लिया था। 1947 में एक युद्ध मुकदमे में इस मामले की जांच की गयी और 30 जापानी सैनिकों पर मुकदमा चलाया गया, पांच (मेजर मतोबा, जनरल ताचिबाना, एडमिरल मोरी, कैप्टन योशी और डॉ॰ तेराकी) को दोषी पाया गया और उन्हें फांसी दे दी गयी।[८५] अपनी पुस्तक मेंFlyboys: A True Story of Courage, जेम्स ब्राडली ने द्वितीय विश्व युद्ध में जापानियों द्वारा मित्र राष्ट्र के कैदियों के नरभक्षण के अनेक उदाहरण दिए हैं।[८६] लेखक का दावा है कि तुरंत मारे गये कैदियों के कलेजे का भक्षण का ही रस्म इसमें शामिल नहीं है, बल्कि अनेक दिनों तक जीवित कैदियों का जीविका के लिए नरभक्षण भी किया जाता, सिर्फ अंग काटे जाते ताकि मांस को ताजा रखा जा सके। [८७]
अन्य मामले
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- तेंदुआ सोसायटी 19वीं सदी में सक्रिय एक पश्चिम अफ्रीकी समाज थी, जो नरभक्षण किया करती थी। वे सिएरा लियोन, नाइजीरिया, लाइबेरिया और कोटे डी'इवोइरे (Côte d'Ivoire) में केंद्रित थीं। तेंदुए पुरुष तेंदुए की खाल की पोशाक में होते और यात्रियों के लिए तेंदुओं जैसे पंजों और दांतों की तरह तेज अस्त्रों के साथ घात लगाए रहते.[८८] शिकारों के मांस उनके शरीर से काट कर समाज के सदस्यों में वितरित कर दिए जाते.[८९]
- उत्तरी भारत के अघोरी अमरता और अलौकिक शक्ति प्राप्त करने के लिए गंगा में तैरती लाशों का भक्षण किया करते. अघोरी मानव खोपड़ी से पिया करते और नरभक्षण किया करते, इस मान्यता के कारण कि इससे वृद्धावस्था को रोकने जैसे आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं।[९०][९१][९२]
- 1930 के दशक के दौरान, यूक्रेन और रूस के वोल्गा, दक्षिण साइबेरिया तथा कुबान क्षेत्रों में होलोडोमोर (Holodomor) (अकाल से भुखमरी) के दौरान नरभक्षण की अनेकानेक घटनाएं घटीं.[९३]
- ग्रामीण चीन में जब भयावह सूखा और अकाल पड़ा था, तब महान लंबी छलांग के दौरान चीन में नरभक्षण की घटनाएं प्रमाणित हो चुकी हैं।[९४][९५][९६][९७][९८] सांस्कृतिक क्रांति के दौरान चीन में नरभक्षण होने के आरोप हैं। इन आरोपों का दावा है कि वैचारिक उद्देश्यों के लिए भी नरभक्षण के अभ्यास किये गये।[९९][१००]
- 1931 से पहले, न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार विलियम ब्युहलर सीब्रूक ने कथित रूप से शोध के हितों के लिए सोरबोन के एक अस्पताल के इंटर्न से दुर्घटना में मृत एक स्वस्थ व्यक्ति के मांस के टुकड़े प्राप्त किये और पका कर उसे खाया. उसने बताया कि, "यह अच्छा और पूरी तरह से विकसित बछड़े के मांस जैसा था, युवा नहीं, लेकिन गोमांस जैसा भी नहीं था। यह निश्चित रूप से उसी जैसा था और यह किसी भी अन्य मांस जैसा नहीं था जिनका मैंने स्वाद लिया है। यह एकदम से लगभग अच्छे, पूरी तरह से विकसित बछड़े के मांस जैसा ही था, कि मुझे नहीं लगता कि कोई साधारण रूचि और सामान्य सुग्राहिता वाला व्यक्ति बछड़े के मांस से इसमें अंतर कर सके. यह कोमल था, अच्छा मांस था, जिसे बकरा, हाई गेम, या पार्क की तरह सुस्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता, या न ही अत्यधिक विशेषतापूर्ण स्वाद वाले मांस से तुलना की जा सकती है। मांस का टुकड़ा अच्छे बछड़े के मांस की तुलना में थोड़ा सख्त था, थोड़ा रेशेदार था, लेकिन इतना भी सख्त और रेशेदार नहीं था कि चाव से खाने योग्य ही न हो. भूने हुए में से मैंने एक मुख्य भाग काटा और खाया, वो नरम था और रंग, बनावट, गंध तथा स्वाद से, मेरी निश्चयता मजबूत हुई कि हमलोग आदतन जितने मांस को जानते हैं, उनमें बछड़े के मांस से यह मांस सटीक तुलनीय है।"[१०१][१०२]
- सोवियत लेखक अलेक्जेंडर सोल्झेनित्सिन ने अपनी पुस्तक द गुलैग आर्कीपेलागो (The Gulag Archipelago) में बीसवीं सदी में सोवियत संघ में नरभक्षण के मामलों का विवरण पेश किया है। पोवोल्झी के अकाल (1921–1922) पर वे लिखते हैं: "भयावह अकाल से नरभक्षण होने लगा, माता-पिता अपने ही बच्चों का भक्षण करने लगे. यह एक ऐसा अकाल था जिसे टाइम ऑफ़ ट्रबल्स [1601–1603 में] के समय भी रूस ने नहीं देखा था ... ."[१०३] वे लेनिनग्राड की घेराबंदी (1941-1944) पर लिखते हैं: "जो मानव मांस खाया करते या जो चीर-फाड़ कमरे से मानव कलेजे का व्यापार किया करते... उन्हें राजनीतिक अपराधियों में गिना जाता...".[१०४] और उत्तरी रेलवे बंदी शिविर की इमारत ("सेव्झेलदोरलाग ") ("SevZhelDorLag") के बारे में सोल्झेनित्सिन लिखते हैं: "एक साधारण कार्यरत राजनीतिक कैदी दंडात्मक शिविर में लगभग बच नहीं पाता. सेव्झेलदोरलाग शिविर (प्रमुख: कर्नल क्ल्युच्किन) में 1946-47 में नरभक्षण के अनेक मामले हुए: वे मानव शरीर काटते, पकाते और खा लिया करते."[१०५]
- 1938 से 1955 तक गुलैग शिविरों और बस्तीनुमा सोवियत जेलों में लंबा समय बितानेवाली पूर्व राजनीतिक बंदी सोवियत पत्रकार एवजेनिया गिन्जबर्ग ने बंदी अस्पताल में पहुंचा दिए जाने के बाद अपनी जीवनी "हार्श रूट" (या "स्टीप रूट") में 1940 के दशक के अंतिम समय के दौरान हुए ऐसे मामलों का वर्णन किया है जिनमें वे खुद शामिल रही हैं।[१०६] "... मुख्य वार्डर ने मुझे धुंआ निकलते एक काले बर्तन में रखा कोई खाना दिखाते हुए पूछा: 'इस मांस के बारे में मुझे आपकी चिकित्सा संबंधी दक्षता की जरूरत है।' मैंने बर्तन में देखा और मुश्किल से उल्टी रोक पायी. उस मांस के फाइबर बहुत छोटे थे और उन चीजों से मिलते-जुलते नहीं थे जिन्हें मैंने पहले कभी देखा है। कुछटुकड़ों की त्वचा पर काले बाल भरे हुए थे (...) पोल्टावा का एक पूर्व धातु कर्मकार. कुलेश सेंतुरश्विली के साथ मिलकर काम करता था। इस समय, सेंतुरश्विली को शिविर से मुक्ति पाने में केवल एक महीना बाकी था (...) और अचानक वह आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गया। वार्डन ने पहाड़ियों की ओर देखा, कुलेश की गवाही का वर्णन किया, कि पिछली बार कुलेश ने अपने सहकर्मी को भट्ठी के पास देखा था, कुलेश अपने काम पर चला गया और सेंतुरश्विली खुद को जरा और गर्म करता रहा; लेकिन जब वापस भट्ठी के पास आया तो उसने सेंतुरश्विली को गायब पाया: किसे पता, वह शायद कहीं बर्फ में जम गया हो, वह एक कमजोर आदमी था (...) वार्डन ने और दो दिनों तक उसकी खोज की. और उसने मान लिया की यह एक फरारी का मामला है। फिर भी वे आश्चर्य करते रहे; जबकि उसके कैद की अवधि तो लगभग समाप्त हो चुकी थी (...) यह अपराध का मामला था। भट्ठी के पास पहुंचने पर कुलेश ने एक कुल्हाड़ी से सेंतुरश्विली को मार डाला, उसके कपड़े जला दिए. उसके बाद उसके टुकड़े-टुकड़े करके बर्फ में अलग-अलग स्थानों में दबा दिया. दबाये गये स्थानों में पहचान के लिए एक-एक निशान बना दिया. (...) कल ही तो, दो लट्ठों के निशान के पास शरीर का एक भाग पाया गया।"
- उरुग्वेयाई वायु सेना की फ्लाइट 571 जब 13 अक्टूबर 1972 को अन्डेस में दुर्घटनाग्रस्त हो गयी, तब 72 दिनों तक पहाड़ों पर बचे रहने वालों ने मृतकों के खाक्ष्ण का सहारा लिया। उनकी कहानी बाद में Alive: The Story of the Andes Survivors औरमिराकल इन द अन्डेस (Miracle in the Andes) नामक पुस्तकों तथा फ्रैंक मार्शल की फिल्म अलाइव में दर्शायी गयी। इसके अलावा इस पर Alive: 20 Years Later (1993) और Stranded: I've Come from a Plane that Crashed in the Mountains (2008) में वृत्त चित्र भी बने.
- 1960 और 1970 के दशक में दक्षिण पूर्व एशियाई युद्ध के दौरान पत्रकार नील डेविस ने नरभक्षण की खबर दी. डेविस ने बताया कि कंबोडियाई सेना ने रिवाज के अनुसार मृत शत्रुओं के अंग खाए, विशेष रूप से कलेजे. हालांकि उसने और कई शरणार्थियों ने भी बताया कि भोजन के अभाव में गैर-परंपरागत रूप से नरभक्षण किये जाते रहे. यह आमतौर पर तब हुआ जब कस्बों और गांवों पर खमेर रूज का नियंत्रण था और कड़ाई से खाद्य की राशनिंग थी, इससे व्यापक भुखमरी फैली. कोई नागरिक नरभक्षण में भाग लेते पकड़ा जाता तो उसे तुरंत ही फांसी दे दी जाती.[१०७]
- दूसरे कांगो युद्ध और लाइबेरिया तथा सिएरा लियोन के गृह युद्ध सहित हाल के अनेक अफ्रीकी युद्धों के दौरान नरभक्षण की खबरें मिलीं. जुलाई 2007 को एक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने सूचना दी कि कांगो की महिलाओं के खिलाफ यौन अत्याचार बलात्कार से बहुत आगे जा चुका है; जिसमें यौन गुलामी, जबरन कौटुंबिक व्यभिचार और नरभक्षण शामिल हैं।[१०८] यह हताशा में किया गया हो सकता है, क्योंकि शांतिकाल के दौरान नरभक्षण अक्सर बहुत कम होता है;[१०९] अन्य समय में, कांगो पिग्मी जैसे कुछ अपेक्षाकृत कमजोर समूहों के खिलाफ यह जान-बूझकर किया जाता, कुछ अन्य कांगोवासियों द्वारा यहां तक कि उन्हें अवमानवीय समझा जाता.[११०] यह भी बताया गया कि कुछ जादू-टोना करने वाले ओझाओं द्वारा बच्चों के शरीर के अंगों का उपयोग दवा में किया जाता.साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed] 1970 में युगांडा के तानाशाह इदी अमीन नरभक्षण के मामले में बड़े ख्यातिप्राप्त रहे.[१११][११२]
- मध्य अफ्रीकी गणराज्य के स्वयंभू सम्राट जीन-बेडेल बोकासा (सम्राट बोकासा प्रथम) पर 24 अक्टूबर 1986 को नरभक्षण के कई मामलों में मुकदमा चला, हालांकि उसे कभी भी दोषी नहीं पाया गया।[११३][११४] 17 अप्रैल और 19 अप्रैल 1979 के बीच महंगे और सरकार-आदेशित स्कूल यूनिफ़ॉर्म पहनने के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले अनेक प्राथमिक छात्रों को गिरफ्तार किया गया था। लगभग एक सौ छात्रों को मार डाला गया। बताया जाता है कि इस नरसंहार में खुद बोकासा ने भी भाग लिया, अपने डंडे से बच्चों की पिटाई करके उन्हें मौत की नींद सुला दिया और कथित तौर पर उनमें से कुछ को उसने खा लिया।[११५]
- भगोड़ों और शरणार्थियों ने बताया कि 1996 में अकाल के चरम पर उत्तर कोरिया में किसी समय नरभक्षण किये गये।[११६]
- पड़ोसी देश गिनी में तथ्यान्वेषण मिशन में लगे एमनेस्टी इंटरनेशनल के प्रतिनिधियों को मेडेसिंस सांस फ्रोंटीएरेस (Médecins Sans Frontières) नामक एक अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा धर्मार्थ संस्था ने 1980 में लाइबेरिया में आपसी संघर्ष में व्यस्त लोगों के बीच नरभक्षक भोज के दस्तावेजी साक्ष्य और फोटो दिखाए और दिए. हालांकि, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इन सामग्रियों के प्रचार से इंकार कर दिया: संगठन के महासचिव पिएरे साने ने एक अंदरुनी बैठक में कहा कि "मानवीय अधिकारों के उल्लंघन के बाद उनलोगों ने शरीरों के साथ क्या किया, यह हमारे अधिदेश या चिंता का विषय नहीं है". लंदन के जर्नीमैन पिक्चर्स द्वारा बाद में बनाये गये वृत्तचित्र वीडियो से लाइबेरिया में व्यापक पैमाने पर नरभक्षण का अस्तित्व प्रमाणित हो गया।[११७]
- डोरान्गेल वर्गास वेनेजुएला का एक सीरियल किलर और नरभक्षक था; जो "एल कोमेगेंटे" के नाम से जाना जाता है, "आदमखोर" के लिए यह स्पैनिश शब्द है। 1999 में अपनी गिरफ्तारी से पहले वर्गास ने दो साल की अवधि में कम से कम 10 व्यक्तियों को खाया.
- एक और सीरियल किलर, संयुक्त राज्य अमेरिका का जेफरी डाहमर 1991 में अपनी गिरफ्तारी और कारावास से पहले नरभक्षण के प्रयोग किया करता था। उसके घर के अंदर के बर्तन-बासन से मानव मांस और हड्डियों के निशान मिले, संभवतः उसे अपने शिकारों के स्मृति चिह्न रखने की आदत थी।साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed]
- साउथ ऑस्ट्रेलिया में बैरल्स हत्याओं के शरीरों के अपराधियों पर चल रहे एक मुकदमे के दौरान अदालत में पेश किए जाने से पता चला कि दो हत्यारों ने 1999 में अपने अंतिम शिकार के एक अंग को भूना और खाया.[११८]
- जर्मनी में मार्च 2001 में, आर्मिन मिवेस ने एक इंटरनेट विज्ञापन में "एक सुगढ़ 18 से 30 वर्षीय व्यक्ति का वध करने और खाने" की अपनी इच्छा जाहिर की. ब्रान्डेस जुरगेन बर्नड द्वारा विज्ञापन का उत्तर दिया गया। ब्रांडेस को मार डालने और उसके अंगों को खाने के बाद मिवेस को नरबलि देने का दोषी पाया गया और बाद में, ह्त्या का. रैमस्टीन का गीत "मेन टिल" (Mein Teil) और ब्लडबाथ का गीत "ईटन" (Eaten) इस मामले पर आधारित है।
- फरवरी 2004 को, एक 39 वर्षीय पीटर ब्रायन नामक ब्रिटेनवासी अपने मित्र को मारकर खाने के कारण ईस्ट लंदन से पकड़ा गया था। वह एक ह्त्या के मामले में पहले भी गिरफ्तार हो चुका था, लेकिन इस कुकृत्य के किये जाने से कुछ पहले वह रिहा किया गया था।[११९]
- सितंबर 2006 को, 60 मिनट्स और टुडे टुनाईट के ऑस्ट्रेलियाई टेलीविजन कर्मियों ने एक छः वर्षीय बच्चे को बचाने के प्रयास किये, उनका मानना था कि इंडोनेशिया के पश्चिम पापुआ की उसकी ही कोरोवाई जनजाति के लोग रिवाज के अनुसार उसका भक्षण करने वाले थे।[१२०]
- 14 अगस्त 2007 को, अति-वामपंथी माओवादी नक्सली ग्रुप का एक सदस्य नरभक्षण करता पाया गया। भारत के उड़ीसा राज्य में उस वामपंथी ने एक पुलिस मुखबिर की हत्या कर दी और ग्रामीणों को आतंकित करने के लिए उसका मांस खाया, ताकि स्थानीय ग्रामीण नक्सली आपराधिक गतिविधियों की सूचना पुलिस को न दें.[१२१]
- 14 सितंबर 2007 को, एक आदमी को मारकर खाने के आरोप में तुर्की की राजधानी अंकारा में एक ओज्गुर डेंगीज़ नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया। उसकी अपनी ही गवाही के अनुसार, अपने शिकार के शरीर से मांस के टुकड़े काटने के बाद उसने बाकी हिस्सा गली के कुत्तों में बांट दिया. घर जाते समय उसने अपने शिकार का कुछ मांस कच्चा ही खा लिया। अपने माता-पिता के साथ रहने वाले डेंगीज़ ने घर आकर किसीको बिना बताये बाकी बचे मांस के टुकड़ों को फ्रिज में रख दिया.[१२२][१२३]
- जनवरी 2008 को, 37 वर्षीय मिल्टन ब्लाहयी ने स्वीकार किया कि वह नरबलि में शामिल रहा है, जिसमें "एक मासूम बच्चे की हत्या और उसके दिल को बाहर निकालना तथा खाने के लिए उसके टुकड़े करना शामिल है।" वह लाइबेरिया राष्ट्रपति चार्ल्स टेलर की मिलिशिया के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहा था।[१२४]
- 13 मार्च 2008 को, चार्ल्स टेलर के युद्ध अपराधों पर सुनवाई के दौरान टेलर के सामरिक गतिविधि के प्रमुख तथा टेलर के कथित "मृत्यु दस्ते" के सरदार जोसेफ मर्जाह ने आरोप लगाया कि टेलर ने अपने सैनिकों को आदेश दिया था कि वे शत्रुओं सहित शांति सेना और संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारियों का नरभक्षण करें.[१२५]
- 2008 में तंजानिया के राष्ट्रपति किकवेते ने सार्वजनिक रूप से जादू-टोना करने वाले ओझाओं की निंदा की, जो शरीर के अंग के लिए अरंजकता से पीड़ित लोगों की हत्या किया करते, सोचा करते कि इससे सौभाग्य की प्राप्ति होगी. मार्च 2007 से पच्चीस अल्बिनिक अर्थात अरंजकता से पीड़ित तंजानियाइयों की हत्या कर दी गयी है।[१२६][१२७]
- कोलंबियाई पत्रकार होलमैन मॉरिस के एक वृत्तचित्र में एक विघटित अर्द्धसैनिक को स्वीकार करते दिखाया गया है कि कोलंबिया के ग्रामीण क्षेत्रों में हुए नरसंहार के दौरान उनमें से कई ने नरभक्षण किया था। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें मारे गए लोगों का खून पीने को कहा गया था, इस विश्वास से कि इससे उनमें और भी लोगों को मारने की इच्छा पैदा होगी.[१२८]
- नवंबर 2008 को, डोमिनिकन गणराज्य के 33 अवैध आप्रवासियों के एक समूह ने प्युर्टो रिको जाते समय समुद्र में 15 दिनों तक भटक जाने की वजह से नरभक्षण का सहारा लिया, बाद में अमेरिकी कोस्ट गार्ड के गश्ती दल ने उन्हें बचाया.[१२९]
- रूस में मैक्सिम गोलोंवत्सकिख और युरी मोझनोव पर जनवरी 2009 के दिन 16 वर्षीया करीना बरदुचियान को मारकर खाने का आरोप लगाया गया।[१३०]
- 9 फ़रवरी 2009 को, रिवाज के अनुसार एक किसान को मारकर खा लेने के आरोप में ब्राज़ील के कुलीना जनजाति के पांच सदस्यों की ब्राज़ील के अधिकारियों द्वारा खोज की जाती रही.[१३१]
- रैप कलाकार बिग लर्च को एक परिचित की हत्या करने और आंशिक रूप से उसे खाने का दोषी पाया गया, जबकि दोनों ही पीसीपी (PCP) के प्रभाव में थे।[१३२]
- 14 नवम्बर 2009 को, एक पच्चीस वर्षीय व्यक्ति की हत्या करने और उसके अंगों को खाने के आरोप में रूस के पर्म में तीन बेघर लोगों को गिरफ्तार किया गया। शेष अंगों को एक स्थानीय पाई/कबाब की दूकान में बेच दिया गया था।[१३३]
इन्हें भी देखें
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- ऐल्बर्ट फिश
- एल्फ्रेड पैकर
- एनड्रोफागी
- आर्मिन मिवेस
- एस्मैट पीपल
- लोकप्रिय संस्कृति में नरभक्षण
- चीजॉन परिवार
- एसेक्स, एक धंसा हुआ व्हेल्शिप जिसका नाविकों अस्तित्व के लिए नरभक्षण का सहारा लिया गया
- हैनिबल लेक्टर
- होमो एंटेसेसर
- इस्सी सगावा
- कुरु, पापुआ न्यू गुएना के फॉर ट्राइब जनजाति रोग
- मनिफेस्टो एंट्रोपोफागो
- मैनहंटर (फिल्म श्रृंखला)
- प्लासेंटोफागी
- आर वी डुडले और स्टेफेंस
- खूंखार
- द रोड
- आत्म-नरभक्षण
- यौन नरभक्षण
- द टेक्सस चेन सॉ मसकरा
- संक्राम्य स्पौन्जीफॉर्म एनसीफलोपैथी
- वोरारेफिलिया
नोट्स
- ↑ सितंबर 1942 में न्यू गिनी जापानी के राशन दैनिक टिन बकस में लगाय चावल और मांस में शामिल है जो 800 ग्राम के हैं, तथापि, दिसम्बर तक इस के दाम 50 ग्राम द्वारा गिर गए। हैपेल (2008), पृष्ठ 78.
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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- द स्ट्रेट डोप नोट्स नरभक्षण दिनचर्या एक मिथक है
- क्या भीड़ गुस्से में अपने प्रधानमंत्री को मार के खा गई? (सीधे द स्ट्रेट डोप से)
- हैरी जे. ब्राउन 'हैंस सटैडेन अमंग द टुपीनम्बस'
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- ↑ विल स्टीवर्ट के, कनिबल ट्राइल हॉल्टेड आफ्टर जूरौर फॉल्स इल लुकिंग ऐट पिक्चर्स ऑफ़ गर्ल, 16, हु वॉज़ 'इटन विथ पोटैटोज़,' 6 अप्रैल 2010, डेली मेल ऑनलाइन.
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