नंदगाँव राज्य

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नंदगाँव राज्य ब्रितानी काल में भारत की एक देशी रियासत थी। इसे राजनांदगांव भी कहते हैं। भारत की स्वतन्त्रता के बाद इसे मध्य प्रदेश में सम्मिलित किया गया था मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद अब यह छत्तीसगढ़ में है। नंदगांव राज्य की स्थापना सन् 1766 में महन्त प्रह्लाद दास बैरागी ने की थी नांदगांव राज्य बैरागी शासकों द्वारा शासित था[१]

नंदगाँव रजवाड़ा
ब्रिटिशकालीन भारत‌ की रियासत

1765 – 1948

Flag of नांदगांव रियासत

Flag

राजधानी राजनांदगांव
महन्त
 - 1765–1797 महन्त प्रह्लाद दास बैरागी‌ (प्रथम)
महन्त‌ दिग्विजय दास बैरागी (अंतिम)
इतिहास
 - स्थापना 1765
 - डोंगरगांव विजय 18वीं‌ शताब्दी के उत्तरार्ध
 - भारतीय संघ में विलय 1948
क्षेत्रफल
 - 1881 २,३४४ किमी² साँचा:nowrap
जनसंख्या
 - 1881 १,६४,३३९ 
     घनत्व ७०.१ /किमी²  (१८१.६ /वर्ग मील)
वर्तमान भाग राजनांदगांव, छत्तीसगढ़, भारत
इस रियासत के शासक‌ निर्मोही अखाड़े व निम्बार्क सम्प्रदाय
से संबंधित थे।

यह राज्य 905 वर्ग मील में फैला था सन् 1881 में इस राज्य में 540 गांव थे सन् 1881 में नंदगाँव राज्य की कुल जनसंख्या 1,64,339 थी।

नंदगाँव रियासत के डाक टिकट की छवि, 1893

इतिहास

नांदगांव रियासत, जिसकी राजधानी राजनांदगांव में थी। इस रियासत की स्थापना महन्त प्रह्लाद दास बैरागी ने वर्ष 1765 में की ‌थी। प्रह्लाद दास बैरागी, अपने साथियों के साथ सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब से छत्तीसगढ़ आए थे। अपनी यात्रा का खर्च निकालने के लिए ये बैरागी साधु, पंजाब से कुछ शाल भी अपने साथ ले आते और उन्हें छत्तीसगढ़ में बेचकर अपनी यात्रा का खर्च चलाते।[२]

बिलासपुर के पास रतनपुर में मराठा राजाओं के प्रतिनिधिप्रतिनिधि बिंबाजी का महल था। स्थानीय लोग बिंबाजी को भी राजा के नाम से ही जानते थे। बिंबाजी, महन्त प्रह्लाद दास बैरागी के शिष्य बन गए और उन्हें अपनी पूरीरियासत में 2 रुपए प्रति गांव के हिसाब से धर्म चंदा लेने की इजाजत दे दी। धीरे-धीरे ये बैरागी अमीर हो गए और उन्होंने आसपास के कई जमींदारों को ऋण देना आरंभ कर दिया। जो जमींदार ऋण नहीं चुका पाए उनकी जमींदारी इन बैरागियों ने जब्त कर ली और धीरे-धीरे चार जमींदारी उनके पास आ गई जिनको मिलाकर नांदगांव रियासत की स्थापना हुई।

ये बैरागी राजा बहुत ही प्रगतिशील थे। उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। इन बैरागी राजाओं ने वर्ष 1882 में राजनांदगांव में एक अत्याधुनिक विशाल कपड़े का कारखाना लगाया। इससे पहले वर्ष 1875 में उन्होंने रायपुर में महन्त घासीदास के नाम से एक संग्रहालय भी स्थापित किया, जो आज भी भारत के 10 प्राचीनतम संग्रहालयों में से एक है।

छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के राजकुमारों की शिक्षा के लिए रायपुर में लगभग 80 एकड़ जमीन में राजकुमार कॉलेज के भवन का निर्माण भी राजनांदगांव के बैरागी राजाओं ने ही करवाया। हॉकी के खेल को प्रोत्साहन देने के लिए इन राजाओं ने राजनांदगांव में एक हॉकी स्टेडियम का निर्माण करवाया।

राजा सर्वेश्वर दास स्वयं भी हॉकी के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। राजनांदगांव में आज भी हॉकी का अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम है जहां हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने भी हॉकी खेली है। देसी रियासतों के भारत में विलय होने पर अधिकतर राजाओं ने रियासत के राजमहल और संपत्तियों को अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति बना लिया लेकिन राजनांदगांव के राजाओं ने राजमहल को कॉलेज में बदलने के लिए सरकार को दान में दे दिया।

छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कॉलेज आज भी राजनांदगांव में बैरागी राजाओं के राजमहल में चलता है। इस महाविद्यालय का नामकरण भी अंतिम राजा महन्त दिग्विजय दास के नाम पर किया गया है। राजनांदगांव पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का विधानसभा क्षेत्र भी है।

आज भी राजनांदगांव के अधिकतर शासकीय कार्यालय बैरागी राजाओं द्वारा बनाए गए भवनों में ही चलते हैं। यहां का महन्त सर्वेश्वर दास विद्यालय भी राजा सर्वेश्वर दास का बनाया हुआ है। नागपुर-कोलकाता रेलवे लाइन के लिए जमीन उपलब्ध कराने में भी इन बैरागी राजाओं का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा और इन्हीं के प्रयासों से नागपुर कोलकाता रेलवे लाइन का निर्माण हो पाया।

इस बैरागी रियासतों के शासन में एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि बैरागी गद्दी का मुख्य महंत ही राजा होता था। इन राजाओं द्वारा जनकल्याण के किए गए कार्य दर्शाते हैं कि राजाओं में साधुओं के गुण और व्यवहार हमेशा कायम रहे। इन बैरागी राजाओं द्वारा कुम्भ के समय वैष्णव अखाड़ों को भरपूर आर्थिक सहयोग दिया जाता रहा।

सैन्य बल

नांदगांव राज्य के सैन्य बल में सात हाथी , एक सौ घोड़े , पांच ऊंट और पांच सौ पैदल सेना शामिल थी।

शासक

नंदगांव रियासत के शासक बैरागी संप्रदाय के थे और महन्त की उपाधि धारण करते थे।

वंशावली
महन्त (राजा बहादुर) कार्यकाल
महन्त प्रह्लाद दास बैरागी 1765-1797
महन्त हरि दास 1797-1812
महन्त राम दास 1897-1812
महन्त रघुबर दास 1812-1819
महन्त हिमांचल दास 1819-1832
महन्त मौजीराम दास 1832-1862
महन्त घनाराम दास 1862-1865
महन्त राजा घासी दास 1865-1883
महन्त राजा बलराम दास (राजा बहादुर) 1883-1897
महन्त राजा राजेंद्र दास 1897-1912
महन्त राजा सर्वेश्वर दास 1913-1940
महन्त राजा दिग्विजय दास 1940-1947

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ