कंपनी अधिनियम, 1956
कंपनी अधिनियम वह अति महत्वपूर्ण विधान है जो केन्द्र सरकार को कम्पनी के गठन और कार्यों को विनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है। भारत की संसद द्वारा १९५६ में पारित किया गया था। इसमें समय-समय पर संशोधन किया गया। ये अधिनियम कम्पनियों के गठन को पंजीकृत करने तथा उनके निर्देशकों और सचिवो की जिम्मेदारी का निर्धारण करता है। कंपनियों अधिनियम, 1956 भारत के संघीय सरकार द्वारा कारपोरेट मामलों के मंत्रालय, कंपनियों के रजिस्ट्रार के कार्यालय, आधिकारिक परिसमापक, सार्वजनिक न्यासी, कंपनी लॉ बोर्ड आदि के माध्यम से प्रशासित किया जाता है।
यह अधिनियम सरकार को कम्पनी के गठन को विनियमित करने और कम्पनी के प्रबंधन को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करता है। कम्पनी अधिनियम केन्द्र सरकार द्वाराकम्पनी कार्य मंत्रालय और कम्पनी पंजीयक के कार्यालयों, शासकीय परिसमापक, सार्वजनिक न्यासी, कम्पनी विधि बोर्ड, निरीक्षण निदेशक आदि के माध्यम से प्रवृत्त किया जाता है।
कम्पनी कार्य मंत्रालय जो पहले वित्त मंत्रालय के अधीन कम्पनी कार्य विभाग के रूप में जाना जाता था का प्राथमिक कार्य कम्पनी अधिनियम, 1956 का प्रशासन है, अन्य अधीनस्थ अधिनियम और नियम एवं विनियम जो उसके अधीन बनाए गए हैं कानून के अनुसार कारपोरेट क्षेत्र के कार्यों को विनियमित करने के लिए।
कम्पनी अधिनियम, 1956 में कहा गया है कि कम्पनी का अभिप्राय, अधिनियम के अधीन गठित और पंजीकृत कम्पनी या विद्यमान कम्पनी अर्थात किसी भी पिछला कम्पनी कानून के तहत गठित या पंजीकृत कम्पनी। कानून में निहित मूल उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
- कम्पनी संवर्धन और प्रबंधन में अच्छे आचरण और कारोबारी ईमानदारी का न्यूनतम मानक
- शेयर धारकों और ऋणदाताओं का वैघानिक हितों की विधिवत मान्यता और प्रबंधन के कर्त्तव्य का उन हितों के प्रति पूर्वधारणा प्रतिकूल न होना।
- बेहतर और प्रभावकारी नियंत्रण का प्रावधान और शेयर धारकों के लिए प्रबंधन में मताधिकार
- अपनी वार्षिक प्रकाशित तुलन पत्र और लाभ एवं हानि खातों में कम्पनी के कार्यों का निष्कक्ष और सही प्रकटन।
- लेखाकरण और लेखापरीक्षा का उचित मानक
- प्रबंधन के संबंध में बुद्धिसम्मत निर्णय लेने के लिए संगत सूचना और सुविधा प्राप्त करने के शेयरधारकों के अधिकारों की मान्यता।
- दी गई सेवा के लिए परिलब्धि के रूप में प्रबंधन को भुगतान योग्य लाभ के शेयरों पर अधिकतम सीमा
- जहां कर्त्तव्य और हित के बीच विरोधाभास की संभावना हो वहां उनके लेन देनों पर निगरानी
- शेयरधारकों के अलपसंख्यक के लिए शोषक या पूर्ण रूपेण कम्पनी के हितों के प्रति पूर्वधारणा से प्रबंध किसी कम्पनी के कार्यों की जांच का प्रावधान।
- सार्वजनिक कम्पनियों के प्रबंधन में रत या लोगों के अपने कर्त्तव्य निष्पादन के प्रवर्तन या निजी कम्पनियां जो सार्वजनिक कम्पनियों की अनुषंगी है, उल्लंघन के मामले में स्वीकृति देने द्वारा और अनुषंगी को सार्वजनिक कम्पनियों के लिए लागू कानून के अंतर्गत प्रतिबंध प्रावधानों के अधीन रखना।
कम्पनी अधिनियम, 1956 में निम्नलिखित के द्वारा संशोधन किया गया :-
कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2000
इससे कम्पनी अधिनियम, 1956 में अमूल-चूल संशोधन किए गए। संशोधन बदलते व्यापार परिवेश के प्रति प्रतिक्रिया को दर्शाता है। इसमें कारपोरेट अभिशासन में अधिक पारदर्शिता लाने की व्यवस्था है, कम्पनी के निदेशकों को अधिक जिम्मेदार और उत्तरदायी बनाया गया है, छोटे कम्पनियों को भी अनुशासन के प्रति जवाबदेह बनाते, लघु निवेशकों के हितों की रक्षा और जमाकर्ताओं और डिबेन्चर धारकों के हितों की रक्षा चाहता है।
- कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2001
- कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2002,
- कम्पनी (द्वितीय) अधिनियम, 2002
- कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2006
कंपनी अधिनियम, २०१३
कंपनी अधिनियम २०१३ भारत की संसद का एक अधिनियम है जो एक कंपनी का समावेश, कंपनी की जिम्मेदारियां, निदेशकों, किसी कंपनी के विघटन को नियंत्रित करता है। ये १२ सितंबर २०१३ से अमल में लाया गया है।[१]
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- कम्पनी अधिनियम (विकासपीडिया)
- नए कंपनी कानून का दृष्टिकोणसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- कंपनी कानून
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