आल्हाजी बारहठ
आल्हाजी बारहठ (जिन्हें आल्हाजी रोहड़िया भी कहा जाता है) 14 वीं शताब्दी के कवि और घोड़ों के व्यापारी थे, जिन्होंने मंडोर के शाशक राव चुंडा, जिन्हें मारवाड़ में राठौड़ शासन की नींव डालने का श्रेय दिया जाता है, को उसके बचपन में आश्रय प्रदान करने के लिए जाना जाता है।
परिवार
आल्हाजी बारहठ रोहड़िया वंश के एक चारण थे। [१] [२]
चुंडा को आश्रय
आल्हाजी राजस्थान के जोधपुर में स्थित कलाउ नामक अपने गाँव में रहते थे। महेवा के शासक और चुंडा के पिता वीरमदेव राठौड़ 1383 ईस्वी के आसपास जोहियों के खिलाफ युद्ध में मारे गए थे। उस समय चुंडा मात्र एक बच्चा था। चुंडा की माँ, जिन्हें मांगलियानीजी कहा जाता है, चुंडा की सुरक्षा को लेकर आशंकित थी और उसके लिए सुरक्षा की तलाश करना चाहती थी। वह कलाउ के आल्हाजी बारहठ के पास गई और चुंडा को उन्हें सौंप दिया। [३] [४] [५] [६] [७] [८]
कहा जाता है कि आल्हाजी के अधीन चुंडा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बाद, मांगलियानीजी सती हो गई थी। [१] [९] [१०]
आल्हाजी ने चुंडा की असली पहचान छुपाते हुए चुंडा को गुमनामी में पाला। बड़े होते हुए चुंडा आल्हाजी के मवेशियों को चराया करता था। [२] [१]
रावल मल्लीनाथ से भेंट
एक दिन, चुंडा गायों-मवेशियों को चराने के दौरान थक गया और एक पेड़ के नीचे सो गया। जब आल्हाजी वहाँ पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि चुंडा के सिर पर एक सांप छाया किए हुए बैठा था, जबकि वह सो रहा था। आल्हाजी ने इस घटना को चुंडा के भाग्य में एक शासक बनने के संकेत के रूप में लिया और उसे प्रशिक्षण देना शुरू किया। [२] [६] [८] [१]
बाद में, उपयुक्त समय आने पर, आल्हाजी ने चुंडा को घोड़े और हथियारों से लैस किया और महेवा की यात्रा कर और उसे रावल मल्लीनाथ के सामने पेश किया, और चुंडा की वास्तविक पहचान उनके(रावल के) भतीजे के रूप में सामने लाये। मल्लीनाथ ने चुंडा को सलोदी का एक थाना प्रदान किया। [२] [४] [५] [६] [८]
चुंडा ने एक योद्धा के रूप में अपना कौशल दिखाया और अपने क्षेत्र का विस्तार करना शुरू कर दिया। 1395 में, मंडोर, इंदा राजपूतों से संधि में, राव चुंडा को दहेज के रूप में दिया गया और अंत में वह राठौड़ों की राजधानी बना। इस प्रकार राव चुंडा को राठौड़ आधिपत्य विरासत में मिला और राठौड़ों को सीमांत महेवा से मंडोर तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। [१] [२] [८] [६] [११]
आल्हाजी के कथन
राव चुंडा को मंडोर के सिंहासन पर स्थापित होने के कुछ वर्ष बाद, अल्हाजी ने चुंडा को याद किया और उससे मिलने की इछा हुई। वह चुंडा से मिलने मंडोर गये लेकिन चुंडा मिलने नहीं आया। कहा जाता है कि उस समय अल्हाजी ने यह दोहा कहा था जिसका अर्थ है: [१२]
हे चुंडा, क्या तुम्हें कलाउ गांव के काचर याद नहीं हैं ? यानी , तुम अपने विपत्ति के दिनों को कैसे भूल सकते हो ? मंडोवर के महलों में रहने और इतना प्रसिद्ध राजकुमार बनने के बाद, तुम्हें अपने पुराने मित्रों और साथियों और विपत्ति के दिनों में अपनी स्थिति को नहीं भूलना चाहिए था। [१२]
संदर्भ
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- ↑ Sethia, Madhu (2005). "British Paramountcy: Reaction and Response by the Nineteenth Century Poets of Rajasthan". Social Scientist. 33 (11/12): 14–28. ISSN 0970-0293.
It is well-known that Charan Alha of Kalau village brought up Rao Chunda of Marwar (c.1383-1423) after his father died fighting against the Joiyas and mother committed sati. So, it is obvious that the Charans had been also active participants in the establishment and functioning of the Rajput polity.
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