२०१८ उत्तराखण्ड दावानल
हाल के वर्षों की ही तरह २०१८ की गर्मियों में भी उत्तर भारत के उत्तराखण्ड राज्य में कई जगह पर वनों में आग के मामले सामने आये हैं। टिहरी से लेकर उत्तरकाशी और बागेश्वर तक के पहाड़ और वन भीषण आग से जूझ रहे हैं।[१] अग्नि से सबसे ज्यादा प्रभावित पौड़ी गढ़वाल जिला रहा, जहाँ लगभग १००० हेक्टेयर वन भूमि पर आग की चपेट में आ चुकी है।[२] उत्तराखण्ड वन विभाग के मुताबिक उन्हें १५ फ़रवरी से २१ मई तक कुल ७४१ ऐसी घटनाओं की सूचना मिली थी, जिसमें १२१३.७६६ हेक्टेयर वन क्षेत्र २१ लाख रुपये से ज्यादा का राजस्व नुकसान हुआ है।[३]
इतिहास
उत्तराखण्ड के वनों में आग के मामले नए या अनअपेक्षित नहीं हैं। १९११, १९२१, १९३०, १९३१, १९३९, १९४५, १९५३, १९५४, १९५७, १९५८, १९५९, १९६१, १९६४, १९६६, १९६८, १९७०, १९७२ और १९९५ में आग लगने के प्रमुख हादसों का उल्लेख मिलता है। हाल की बात करें, तो २०१६ में ही राज्य भर के वनों में भीषण आग लगने के १८५७ मामले सामने आये थे, जिनमें ११ जिलों में फैला लगभग ४०४८ हेक्टेयर वन क्षेत्र जलकर भस्म हो गया था। कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा-बागेश्वर क्षेत्र में विशेषकर कई घटनाएं सामने आयी थी, और यहाँ लगी आग बुझाने के लिए राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल को तैनात किया गया था, जिन्होंने भारतीय वायु सेना के एमआई १७ हेलीकॉप्टरों द्वारा नैनीताल और भीमताल से पानी लाकर जलवर्षा कर इस आग पर नियंत्रण पाया था। २०१७ में भी वनों में आग के कई मामले सामने आये थे।
कारण
ग्रामीणों का मानना है कि जंगल की आग ग्रामीणों के जानकारी के अभाव के कारण भी लग रही है। कुछ लोग जलती हुई बीड़ी-सिगरेट को ही जंगलों में चलते हुए फेंक देते हैं, जिससे आग लगती है और बाद में फैल जाती है।[४]
विस्तार
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि पहली आग उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा, टिहरी, हरिद्वार, नैनीताल, उत्तरकाशी और पौड़ी के जंगलों में लगी।[५] केवल १९ और २० मई की घटनाओं में ही ६९.७१ हेक्टेयर वन क्षेत्र जल चुका था।[६] ६५ जगह फायर अलर्ट भी जारी किये गये थे, जिनमें से २६ स्थानों पर आग लगी पाई गई।[७] इसके बाद राज्यभर में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया, और सभी वन कर्मियों की छुट्टी रद्द कर दी गयी।[७] अगले ही दिन आग लगने के २९५ नए मामले सामने आये, जिससे कुल घटनाओं की संख्या बढ़कर १०३६ हो गयी; पौड़ी में १५-१६ जगहों की आग भी बुझ नहीं पाई थी।[८] फायर अलर्ट की संख्या में भी इजाफा हुआ; २१ मई को आरक्षित वन क्षेत्रों में २५५ और इससे बाहर १३१ फायर अलर्ट जारी किए गए।[७] मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने "तैयारी की कमी" के लिए संबंधित अधिकारियों को फटकार भी लगायी।[९] २३ मई तक यह आग उत्तराखंड के छह राष्ट्रीय पार्क, सात अभयारण्य और चार कंजर्वेशन रिजर्व वाले वनों तक फैल चुकी थी।[१०] राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित केदारनाथ वाइल्ड लाइफ सेंचुरी तक के वनों में आग लगने की घटनाएं सामने आई। वन्यजीवों की सुरक्षा को देखते हुए सभी संरक्षित-आरक्षित वन क्षेत्रों में गांव-शहरों से लगी सीमा पर वनकर्मियों की नियमित गश्त बढ़ा दी गई।[१०]
परिणाम
समुद्र तल से २,०००-२,५०० मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तापमान ३०-३२ डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया, जो सामान्य से ७ डिग्री अधिक था, और इससे पहाड़ियों में गर्मी की लहर गंभीर स्थिति में आ पहुंची। इसी तरह मैदानी क्षेत्रों में भी तापमान ४० डिग्री सेल्सियस ले पार चला गया, जो सामान्य से ५ डिग्री ऊपर है।[११]
उल्लेखनीय हादसे
श्रीनगर
२० मई २०१८ को समीपस्थ वनों की आग श्रीनगर के आवासीय क्षेत्रों तक भी पहुँच गयी। श्रीनगर के पास स्थित शिकोट का सरकारी मेडिकल कॉलेज भी इस आग की चपेट में आ गया था, जिसके बाद वहां कुछ पुलिसकर्मी तैनात भी किए गए। आग से क्षेत्र की बिजली लाइनें और मोबाइल टावर भी क्षतिग्रस्त हुए हैं।
हरिद्वार
२० मई को ही हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर से सटे जंगलों में भी आग लग गई।[१२] अत्यधिक गर्मी के चलते यह आग बहुत तेजी से फैली, और इससे जंगल के पेड़-पौधों को काफी नुकसान होने की बात कही गयी।[१२] आग लगने की वजह अभी भी अज्ञात है।[१२]
बागेश्वर
बागेश्वर जिले में वनों में आग लगने के कई मामले सामने आए। २०-२१ मई को बागेश्वर नगर के नीलेश्वर, आरे और ठाकुरद्वारा के पीछे के जंगलों में भीषण आग लग गयी।[१३] ठाकुरद्वारा वार्ड से सटे आरे बाइपास सड़क से नीचे तक यह आग फैल गयी। २२ मई जनपद के कपकोट से लगा गांव जालेख समीप के वन में लगी आग की चपेट में आया।[७] जिला मुख्यालय से लगे रैखोली के वनों में भी देर रात अचानक भयंकर आग लग गई, जिसकी लपटे बढ़ते हुए गांव तक पहुंच गई।[१४] गरुड़, बागेश्वर, कपकोट तहसील के अन्य वनों में भी कई जगह आग लगी। अगले दिन जिले का तापमान ४० डिग्री से अधिक रिकार्ड किया गया, और ३६ से अधिक स्थानों पर आग लगने की घटनाएं हुई।[१५] बागेश्वर, बैजनाथ, गढ़खेत, कपकोट और धरमघर रेंज में २३ मई तक कुल ७७.८० हेक्टेयर क्षेत्रफल आग से प्रभावित हुआ। इसमें १.७५ लाख की वनसंपदा के नुकसान का अनुमान लगाया गया।[१५] आग से पूरे वातावरण में धुंध फैल गई, जिससे दृश्यता स्तर काफी गिर गया था।[१५]
सन्दर्भ
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