हैपेटाइटिस डी

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हैपेटाइटिस डी
Virus classification
हैपेटाइटिस डी
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
आईसीडी-१० B17.0, B18.0
आईसीडी- 070.31
एम.ईएसएच D003699

यकृतशोथ घ (हैपेटाइटिस डी) का विषाणु तभी होता है जब रोगी को बी या सी का संक्रमण हो चुका हो। हेपेटाइटिस डी वायरस बी पर सवार रह सकते हैं। इसलिए जो लोग हेपेटाइटिस से संक्रमित हो चुके हों, वे हेपेटाइटिस डी से भी संक्रमित हो सकते हैं।

बुरी खबर यह है कि जब कोई व्यक्ति डी से संक्रमित होता है तो सिर्फ बी से संक्रमित व्यक्ति की तुलना में उसके लिवर के नुकसान का खतरा अधिक होता है। सन् 1977 में पहचान की गई थी कि हेपेटाइटिस डी आम तौर पर संक्रमित इंट्रावीनस इंजेक्शन उपकरणों के द्वारा फैलता है। हेपेटाइटिस बी के खिलाफ प्रतिरक्षित होने पर यह कुछ हद तक हेपेटाइटिस डी से सुरक्षा कर सकता है।

वैसे तो सभी प्रकार के हेपेटाइटिस के लक्षण एक ही तरीके के होते हैं, इस कारण उपचार आरंभ करने से पहले परीक्षणों द्वारा यह पता लगा लेना चाहिए कि किस प्रकार के वायरस के संक्रमण हैं तभी इसका इलाज शुरू करना चाहिए। इस बीमारी में जितनी जरूरी दवाएं होती हैं, उतना ही जरूरी परहेज भी है। हेपेटाइटिस एक की प्रारंभिक अवस्था परहेज से ही ठीक हो जाती है।

लक्षण

थकान, उल्टी, हल्का बुखार, दस्त, गहरे रंग का मूत्र।


सन्दर्भ =

बाहरी कड़ियाँ