हिन्दीतर भारतीय भाषाओं के आधुनिक शब्दकोश

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भारतीय हिन्दीतर भाषा के कोशों का निर्माण भी प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक बराबर चल रहा है।

उर्दू कोश

उन उर्दू के कोशों की चर्चा ऊपर हुई है जिन्हें विदेशियों ने बनाया। हिन्दी या हिन्दुस्तानी कोशों के साथ या इनका मिश्रित रूप ही प्रायः रहा। कभी कभी वे अलग भी थे। इनके पूर्व और बाद में बहुत से ऐसे कोश भी बने जो फ़ारसी लिपि में निर्मित थे। इनमें फरहंगे अस- फिया, तख्मीस्सुल्लुगात, लुगात किसोरी अधिक महत्व के और प्रसिद्ध माने जाते हैं। तत्वतः इनमें हिन्दी के शब्दों की संख्या बहुत ज्यादा है। पर लिपिभेद के कारण हिन्दी मात्र जानेवाले इनका उपयोग और प्रयोग नहीं कर पाते। 'फरहंगे-ए-इस्तलाहात— वस्तुतः मौं० अब्दुलहक की योजना और प्रेरणा से रचित उर्दू का विशाल कोश है। इनके अतिरिक्त भी अमीर मीनाई का आमीरूल् लुगात तथा करीमुल्लुगात उर्दूकोशों में प्रसिद्ध हैं। श्रीरामचद्र वर्मा, श्रीहरिशंकर शर्मा आदि ने नागरी लिपि में भी कोश बनाए। उत्तर प्रदेश सरकार ने मद्दाह द्वारा सम्पादित उर्दू हिन्दी कोश प्रकाशित किया है जिसे अच्छा कोश कहा जाता है।

गुजराती, ओड़िया और असमिया

गुजराती, ओड़िया और असमिया में भी अनेक आधुनिक कोश बन चुके हैं और निरन्तर बनते जा रहे हैं। नवजीवन प्रकाशन मन्दिर का सार्थ गुजराती मंउणी कोश, तता शापुरजी दरालजी का गुजराती अंग्रेज़ी कोश प्रसिद्ध हैं। असमिया में 1739 ई० में ब्राउन्सन (अमेरिकी मिशनरी) ने असमिया—इंग्लिश डिक्शनरी बनाई थी। हेमचन्द्र बरूआ द्वारा निर्मित 'असमिया—अंग्रेजी कोश', विशेष प्रसिद्ध है। ओड़िया में भी ऐसे अनेक कोश बन चुके हैं। कहने का सारांश यह है कि भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में आधुनिक कोशों की प्रेरणा पाश्चात्यों से मिली और भारतीयों ने उस कार्य को निरन्तर आगे बढाने में योगदान किया।

तमिल

तमिल भाषा में कोशनिर्माण की परम्परा बहुत प्राचीन कही जाती है। उनका प्रसिद्ध व्याकरण ग्रन्थ 'तांलकाप्पियम' कहा जाता है। उसी व्याकरण ग्रन्थ में ग्रन्थकार ने सूत्र शैली में शब्दकोश तैयार किया था। ग्रन्थ के लेखक ने तमिल भाषा के शब्दों को चार वर्गों में विभक्त किया है— (1) सामान्य देशी शब्द (2) साहित्यिक शब्द, (3) विदेशी भाषाओं से व्युत्पन्न शब्द और (4) संस्कृत से व्युत्पन्न शब्द। इसमें शब्दसंग्रह वर्णानुक्रम से रखा गया है। इसका प्रकाशन यद्यपि 18वीं शताब्दी का है तथापि इसकी रचना ईसा की प्रथम द्वितीय शताब्दी में बताई जाती है। तमिल का दूसरा कोश 'तिवाकरम' है। 12 खण्डों का यह कोश अमरकोश के आधार पर बना है। इसमें दस खण्डों में वर्गमूलक शब्दसंचय है, 11वाँ खण्ड नानार्थ शब्दों का और 12वाँ समूहवाचक शब्दों का है।

1679 ई० में प्रथम तमिल-पुर्तगाली कोश बना और 1710 ई० में फादक वेशली ने पूर्णतः अकारादि क्रम पर निर्मित 'कतुर अकाराति' नामक कोश तैयार किया। तमिल का प्रथम अंग्रेजी कोश लूथर के अनुयायी धर्मप्रचारकों द्वारा 1779 ई० में मलाबार एण्ड इंग्लिश डिक्शनरी नाम से प्रकाशित हुआ। उसी का दूसरा संस्करण सशेधित रूप से तमिल में 'इंग्लिश डिक्शनरी' के नाम में 1809 ई० में मुद्रित हुआ। 1851 ई० में एक त्रिथाषी कोश (अंग्रेजी, तेलुगू और तमिल का) प्रकाशित हुआ। इनकी सहायता से अनेक तमिल कोश बनते आ रहे हैं। इस सम्पन्न और प्राचीन भाषा में व्याकरण और कौशों की सम्पन्न परम्परा है। मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा तमिल का एक विशाल कोश तैयार हुआ है जो अनेक जिल्दों में प्रकाशित है। इसकी शब्दयोजना तमिल वर्णमाला के अनुसार है। इसकी भूमिका में तमिल—कोश—परंपरा के विकास का विस्तृत विवरण दिया गया है।

इनसे अतिरिक्त प्राचीन और अर्वाचीन कालों में अनेल तमिल कोश निर्मित हुए। इनमें अनेक नवीन कोश ऐसे हैं जिनमें तमिल में अर्थ दिया गया है; कुछ में अग्रेजी द्वारा शब्दार्थ बताया गया है—जैसे 'तमिल लेक्सिकन' और कुछ नए कोश ऐसे भी है जिनमें भारतीय भाषाओं का अर्थबोधन के लिये आश्रय लिया गया है। इन्हीं में एकाध तमिल-हिन्दी कोश भी है।

अन्य द्रविड़ भाषाएँ

दक्षिण की अन्य द्रविड़ भाषाओं में भी 19वीं शती के पूर्वार्ध से ही कोशों की रचना चली आ रही है। इन भाषाओं में आज अनेक उत्तम और विशाल कोश प्रकाशित है या हो रहे हैं। तेलगू के त्रिभाषी कोश की ऊपर चर्चा हुई है। चार्लिस फिलिप्स ब्राउन द्वारा 1852 ई० में अंग्रेजी तेलुगू कोश निर्मित होकर छापा गया। ए तेलगू—इंग्लिश डिक्शनरी का 1900 ई० में निर्माण पी० शंकरनारायण ने किया। 1915 ई० में ऑक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस से भी एक तेलगू केश प्रकाशित किया गया। विलियम ऐण्डर्सन ने इससे बी बहुत पहले ही, अर्थात 1812 ई० में अंग्रेजी-मलयालम का कोश बनाया ता। जान गैरेट का अंग्रेजी कर्नाटकी (कनारी) कोश 1865 ई० में प्रकाशित हुआ। बाद में भी एफ्० कितल द्वारा सम्पादित (1894 ई० में) कन्नड का भी एक कोश छपा।

पंजाबी, काश्मीरी, नेपाली

लोदियन मिशन द्वारा 1854 ई० में पंजाबी शब्दकोश बना था जिसमें गुरुमुखी और रोमन में मूल शब्द थे तथा अंग्रेजी में अर्थ था। इसके बाद पंजाबी कोशों का सिलसिला चलता है तथा पंजाबी के कोश बनने लगे।

इधर 20वीं शती में भाई विशनदास पुरी के सम्पादकत्व में प्रकाशित (1922 ई०) और पंजाब सरकार के भाषा विभाग, पटियाला से प्रकाश्य- माना पंजाबी कोश अत्यन्त महत्व के हैं। द्वितीय कोश कदाचित् पंजाबी का सर्वोत्तम कोश है।

काश्मीरी भाषा के अपने मैनुअल में डा० ग्रियर्सन ने व्याकरण बनाया और फ्रजबुक के साथ सात शब्दकोश भी संपादित (1932 ई०) किया था। इसके मूलकर्ता ईश्वर कौल थे और सम्भवतः 1890 ई० के पूर्व इसकी रचना हो चुकी ती। इसका पूर्व भी 1885 ई० में इस दिशा का कुछ कार्य हो चुका था। टर्नर की नैपाली डिक्शनरी यद्यपि बहुत बाद की है, तथापी उसमें कोशविज्ञान और भाषाविज्ञान का विनियोग जिस सहता के साथ हुआ है वह अत्यन्त प्रशंसनीय है।

बांग्ला कोश

बांग्ला के कोशों की परम्परा—बंगाल भाषा का विकास होने के बाद से—बराबर चल रही है। ईधुनिक ढंग के कोशों में प्रकृति- वाद अभिघान नामक विशाल बंगाल कोश उल्लेखनीय है जिसका सम्पादन राधाकमल विद्यालंकार ने किया। 1811 ई० में यह प्रकाशित हुआ। यह शब्दोकोश वस्तुतः संस्कृत बँगाल शब्दकोश है। इसका पूर्णतः परिशोधित और परिवर्धित संस्करण 1911 ई० में श्रीशरच्चन्द्र शास्त्री द्वारा सभ्पादित होकर प्रकाशित हुआ। इसका षष्ठ संस्करण तक देखने को मिला है। कदाचित् इससे भी पहले बंगला पुर्तगाली डिक्शनरी बन चुकी थी। पादरी मेनुअल ने बंगला व्याकरण के साथ बंगला—पुर्तगाली—बंगला केश (सम्भवतः) बनाए थे। कहा जाता है कि रामपुर के पादरी केरे साहब ने 1825 ई० बहुत बंगला—इंग्लिश—कोश बनाला था। ईस्ट इण्डिया कंपनी की ओर से 1833 ई० में बंगला—संस्कृत—इंग्लिश—डिक्शनरी तैयार करवाई गई थी। हाउण्टर और रामकमल सेन का बंगलाइंग्लिश कोश भी अत्यन्त प्रसिद्ध है। पादरी केरे के बंगला अंग्रेजी कोश में 80,000 शब्द थे। इनके अतिरिक्त भी अनेक छोटे बड़े बंगला अंग्रेजी कोश भी बने। केवल बंगला लिपि और भाषा में ही ज्ञानेंद्र मोहन दास का बंगला भाषार आभिधान (द्वितीय संस्कारण 1927) और पाँच जिल्दोंवाला हरिचरण वन्द्योपाध्याय द्वारा निर्मित बंगीय शब्दकोश दोनों उत्कृष्ट रचनाएँ मानी जाती है। बंगला में उन्नीसवीं शताब्दी से आजतक छोटे बडे़ शब्दकोशों के निर्माण की परम्परा चली आ रही है। छोटे कोशों में चलन्तिका अत्यन्त लोकप्रिय है। सैकड़ों अन्य कोश भी आज तक रचे गए और प्रकाशित हो चुके हैं। श्री योगेशचन्द्र राय का बंगला शब्दकोश भी प्रसिद्ध रचना है। इस ग्रंथ में अनेक आधारिक और सहायक ग्रंथों की चर्चा है। उनमें बंगला से संबद्ध निम्नाकित कोशों के नाम उपलब्ध हैं—

(1) डिक्शनरी ऑफ़ बंगाली लैंग्वेज (सं० कैरे—1825 ई०)

(२) ए डिक्शनरी ऑफ़ बंगाली लैंग्वेज (सं० जाँन सी० मार्श- मैन—1827 ई०)

(३) बंगाली वीकैब्यूलरी (सं० एच्० पी० फास्टर—1799 ई०)

(४) बंगाली वीकैब्यूलरी (मोहनप्रसाद ठाकुर—1810 ई०)

(५) डिक्शनरी आव् बंगाली लैग्वेज (सं० डब्लू० मार्टन— 1828 ई०)

(६१) ए डिक्शनरी ऑफ़ हंगाली एण्ड इंग्लिश (सं० ताराचंद चक्रवर्ती—1827 ई०)।

(७) शब्दसिन्धु (अमरकोश के संस्कृत शब्दों की आकारादिवर्णा- नुक्रामानुसार योजना तथा बंगला व्याख्या—1808 ई०)

ग्लासरी ऑफ़ जुडिशल एण्ड रेवेन्यू टर्म्स नामक जामसन के अंग्रेजी बंगला कोश का टाड संस्कारण 1834 ई० में प्रकाशित हुआ एच्० एच्० विलसन का जो कोश 1855 ई० में प्रकाशित हुआ उसमें अरबी, फ़ारसी, हिन्दी, हिन्दुस्तानी, उडिया, मराठी, गुजराती, तेलगू, कर्नाटकी (कनारी), मलायालम आदि के साथ साथ बंगला के शब्द भी थे। श्रीतारानाथ का शब्दस्तोममहानिधि भी अच्छा कोश कहा जाता है।

मराठी कोश

मराठी भाषा में कोशनिर्माण की परम्परा सम्भवतः उस यादवकाल से प्रारम्भ होती है जब महाराष्ट्री प्राकृत के अनन्तर आधुनिक मराठी का स्वतन्त्र भाषा के रूप में विकास हुआ और वह प्रौढ़ हो गई। उस युग में कुछ कोश बनाए गए थे। हेमाद्रि पण्डितों द्वारा रचित अनेक कोशों का उल्लेख मिलता है। सन्त ज्ञानेश्वर ने अपनी कृति ज्ञानेश्वरी के क्लिष्ट शब्दों की—अकारादि क्रम से अनुक्रमणिका बनाते हुए उसी के साथ सरल मराठी में पर्याय शब्द दिए हैं। उसी के द्वारा मराठी से संबद्ध 12वीं शती के उन कोशों का संकेत मिलता है जो आज अनुपलब्ध हैं। शिवाजी द्वारा भी उनके समय में 'राज-व्यवहार-कोश' बना था जिसमें मराठी, फारसी और संस्कृत—तीनों भाषाओं की सहायता ली गई थी। रघुनाथ पण्डितराव द्वारा 384 पद्यों का यह छन्दोबद्ध कोश ऐसा त्रिभाषी कोश है जो अपने ढंग का विशेष कोश कहा जा सकता है। संस्कृत और फ़ारसी के भी अर्थपर्यासूचक ऐसे कोश संस्कृत माध्यम से मुगल शासनकाल में बने थे।

आगे चलकर पाश्चात्यों के संपर्क और प्रभाव से 'मराठी इंगलिश' के अनेक कोश बने। चीफ कैप्टन गोल्सवर्थ ने अंग्रेजी—मराठी का एक विशाल कोश 1831 ई० में बनाया था। थामस कैण्डी के सहयोग से उस कोशों के संशोधित और परिवर्धित अनेक संस्करण छपे। मराठी के इन कोशों की परम्परा 19वीं शताब्दी के आरम्भ से अबतक चली आ रही है। कोशों की दृष्टि से मराठी भाषा अत्यन्त सम्पन्न है। अंग्रेजी कोशों में केरी, कर्नल केनेडी और गोल्सवर्थ कैडी के मराठी इंग्लिश कोश महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। इनके अतिरिक्त 19वीं शती के कुछ प्रमुख मराठी कोश हैं—(1) महाराष्ट्र भाषे चा कोश (इसके प्रथम भाग का प्रकाशन 1829 ई० से प्रारभ्भ हो गया था); (2) रघुनाथ भास्कर गाडबोले का हंसकोश (1863 ई०); (3) बोडकर का रत्नकोश (1869 ई०) और (4) मराठी भाषा का नवीन कोश (1890 ई०)। बीसवीं सदी के कोशों में—वा० गो० आप्टे का— मराठी शब्दरत्नाकर और विद्याधर का सरस्वती कोश आधिक प्रसिद्ध है। सामान्य शब्दार्थ कोशों के अतिरिक्त मराठी—व्युत्पत्तिकोश (कृष्णाजी पाण्डुरंगा कुलकर्णी—1946 ई०) अत्यन्त प्रसिद्ध व्युत्पत्ति- कोश है। इसमें मराठी भाषा का पूर्ण प्रयोग हुआ है। मराठी में विश्वकोश लोकोक्तिकोश, वाक्सम्प्रदायकोश, (अनेक) ज्ञानकोश और शब्दार्थकोश है। गोविन्दराव काले का एक पारिभाषिक शब्दकोश भी है जिसमें अंग्रेजी सैनिक शब्दों का शब्दार्थ संग्रह मिलता है। मराठी हिन्दी कोश भी अनेक बने हैं। इनमें कुछ उत्तम कोटि के भी कोश हैं।

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