सोम शाह

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महाराजा सोम शाह रामनगर राज्य (गुजरात) के कोली शासक थे। इन्होंने ही चौथ (शुल्क) प्रणाली का निर्माण किया था। चौथ एक शुल्क होता था जिसके बदले राजा दूसरे राजा की रक्षा करते थे। महाराजा सोम शाह दमन और दीव के पुर्तगालियों से चौथ लेते थे।[१][२]

चौथ प्रणाली

यह रामनगर के कोली महाराजा सोम शाह द्वारा चलाई गई थी। वो पुर्तगालियों से चौथ लेते थे। यह पूरे धन का एक चौथाई हिस्सा होता था जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है। इसके बदले में महाराजा सोम शाह दमन और दीव के पुर्तगालियों की रक्षा करते थे इसलिए पुर्तगाली महाराजा सोम शाह को चौथिया राजा भी बुलाते थे जिसका मतलब रक्षक राजा होता था। पुर्तगालियों का चीफ फर्नाओ दे मिरांदा हर साल कर अदा करता था।[१][३]

चौथ के उपर संघर्ष

इतिहासकार जदुनाथ सरकार के अनुसार 1670 में पुर्तगाली चीफ फरनाओ दी मिरंदा महाराजा सोम शाह से छुटकारा पाने के लिए जव्हार रियासत के कोली शासक विक्रम शाह के पास गया और समझौता किया की वो महाराजा सोम शाह को हरा दे तो में तुमको चौथ अदा करूंगा और राजा विक्रम शाह राजी हो गए। राजा विक्रम शाह ने रामनगर राज्य के कुछ हिस्से को तबाह कर दिया लेकिन बाद में सब सांत है गए क्युकी दोनो ही कोली राजा थे और फिर दोनों ही पुर्तगालियों से चौथ लेने लगे जिसके बदले में वो पुर्तगालियों को परेशान नहीं करते थे।[१][४]

रामनगर राज्य का अंत

इतिहासकार जादुनाथ सरकार लिखते हैं कि जब जव्हार रियासत के साथ समझोता करके कोई फायदा नहीं हुआ तो पुर्तगाली चीफ फर्णाओ दी मिरांडा मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी राजे भोंसले के पास समझोता करने लगा जिसके तहत अगर शिवाजी महाराज कोली राजाओं को हराते हैं तो वो शिवाजी को चौथ देगा और इस समझोते को शिवाजी ने स्वीकार कर किया। जादुनथ सरकार लिखते हैं कि शिवाजी महाराज के साथ भी कुछ राजनीतिक परेशानी थी कोली राजाओं से लडने में क्युकी मराठा समुंद्री सेना का प्रधान सेनापति और मराठा थल सेना का प्रधान सेनापति कोली जाती से ही थे जिनका नाम येसाजी कनक था जो थल सेना के प्रमुख थे और कानहोजि आंग्रे समुंद्री सेना के प्रमुख थे साथ ही काफी सिपाही भी कोली जाती से थे इसलिए शिवाजी भी कोली राजाओं प्र आक्रमण करने में असमर्थ रहे लेकिन शिवाजी महाराज ने भी कोली राजाओं कि भांति पुर्तगालियों से कर बसुलना सुरु कर दिया जिसके चलते पुर्तगालियों की हालत खराब हो गई।[१][५] कुछ समय तक तो पुर्तगाली चीफ ने चौथ दिया लेकिन बाद में शिवाजी को चौथ देना बंद कर दिया जिसके बाद मराठा दूत पुर्तगाली के पास जवाब लेने पहुंच गए और जवाब में पुर्तगाली चीफ ने कहा कि शिवाजी ने कोली राजाओं को हराया नहीं है इसलिए हमारे मालिक सिर्फ कोली है तो हम शिवाजी को चौथ क्यों दे जिसके चलते 1671 में शिवाजी ने अपने प्रधान मंत्री पेशवा मोरोपंत पिंगले को भेजा जो जाती से ब्राह्मण था और रामनगर राज्य का कुछ हिस्सा हथिया लिया और पुर्तगालियों से चौथ लेना सुरु कर दिया लेकिन कुछ समय बाद फिर से पुर्तगाली चीफ ने शिवाजी को चौथ देना बंद कर दिया और कहा कि तुमने पूरा राज्य नहीं जीता है इसलिए तुम्हारा चौथ पर कोई अधिकार नहीं है। फिर 1672 में शिवाजी ने मराठा सेना के साथ फिर से पेशवा को महाराजा सोम शाह के खिलाफ भेजा जिसमें युद्ध के बाद विजय पेशवा की हुए लेकिन उसी समय सूचना मिली कि महाराजा सोम शाह का मित्र दिलिर खान मुगल सेना लेकर आ रहा है तो पेशवा भाग गया और द्वारा से मराठा सेना लेकर आया और रामनगर राज्य को मराठा साम्राज्य में सामिल कर लिया।[४][३][१]

सन्दर्भ

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