सिल्हारा राजवंश
हिन्दू सिल्हारा राजवंश वर्तमान मुंबई क्षेत्र पर ८१० से १२४० ई. के लगभग शासन करता था। इनकी तीन शाखाएं थीं:-
- एक शाखा उत्तरी कोंकण पर राज करती थी।
- दूसरी शाखा दक्षिण कोंकण पर ७६५ से १२१५ ई. में राज करती थी।
- तीसरी शाखा वर्तमान सतारा, कोल्हापुर और बेलगाम क्षेत्र पर ९४०-१२१५ ई. में राज्य करती थी। इसके बाद इनपर चालुक्य वंश ने अधिकार कर लिया।[१]
यह राजवंश दक्खिन के पठार पर राज्य करते राष्ट्रकूट राजवंश के अधीन जागीरदार और सामंत हुआ करते थे। यह ८वीं -१०वीं शताब्दी की बात है। गोविंद द्वितीय, राष्ट्रकूट शासक ने उत्तरी कोंकण का राज्य (वर्तमान ठाणे, मुंबई और रायगढ़) कपर्दिन प्रथम, सिल्हारा वंश के संस्थापक को ८०० ई. में दिया। तबसे उत्तरी कोंकण को कपर्दी द्वीप या कवदिद्वीप कहा जाने लगा। इस राज्य की राजधानी पुरी हुई, जो वर्तमान राजापुर या रायगढ़ है। इस वंश को टगर-पुराधीश्वर की उपाधि मिली, जिसका अर्थ था टगर (वर्तमान टेर, ओस्मानाबाद जिला) का स्वामी। १३४३ के लगभग, साल्सेट द्वीप और पूरा द्वीपसमूह मुज़फ्फर वंश को चला गया।
सिल्हारा वंश, दक्श्निण महाराष्ट्र जो कोल्हापुर में थे, इन तीनों में से एक थे। इस वंश की स्थापना राष्ट्रकूट वंश के पतन के बाद हुयी थी।
निर्माण
मुंबई के अनेक दर्शनीय स्थल, इस वंश की ही देन हैं:
- बाल्केश्वर मंदिर अवें बाणगंगा सरोवर, इस वंश के राजा चित्तराज ने बनवाये थे।[२].
- अंबरनाथ मंदिर, निकट मुंबई भी चित्तराज ने ही १०६० में बनवाया था।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
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