सन्धिनी
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सन्धिनी | |
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चित्र:Sandinii.jpg सन्धिनी | |
लेखक | महादेवी वर्मा |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | कविता संग्रह |
प्रकाशक | लोकभारती प्रकाशन |
पृष्ठ | १६५ |
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ | HB-01885 |
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सन्धिनी महादेवी वर्मा की चुनी हुई ६५ कविताओं का संग्रह है, जो १९६४ में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक से परिचय करवाते हुए वे कहती हैं, "‘सन्धिनी’ में मेरे कुछ गीत संगृहीत हैं। काल-प्रवाह का वर्षों में फैला हुआ चौड़ा पाट उन्हें एक-दूसरे से दूर और दूरतम की स्थिति दे देता है। परन्तु मेरे विचार में उनकी स्थिति एक नदी-तट से प्रवाहित दीपों के समान है। दीपदान के दीपकों में कुछ, जल की कम गहरी मन्थरता के कारण उसी तट पर ठहर जाते हैं, कुछ समीर के झोके से उत्पन्न तरंग-भगिंमा में पड़कर दूसरे तट की दिशा में बह चलते है और कुछ मझधार की तरंगाकुलता के साथ किसी अव्यक्त क्षितिज की ओर बढ़ते हैं। परन्तु दीपकों की इन सापेक्ष दूरियों पर दीपदान देने वाले की मंगलाशा सूक्ष्म अन्तरिक्ष-मण्डल के समान फैल कर उन्हें अपनी अलक्ष्य छाया में एक रखती है। मेरे गीतों पर भी मेरी एक आस्था की छाया है। मनुष्य की आस्था की कसौटी काल का क्षण नहीं बन सकता, क्योंकि वह तो काल पर मनुष्य का स्वनिर्मित सीमावरण है। वस्तुतः उनकी कसौटी क्षणों की अटूट संसृति से बना काल का अजस्त्र प्रवाह ही रहेगा। 'सन्धिनी’ नाम साधना के क्षेत्र में सम्बन्ध रखने के कारण बिखरी अनुभूतियों की एकता का संकेत भी दे सकता है और व्यष्टिगत चेतना का समष्टिगत चेतना में संक्रमण भी व्यंजित कर सकेगा।"
सन्धिनी में जो गीत संग्रहीत, उनके विषय रहस्य-साधना, वेदनानुभूति, प्रकृति और दर्शन और हैं। सन्धिनी में भी उनकी रहस्यानुभूति विशेष वाणी मिली है। इन गीतों में प्रकृति के प्रति अज्ञात परम सत्ता या प्रियतम का आभास, परम प्रिय से मिलन की उत्कंठा और मिलन की अनुभूति की भावना को काव्यात्मक रूप दिया गया है। कौन तुम मेरे हृदय में, पंथ होने दो अपरिचित, निशा की धो देता राकेश, शलभ मैं शापमय वर हूँ आदि उनके प्रसिद्ध गीत इसी संग्रह में पहली बार प्रकाशित हुए हैं।[१]
सन्दर्भ