संकिशा

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संकिशा
Elephant capital Sankasya.jpg
संकिशा का हस्तिस्तम्भ, तृतीय शताब्दी ईसापूर्व में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तम्भों में से एक
Sankissa elephant abacus detail.jpg
Detail of the abacus.
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स्थान फर्रुखाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश, भारत
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प्रकार Settlement
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प्रकार C

संकिशा अथवा संकिसा भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य के फ़र्रूख़ाबाद जिले के पखना रेलवे स्टेशन से सात मील दूर काली नदी के तट पर, बौद्ध-धर्म स्थान है। इसका प्राचीन नाम संकाश्य है। कहते हैं बुद्ध भगवान स्वर्ग से उतर कर यहीं पर आये थे। जन भी इसे अपना तीर्थ स्थान मानते है। यह तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथजी का कैवल्यज्ञान स्थान माना जाता है।

वर्तमान संकिशा एक टीले पर बसा छोटा सा गाँव है। टीला बहुत दूर तक फैला हुआ है, और 'किला' कहलाता है। किले के भीतर ईंटों के ढेर पर बिसहरी देवी का मन्दिर है, जिसे सनातन धर्म के लोगों द्वारा बनाया गया है। यहां पर सम्राट अशोक के द्वारा बनवाया गया एक स्तूप था जो कि अब एक ईंटों का ढेर बन गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा भी इसे बौद्ध स्थान ही माना गया है। इस स्थान पर किसी भी प्रकार की खुदाई या ईमारत नहीं बना सकते हैं। पास ही अशोक स्तम्भ का शीर्ष है, जिस पर हाथी की मूर्ति निर्मित है। आताताइयों ने हाथी की सूंड को तोड़ डाला है।

उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद के निकट स्थित आधुनिक संकिसा ग्राम को ही प्राचीन संकिसा माना जाता है। कनिंघम ने अपनी कृति 'द एनशॅंट जिऑग्राफी ऑफ़ इण्डिया' में संकिसा का विस्तार से वर्णन किया है। संकिसा का उल्लेख महाभारत में किया गया है।

उस समय यह नगर पांचाल की राजधानी कांपिल्य से अधिक दूर नहीं था। महाजनपद युग में संकिसा पांचाल जनपद का प्रसिद्ध नगर था। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ बुद्ध, इन्द्र एवं ब्रह्मा सहित स्वर्ण अथवा रत्न की सीढ़ियों से त्रयस्तृन्सा स्वर्ग से पृथ्वी पर आये थे। इस प्रकार गौतम बुद्ध के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था।

महात्मा बुद्ध का आगमन

संकिशा में त्रायस्तिंश स्वर्ग से महात्मा बुद्ध के अवतरण का दृष्य

इसी नगर में महात्मा बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर यहाँ आये व संघ में स्त्रियों की प्रवृज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था और भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिया गया था। बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गणना उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की गयी है। प्राचीनकाल में यह नगर निश्चय ही काफ़ी बड़ा रहा होगा, क्योंकि इसकी नगर भित्ति के अवशेष, जो आज भी हैं, लगभग चार मील (लगभग 6.4 कि.मी.) की परिधि में हैं। चीनी यात्री फाह्यान पाँचवीं शताब्दी के पहले दशक में यहाँ मथुरा से चलकर आया था और यहाँ से कान्यकुब्ज, श्रावस्ती आदि स्थानों पर गया था। उसने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी नाम से किया है। उसने यहाँ हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हजार भिक्षुओं को देखा था। कनिंघम को यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक चाँदी का सिक्का मिला था।

विशाल 'सिंह' प्रतिमा

सातवीं शताब्दी में युवानच्वांग ने यहाँ 70 फुट ऊँचाई स्तम्भ देखा था, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था। उस समय भी इतना चमकदार था कि जल से भीगा-सा जान पड़ता था। स्तम्भ के शीर्ष पर विशाल सिंह प्रतिमा थी। उसने अपने विवरण में इस विचित्र तथ्य का उल्लेख किया है कि यहाँ के विशाल मठ के समीप निवास करने वाले भिक्षुओं की संख्या कई हज़ार थी।

इन्हें भी देखें

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