श्रेणी:स्वास्थ्य आपदाएँ

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“हिग्स बोसोन थ्योरी़’’ और गॉड पार्टिकल 

1964 में जर्मनी वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने पृथ्वी पर, पदार्थ के जीवन चक्र की चार अवस्थाएं अपनी कल्पना व गणना के आधार पर सुनिश्चित की और उसे विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया परंतु वह पूर्ण नहीं मानी गई। भारतीय मूल के कोलकाता के वैज्ञानिक श्री सत्येन्द्र नाथ बोस ने उसमें 5वीं अवस्था और जोड़ी जिसे पृथ्वी पर पदार्थ के जीवन अस्तित्व को चक्र के रूप में जाना गया । पीटर हिग्स से “हिग्स“ , व सतेन्द्र नाथ बोस से “बोसोन “ लेकर , ही इसे “हिग्स बोसोन थ्योरी “ का नाम दिया गया। जहां तक हिग्स बोसोन थ्योरी के बारे में मैं समझ पाया हूं यह सजीव व निर्जीव के बीच के रहस्य को उजागर कर देने में सहायक हो सकता है और जिसे विज्ञान अब सुलझाने में सफल होता दिखाई दे रहा है। साधारण विचार से इसके बारे में मेरी जो धारणा है वह यह है कि सृष्टि में असंख्य छोटे बड़े ब्लैक होल और वाइट होल मौजूद है। इनके संयोजन से ही कोई पिंड जन्म ले पाता है चाहे वह कोई प्राणी हो अथवा अन्य पिण्ड और इनका संयोजन ही किसी भी पिण्ड के आभामण्डल ( ओरा ) का निर्धारण करता है। व्हाइट होल एनर्जी को छोड़ने का काम करता है और ब्लैकहोल एनर्जी को अवशोषित करने का काम करता है। इन दोनों से ही कोई भी कण या पिंड ब्रह्मांड से ऊर्जा अवशोषित करता है और ऊर्जा का उत्सर्जन करता है। यह ऊर्जा का उत्सर्जन व संग्रहण करने वाले केन्द्र ही छोटे बड़े ब्लैक होल और वाइट होल हैं। हिग्स बोसोन थ्योरी ही इन ब्लैक होल व व्हाइट होल के संयोजन को विधिवत समझा पा रही है। आधुनिक जीव विज्ञान के अनुसार सर्वप्रथम एक कोशिकीय प्राणी अमीबा के बारे में जानकारी मिलती है। इसके बाद बहुकोशिकीय प्राणियों पर खोजे हुई हैं। आधुनिक जीव विज्ञान प्राणियों के अंदर पाए जाने जीवाणुओं के बारे में बहुत सी जानकारी जुटा चुका है लेकिन किसी भी प्राणी के प्राण को अब तक नियंत्रित नहीं कर पाया है यही कारण है की सजीव व निर्जीव के रहस्य को अब तक विज्ञान सुलझाने में असफल रहा है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड नित्य परिवर्तनषील है, जो हमें स्थिर दिखाई देता है वह भी गतिषील है। आधुनिक विज्ञान के एक वैज्ञानिक के अनुसार किसी कण पर लगने वाले सभी बल संतुलित रहते हैं, परतुं यह भी सत्य नहीं है। आंषिक रूप से सभी बल संतुलित नहीं रह सकते, यही गतिषीलता का कारण है। सनातन धर्म में मरणोंपरान्त षवयात्रा के समय बोला जाने वाला वाक्य ‘‘ राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है ‘‘ उक्त वैज्ञानिक तथ्य का पूरक है। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि मरने वाले व्यक्ति का षरीर जन्म के समय से परिवर्तनषील रहा। प्रकृति के साथ उस षरीर की ष्वास का संयोजन एक संतुलित अवस्था थी, परतुं अब जबकि वह संतुलन उस प्राणी के जीवनकाल को पूर्ण कर देता है वह षरीर पुनः सृष्टि में विलय हो जाता है। सनातन धर्म के भगवान श्री राम ज्योतिष के आधार से तुला राषि हैं अतः राम नाम संतुलन का पर्याय कहा जा सकता है। श्री राम का चरित्र मर्यादाओं में उत्तम पुरूष का है। सनातन धर्म जन्म व मरण को सृष्टि द्वारा किए गए संतुलन को स्वीकारता है। अब हम दृढ़ता से यह कह सकते हैं की आधुनिक विज्ञान द्वारा अब तक जो भी दृश्यत (किसी भी तकनीक से दिखाई देने वाला) संसार है, वह न दिखाई देने वाली षक्तियों से संचालित है। यदि सृष्टि का बृहद रूप हम देखें तो हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा व्हाइट होल सूर्य है। सूर्य हमें रोज दिखाई देता है परंतु ब्लैक होल साधारणतः ऑंखों से दिखाई नहीं देता है। सूर्य सभी को एनर्जी देने का काम करता है और असंख्य ब्लैक होल उस एनर्जी को अवशोषित करते हैं। दैनिक जीवन में हमें वाइटहॉल तो दिखाई देता है लेकिन ब्लैक होल दिखाई नहीं देता। लेकिन अब आधुनिक विज्ञान दावा करती है कि ब्लैक होल के बारे में उन्होंने कई जानकारियां हासिल की है। जिसे आधुनिक विज्ञान ब्लैक होल के नाम से जान रही है, आध्यात्मिक दृष्टि से सनातन धर्म के माध्यम से हम श्री कृष्ण के रूप में उस दैवीय शक्ति की आराधना करते हैं जो सर्वशक्तिमान है और अदृश्य है लेकिन जीवन का संपूर्ण सार उस चरित्र में दर्षन करते हैं। उनके जीवन काल की कल्पना करते हैं, उसे हम भगवान श्री कृष्ण के रूप में जानते हैं और उनके भक्त भक्तिमय होकर समर्पण भाव से उनके आत्मरूप में समर्पित होते हैं। हमारे सनातन धर्म के भगवान श्री कृष्ण भगवान का संबंध सूर्य से है इसका साक्ष्य मद्भागवत गीता के चतुर्थ अध्याय में मिलता है। महाभारत के समय श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान मद्-भागवत गीता के रूप में जाना जाता है। मद्-भागवत गीता के चतुर्थ अध्याय में 8 श्लोकों का उल्लेख इस प्रकार है कि- श्री भगवानुवाच - इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्। विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत । 1। श्री भगवान कहते हैं - पहले मैंने इस अविनाशी योग ( अनंत संयोजन ) को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा ।

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः। स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप । 2। हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु बहुत काल बीतने के बाद वह योग- परम्परा (पृथ्वी से) लुप्त हो गयी।

स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः। भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् । 3।

वही यह पुरातन योग आज मैंने तुमसे कहा है क्योंकि तुम मेरे भक्त और प्रिय सखा हो। यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है


अर्जुन उवाच - अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः। कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति। । 4।

अर्जुन बोले - आपका जन्म तो अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है तब मैं इस बात को कैसे समझूँ कि आप ने ही (कल्प के) पूर्व में सूर्य से यह योग कहा था।

श्रीभगवानुवाच - बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन। तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप। । 5। श्री भगवान बोले - हे परंतप अर्जुन! मेरे और तुम्हारे बहुत से जन्म हो चुके हैं तुम उन सबको नहीं जानते, पर मैं जानता हूॅं ।

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्। प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया । । 6। अजन्मा, अविनाशी और सभी प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी मैं, अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। । 7। हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने (साकार) रूप को रचता हूँ।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे। । 8। साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की यथार्थ स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ। इस प्रकार हमारा आध्यात्मिक विचार पूर्णता सत्य साबित होता है कि जब जब मनुष्य की आंतरिक शक्ति शीर्ण होने लगती है तब तब परमात्मा अपनी शक्ति को प्रवृत्त करके धर्म की पुनर्स्थापना करता है और अधर्म रूपी अंधकार को मिटाता है। श्री कृष्ण द्वारा यह भी कहा गया है कि मैं ज्ञान रूप हूं मुझे पूर्णता से कोई प्राप्त नहीं कर सकता, मेरा जन्म प्राकृत मनुष्य के सदृश्य नहीं होता अतः मेरा जन्म अलौकिक ( न दिखाई देने वाला ) होता है। ज्ञान, सत्य का ही पर्याय है, हम जब ज्ञान की ओर आकर्षित होते हैं तो स्वतः ही सत्य की ओर केंद्रित हो जाते हैं। अंततः यह कहा जा सकता है कि अब आधुनिक विज्ञान भी सत्य की खोज में ही अग्रसर होने लगा है। वर्तमान में ज्वलंत विषय है कि चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस फैलना शुरू हुआ है जिससे यह एक बहुत बड़ी महामारी का कारण बन रहा है। विश्व की वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा भी इसे प्राकृतिक आपदा घोषित कर दी गई है। इस वायरस के फैलने का सबसे बड़ा कारण, मनुष्यों द्वारा पशुओं का भक्षण किया जाना ही माना जा रहा है। यह मनुष्य समुदाय के लिए विवादास्पद विषय रहा है कि कुछ समुदाय मांसाहार को स्वीकारते हैं, व कुछ नहीं । सनातन धर्म के अनुसार, असुर प्रवृत्ति मांसाहार को स्वीकारती है और देवीय प्रवृत्ति सात्विक शाकाहार को ही प्रधानता देती है, मांसाहार उनके लिए निषेध है। मनुष्य दो प्रवृत्तियों में विभाजित है, असुर तत्व व देव तत्व । अतः यह भी कहा जा सकता है कि मनुष्य, देव तत्व व असुर तत्व की योजक कड़ी है। यह दोनों प्रवृतियॉं सम्पूर्ण मनुष्य समुदायों में विस्मृत ( विलय )हो चुकीं हैं। औसतन वर्तमान के मनुष्य का आभामण्डल ( ओरा ) , विभक्त हो कर बहुत षीर्ण हो चुका है। इस अवस्था में सनातन धर्म के अनुसार वह (न दिखाई देने वाली षक्तियों का संचालन कर्ता ) भगवान श्री कृष्ण साकार रूप में अवतरित होते हैं, और यथार्त रूप से ज्ञान का सृजन करते हैं। मेरी धारणा है कि यह खण्ड प्रलय के रूप में महामारी, प्राकृतिक अपदाएॅं बन कर, जनसंख्या को नियत्रिंत करती है और फिर वैचारिक मतभेद उच्च प्रभाव में उत्पन्न होते हैं, युद्वों की उत्पत्ति होती हैं। जनसंख्या पुनः नियत्रंण में आती है अंत में वही दो प्रवृत्तियों में मनुष्य विभाजित हो जाता है, असुर तत्व व देव तत्व ।

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