श्री रामलाल जी सियाग

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रामलाल जी सियाग
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गुरु/शिक्षक गंगाईनाथजी_योगी
साहित्यिक कार्य रिलीजियस रिवोल्यूशन इन द वर्ल्ड (पुस्तक)
कथन ‘मानवता में सतोगुण का उत्थान एवं तमोगुण का पतन करने संसार में अकेला ही निकल पड़ा हूँ। मुझ पर किसी भी जाति विशेष, धर्म विशेष तथा देश विशेष का एकाधिकार नहीं है।’[१]
धर्म हिन्दू
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राष्ट्रीयता भारतीय
श्री रामलाल जी सियाग
वेबसाइट
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रामलाल जी सियाग - (जन्म: 24 नवम्बर,1926 - मृत्यु: 05 जून,2017) श्री रामलाल जी सियाग[२] एक प्रवृत्ति मार्गी संत थे। उनका जन्म भारत के राजस्थान राज्य में बीकानेर जिले के पलाना गांव में 24 नवम्बर 1926 को एक गरीब किसान परिवार में हुआ। श्री सियाग जब मात्र

तीन वर्ष के थे तब उनके पिता का देहान्त हो गया। आर्थिक परेशानियों के कारण उनका बाल्यकाल का कुछ समय अनाथालय में बीता। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1955 में उन्हें उत्तर भारतीय रेलवे में क्लर्क की नौकरी मिल गई। उनको विवाह से एक पुत्री एवं चार पुत्र हुए।

1 जनवरी 1969 को उन्हें गायत्री सिद्धि हुई। मई 1983 में अपने गुरु बाबा श्री गंगाईनाथ जी से कृष्ण की दीक्षा ली और 1984 में उन्हें कृष्ण सिद्धि हुई। अपने गुरु श्री गंगाईनाथ जी योगी के आदेश पर इन्होंने सात वर्ष पूर्व रेलवे की नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर, जन कल्याण हेतु, आजीवन निःशुल्क सिद्धयोग का दान किया। इन दोनों सिद्धियों के प्राप्त होने के कारण से उनकी तस्वीर पर ध्यान करने से साधकों को स्वतः यौगिक क्रियाएँ होती हैं। इन्होंने 10 मई 1993 को अध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र, जोधपुर की स्थापना की और 25 दिसम्बर 1997 को अपनी वेबसाइट द-कम्फरटर डाट ओआरजी लाॅन्च की। अपने शिष्यों में श्री रामलाल जी सियाग प्यार से गुरुदेव के नाम से जाने जाते हैं।

आरम्भिक जीवन

प्रवृति मार्गी संत श्री रामलाल जी सियाग का जन्म भारत के राजस्थान राज्य में बीकानेर जिले के पलाना गांव में 24 नवम्बर 1926 को हुआ। श्री सियाग जब मात्र तीन वर्ष के थे तब उनके पिता का देहान्त हो गया। उनकी माता जी ने उनका लालन-पालन बहुत ही कष्टप्रद स्थितियों में किया। आर्थिक परेशानियों के कारण स्कूल की पढ़ाई समाप्त करते ही श्री सियाग को नौकरी करनी पड़ी। सन् 1955 में उन्हें उत्तर भारतीय रेलवे में क्लर्क की नौकरी मिल गई। उनको विवाह से एक पुत्री एवं चार पुत्र हुए।

आध्यात्मिक अनुभव एवं गायत्री सिद्धि

1968 में रामलाल जी सियाग को अकारण ही मृत्यु का भय सताने लगा। उनके एक मित्र ने इससे बचने के लिए उन्हें गायत्री मंत्र जपने की सलाह दी। तब 1968 की शारदीय नवरात्रि से उन्होंने सवा लाख गायत्री मंत्र का जाप हवन के साथ शुरू किया। इसको पूरा करने में लगभग तीन महीने लगे। जिस दिन उन्होंने सवा लाख जप पूरा किया उसके अगले दिन, 1 जनवरी 1969 को ब्रह्म मुहूर्त में रामलाल जी सियाग ने गहरे ध्यान में देखा कि उनका शरीर एक दिव्य दूधिया प्रकाश में परिवर्तित हो गया है। शरीर के अन्दर उस दिव्य प्रकाश के अलावा और कुछ नहीं है। तभी ध्यान में उन्हें काले भँवरे का गुँजन सुनाई दिया। जब उन्होंने उस आवाज पर गौर किया तब उन्हें महसूस हुआ कि वो गायत्री मंत्र है जो कि उनके नाभि से अविरल जपा जा रहा था। इस प्रकार उन्हें 1 जनवरी 1969 को गायत्री सिद्धि हुई। इस अनुभव को उन्होंने अपनी पुस्तक रिलिजियस रिवोल्युशन इन द वल्र्ड[३] में विस्तार से समझाया है। उनके द्वारा लिखी यह पुस्तक जुलाई 1997 में प्रकाशित हुई है।

कृष्ण सिद्धि

स्वामी विवेकानन्द जी का साहित्य पढ़ने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि बिना गुरु बनाए आध्यात्मिक पथ पर प्रगति संभव नहीं है। इससे प्रेरित होकर उन्होंने गुरु की तलाश शुरू की। अप्रेल 1983 में भाग्यवश उनकी मुलाकात बीकानेर से 27 किलोमिटर दूर जामसर में तपस्यारत बाबा श्री गंगाईनाथ जी योगी से हो गई। मई 1983 में दूसरी मुलाकात के समय बाबा ने उन्हें कृष्ण की दीक्षा देकर शक्तिपात की सामथ्र्य प्रदान की। सन् 1984 में रामलाल जी सियाग को कृष्ण सिद्धि हुई। 31 दिसम्बर प्रातः 5 बजकर 22 मिनट पर बाबा श्री गंगाईनाथ जी योगी ब्रह्मलीन हो गए।[४]

गुरु का आदेश

इसी दौरान ध्यान के समय उनके गुरु श्री गंगाईनाथ जी ने उन्हें गुरुपद का भार सौंपते हुए, विश्वभर में सिद्धयोग का प्रचार करने का आदेश दिया। इस कारण रामलाल जी सियाग ने, 30 जून 1986 को अपनी नौकरी से सात वर्ष पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर, सार्वजनिक शक्तिपात दीक्षा कार्यक्रमों द्वारा सिद्धयोग का निःशुल्क प्रचार कार्य जन कल्याणार्थ शुरू किया। आरम्भ में यह शक्तिपात दीक्षा कार्यक्रम भारत के बीकानेर और जोधपुर शहर में आयोजित हुए।

रामलाल जी सियाग को गायत्री सिद्धि द्वारा निर्गुण निराकार एवं कृष्ण सिद्धि द्वारा सगुण साकार भगवान के दर्शन हुए। इन दोनों सिद्धियों के होने के कारण रामलाल जी सियाग की तस्वीर का ध्यान करने पर साधकों को ध्यान के दौरान स्वतः यौगिक क्रियाएँ होती हैं। महर्षि पतंजली द्वारा लिखित पतंजली योग सूत्र में 24वें से लेकर 29वें सूत्र में ऋषि ने यह स्पष्ट कहा है कि मंत्र जाप के बिना कोई योग सिद्धि नहीं हो सकती। इसी क्रम में गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग संजीवनी मंत्र द्वारा शक्तिपात दीक्षा देकर साधक की कुण्डलिनी जाग्रत करते हैं। इस मंत्र के जपने एवं ध्यान करने से साधक के त्रिविध ताप शांत हो जाते हैं तथा साधक समाधि की स्थिति तक पहुँचकर मोक्ष प्राप्त करता है। यह सिद्धयोग है।

अध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र, जोधपुर की स्थापना

विश्व स्तर पर सिद्धयोग के प्रचार को ध्यान में रखते हुए, रामलाल जी सियाग ने 10 मई 1993 को अध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र, जोधपुर[५] की स्थापना की। आश्रम का निमार्ण पूरा हो जाने पर श्री सियाग ने अपने जीवनकाल का बाकी समय इसी आश्रम में बिताया। 18 जनवरी 2001 से 05 जून 2017, निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्मलीन होने तक वो इसी आश्रम में रहे एवं यहीं से उन्होंने अनगिनत शक्तिपात दीक्षा कार्यक्रमों द्वारा साधकों को सिद्धयोग दर्शन की प्रणाली से अवगत कराया।

विश्व स्तर पर इलेक्ट्राॅनिक मीडिया की महत्ता को ध्यान में रखते हुए 25 दिसम्बर 1997 को श्री रामलाल जी सियाग ने अपनी वेबसाइट लाॅन्च की जिस पर सिद्धयोग दर्शन से सम्बंधित सारी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध है।

विश्वस्तर पर सिद्धयोग का प्रचार

जैसे-जैसे श्री रामलाल जी सियाग के सिद्धयोग द्वारा असाध्य रोगों के ठीक होने की खबर आग की तरह फैली वैसे-वैसे  भारत भर के अनेक शहरों में उनके दीक्षा कार्यक्रम आयोजित होने लगे। इसी क्रम में श्री सियाग एक बार इजराइल एवं तीन बार अमेरिका की विदेश यात्रा पर भी गए।

श्री रामलाल जी सियाग का मिशन मानव मात्र का दिव्य रूपातंरण करना है। रामलाल जी सियाग ने इस संबंध में कहा है कि- ‘मानवता में सतोगुण का उत्थान एवं तमोगुण का पतन करने संसार में अकेला ही निकल पड़ा हूँ। मुझ पर किसी भी जाति विशेष, धर्म विशेष तथा देश विशेष का एकाधिकार नहीं है।’

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. Aspects of the Vedanta, p.150
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