श्रीभट्ट
श्रीभट्ट की निम्बार्क सम्प्रदाय के प्रमुख कवियों में गणना की जाती है।[१]
जीवन परिचय
माधुर्य के सच्चे उपासक श्रीभट्ट केशव कश्मीरी के शिष्य थे। ग्रन्थ "युगल शतक " का रचना काल निम्न दोहे में दिया है ;
- नयन वान पुनि राम शशि गनो अंक गति वाम।
- प्रगट भयो युगल शतक यह संवत अभिराम।
नैन 2 वान 5 राम 3 शशि 1 उलटा करने पर 1352 तेरह सौ वावन होता है। यह श्रीयुगल शतक का रचना काल है ।[१]
साहित्य सृजन
निम्बार्क सम्प्रदाय के विद्वानों के अनुसार श्री भट्ट जी ने बहुत दोहे लिखे थे,जिनमें से कुछ ही युगल शतक के रूप में अवशिष्ट रह गये हैं।[१][२]
माधुर्य भक्ति का वर्णन
श्रीभट्ट जी के उपास्य वृन्दाविपिन विलासी राधा और कृष्ण हैं। ये सदा प्रेम में मत्त हो विविध कुंजों में अपनी लीलाओं का प्रसार करते हैं। भट्ट जी की यह जोड़ी सनातन ,एकरस -विहरण -परायण ,अविचल ,नित्य -किशोर-वयस और सुषमा का आगार है। प्रस्तुत उदाहरण में :
- राधा माधव अद्भुत जोरी।
- सदा सनातन इक रस विहरत अविचल नवल किशोर किशोरी।
- नख सिख सब सुषमा रतनागर,भरत रसिक वर हृदय सरोरी।
- जै श्रीभट्ट कटक कर कुंडल गंडवलय मिली लसत किशोरी।।
राधा और कृष्ण सदा विहार में लीन रहते हैं। किन्तु इनका यह नित्य विहार कन्दर्प की क्रीड़ा नहीं है। विहार में क्रीड़ा का मूल प्रेरक तत्त्व प्रेम है न कि काम। इसी कारण नित्य-विहार के ध्यान मात्र से भक्त को मधुर रस की अनुभूति हो जाती है। अतः भट्ट जी सदा राधा-कृष्ण के इस विहार के दर्शन करना चाहते हैं और यही उनकी उपासना है। वे कहते हैं :
- सेऊँ श्री वृन्दाविपिन विलास।
- जहाँ युगल मिलि मंगल मूरति करत निरन्तर वास।।
- प्रेम प्रवाह रसिक जन प्यारै कबहुँ न छाँड़त पास।
- खा कहौं भाग की श्री भट्ट राधा -कृष्ण रस-चास।।[१]
युगल किशोर की वन-विहार ,जल-विहार ,भोजन,हिंडोला,मान,सुरत आदि सभी लीलाएं समान रूप से आनन्द मूलक हैं। अतः भट्ट जी ने सभी का सरस् ढंग से वर्णन किया है। यमुना किनारे हिंडोला झूलते हुए राधा-कृष्ण का यह वर्णन बहुत सुन्दर है। इसमें झूलन के साथ तदनुकूल प्रकृति का भी उद्दीपन के रूप में वर्णन किया गया है। : हिंडोरे झूलत पिय प्यारी।
- श्री रंगदेवी सुदेवी विशाखा झोटा डेट ललिता री।।
- श्री यमुना वंशीवट के तट सुभग भूमि हरियारी।
- तैसेइ दादुर मोर करत धुनि सुनी मन हरत महारी।।
- घन गर्जन दामिनी तें डरपि पिय हिय लपटि सुकुमारी।
- जै श्री भट्ट निरखि दंपती छवि डेट अपनपौ वारी।।(युगल शतक
- पृष्ठ 40 )
इसी प्रकार वर्षा में भीगते हुए राधा-कृष्ण का यह वर्णन मनोहारी है। यहाँ भाव की सुन्दरता के अतिरिक्त भाषा की सरसता ,स्पष्टता और प्रांजलता भी दर्शनीय है ; भींजत कुंजन ते दोउ आवत।
- ज्यों ज्यों बूंद परत चुनरी पर त्यों त्यों हरि उर लावत।।
- अति गंभीर झीनें मेघन की द्रुम तर छीन बिरमावत।
- जै श्री भट्ट रसिक रस लंपट हिलि मिलि हिय सचुपावत।।(युगल शतक )
सिद्धांत की बात को सिद्ध करने के लिए एक पद। जुगल किशोर हमारे ठाकुर। सदा सर्वदा हम जिनके हैं,जनम जनम घर जाये चाकर। चूक परे परिहरही न कबहू सवही भांति दया के आकर । जै श्रीभट्ट प्रकट त्रिभुवन में प्रणतनि पोषण परम सुधाकर।।
साभार स्रोत
- ब्रजभाषा के कृष्ण-काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण :हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७
- युगल शतक
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ ई http://hindisahityainfo.blogspot.in/2017/05/blog-post.html?spref=gpसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
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