वामनावतार
Vishu avtar | |
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भगवान वामन का सोलहवीं शताब्दी का चित्र | |
अन्य नाम | आदित्य , उपेंद्र , विक्रम , त्रिविक्रम , काश्यप , अदितिनंदन आदि। |
संबंध | [स्वयं भगवान] |
निवासस्थान | वैकुंठ |
मंत्र | ॐ वामनाय नम: |
अस्त्र | कमंडल , छतरी , जपमाला और पुस्तक |
जीवनसाथी | साँचा:if empty |
माता-पिता | साँचा:unbulleted list |
भाई-बहन | सूर्य नारायण , इंद्रदेव , वरुणदेव , त्वष्टा , पूषा , भग [[ अर्यमा सहित अन्य आदित्य |
संतान | साँचा:if empty |
शास्त्र | भागवत पुराण, विष्णु पुराण, वामन पुराण |
त्यौहार | वामन द्वादशी |
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वामन विष्णु के अवतार और बारह आदित्य भाइयों में बारहवें और सबसे छोटे थे। त्रेतायुग के प्रारंभ होने में भगवान विष्णु ने वामन रूप में देवी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए — बालक रूपी ब्राह्मण अवतार । इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। इनके पिता महर्षि कश्यप थे तथा माता अदिति थीं। सूर्यनारायण , इंद्रदेव , वरुणदेव , मित्र , अंशुमान् , पूषा सहित अन्य आदित्य थे। इनका मूल नाम उपेन्द्र था।
उत्पत्ति
वामन ॠषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे।[१] वह आदित्यों में बारहवें थे। ऐसी मान्यता है कि वह इंद्र के छोटे भाई थे।
कथा
भागवत कथा के अनुसार विष्णु ने इन्द्र का देवलोक में अधिकार पुनः स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक असुरराज दैत्य बली ने हड़प लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा ताक़त के माध्यम से बली ने त्रिलोक पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।[२] वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में बली के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला।
वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। इसके पश्चात् ब्रह्मा ने अपने कमण्डल के जल से वामन के पाँव धोये। इसी जल से गंगा उत्पन्न हुयीं।[३] तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये। चूँकि बली के दादा प्रह्लाद विष्णु के परम् भक्त थे, वामन (विष्णु) ने बाली को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुँच गये।
एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया।[४] विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।[४]
बलि का विवरन
बलि के १०० पुत्र थे. बरे का नाम थ बानासुर .
प्रतीकात्मकता
वामनावतार के रूप में विष्णु ने बलि को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खु़शहाल है।[४]
रामायण में
अध्यात्म रामायण के अनुसार राजा बलि भगवान वामन के सुतल लोक में द्वारपाल बन गये[५][६] और सदैव बने रहेंगे।[७] तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में भी इसका ऐसा ही उल्लेख है।[८]
vamandevay namuh namuh सन्दर्भ
- ↑ मनुस्मृति स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। सन् १८४० ई. में होरेस हेमैन विल्सन द्वारा अनुवादित विष्णु पुराण की पुस्तक संख्या ३ अध्याय १ में श्लोक २६५:२२
- ↑ साँचा:cite web
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- ↑ अ आ इ साँचा:cite web
- ↑ P. 281 The Adhyatma Ramayana: Concise English Version By Chandan Lal Dhody
- ↑ P. 134 साँचा:transl By Rūpagosvāmī, Bhakti Hridaya Bon
- ↑ P. 134 Sri Rūpa Gosvāmīs Bhakti-rasāmrta-sindhuh By Rūpagosvāmī
- ↑ P. 246 Complete Works of Gosvami Tulsidas By Satya Prakash Bahadur, Tulasīdāsa