वट्टेऴुत्तु
वट्टेऴुत्तु | |
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प्रकार | अबुगिडा |
भाषाएँ |
तमिल संस्कृत सौराष्ट्र प्राचीन जावाई |
समय काल | ७००-समकालीन |
जननी प्रणालियाँ | |
जनित प्रणालियाँ | सौराष्ट्र |
भगिनी प्रणालियाँ | मलयालम, ग्रंथ |
यूनिकोड माला | U+0B80–U+0BFF |
ब्राह्मी |
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ब्राह्मी तथा उससे व्युत्पन्न लिपियाँ |
वट्टेऴुत्तु (तमिल: வட்டெழுத்து; मलयालम: വട്ടെഴുത്ത്) (अर्थात् गोल अक्षर) एक अबुगिडा लेखन प्रणाली है जिसका उपज दक्षिण भारत और श्री लंका के तमिल लोगों द्वारा हुई। इस उच्चारण-आधारित वर्णमाला के ६ठी सदी से १४वीं सदी के बीच के साक्ष्य वर्तमान काल के भारतीय राज्यों तमिल नाडु और केरल में मिलते हैं। [१] बाद में इसकी जगह आधुनिक तमिल लिपि और मलयालम लिपि ने ले ली। वट्टेऴुत्तु जैसे व्यापक शब्द का प्रयोग जॉर्ज कोईड्स व डीजीई हॉल जैसे दक्षिणपूर्व एशिया अध्ययन करने वाले विद्वानों ने किया है।
दूसरी सदी तक तमिल को तमिल ब्राह्मी में लिखा जाता था। बाद में तमिल के लिए इस लिपि का प्रयोग होने लगा। तमिल ब्राह्मी भी ब्राह्मी आधारित लिपि ही है। इस गोल लिपि का प्रयोग केरल में तमिल, प्राचीन-मलयालम व मलयालम भाषा लिखने के लिए भी किया जाता था। इस समय मलयालम के लिए मलयालम लिपि का प्रयोग होता है।
तमिल भाषा के ३०० ई.पू. से १८०० ई.पू. के शिलालेख मिलते हैं और इनमें समय के साथ कई बदलाव हुए हैं।[१]
ग्रंथ लिपि में वट्टेळुत्तु के मुकाबले अधिक अक्षर हैं। इसमें और तमिल लिपि में कई समानताएँ हैं संस्कृत लिखने के लिए लेकिन तमिल के मुकाबले ग्रंथ में अधिक अक्षर हैं।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
दीर्घा
११०० ईसवीं का तमिल शिलालेख जो तमिल सैनिकों ने पोलन्नरुवै, श्रीलंका में छोड़ा था
कोणेश्वरम् श्रीलंका में शिलालेख, पांड्य युग