वज़ीर (फ़िल्म)
वज़ीर | |
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चित्र:Wazir poster.jpeg फ़िल्म का आधिकारिक पोस्टर | |
निर्देशक | विजय नांबियार |
निर्माता | विधु विनोद चोपड़ा |
लेखक |
संवाद: अभिजीत देशपांडे ग़ज़ल धालीवाल |
पटकथा |
विधु विनोद चोपड़ा अभिजात जोशी |
कहानी | विधु विनोद चोपड़ा |
अभिनेता | |
संगीतकार |
Songs: शांतनु मैत्र अंकित तिवारी अद्वैत प्रशांत पिल्लई रोचक कोहली गौरव गोड़खिंडी पृष्ठभूमि संगीत: रोहित कुलकर्णी |
छायाकार | सानू वर्गीज़ |
संपादक |
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वितरक | रिलायंस एंटरटेनमेंट |
प्रदर्शन साँचा:nowrap |
[[Category:एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"। फ़िल्में]]
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समय सीमा | 104 मिनट[१] |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
लागत | ₹३५० मिलियन (US$४.५९ मिलियन)[२] |
कुल कारोबार | ₹७८७ मिलियन (US$१०.३३ मिलियन)[३] |
वज़ीर विधु विनोद चोपड़ा द्वारा निर्मित और विजय नांबियार द्वारा निर्देशित एक भारतीय हिंदी ऐक्शन थ्रिलर फ़िल्म है जो 2016 में रिलीज़ हुई थी। चोपड़ा और अभिजात जोशी द्वारा लिखित इस फ़िल्म में फ़रहान अख़्तर और अमिताभ बच्चन द्वारा चित्रित प्रमुख पात्रों की कहानी आगे बढ़ाने में अदिति राव हैदरी, मानव कौल और नील नितिन मुकेश महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अभिजीत देशपांडे द्वारा लिखे गए संवादों पर ग़ज़ल धालीवाल द्वारा किए गए परिष्कारों पर निर्मित इस फ़िल्म में जॉन अब्राहम की विशेष उपस्थिति है। फ़िल्म का संगीत निर्माण में शांतनु मैत्र, अंकित तिवारी, अद्वैत, प्रशांत पिल्लई, रोचक कोहली और गौरव गोड़खिंडी जैसे संगीतकार संलग्न थे। सानू वर्गीज़ ने फ़िल्म के छायांकन में प्रमुख भूमिका निर्वाह की।
चोपड़ा की मौलिक कहानी पर आधारित वज़ीर में पहियाकुर्सी का उपयोग करनेवाला एक शतरंज खिलाड़ी से दोस्ती करनेवाले निलंबित आतंकवाद निरोधी दस्ते के अधिकारी की कहानी दर्शाई गई है। 1990 के दशक में फ़िल्म का विचार आने के बाद जोशी के साथ 2000 से चार साल के अंतराल में चोपड़ा ने कहानी अंग्रेज़ी में पूरी की। डस्टिन हॉफ़मैन द्वारा प्रमुख भूमिका निर्वाह होनेवाली यह फ़िल्म चोपड़ा की पहली हॉलीवुड फ़िल्म होनी थी लेकिन निर्माता की मृत्यु के बाद लगभग आठ साल तक वैसे ही पड़ी रही। बाद में हिंदी फ़िल्म बनाने का निर्णय करकर चोपड़ा और जोशी ने फिर से फ़िल्म का पटकथा लिखा। 28 सितंबर 2014 को छायांकन की प्रक्रिया शुरू हुई।
8 जनवरी 2016 को रिलीज़ होने पर वज़ीर को समीक्षक से मिश्रित और सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ मिली जहाँ दोनों प्रमुख पात्रों की प्रदर्शनी और ऐक्शन दृश्यों की तारीफ़ तो हुई लेकिन फ़िल्म की आसानी से अनुमान की जा सकनेवाली कहानी की आलोचना हुई। वैश्विक स्तर पर ₹78.69 करोड़ की आमदनी के साथ यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस में ख़ास सफल नहीं थी।
कथानक
आतंकवाद निरोधी दस्ते के अधिकारी दानिश अली (फ़रहान अख़्तर) अपनी पत्नी रुहाना (अदिति राव हैदरी) और छोटी बेटी नूरी के साथ रहता है। एक दिन अपनी पत्नी और बेटी के साथ गाड़ी चलाते समय दानिश आतंकवादी फ़ारूक़ रमीज़ को देखता है और उसका पीछा करता है। आगामी गोलीबारी में रमीज़ तो बचकर भाग जाता है लेकिन नूरी की मौत हो जाती है। सदमे में पहुँची रुहाना दानिश को नूरी की मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराती है। बाद में एक पुलिस ऑपरेशन के दौरान दानिश रमीज़ की हत्या कर देता है जिसकी वजह से उसके उन वरिष्ठ अधिकारी नाराज़ होते है जो जानना चाहते थे की रमीज़ किस राजनेता से मिलने जा रहा था। फलतः दानिश को दस्ते से निलंबन किया जाता है।
निराश दानिश नूरी की क़ब्र पर ख़ुदकुशी करने की तैयारी कर रहा होता है जब एक रहस्यमय वान आ जाता है जो दानिश के चिल्लाने के बाद चला जाता है। दानिश को उस जगह पर एक बटुआ मिलता है जहाँ पर कुछ देर पहले वह वान खड़ा था, जिसे लौटाते वक़्त वह विकलांग शतरंज मास्टर पंडित ओमकार नाथ धर (अमिताभ बच्चन) से मिलता है। पता चलता है कि पंडित नूरी के भी शतरंज शिक्षक थे, जो दानिश को शतरंज सिखाते हुए अपनी मृत बेटी नीना (वैदेही परशुरामी) के बारे में बताता है। नीना सरकारी मंत्री यज़ाद क़ुरैशी (मानव कौल) कि बेटी रूही (माज़ेल व्यास) को शतरंज सिखाती थी और क़ुरैशी के घर में ही सीढ़ियों से गिरकर चल बसी। पंडित को यक़ीन है कि उसकी बेटी की मौत एक चंद हादसा नहीं था। हैरान और उत्सुक दानिश क़ुरैशी से मिलने की कोशिश करता है लेकिन मंत्री के कार्यालय में पुलिस उसे गिरफ़्तारी की धमकी देते हैं। बाद में दानिश रूही से उसके स्कूल में मिलता है लेकिन क़ुरैशी अपनी बेटी को दूर ले जाकर दानिश से बात करने के लिए उसे ताड़ता है। उस रात पंडित पर क़ुरैशी द्वारा भेजा गया हिटमैन वज़ीर (नील नितिन मुकेश) द्वारा बेरहमी से हमला होता है जो पंडित और दानिश को क़ुरैशी का पीछा करना बंद करने की चेतावनी देता है।
पंडित कश्मीर के लिए रवाना होता है जहाँ क़ुरैशी जा रहा होता है। वज़ीर दानिश को फ़ोन करकर पंडित को वहीं मारने की धमकी देता है। दानिश जल्दी से पंडित के वान का पीछा करता है लेकिन वज़ीर उसे बम से उड़ा देता है जिसकी वजह से पंडित की मौत हो जाती है। बदला लेने और वज़ीर की पहचान पता लगाने के लिए आतुर दानिश रुहाना को बताए बिना कश्मीर के लिए निकलकर एस॰ पी॰ विजय मलिक (जॉन अब्राहम) के साथ वज़ीर को बाहर निकालने का योजना बनाता है। क़ुरैशी के भाषण के दौरान मलिक पोडियम के ऊपर रहा झूमर में छिपे विस्फोटकों को विस्फोट कर देता है जिसकी वजह से दहशत फैल जाती है। पुलिस को रोककर मलिक दानिश को अपना काम करने का समय देता है। दहशत का फ़ायदा उठाकर क़ुरैशी अपना और रूही का वासस्थान पहुँच जाता है जहाँ दानिश भी पहुँचकर उसे वज़ीर के बारे में पूछता है। क़ुरैशी दावा करता है कि वह वज़ीर नाम के किसी भी इंसान को नहीं जानता जब रूही रोती हुई दानिश को बताती है कि क़ुरैशी उसका असली पिता नहीं है, वह वास्तव में उन उग्रवादियों में से एक है जिन्होंने उसके पूरे गाँव का नरसंहार करकर भारतीय सेना के आगमन के बाद उसके पिता की जगह ले लिया। रूही ने यह बात बताई थी, इसलिए क़ुरैशी ने नीना को मारकर उसकी मौत को एक हादसा बताकर बात दफ़ना दिया। दानिश जान जाता है कि रमीज़ और अन्य आतंकवादी क़ुरैशी को मिलने आ रहे हैं जिसकी वजह से वह उसकी हत्या कर देता है। फलतः आतंकवाद निरोधी दस्ता और रूही मीडिया के सामने खुलासा करते हैं कि क़ुरैशी वास्तव में एक आतंकवादी था।
कुछ दिनों बाद पंडित को समर्पित रुहाना के शतरंज पर आधारित खेल को देखकर दानिश को एहसास होता है कि पंडित वास्तव में खेल का एक "कमज़ोर प्यादा" था जिसने एक "मज़बूत हाथी" (दानिश) से दोस्ती करकर एक "दुष्ट राजा" (क़ुरैशी) की हत्या करवाकर अपना बदला पूरा किया। इस आभास से हैरान दानिश पंडित की बाई को ढूँढ़ता है जो उसे बताती है कि उसने वास्तव में उस रात वज़ीर को नहीं देखा जिस दिन पंडित के ऊपर हमला हुआ था लेकिन उसे वज़ीर के खोज में आया दानिश को देने के लिए एक यू॰ एस॰ बी॰ पेन-ड्राइव के बारे में एक निर्देश की याद आती है। सो पेन-ड्राइव में रहे एक वीडियो में पंडित दानिश को समझाता है कि वज़ीर कभी अस्तित्व में ही नहीं था, कि वह सिर्फ़ पंडित द्वारा रचित एक पात्र था क्योंकि वह जानता था कि उसकी विकलांगता की वजह से वह क़ुरैशी के आगे शक्तिहीन था और वह क़ुरैशी को ही मारना चाहता था। पंडित ने जान-बूझकर ही नूरी की क़ब्र के नज़दीक अपना बटुआ गिराया था ताकि दानिश उसे ढूँढ़कर उससे दोस्ती कर सके। वज़ीर के हमले से हुए उसके चाक़ू के घाव उसने ख़ुद बनाए थे और फ़ोन पर वज़ीर का नक़ल करने के लिए उसने वॉइस रिकॉर्डिंग का उपयोग किया था। पंडित ने यह सुनिश्चित करने के लिए ख़ुद को बलिदान किया था कि दानिश क़ुरैशी की हत्या करकर उन दोनों का बदला ले सके। रहस्योद्घाटन से चकित दानिश और रुहाना का पुनर्मिलन हो जाता है।
अभिनेतावृंद
- फ़रहान अख़्तर रुहाना के पति दानिश अली की भूमिका में
- अमिताभ बच्चन दानिश के दोस्त और नीना के पिता पंडित ओमकार नाथ धर की भूमिका में
- अदिति राव हैदरी दानिश की पत्नी रुहाना अली की भूमिका में
- मानव कौल यज़ाद क़ुरैशी की भूमिका में
- नील नितिन मुकेश वज़ीर की भूमिका में
- जॉन अब्राहम एस॰ पी॰ विजय मलिक की भूमिका में
- प्रकाश बेलवाड़ी डिप्टी पुलिस अधीक्ष की भूमिका में
- वैदेही परशुरामी पंडित ओमकार नाथ धर की बेटी नीना धर की भूमिका में
- अंजुम शर्मा दानिश के सहकर्मी सरताज सिंह की भूमिका में
- नासिर क़्वाज़ी रमीज़ की भूमिका में
- मुरली शर्मा महेश की भूमिका में
- निशिगंधा वाड़ रुहाना की माँ की भूमिका में
- सीमा पाहवा पंडित की बाई पम्मी की भूमिका में
- अवतार गिल पुलिस अधीक्ष जी॰ बी॰ सिंह की भूमिका में
- माज़ेल व्यास रूही की भूमिका में
- गार्गी पटेल रूही की ध्यान रखनेवाली की भूमिका में
- रीम शेख की विशेष उपस्थिति
निर्माण
विकास
28 जुलाई 1988 को लखनऊ में बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की हत्या के बाद विधु विनोद चोपड़ा को वज़ीर का विचार आने के बावजूद चोपड़ा ने बताया है कि इस हादसा और फ़िल्म की कहानी बीच कोई संबंध नहीं है।[५] 1994 में अपने सह-लेखक अभिजात जोशी से मिलने पर चोपड़ा ने उन्हें दो शतरंज खिलाड़ियों को प्रमुख पात्र बनाकर एक थ्रिलर फ़िल्म बनाने की सोच के बारे में बताया।[६] चोपड़ा ने राकेश मरिया और विश्वनाथन आनंद के बीच का शतरंज का खेल की छवि सृजना करकर अपने पात्रों का वर्णन किया। अंततः 2000 से 2004 तक चार साल के अंतराल में उनहोंने पटकथा की समाप्ति की।[७] डस्टिन हॉफ़मैन द्वारा प्रमुख भूमिका निर्वाह होनेवाली यह फ़िल्म चोपड़ा की पहली हॉलीवुड फ़िल्म होनी थी लेकिन 2005 में फ़िल्म का निर्माता रॉबर्ट न्यूमायर की मौत के बाद आठ सालों तक फ़िल्म की कहानी वैसे ही पड़ी रही।[६]
विजय नांबियार की 2013 की फ़िल्म डेविड के ब्लैक-ऐंड-वाइट सीनों से प्रभावित चोपड़ा ने सो निर्देशक से काम करने की इच्छा व्यक्त करकर उन्हें अपने कुछ कथानक दिखाए जिनमें से नांबियार ने शतरंज से संबंधित कहानी का चयन किया। उसके बाद चोपड़ा और जोशी ने सो कथानक के हिंदी संस्करण लिखने में दो साल बिताए।[६]
चोपड़ा और जोशी दोनों ने फ़िल्म का पटकथा लिखते वक़्त अमेरिका के शतरंज खिलाड़ियों से सुझाव लिए।[५] फ़िल्म के छायांकन में सानू वर्गीज़ संलग्न थे जिन्होंने डेविड के छायांकन में भी अहम भूमिका निर्वाह की थी।[५] सात महीनों के अंतराल में चोपड़ा और जोशी ने फ़िल्म की कहानी में बहुत-से मामूली बदलाव लाए।[५] 1989 में परिंदा की रिलीज़ के बाद चोपड़ा ने पहली बार फ़िल्म की कहानी में संपादन किया था।[८] वज़ीर में पहली बार संपादन करनेवाले जोशी मानते है कि संपादन के मेज़ पर फ़िल्में फिर से लिखी जाती हैं।[५] बच्चन के घुटनों से नीचे पैरों को छिपाने के लिए दृश्यात्मक प्रभावों का उपयोग किया गया था।[९] छायांकन की लंबी प्रक्रिया में बच्चन की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए फ़िल्म के निर्माताओं ने 40 से 50 पहियाकुर्सियों का परीक्षण किया।[९] अक्टूबर 2014 में फ़िल्म के किरदार पर आधारित होकर फ़िल्म का नाम वज़ीर रखने से पहले दो तथा एक और एक दो जैसे शीर्षकों पर विचार किया गया था।[१०][११]
अभिनेतावृंद का चयन
2004 में लक्ष्य की प्रदर्शनी में चोपड़ा ने फ़रहान अख़्तर को वज़ीर की पटकथा के बारे में बताकर उसके ऊपर प्रतिक्रिया माँगी। दस साल बाद 2014 में वे दोनों फिर से मिले और अख़्तर ने फ़िल्म करना स्वीकार कर लिया क्योंकि संशोधित पटकथा ने उनका दिल छू लिया।[१२] आतंकवाद निरोधी दस्ते के अधिकारी की भूमिका निभाने के लिए उनहोंने गहन प्रशिक्षण लेकर आठ किलोग्राम वज़न बढ़ाया।[१०][१३][१४] तैयारी के लिए उनहोंने अपना आहार भी बदला और अपने कुछ दोस्तों से भी मिले जो आतंकवाद निरोधी दस्ते के अधिकारी थे।[१५] उनहोंने फ़िल्म में अपने पात्र को कोल्हापुर, महाराष्ट्र के पुलिस महानिरीक्षक विश्वास नांगरे पाटिल पर आधारित किया।[१६] अख़्तर की भूमिका के लिए सहमत होने से चोपड़ा हैरान रह गए थे क्योंकि उस वक़्त फ़रहान के पिता जावेद अख़्तर और चोपड़ा एक सार्वजानिक मौखिक द्वंद्व में लगे हुए थे। जब चोपड़ा ने फ़रहान से उनकी सहमति के बारे में पूछा, तब उनहोंने कहा कि पटकथा अच्छी होने की वजह से वे फ़िल्म करने को राज़ी हो गए।[५] चोपड़ा ने बताया कि फ़िल्म की पटकथा को फिर से हिंदी में लिखते समय जोशी और उनहोंने एहसास किया कि फ़िल्म का प्रमुख पात्र अमेरिकी नहीं हो सकता, इसीलिए उन्हें अपनी संवेदनाएँ ख़ुद ही लानी थीं। उनकी फ़िल्म ज़्यादा अतिरंजित थी, इसलिए उनका प्रमुख पात्र भी और अतिरंजित होना चाहिए था। उनहोंने शतरंज के मास्टर को भारतीय बनाने का निर्णय करकर अमिताभ बच्चन से संपर्क बनाया। बच्चन ने मौलिक पटकथा पढ़ा था और उन्हें याद था जब चोपड़ा पहली बार उनके पास आए थे।[५] अदिति राव हैदरी को फ़िल्म में तब शामिल किया गया जब नांबियार ने उन्हें रैंप पर चलते हुए देखा और चोपड़ा ने उन्हें नाचते हुए देखा। इसके बाद हैदरी को नृत्य, अभिनय और स्क्रीन टेस्ट करकर ऑडिशन के तीन सेट पर अपनी योग्यता दिखानी पड़ी।[१७] फ़िल्म में जॉन अब्राहम और नील नितिन मुकेश की विशेष उपस्थिति है।[१८]
छायांकन
28 सितंबर 2014 को मुंबई में प्रमुख छायांकन की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। फ़िल्म के कुछ हिस्सों का छायांकन दिल्ली में भी किया गया था।[१९] चोपड़ा के मुताबिक़ अख़्तर और बच्चन के बीच रूसी वोडका और रूसी लड़कियों के संबंध में मज़ाक को लेकर फ़िल्म के सबसे अच्छे लाइनों में से ज़्यादातर लाइन तत्काल तैयार किए गए थे।[६] अख़्तर ने फ़िल्म के लिए अपने करतब ख़ुद किए।[२०] उन्होंने मार्च 2015 में अपनी सारणी श्रीनगर में पूरी की और बच्चन ने अपने बाक़ी के सीन अगले महीने पूरे किए।[१९][२१][२२]
दृश्यात्मक प्रभाव
अमिताभ बच्चन की विकलांगता दिखाने के लिए उनके घुटनों से नीचे पैरों को छिपाने के लिए दृश्यात्मक प्रभावों का उपयोग किया गया था। छायांकन के दौरान सो प्रभावों की सृजना में मदद करने के लिए उन्होंने चिह्नित काले मोज़े पहने थे।[९] चोपड़ा पहले दृश्यात्मक प्रभावों से ख़ुश न होने की वजह से अपेक्षित नतीजे पाने के लिए कुछ बदलाव लाए गए थे।[२३]
ध्वनि-पट्टी
अनाम |
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फ़िल्म की ध्वनि-पट्टी की सृजना में शांतनु मैत्र, अंकित तिवारी, अद्वैत, प्रशांत पिल्लई, रोचक कोहली और गौरव गोड़खिंडी सहित कई कलाकार संलग्न थे।[२४] पृष्ठभूमि संगीत की रचना में रोहित कुलकर्णी तथा गानों की रचना में विधु विनोद चोपड़ा, स्वानंद किरकिरे, ए॰ एम॰ तुराज़, मनोज मुंतशिर और अभिजीत देशपांडे शामिल थे।[२५] फ़िल्म के अलबम अधिकार टी-सीरीज़ द्वारा अधिग्रहित करने के बाद 18 दिसंबर 2015 को अलबम रिलीज़ किया गया।[२६] अलबम की रिलीज़ के दो हफ़्ते पहले अलबम का पहला एकल गाना "तेरे बिन" को 4 दिसंबर 2015 को रिलीज़ किया गया।[२७] शांतनु मैत्र द्वारा संगीतबद्ध और चोपड़ा द्वारा लिखित इस गाने को सोनू निगम और श्रेया घोषाल ने गाया है और इसके वीडियो फ़रहान अख़्तर और अदिति राव हैदरी के पात्रों पर केंद्रित है।[२८] मनोज मुंतशिर द्वारा लिखित और अंकित तिवारी द्वारा संगीतबद्ध तथा गाया गया अलबम का दूसरा एकल गाना "तू मेरे पास" और मैत्र द्वारा संगीतबद्ध, चोपड़ा तथा स्वानंद किरकिरे द्वारा लिखित और जावेद अली द्वारा गाया गया अलबम का तीसरा एकल गाना "मौला मेरे मौला" एक-एक हफ़्ते के अंतराल में रिलीज़ किए गए थे।[२९][३०] "खेल खेल में" गाने के साथ फ़्यूझ़न रॉक बैंड अद्वैत ने पहली बार फ़िल्म में अपना गाना पेश किया।[३१] ए॰ एम॰ तुराज़ द्वारा लिखित और प्रशांत पिल्लई द्वारा संगीतबद्ध "तेरे लिए" गगन बड़हरिया और पिल्लई द्वारा गाया गया था। रोचक कोहली द्वारा संगीतबद्ध "अतरंगी यारी" बच्चन और अख़्तर द्वारा गाया गया था।[३२] फ़िल्म का थीम गौरव गोड़खिंडी द्वारा संगीतबद्ध किया गया था।[३३]
आलोचनात्मक प्रतिक्रिया
बॉलीवुड हंगामा के जोगिंदर टुटेजा के अनुसार वज़ीर में ऐसे गानों का एक अच्छा मिश्रण है जो परिस्थितिजन्य है और जो समय के साथ लोकप्रियता पा सकते हैं।[२५] इस फ़िल्म के गाने भले ही टॉप चार्टों में शामिल न हों लेकिन ये गाने फ़िल्म की कहानी के साथ मेल खाते हैं। इंडिया-वेस्ट के आर॰ एम॰ विजयकर के अनुसार तीन अच्छे और तीन विस्मरणीय गानों से बनी यह फ़िल्म की ध्वनि-पट्टी पसंद आना या न आना श्रोता पर ही निर्भर होगा।[३४] रीडिफ़.कॉम की एलीना कपूर के अनुसार वज़ीर में अच्छे परिस्थितिजन्य गाने हैं जो कोई रिकॉर्ड बनाने का उद्देश्य नहीं रखते हैं लेकिन फ़िल्म की कहानी के साथ मेल खाते हैं।[३३]
रिलीज़
वज़ीर को 2015 के मध्य में रिलीज़ करने का योजना बनाया गया था और फ़िल्म का पहला टीज़र पीके के साथ ही दर्शाया गया था। इसकी नियोजित रिलीज़ की तारीख़ को 2 अक्टूबर से 4 दिसंबर तक बदलने के बाद में अंततः 8 जनवरी 2016 को फ़िल्म भारत सहित वैश्विक स्तर पर रिलीज़ हुई।[२३][३५] फ़िल्म को केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा बिना किसी कटाव के "अव" प्रमाणपत्र दिया गया।[३६] फ़िल्म का पहला पोस्टर 15 नवंबर 2015 को बच्चन और अख़्तर के ट्विटर खातों के माध्यम से रिलीज़ किया गया जहाँ पर दोनों अभिनेताओं ने अपने सहकर्मी के पात्रों की तस्वीर प्रकाशित किए।[३७] 18 नवंबर को फ़िल्म का आधिकारिक ट्रेलर रिलीज़ किया गया।[३८] चोपड़ा ने तक़रीबन 70 भारतीय फ़िल्म वितरकों को पूरी फ़िल्म दिखाई।[३५]
फ़िल्म की रिलीज़ से पहले प्रचार के दौरान नांबियार ने बताया कि अमिताभ बच्चन जैसे दृढ़ व्यक्तित्व के व्यक्ति को पहियेकुर्सी में सीमित देखना सबके लिए थोड़ा-बहुत मुश्किल था। सो आख्यान विकलांगता अधिकार समूह के संस्थापक जावेद आबिदी के मुताबिक़ बहुत ही अपमानजनक था।[३९] बाद में नांबियार ने किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए माफ़ी माँगी।[४०] 25 मार्च 2016 को फ़िल्म डी॰ वी॰ डी॰ पर रिलीज़ किया गया और नेटफ़्लिक्स पर भी उपलब्ध है।[४१][४२]
आलोचनात्मक प्रतिक्रिया
दी इंडियन एक्सप्रेस ने फ़िल्म को 5 में से 2.5 सितारे देकर लिखा कि फ़रहान अख़्तर और अमिताभ बच्चन को एक-दूसरे के साथ खेलते और पैंतरेबाज़ी करते देखना ही फ़िल्म की सबसे मज़ेदार बिंदु है।[४३] द टाइम्ज़ ऑफ़ इंडिया की सृजना मित्र दास ने फ़िल्म को 5 में से 3.5 सितारे देकर लिखा कि वज़ीर एक चालाक फ़िल्म है जो और चालाक हो सकती थी।[४४] सुभाष के॰ झा ने 5 में से 4 सितारे देते हुए फ़िल्म की चालाक पटकथा पर ध्यान केंद्रित करकर लिखा कि 1 घंटे और 40 मिनट की अवधि में वज़ीर दर्शक को थोड़ी देर रुककर कहानी पर मनन करने का एक भी मौक़ा नहीं देता।[४] हिंदुस्तान टाइम्ज़ की श्वेता कौशल ने फ़िल्म को 5 में से 3 सितारे देकर लिखा कि चालाक पटकथा के अलावा कलाकारों के मज़बूत प्रदर्शनी ही वज़ीर की रीढ़ का काम करती हैं।[४५] भरद्वाज रंगन ने इस फ़िल्म की कहानी को थ्रिलर से ज़्यादा रिश्तों के ड्रामे के लिए ठीक समझा।[४६] मिड-डे की शुभ्रा शेट्टी शाह ने बच्चन की प्रदर्शनी की तारीफ़ करते हुए उन्हें इस फ़िल्म का सबसे अच्छा हिस्सा बताया।[४७] तथापि, उनहोंने फ़िल्म में गांभीर्य की कमी का अपवाद लगाकर कहा कि वज़ीर एक बार देखने के लिए एक अच्छी फ़िल्म है।[४७]
ज़्यादातर समीक्षकों को महसूस हुआ कि शुरुआत में कहानी के अच्छे प्रवाह होने के बावजूद अंत तक फ़िल्म फीकी पड़ गई। इंडिया टुडे की अनन्या भट्टाचार्य मानती हैं कि फ़िल्म के मध्यांतर से पहले के हिस्से तक फ़िल्म की कहानी मनोरंजक और मज़ेदार थी।[४८] न्यूज़18.कॉम के राजीव मसंद ने फ़िल्म को 5 में से 2.5 सितारे देकर बताया कि एक अच्छी थ्रिलर फ़िल्म होने के बावजूद कहानी और चालाक और मज़ेदार हो सकती थी।[४९] द हिंदू की नम्रता जोशी के अनुसार वज़ीर की शुरुआत में अच्छी प्रदर्शनी और अच्छा उत्पादन तो थे लेकिन अंत तक फ़िल्म मंद और फीकी पड़ गई।[५०] रीडिफ़.कॉम के राजा सेन ने फ़िल्म को 5 में से 2 सितारे देकर कहा कि फ़िल्म में किसी भी पात्र के इरादे बोधगम्य नहीं हैं।[५१] एन॰ डी॰ टी॰ वी॰ के सैबल चटर्जी ने लिखा कि वज़ीर में सभी पत्ते पहले ही दिखाए जाते हैं जिसकी वजह से फ़िल्म के अंत में अनिश्चय और असमंजस की भावना महसूस नहीं होतीं।[५२] फ़िल्मफ़ेयर के रचित गुप्ता ने फ़िल्म को 5 में से 3 सितारे देकर फ़िल्म की पूर्वानुमेयता पर अपवाद लगाया।[५३] उनके मुताबिक़ फ़िल्म का चरमोत्कर्ष आसान और छूँछा था।[५३]
समुद्र पार द गार्डियन के माइक मैककैहिल ने फ़िल्म को 5 में से 3 सितारे देकर इसे एक सुरुचिपूर्ण बॉलीवुड पुलिस फ़िल्म के रूप में वर्णन किया।[५४] अबू धाबी में द नैशनल के अभिनव पुरोहित ने भी फ़िल्म को 5 में से 3 सितारे देकर दर्शकों को यह फ़िल्म पसंद आने का यक़ीन जताया।[५५]
बॉक्स ऑफ़िस
वज़ीर साल की सबसे पहली हिंदी फ़िल्म थी। 8 जनवरी 2016 को फ़िल्म ने मुंबई, पुणे, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उत्तर प्रदेश सहित के थिएटरों से कुल ₹5.57 करोड़ कमाए।[५६] समुद्र पार के बॉक्स ऑफ़िस में इस फ़िल्म ने मामूली प्रदर्शनी के साथ कुल ₹4 करोड़ कमाए।[५६]
फ़िल्म के शुरुआती सप्ताह के अगले दो दिनों में फ़िल्म की राष्ट्रीय आमदनी में वृद्धि हो गई। दूसरे दिन में ₹7 करोड़ और तीसरे दिन में ₹8.24 करोड़ करकर फ़िल्म ने अपनी शुरुआती सप्ताह में कुल ₹21 करोड़ कमाई।[५७][५८] सप्ताह के अंत तक अंतर्राष्ट्रीय आमदनी में घटाव दिखने पर भी दूसरे दिन में ₹7.36 करोड़ की आमदनी तीसरे दिन तक ₹10.5 करोड़ हो चुकी थी।[५७][५८]
वज़ीर ने शुरुआती सप्ताह में राष्ट्रीय बॉक्स ऑफ़िस के ₹30.1 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय बॉक्स ऑफ़िस के ₹14.2 करोड़ गिनकर कुल ₹44.3 करोड़ कमाई।[५९] पहले सप्ताह में ही यह फ़िल्म ₹35 करोड़ का बजट वसूल कर लिया। दूसरे सप्ताह में वज़ीर ने राष्ट्रीय स्तर पर ₹6.29 करोड़ की आमदनी के साथ ख़ुद को 2016 की पहली हिट फ़िल्म के रूप में स्थापित कर लिया।[६०][२] अपने 5 हफ़्ते के थिएटर प्रदर्शनी में राष्ट्रीय स्तर पर ₹56.8 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ₹20.1 करोड़ की कमाई के साथ कुल ₹78.7 करोड़ की कमाई की।[३]
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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