लीला सेठ

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लीला सेठ

लीला सेठ (20 अक्टूबर 1930 – 5 मई 2017[१]) भारत में उच्च न्यायालय ( हिमाचल प्रदेश ) की मुख्य न्यायाधीश बनने वाली पहली महिला थीं। दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनने का श्रेय भी उन्ही को ही जाता है। वे देश की पहली ऐसी महिला भी थीं, जिन्होंने लंदन बार परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया।[२]

प्रारंभिक जीवन

न्यायमूर्ति लीला का जन्म लखनऊ में अक्टूबर 1930 में हुआ। बचपन में पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बढ़ी और मुश्किलों का सामना करती हुई उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रही लीला ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ हैं। लन्दन में कानून की परीक्षा 1958 में टॉप रहने, भारत के 15 वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो में विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है।

न्यायमूर्ति लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी में सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई। उस समय लीला स्नातक भी नहीं थी, बाद में प्रेमो को इंग्लैंड में नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से स्नातक किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नहीं था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हाजरी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये उन्होने कानून की पढ़ाई करने का मन बनाया, जहां वे बार की परीक्षा में अवल रही।[३]

करियर

कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत करने की ठानी, यह वह समय था जब नौकरियों में बहुत कम महिलाएँ होती थी। कोलकाता में उन्होने वकालत की शुरुआत की लेकिन बाद में पटना में आ कर उन्होने वकालत शरू किया। 1959 में उन्होने बार में दाखिला लिया और पटना के बाद दिल्ली में वकालत की। उन्होने वकालत के दौरान बड़ी तादात में इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिस ड्यूटी और कस्टम संबंधी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये। 1978 में वे दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनी और बाद में 1991 में हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त की गई। महिलाओं के साथ भेद-भाव के मामले, संयुक्त परिवार में लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिस्सेदारी बनाने और पुलिस हिरासत में हुई राजन पिलाई की मौत की जांच जैसे मामलो में उनकी महतवपूर्ण भूमिका रही है।

1995 में उन्होने पुलिस हिरासत में हुई राजन पिलाई की मौत की जांच के लिये बनाई एक सदस्यीय आयोग की ज़िम्मेदारी संभाली। 1998 से 2000 तक वे भारतीय विधि आयोग की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानून में संशोधन कराया जिसके तहत संयुक्त परिवार में बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया। महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ उन्होने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई। 1992 में वे हिमाचल प्रदेश की मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत हुई। करियर वुमन के रूप में लीला सेठ ने पुरुष प्रधान माने जाने वाली न्यायप्रणाली में अपनी एक अलग पहचान बनाई और कई पुरानी मान्यताओं को तोड़ा। साथ ही उन्होंने परिवार और करियर के बीच गजब का संतुलन बनाए रखा।[४]

किताबें

लीला सेठ की जीवनी “ऑन बैलेंस”[५] के को 2003 में पेन्गुइन इंडिया ने प्रकाशित किया। “ऑन बैलेंस” में उन्होने अपने प्रारम्भिक वर्षों के संघर्ष, इंग्लैण्ड में अपने पति प्रेमो के साथ रहते समय कानून की पढ़ाई शुरू करने, आगे चलके पटना, कलकत्ता आर दिल्ली में वक़ालत करने के अनुभव, पचास साल से अधिक के खुशहाल दाम्पत्य जीवन और अपने तीनों उल्लेखनीय बच्चों — लेखक विक्रम, न्याय कार्यकर्ता शान्तम और फ़िल्म निर्माता आराधना — को पालने-पोसने के बारे में लिखा है। इसके साथ-साथ, लीला सेठ ने भ्रष्टाचार पर अपने विचारों; भारत की अदालतों में होने वाले पक्षपात और विलम्ब; शिक्षा से सम्बंधित अदालत के फैसलों व व्यक्तिगत एवं संवैधानिक कानून; और 15वे विधि आयोग के सदस्य होने के अनुभव का भी व्याख्यान किया है। किताब में उनके जीवन की कई यादगार घटनाओं का भी वर्णन है — कैसे प्रेमो और उन्होने पटना में एक पुरानी हवेली को शानदार घर में तबदील किया, वह समय जब विक्रम अपना उपन्यास “अ सूटेबल बॉय” लिख  रहे थे, जब बौद्ध संन्यासी थच न्य्हात हान्ह ने शान्तम को दीक्षा दी, आराधना का ऑस्ट्रीयाई राजनयिक, पीटर, से विवाह, और आराधना का अर्थ और वॉटर जैसी फ़िल्मों पर निर्माता और प्रोडक्शन डिज़ाइनर का काम करना।

2010 में लीला सेठ ने “वी, द चिल्ड्रन ऑफ़ इंडिया” लिखी। यह किताब बच्चों को भारतीय संविधान की उद्देशिका समझाती है। इसके बाद 2014 में उनकी किताब “टॉकिंग ऑफ़ जस्टिस: पीपल्ज़ राईट्स इन मॉडर्न इंडिया” प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होने अपने लम्बे कानूनी सफर में जिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम किया है उनपर चर्चा की।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ