रामकुंड, जैसलमेर
रामकुंड में महारावल अमरसिंह द्वारा १६९९ ई. में निर्मित वैष्णव मंदिर है। यहाँ के शिलालेख के अनुसार अमरसिंह की रानी सोधी मानसुखदे ने यह मंदिर का निर्माण सीताराम के लिए करवाया था। इस शिलालेख को महारावल जसवंतसिंह द्वारा १७०३ ई. में स्थापित किया गया था। मुख्य मंदिर के बाहरी भाग में कुछ भित्ति-चित्र तथा पुरुष की रेखीय रचना है।[१]
जैसलमेर के भाटी शासकों की जनहिताय की भावना, कला प्रियता एवं सौंदर्य प्रेम की अभिव्यक्ति स्वरुप जैसलमेर व उसके आसपास के क्षेत्र में अनेक सरोवर, बाग-बगीचे, महल व छत्रियों का निर्माण हुआ। वे स्थापत्य कला के अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। जैसलमेर नगर के पूर्व में घंसीसर सरोवर का निर्माण महारावल, झंसी ने आरंभ करवाया था। यहाँ बंे सुंदर घाट, मंदिर व बगीचियाँ बनी हुई हैं। जब घ्ड.सीसर पूरा भर जाता है तो यह एक सुंदर झील का रूप ले लेती है। इस तालाब के मध्य में बनी इमारतें व छत्रियाँ पानी में तैरती हुई दिखाई देती हैं। घ्ंसीसर तालाब का प्रवेश-द्वार, जो टीलों की पोल के नाम से विख्यात है, तालाब की शोभा को बढ़ाने के साथ-साथ जैसलमेर के स्थापत्य का एक अनुपम नमूना भी प्रस्तुत करता है। घंसीसर के आलावा यहाँ अमर सागर, मूल सागर, गजरुप सागर आदि अन्य सरोवर का निर्माण भी करवाया गया था। अमरसागर के तालाब का बांध व उस पर बने महल, हिम्मतराम पटुआ के बाग एवं बगीचे की बनावट तथा अनुबाब का दृश्य काफी सुंदर है तथा स्थापत्य व कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। मूलसागर व उसके मध्य में निर्मित महल और झालरा वास्तव में दर्शनीय हैं।
जैसलमेर से पॉचमील दूर बड़े बाग का सुदृढ़तम जैतबंध अपने स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। यह विशाल अनगड़ित बंे-बंे पत्थरों को जुंवा कर निर्मित करवाया गया है। इस बांध के आगे बने सरोवर को जैतसर कहते हैं। इस बांध के ऊपर बने भारी राजाओं की समाधि स्थल भी उल्लेखनीय है। रावल बैरीशाल के मंडप की जाली एवं पीले पत्थर की पालिशदार चौकी कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। बांध की दूसरी तरु एक मनोहर बाग है, जो आम, अमरुद, अनार आदि के पें, फूल-पौधों व लताओं से अच्छादित है। इसके अलावा गजरुप सागर का बांध व पहाड़ के बीच में से बनाई गई पानी की बांध व पहा के बीच में से बनाई गई पानी की नहर और ऊँचे पर्वत पर बना देवी का मंदिर व आश्रम देदानसर आदि शहरी तालाब पर निर्मित व बांध एवं बगिचियाँ आदि मजबूत, कलात्मक एवं सुंदर हैं।