रघुनाथ विनायक धुलेकर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

साँचा:asbox

पण्डित रघुनाथ विनायक धुलेकर
Born06 January 1891
Died
Citizenshipभारतीय
Occupationअधिवक्ता, सामाजिक नेता,
स्वतंत्रता सेनानी
राजनैतिक कार्यकर्ता
Employerसाँचा:main other
Organizationभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससाँचा:main other
Agentसाँचा:main other
Notable work
साँचा:main other
Movementभारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन
Opponent(s)साँचा:main other
Criminal charge(s)साँचा:main other
Spouse(s)साँचा:main other
Partner(s)साँचा:main other
Parent(s)स्क्रिप्ट त्रुटि: "list" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main other

साँचा:template otherसाँचा:main other

रघुनाथ विनायक धुलेकर (7 जनवरी 1891 — 22 फरवरी, 1980) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी, लेखक, प्रथम लोकसभा के सदस्य तथा भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे। उन्होने भारत छोड़ो आन्दोलन तथा दांडी मार्च में सक्रिय भूमिका निभाई थी। फारसी, जर्मन और अरबी सहित 11 विदेशी भाषाएँ उन्हें अच्छी तरह ज्ञात थीं।

जीवन परिचय

धुलेकर जी का जन्म उत्तर प्रदेश के झाँसी में हुआ था। १० मई १९१२ को उनका विवाह जानकी से हुआ। उन्होने कोलकाता विश्वविद्यालय से १९१४ में बीए की डिग्री प्राप्त की और १९१६ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम ए की उपाधि प्रप्त की। झांसी में उन्होने वकालत करना शुरू किया।

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1916 में वह लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के साथ होम रूल लीग में सम्मिलित हो गए। औपनिवेशिक शासन के विरोध में उन्होंने 1920 में ‘स्वराज प्रशांति’ (हिन्दी में) और ‘स्वतन्त्र भारत’ (अंग्रेजी में) का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने इन अखबारों में कई क्रांतिकारी लेख लिखे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए कई बार गिरफ्तार किया। 1934 में उन्होंने झाँसी में 'राष्ट्र सेवा मंडल' की स्थापना की और 'आचार्य धर्माकर आयुर्वेदिक कॉलेज' की स्थापना की। वे चन्द्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल के साथ काकोरी ट्रेन डकैती के प्रतिभागियों में से एक थे।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में पंडित रघुनाथ विनायक धुलेकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में चुने गए। क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए उन्हें 1939 से 1944 तक गिरफ्तार किया गया था। 1946 में उन्हें भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था। उस समय उन्होंने हिन्दी को भारत की मुख्य आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई थी।

स्वतंत्रता के बाद उन्हें झाँसी से लोकसभा सदस्य चुना गया। उन्होंने 1958 से 1964 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 1958 से 1963 तक उन्होने उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।

पंडित रघुनाथ विनायक धुलेकर ने खुद को अध्यात्मवाद में समर्पित करने के लिए राजनीति छोड़ दी और 1967 में सिद्धेश्वर वेदान्त पीठ की स्थापना की। उन्होंने अध्यात्मवाद और दर्शनशास्त्र पर कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें श्वेतश्वतरुपनिषद, प्रश्नोपनिषद् का सरल भाष्य, आत्मदर्शी गीता भाष्य, ज्ञानपीठ शशिभूषण, अभिषेक गीता भाष्य, सहित कई पुस्तकें लिखीं। 1974 में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय द्वारा पंडित रघुनाथ विनायक धुलेकर को डी लिट् से सम्मानित किया गया। 1980 में उनका झांसी में निधन हो गया।

हिन्दी का समर्थन

आर वी धुलेकर द्वारा हिन्दी भाषा को प्रतिष्ठित करने एवं जन मानस की भाषा बनाने के लिए 10 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा में कहा गया था कि :

“अंग्रेज़ी से हम निकट आए हैं, क्योंकि वह एक भाषा थी। अंग्रेज़ी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है। इससे अवश्य हमारे संबंध घनिष्ठ होंगे, विशेषतः इसलिए कि हमारी परंपराएँ एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि या तो इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासंभव बुद्धिमानी का कार्य किया है और मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी संतति इसके लिए हमारी सराहना करेगी।”

राजनैतिक जीवन

  • 2. सन् 1946 से 1950 तक सदस्य, भारत की संविधान सभा के सदस्य।
  • 5. 20 जुलाई, 1958 से दिनांक 5 मई, 1964 तक सभापति, विधान परिषद्।

कृतियाँ

  • श्वेतश्वतरुपनिषद भाष्य
  • प्रश्नोपनिषद सरल भाष्य
  • आत्मदर्शी गीता भाष्य
  • चतुर्वेदानुगामी भाष्य
  • कठोपनिषद सरल भाष्य
  • पिलर्स ऑफ वेदान्त

बाहरी कड़ियाँ