महावीर प्रसाद जोशी
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महावीर प्रसाद जोशी | |
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महावीर प्रसाद जोशी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह द्वारका के लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[१]
जीवन परिचय
राजस्थान की पावन धरा के सपूत, संस्कृत, हिन्दी और राजस्थानी में अनेक कालजयी रचनाओं के प्रणेता पं. महावीरप्रसाद जी का जन्म उद्योगपतियों की भूमि और धर्म एवं संस्कृति की धरा शेखावटी के डूंडलोद गाॅव में पं. श्री ब्रजमोहन जोशी के दूसरे पुत्र के रूप में माता मन्नी देवी जी के गर्भ से 18 अगस्त 1914 हो हुआ। श्री महावीर प्रसाद जी ने मूर्धन्य विद्वानों से संस्कृत-व्याकरण, वेद, आयुर्वेद, साहित्य, धर्मशास्त्र, हिन्दी और राजस्थान साहित्य का अध्ययन किया, सर्वोच्च परीक्षाऐं आयुर्वेद में पास कर वैद्य के रूप में कार्य करना शुरु किया। सन् 1940 से 1987 तक मोहता औषधालय, राजगढ चुरू में वैद्य के रूप में कार्य करते रहे। इनका विवाह 15 वर्ष की आयु में मुंबई में निवास कर रहे सुविख्यात वैद्य श्री सागरमल जी की पुत्री श्रीमती जावित्री देवी से सन् 1929 में हुआ। दोनों में आदर्श दाम्पत्य पे्रम था जो संस्कारी परिवारों में स्वाभाविक है। तभी तो इनके सातों पुत्र और एक पुत्री सभी शालीन, सुसंस्कृत, सुशिक्षित और सम्मानित हैं।
9 जुलाई 1992 को श्रीमती जावित्री देवी का देवलोक हुआ तो पं. महावीर प्रसाद जी ने अन्नत्याग का संकल्प ले लिया जो उनके स्वयं के स्वर्गारोहण तक उन्होंने निरन्तर निभाया। 14 फरवरी 2002 को कविप्रवर वैद्य सम्राट पं. श्री महावीर प्रसाद जोशी जी निरन्तर विष्णु स्मरण करते हुए ब्रह्मलीन हो गये। उनका यशः शरीर आज भी अमर है क्योंकि उन्होंने प्रारम्भ से ही वैद्यक के कार्य में व्यस्त रहते हुए भी ग्रन्थ लेखन, काव्य लेखन और वेदों, उपनिषदों, पुराणों, महाकाव्यों आदि के काव्यानुवाद का व्रत रात-दिन सरस्वती की सेवा में निरत रहते हुए निभाया था। इसके साथ ही उन्होंने अपने जीवनकाल में ही अनेक साहित्य सेवी तथा समाज सेवी संस्थाओं की स्थापना की जिनमें द्वारका सेवा निधि प्रमुख है।
इस संस्था द्वारा 1988 से विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों को, विभिन्न कलाओं के पुरोधाओं को तथा एक शिखर स्तर की मूर्धन्य प्रतिभा को सम्मानित करने की परम्परा चला रखी है। इस परम्परा में पं. महावीर प्रसाद जी जोशी के सुयोग्य उत्तराधिकारी निरन्तर योगदान तो दे ही रहे हैं, इसके संवर्धन में भी निरन्तर संलग्न हैं। प्रतिवर्ष कभी सम्मान राशि में वृद्धि होती है, कभी पुरस्कारों की संख्या में वृद्धि होती है।