भूगोल का इतिहास
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साँचा:sidebar भूगोल का इतिहास इस भूगोल नामक ज्ञान की शाखा में समय के साथ आये बदलावों का लेखा जोखा है। समय के सापेक्ष जो बदलाव भूगोल की विषय वस्तु, इसकी अध्ययन विधियों और इसकी विचारधारात्मक प्रकृति में हुए हैं उनका अध्ययन भूगोल का इतिहास करता है।
भूगोल प्राचीन काल से उपयोगी विषय रहा है और आज भी यह अत्यन्त उपयोगी है। भारत, चीन और प्राचीन यूनानी-रोमन सभ्यताओं ने प्राचीन काल से ही दूसरी जगहों के वर्णन और अध्ययन में रूचि ली। मध्य युग में अरबों और ईरानी लोगों ने यात्रा विवरणों और वर्णनों से इसे समृद्ध किया। आधुनिक युग के प्रारंभ के साथ ही भौगोलिक खोजों का युग आया जिसमें पृथ्वी के ज्ञात भागों और उनके निवासियों के विषय में ज्ञान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। भूगोल की विचारधारा या चिंतन में भी समय के साथ बदलाव हुए जिनका अध्ययन भूगोल के इतिहास में किया जाता है। उन्नीसवीं सदी में पर्यावरणीय निश्चयवाद, संभववाद और प्रदेशवाद से होते हुए बीसवीं सदी में मात्रात्मक क्रांति और व्यावहारिक भूगोल से होते हुए वर्तमान समय में भूगोल की चिंतनधारा आलोचनात्मक भूगोल तक पहुँच चुकी है।
भूगोल शब्द संस्कृत के भू और गोल शब्दों से मिल कर बना है जिसका अर्थ है गोलाकार पृथ्वी। प्राचीन समय में जब भूकेंद्रित ब्रह्माण्ड (geocentric universe) की संकल्पना प्रचलित थी तब पृथ्वी और आकाश को दो गोलों के रूप में कल्पित किया गया था भूगोल और खगोल। खगोल जो आकाश का प्रतिनिधित्व करता था, बड़ा गोला था और इसके केन्द्र में पृथ्वी रुपी छोटा गोला भूगोल अवस्थित माना गया। इन दोनों के वर्णनों और प्रेक्षणों के लिये संबंधित विषय बाद में भूगोल और खगोलशास्त्र थे।
भूगोल के लिये अंग्रेजी शब्द ज्याग्रफी यूनानी भाषा के γεωγραφία – geographia से बना है जो स्वयं geo (पृथ्वी) और graphia (वर्णन, चित्रण, निरूपण) से मिलकर बना है। इस शब्द 'geographia' का सर्वप्रथम प्रयोग इरैटोस्थनीज (276–194 ई॰ पू॰) ने किया था।
प्राचीन युग में भूगोल
भारतीय योगदान
भारतीय योगदान भूगोल को सृष्टि तथा मानव की उत्पत्ति संबद्ध मानते हुए शुरू होता है। वैदिक काल में भूगोल से संबंधित वर्णन वैदिक रचनाओं में प्राप्त होते हैं। ब्रह्मांड, पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, अकाश, सूर्य, नक्षत्र तथा राशियों का विवरण वेदों, पुराणों और अन्य ग्रंथों में दिया ही गया है किंतु इतस्तत: उन ग्रंथों में सांस्कृतिक तथा मानव भूगोल की छाया भी मिलती है। भारत में अन्य शास्त्रों के साथ साथ ज्योतिष, ज्यामिति तथा खगोल का भी विकास हुआ था जिनकी झलक प्राचीन खंडहरों या अवशेष ग्रंथों में मिलती है। महाकाव्य काल में सामरिक, सांस्कृतिक भूगोल के विकास के संकेत मिलते हैं।
यूनानी योगदान
यूनान के दार्शनिकों ने भूगोल के सिद्धांतों की चर्चा की थी। लगभग 900 ईसा पूर्व होमर ने बतलाया था कि पृथ्वी चौड़े थाल के समान और ऑसनस नदी से घिरी हुई है। होमर ने अपनी पुस्तक इलियड में चारों दिशाओं से बहने वाली पवने बोरस, ह्यूरस इत्यादि का वर्णन किया है। मिलेट्स के थेल्स ने सर्वप्रथम बतलाया कि पृथ्वी मण्डलाकार है। पाइथैगोरियन संप्रदाय के दार्शनिकों ने मण्डलाकार पृथ्वी के सिद्धांत को मान लिया था क्योंकि मण्डलाकार पृथ्वी ही मनुष्य के समुचित वासस्थान के योग है। पारमेनाइड्स (450 ईसा पूर्व) ने पृथ्वी के जलवायु कटिबंधों की ओर संकेत किया था और यह भी बतलाया था कि उष्णकटिबंध गरमी के कारण तथा शीत कटिबंध शीत के कारण वासस्थान के योग्य नहीं है, किंतु दो माध्यमिक समशीतोष्ण कटिबंध आवास योग्य हैं।
एच॰ एफ॰ टॉजर ने हिकैटियस (500 ईसा पूर्व) को भूगोल का पिता माना था जिसने स्थल भाग को सागरों से घिरा हुआ माना तथा दो महादेशों का ज्ञान दिया।
अरस्तु (Aristotle) (384-322 ईसा पूर्व) वैज्ञानिक भूगोल का जन्मदाता था। उसके अनुसार मण्डलाकार पृथ्वी के तीन प्रमाण थे -
- (क) पदार्थो का उभय केंद्र की ओर गिरना,
- (ख) ग्रहण में मण्डल ही चंद्रमा पर गोलाकार छाया प्रतिबिंबित कर सकता है तथा
- (ग) उत्तर से दक्षिण चलने पर क्षितिज का स्थानांतरण और नयी नयी नक्षत्र राशियों का उदय होना। अरस्तु ने ही पहले पहल समशीतोष्ण कटिबंध की सीमा क्रांतिमंडल से घ्रुव वृत्त तक निश्चित की थी।
इरैटोस्थनीज (250 ईसा पूर्व) ने भूगोल (ज्योग्राफिया) शब्द का पहले-पहल उपयोग किया था तथा ग्लोब का मापन किया था। यह सत्य है कि अरस्तू को डेल्टा निर्माण, तट अपक्षरण तथा पौधों और जानवरों का प्राकृतिक वातावरण पर निर्भरता का ज्ञान था। इन्होंने अक्षांश और ऋतु के साथ जलवायु के अंतर के सिद्धांत तथा समुद्र और नदियों में जल प्रवाह की धारणा का भी संकेत किया था। इनका यह भी विमर्श था कि जनजाति के लक्षण में अंतर जलवायु में विभिन्नता के कारण है और राजनीतिक समुदाय रचना स्थान विशेष के भौतिक प्रभावों के कारण होती है।
रोमन योगदान
रोमन भूगोलवेत्ताओं का भी प्रारंभिक ज्ञान देने में हाथ रहा है। स्ट्राबो (50 ईसा पूर्व - 14 ई॰) ने भूमध्य सागर के निकटस्थ परिभ्रमण के अधार पर भूगोल की रचना की। पोंपोनियस मेला (40 ई॰) ने बतलाया कि दक्षिणी समशीतोष्ण कटिबंध में अवासीय स्थान है जिसे इन्होंने एंटीकथोंस (Antichthones) विशेषण दिया। 150 ई॰ में क्लाउडियस टालेमी ने ग्रीस की भौगोलिक धारणाओं के आधार पर अपनी रचना की। टालेमी ने पाश्चात्य जगत में पहली बार ग्रहण की भविष्यवाणी करने की योग्यता अर्जित की। टालेमी पृथ्वी केंद्रित ब्रह्माण्ड की संकल्पना को मानता था और उसने ग्रहों की वक्री गति की व्यख्या एक अधिकेंद्रिय गति द्वारा की जो बाद में बाइबिल में भी स्वीकृत हुआ। अरब भूगोल तथा आधुनिक समय में इस विज्ञान का प्रारंभ क्लाउडियस की विचारधारा पर ही निर्धारित है। टालेमी ने किसी स्थान के अक्षांश और देशांतर का निर्णय किया तथा स्थल या समुद्र की दूरी में सुधार किया तथा इसकी स्थिति अटलांटिक महासागर से पृथक निर्णीत की।
फोनेशियंस (1000 ईसा पूर्व) को, जिन्हें "आदिकाल के पादचारी" कहते हैं, स्थान तथा उपज की प्रादेशिक विभिन्नताओं का ज्ञान था। होमर के ओडेसी (800 ईसा पूर्व) से यह विदित है कि प्राचीन संसार में सुदूर स्थानों में कहीं आबादी अधिक और कहीं कम क्यों थी।
मध्यकालीन युग में भूगोल
ईसाई जगत् में भौगोलिक धारणाएँ जाग्रतावस्था में नहीं थीं किंतु मुस्लिम जगत् में ये जाग्रतावस्था में थीं। भौगोलिक विचारों का अरब के लोगो ने यूरोपवासियों से अधिक विस्तार किया। नवीं से चौदहवीं शताब्दी तक पूर्वी संसार में व्यापारियों और पर्यटकों ने अनेक देशों का सविस्तार वर्णन किया। टालेमी (815 ई॰) के भूगोल की अरब के लोगों को जानकारी थी। अरबी ज्योतिषशास्त्रीयों ने मेसोपोटामिया के मैदान के एक अंश के बीच की दूरी मापी और उसके आधार पर पृथ्वी के विस्तार का निर्णय किया। आबू जफ़र मुहम्मद बिन मूशा ने टालेमी के आदर्श पर भौगोलिक ग्रंथ लिखा जिसका अब कोई चिन्ह नहीं मिलता। गणित एवं ज्योतिष में प्रवीण अरब विद्वानों ने मक्का की स्थिति के अनुसार शुद्ध अक्षांशो का निर्णय किया।
आधुनिक भूगोल
पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तथा सोलहवीं शती के प्रारंभ में मैगेलैन तथा ड्रेक ने अटलांटिक तथा प्रशांत महासागरों के स्थलों का पता लगाया तथा संसार का परिभ्रमण किया। स्पेन, पुर्तगाल, हॉलैंड के खोजी यात्रियों (explorers) ने संसार के नए स्थलों को खोजा। नवीन संसार की सीमा निश्चित की गई। 16वीं और 17वीं शताब्दियों में विस्तार, स्थिति, पर्वतो तथा नदी प्रणालियों के ज्ञान की सूची बढ़ती गई जिनका श्रृंखलाबद्ध रूप मानचित्रकारों ने दिया। इस क्षेत्र में मर्केटर का नाम विशेष उल्लेखनीय है। मर्केटर प्रक्षेप तथा अन्य प्रक्षेपों के विकास के साथ भूगोल, नौवाहन और मानचित्र विज्ञान में अभूतपूर्व सुधार हुआ
बर्नार्ड वारेन या (वेरेनियस) ने 1630 ई॰ में ऐम्सटरडैम में 'ज्योग्रफिया जेनरलिस' (Geographia Generalis) ग्रंथ लिखा 28 वर्ष की अवस्था में इस जर्मन डाक्टर लेखक की मृत्यु सन् 1650 में हुई। इस ग्रंथ में संसार के मनुष्यों के श्रृखंलाबद्ध दिगंतर का सर्वप्रथम विश्लेषण किया गया।
18वीं शताब्दी में भूगोल के सिद्धांतों का विकास हुआ। इस शताब्दी के भूगोलवेत्ताओं में इमानुएल कांट की धारणा सराहनीय है। कांट ने भूगोल के पाँच खंड किए :
- (1) गणितीय भूगोल - सौर परिवार में पृथ्वी की स्थिति तथा इसका रूप, अकार, गति का वर्णन;
- (2) नैतिक भूगोल -- मानवजाति के आवासीय क्षेत्र पर निर्धारित रीति रिवाज तथा लक्षण का वर्णन;
- (3) राजनीतिक भूगोल -- संगठित शासनानुसार विभाजन;
- (4) वाणिज्य भूगोल (Mercantile Geography)-- देश के बचे हुए उपज के व्यापार का भूगोल; तथा
- (5) धार्मिक भूगोल (Theological Geography) धर्मो के वितरण का भूगोल।
कांट के अनुसार भौतिक भूगोल के दो खंड हैं-
- (क) सामान्य पृथ्वी, जलवायु और स्थल,
- (ख) विशिष्ट मानवजाति, जंतु, वनस्पति तथा खनिज।
उन्नीसवीं शताब्दी भूगोल का अभ्युदय काल है तो बीसवीं विस्तार एवं विशिष्टता का। अलेक्जैंडर फॉन हंबोल्ट (1769-1856) तथा कार्ल रिटर (1779-1859) प्रकृति और मनुष्य की एकता को समझाने में संलग्न थे। यह दोनों का उभयक्षेत्र था। एक ओर हंबोल्ट की खोज स्थलक्षेत्र तथा संकलन में भौतिक भूगोल की ओर केंद्रित थी तो दूसरी ओर रिटर मानव भूगोल के क्षेत्र में शिष्टता रखते थे। दोनो भूगोलज्ञों ने आधुनिक भूगोल का वैज्ञानिक तथा दार्शनिक आधारों पर विकास किया। दोनों की खोज पर्यटन अनुभव पर आधारित थी। दोनों विशिष्ट एवं प्रभावशाली लेखक थें किंतु दोनों में विषयांतर होने के कारण ध्येय और शैली विभिन्न थी। हंबोल्ट ने 1793 ई में कॉसमॉस (Cosmos) और रिटर ने अर्डकुंडे(Erdkunde) ग्रंथों की रचना की। अर्डकुंडे 21 भागों में था। वातावरण के सिद्धांत की उत्पत्ति पृथ्वी के अद्वितीय तथ्य मानव आवास की पहेली सुलझाने में हुई है। मनुष्य वातावरण का दास है या वातावरण मनुष्य को मॉन्टेसकीऊ (1748) तथा हरडर (1784-1791) का संकल्पवादी सिद्धांत, सर चार्ल्स लाइल (1830-32) का विकासवाद विचार, चार्ल्स डारविन का ओरिजन ऑव स्पीशीज (Origin of Species, 1859) के सारतत्व हांबोल्ट की रचना में निहित है। मनुष्य के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन में प्राकृतिक वातावरण की प्रधानता है किंतु किसी भी लेखक ने विश्वास नहीं किया कि प्रकृति के अधिनायकत्व में मनुष्य सर्वोपरि रहा।
रेटजेल (1844-1904) की रचना मानव भूगोल (Anthropogeographe) अपने क्षेत्र में असाधारण है। उनकी शिष्या कुमारी सेंपुल (1863-1932) की रचनाओं जैसे "भौगोलिक वातावरण के प्रभाव" "अमरीकी इतिहास तथा उसकी भौगोलिक स्थिति" तथा "भूमध्यसागरीय प्रदेश का भूगोल" से ऐतिहासिक तथा खौगोलिक तथ्यों का पूर्ण ज्ञान होता है। एल्सवर्थ हंटिंगटन (1876-1947) के "भूगोल का सिद्धांत एवं दर्शन", "पीपुल्स ऑव एशिया", "प्रिन्सिपुल ऑव ह्यूमैन ज्यॉग्रफी", "मेन्सप्रिंग्स ऑव सिविलाइजेशन" में मिलते हैं।
विडाल डी ला ब्लाश (1845-1918) तथा जीन ब्रून्ज (1869-1930) ने मानव भूगोल की रचना की। भूगोल की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में आज सैकड़ों भूगोलवेत्ता संसार के विभिन्न भागों में लगे हुए हैं।
समकालीन भूगोल
1950-60 में भूगोल में एक नई घटना का अभ्युदय हुआ जिसे भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का नाम दिया गया। इस दौरान प्रत्यक्षवाद के दर्शन पर आधारित भूगोल के वैज्ञानिक रूप की स्थापना हुई। बी॰ जे॰ एल॰ बेरी, रिचार्ड जे॰ चोर्ले, पीटर हैगेट आदि का योगदान प्रमुख है भूगोल में तंत्र विश्लेषण और मॉडल की अवधारणा का सूत्रपात हुआ।
भूगोल से सम्बन्धित घटनाओं का कालक्रम
- 2300 ईसा पूर्व -- मेसापोटामिया के लगश में पत्थर पर पहला नगर-मानचित्र निर्मित
- 450 ईसा पूर्व -- हेरेडोटस ने ज्ञात संसार का का मानचित्र बनाया
- 240 ईसा पूर्व -- इरैटोस्थेनीज (Eratosthenes) ने पृथ्वी की परिधि की गणना की।
- 20 ई -- स्ट्रैबो (Strabo) ने १७ भागों वाला भूगोल (Geography) प्रकाशित किया
- 77 -- पिन्नी (Pliny the Elder) ने भूगोल का विश्वकोश लिखा
- 150 -- टॉलेमी ने अपना भूगोल प्रकाशित किया जिसमें संसार का मानचित्र एवं उस पर स्थानों के नाम उनके निर्देशाकों (coordinate) के साथ दिए गए थे।
- 271 -- चीन में चुम्बकीय दिक्सूचक (magnetic compass) प्रयुक्त हुई
- 1154 -- इद्रीसी (Edrisi) द्वारा विश्व भूगोल पर पुस्तक प्रकशित
- 1410 -- टोलेमी की भूगोल की पुस्तक का यूरोप में अनुवाद प्रकाशित हुआ
- 1492 -- कोलम्बस वेस्ट इंडीज पहुँचा
- 1500 -- काब्रल (Cabral) ने ब्राजील की खोज की।
- 1519 -- मैगलन (Magellan) पृथ्वी की परिक्रमा करने निकला
- 1569 -- मर्केटर (Mercator) ने अपना मानचित्र रचा।
- 1714 -- ब्रितानी सरकार ने समुद्र में देशान्तर का सही निर्धारण करने की विधि बताने वाले को 20,000 पाउण्ड का पुरस्कार देने की घोषणा की।
- 1761 -- जॉन हैरिसन ने क्रोनोमीटर शुद्धतापूर्वक समुद्र में देशान्तर बताने में सफल
- 1768-1779 -- जेम्स कुक ने धरती के साहसिक अन्वेषण किया
- 1830 -- लंदन में 'रॉयल जिओग्राफिकल सोसायटी' की स्थापना
- 1845 -- वॉन हम्बोल्ट (von Humboldt) ने अपना कॉस्मोस (Kosmos) का पहला भाग प्रकाशित किया।
- 1850 -- मानचित्रण के लिए फ्रांस में कैमरे का प्रथम प्रयोग
- 1855 -- मौरी (Maury) ने समुद्र का भौतिक भूगोल प्रकाशित किया
- 1874 -- जर्मनी में भूगोल का पहला विभाग (Department) खुला
- 1888 -- नेशनल जिओग्राफिक सोसायटी की स्थापना
- 1895 -- विश्व का प्रथम 'टाइम्स एटलस ऑफ द वर्ड' प्रकाशित
- 1909 -- पिअरी (Peary) उत्तरी ध्रुव पहुँचा।
- 1911 -- अमुण्डसेन (Amundsen) दक्षिणी ध्रुव पहुँचा।
- 1912 -- वेगनर ने 'कॉन्टिनेन्ट ड्रिफ्ट' का सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
- 1913 -- ग्रीनविच को 0° देशान्तर स्वीकार किया गया।
- 1957-1958 -- अन्तरराष्ट्रीय भूगोल वर्ष
बाहरी कड़ियाँ
- The encyclopædia of geography: comprising a complete description of the earth, physical, statistical, civil, and political, 1852, Hugh Murray, 1779–1846, et al. (Philadelphia: Blanchard and Lea) at the University of Michigan Making of America site.
- The Story of Maps at Google Book Searchसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link], a history of cartography; why North is at the "top" of a map, how they surveyed all of Europe and other interesting facts.
- Encyclopedia of Historical Geography of the Islamic World स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Series of comprehensive and concise information on the cities of the Islamic World