बॉम्बे दोस्त
चित्र:IMAG011A.JPG पत्रिका के 2010 अंक का मुखपृष्ठ | |
देश | भारत |
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भाषा | अंग्रेज़ी |
जालस्थल |
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बॉम्बे दोस्त, पुरुष एवं महिला समलैंगिकों, द्विलिंगी और विपरीतलिंगी लोगों के लिए प्रकाशित होने वाली भारत की पहली पंजीकृत पत्रिका है। पत्रिका का प्रकाशन 1990 में अशोक रो कवि द्वारा शुरू किया गया था। अपने पहले ही अंक से बॉम्बे दोस्त ने यौन अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की लड़ाई का समर्थन किया और उनको राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ते हुए उनसे होने वाले भेदभाव तथा घृणा की भावना को दूर करने का प्रयास किया। पत्रिका का उद्देश्य समलैंगिक समुदाय को संगठित करना और समलैंगिक लोगों के अधिकारों को स्पष्ट करना था। अशोक रो कवि इसके संपादक हैं।[१]
साल 1994 से, 'हमसफ़र ट्रस्ट' नामक एक गैर-लाभकारी संगठन ने समाचार-पत्र प्रकाशित करना शुरू किया। समाचार पत्र का प्रकाशन 2002 में बंद कर दिया गया और 2009 में इसका पुनर्प्रकाशन शुरू हुआ।
पत्रिका और इस से जुड़ी हस्तियों का विरोध
भारत जैसे सांस्कृतिक देश में आज भी कई लोग समलैंगिकों को अच्छी नजरों से नहीं देखते। इसी का उदाहरण सेलिना जेटली को प्राप्त होने वाले नफ़रत से भरे सन्देश हैं क्योंकि उन्होंने इस पत्रिका के उत्घाटन में भाग लिया था। सेलिना के अनुसार बॉम्बे दोस्त की शुरुआत के पश्चात उन्हें कई लोगों ने अपने विचारों से अवगत कराया। इनमें घटिया भाषा का इस्तेमाल किया गया था। लोग चाहते हैं कि समलैंगिक समुदाय मुखर होकर सामने न आए, इसलिए वे उनका विरोध करते हैं जबकि सेलिना चाहती हैं कि समलैंगिकों को भी सामान्य मनुष्य की तरह मानना चाहिए और उनके साथ वैसा ही बर्ताव किया जाना चाहिए जैसा हम अन्य लोगों के साथ करते हैं।[२]
छपी सच्ची घटनाओं की गूंज
हिन्दी, अंग्रेजी और प्रांतीय भाषाओँ के समाचारपत्रों और पत्रिकाओं ने बॉम्बे दोस्त में छपी सच्ची घटनाओं के आधार पर माना कि पुरुष होकर पुरुष से प्यार के मामले में भारतीय समाज समझ नहीं बना पाया है। हालांकि समाज अब इस मुद्दे पर कुछ खुलने लगा है, लेकिन पूरी तरह कब खुलेगा कहना मुश्किल है।[३]
लोकप्रियता और समाज पर प्रभाव
बॉम्बे दोस्त को भारत में समलैंगिकों की प्रमुख पत्रिका के रूप में माना जा चुका है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इस पत्रिका ने समलैंगिकों को व्यापक रूप से एक-दूसरे से जोड़ने का काम किया है। फ़िर इस पत्रिका ने इस समुदाय में कलंक के भाव को दूर करने का काम किया। इसके साथ ही असामान्य स्थिति तथा रोग के दुष्प्रचार को भी इस पत्रिका ने हटाने का काम किया। इससे सबसे लाभान्वित वर्ग समाज का सबसे शोषित हिजड़ों का रहा है, जिन्हें एक नई पहचान मिली।[४]