बीकानेर की जातियां

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

हिंदुओं में ब्राह्मण, राजपूत,राजपुरोहित, महाजन, मेघवाल, सुथार, कायस्थ, जाट, बिश्नोई, चारण, भाट, सुनार, दर्जी, लुहार, खाती (बढ़ई), कुम्हार, तेली, माली, नाई, धोबी, गूज्जर, कंजर, अहीर, गोंसाई, स्वामी, भार्गव ज्योतिषी, कलाल, लेखरा, छींपा, सेवक, भगत, भड़भूंजा, रैगर, मोची, चमार आदि कई जातियाँ हैं। ब्राह्मण, महाजन आदि कई जातियों की अनेक उपजातियाँ भी बन गई है जिनमें परस्पर विवाह संबंध नही होता, जैसे-ब्राह्मणों में गोड़ ब्राह्मण और वैष्णव (बैरागी) और आदिवासियों में भील,बावरी,बावरिया, चौकीदार बावरी,पंजाबी बावरी,बनबावारी, सेसी,मेघवाल,नायक,आदि जातियां बीकानेर में पाई जाती हैं।

बावरी (बावरी जाति):एक घुम्मकड़ जाति बावरी जाति है।

बावरी जाति भारत में (अनुसूचित जनजाति)

अनुसूचित घुम्मकड़ जाति और पिछड़े वर्ग में आती हैं। यह एक आदिवासी जाति है।

  राजस्थान में हनुमानगढ़, गंगानगर, सीकर, झुझुनू, जयपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर,ओर राजस्थान के हर जिले में बावरी समाज के लोग पाए जाते हैं।
बावरी जाति का इतिहास: बावरी जाति का इतिहास बहुत पुराना रहा है इस जाति के लोग काले रंग और कम कद काठी के और बड़ी नाक वाले और गठीले शरीर और ताकतवर होते हैं।

लेकिन इन 200 सालो में बावरी जाति के लोगो कि नसल और अन्य जातियों से वैवाहिक संबंधों के कारण शारीरिक बदलाव दिखे है। अभी बावरी जाति में हर वर्ण के लोग पाए जाने लगे हैं।

बावरी जाति के लोग कबीलो में रहा करते थे और 

भारत भर में पाए जाते हैं।

पुराने वक्त में बावरी जाति के लोग राजाओं की सेना में काम किया करते थे। 
मुख्य काम के रूप में बावरी जाति के लोगो को राजा महाराजा छापा मार युद्ध और राजा अपने खजाने के विकाश के लिए धन की चोरी में बावरी जाति के कबीले के लोगो को काम में लिया करते थे। बावरी जाति के लोग लबे समय से चोरी और डाका डालने और अपहरण मार काट करने का काम करते रहे । ओर राजाओं के विघटन के साथ अंग्रेजो के आगमन के बाद बावरियो को अंग्रेजो ने अपने टारगेट पर लिया और इनको मारना शुरू कर दिया ।क्यों के राजाओं की गुप्त सेना के रूप में बावरी अंग्रेजो को रात के अंधेरे में लूट लिया करते थे। 
 राजाओं के विघटन के बाद इस जाति के लोग जंगलों में और घाटियों में और रेगिस्तान में रहने लगे । लगभग 400 साल के सामाजिक शोषण के बाद बावरी जाति के लोगो ने 1960 के बाद पढ़ाई लिखाई और गांवो में रहना शुरू किया और अभी वर्तमान में बावरी जाति के लोगो ने अपने बावरी समाज का संगठन किया है और कलेक्टर से लेकर हर तरह की सरकारी पोस्ट पर बावरी जाति के लोग 

काम कर रहे हैं।

बावरी जाति के लोग अपनी गरीबी और भुखमरी से उभर चुके है । 
ओर अब चोरी के धंधे को छोड़ कर 

खेती करने लगे हैं। मैं बावरी जाति का वंशज हु और मैने अपना नाम jj Rajasthani फर्स्ट नाम (रमेश कुमार बावरी)मैं एक मेडिकल विभाग में काम करता हु और एक लोक गायक हू। यू ट्यूब पर आप jj Rajasthani search करे।

आज बावरी जाति में कलाकार, नेता, साहित्यकार, डॉक्टर, तहसीलदार, मास्टर,पटवारी, हर तरह के नौकरी में बावरी जाति के लोगो को देखा जा सकता है।

राजस्थान के बीकानेर में जाट,तथा थोरी झीवर, सहारण जाट,आदि हैं। ये लोग खेती और मजदूरी करते हैं। मुसलमानों में चुनगर, व्यापारी, तेली, खलीफा, कुरैशी, भुट्टा ,नागौरी व्यापारी, शेख, सैयद, मुगल, पठान, कायमख़ानी, राठ, जोहिया, रंगरेज, भिश्ती और कुंजड़े आदि कई जातियाँ हैं।

यहाँ के अधिकांश लोग खेती करते हैं। शेष व्यापार, नौकरी, दस्तकारी, मजदूरी अथवा लेन-देन का कार्य करते हैं। पशु पालन यहाँ का मुख्य पेशा है। परीज़ादे और राढ जाति के मुसलमान इस धंधे में लिप्त है। व्यापार करने वाली जातियों में प्रधान महाजन हैं, जो दूर-दूर स्थानों में जाकर व्यापार करते हैं और ये वर्ग संपन्न वर्ग भी है। ब्राह्मण विशेषकर पूजा-पाठ तथा पुरोहिताई करते हैं, वैष्णव (बैरागी) ब्राह्मण मुख्यत: मंदिरो और मठो में महंत या पुजारी होते है। परंतु कोई-कोई व्यापार, नौकरी तथा खेती भी करते हैं। कुछ महाजन कृषि से भी अपना निर्वाह करते हैं। राजपूतें का मुख्य पेशा सैनिक-सेवा है, किंतु कई खेती भी करते है।

वैसे आज कल जाति आधारित कार्य बन्द हो चुके हैं। ब्राह्मण भी नौकरी कर रहा है, व्यवसाय कर रहा है, खेती कर रहा है, तो महाजन भी किसी के अधीन काम कर रहा है। कुल मिलाकर अब वो कर्म प्रधान जाति का समय जा चुका है।

सन्दर्भ

साँचा:reflist