बिहारशरीफ
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ऊपर से नीचे: नगर दृश्य, इब्राहीम बाया का मकबरा, ऍन ऍच 20 से हिरण्य पर्वत का दृश्य, के के विश्वविद्यालय | |
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निर्देशांक: साँचा:coord | |
देश | साँचा:flag/core |
प्रान्त | बिहार |
ज़िला | नालंदा ज़िला |
ऊँचाई | साँचा:infobox settlement/lengthdisp |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | २,९७,२६८ |
• घनत्व | साँचा:infobox settlement/densdisp |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, मगही |
पिनकोड | 803101 803118 803216 803111 803113 |
दूरभाष कोड | +916112 |
वाहन पंजीकरण | BR-21 |
वेबसाइट | nagarseva |
बिहारशरीफ (Biharsharif) भारत के बिहार राज्य के नालंदा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[१][२]
भूगोल
- समुद्रतल से ऊँचाई: 60 मीटर (200 फुट)
- तापमान: गर्मी 43°C से 21°C, सर्दी 20°C से 6°C
- औसत वर्षा : 1,000 मिलीमीटर
इतिहास
बिहारशरीफ़ 10वीं शताब्दी में पाल राजवंश की राजधानी रहा था। यहाँ पर पाँचवीं शताब्दी का गुप्त काल का एक स्तंभ है और यहाँ मस्जिदें और मक़बरे हैं। बिहारशरीफ़ में एक विशाल बौद्ध बिहार (बौद्ध ज्ञान प्रतिष्ठान) ओदंतपुरी है, जिस पर बिहार का नाम पड़ा है। 1869 में इसका नगरपालिका के रूप में गठन हुआ था। पटना से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित बिहारशरीफ़ प्राचीन काल में मगध की राजधानी था। यहाँ पर भगवान बुद्ध ने उपदेश दिए थे। इसके निकट ही यहाँ बौद्ध काल का प्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय था जहाँ दूर-दूर के देशों के लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए आया करते थे।
जलवायु
बिहार के अन्य भागों की तरह बिहारशरीफ में भी गर्मी का तापमान उच्च रहता है। ग्रीष्म ऋतु में सीधा सूर्यातप तथा उष्ण तरंगों के कारण असह्य स्थिति हो जाती है। गर्म हवा से बनने वाली लू का असर शहर में भी मालूम पड़ता है। देश के शेष मैदानी भागों (यथा - दिल्ली) की अपेक्षा हलाँकि यह कम होता है।
ग्रीष्म ऋतु अप्रैल से आरंभ होकर जून- जुलाई के महीने में चरम पर होती है। तापमान 46 डिग्री तक पहुंच जाता है। जुलाई के मध्य में मॉनसून की झड़ियों से राहत पहुँचती है और वर्षा ऋतु का श्रीगणेश होता है। शीत ऋतु का आरंभ छठ पर्व के बाद यानी नवंबर से होता है। फरवरी में वसंत का आगमन होता है तथा होली के बाद मार्च में इसके अवसान के साथ ही ऋतु-चक्र पूरा हो जाता है।
आर्थिक
यहाँ के निवासी प्राथमिक क्षेत्र (कृषि,मत्स्य पालन) तथा तृतीय क्षेत्र(डाॅक्टर,इंजीनियर,वकील,शिक्षक आदि) जैसे रोज़गार से जुड़े हैं।
संस्कृति
विवाह
अधिकतर शादियां माता-पिता के द्वारा ही निर्धारित-निर्देशानुसार होती है। विवाह में संतान की इच्छा की मान्यता परिवार पर निर्भर करती है। विवाह को पवित्र माना जाता है और तलाक की बात सोचना (मुस्लिम परिवारों में भी) एक सामाजिक अपराध समझा जाता है। शादियाँ उत्सव की तरह आयोजित होती है और इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भरमार रहती है। कुछेक पर्वों को छोड़ दिया जाय तो वास्तव में विवाह के अवसर पर ही लोक-कला की सर्वोत्तम झांकी दिखाई देती है। इस अवसर पर किए गए खर्च और भोजों की अधिकता कई परिवारों में विपन्नता का कारण बनता है। दहेज का चलन ज्यादातर हिंदू एवं मुस्लिम परिवारों में बना हुआ है।
पर्व-त्यौहार
हिंदू महिलाएँ तीज, जीतीया, छठ आदि बहुत ही धार्मिक उत्साह के साथ मनाती हैँ.
दीवाली, दुर्गापूजा, होली, बसंत पंचमी, शिवरात्रि, रामनवमी, जन्माष्टमी हिंदुओं का महत्वपूर्ण लोकप्रियतम पर्वो में से है, जबकि मुसलमानो का महत्वपूर्ण त्यौहार मुहर्रम, ईद और बकरीद है।
छठ इस क्षेत्र के लिए सबसे पवित्र त्योहार है। इसका महत्व के रूप में यह धर्म के सभी बाधाओं को खारिज कर देता है देखा जा सकता है। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा भाव और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।
खान-पान
आबादी का मुख्य भोजन भात-दाल-रोटी-तरकारी-अचार है। सरसों का तेल पारम्परिक रूप से खाना तैयार करने में प्रयुक्त होता है। खिचड़ी, जोकि चावल तथा दालों से साथ कुछ मसालों को मिलाकर पकाया जाता है, भी भोज्य व्यंजनों में काफी लोकप्रिय है। खिचड़ी, प्रायः शनिवार को, दही, पापड़, घी, अचार तथा चोखा के साथ-साथ परोसा जाता है।
बिहारशरीफ को केन्द्रीय बिहार के मिष्ठान्नों तथा मीठे पकवानों के लिए भी जाना जाता है। इनमें खाजा, मावे का लड्डू, मोतीचूर के लड्डू, काला जामुन, केसरिया पेड़ा, परवल की मिठाई, खोये की लाई और चना मर्की का नाम लिया जा सकता है। इन पकवानो का मूल इनके सम्बन्धित शहर हैं जो कि बिहारशरीफ के निकट हैं, जैसे कि सिलाव का खाजा, बाढ का मावे का लाई, मनेर का लड्डू, विक्रम का काला जामुन, गया का केसरिया पेड़ा, बख्तियारपुर का खोये की लाई पटना का चना मर्की, बिहिया की पूरी इत्यादि उल्लेखनीय है। वैसे यहा की रबरी काफी मशहूर है। इसके अतिरिक्त इन पकवानों का प्रचलन भी काफी है -
- पुआ - मैदा, दूध, घी, चीनी मधु इत्यादि से बनाया जाता है।
- पिठ्ठा - चावल के चूर्ण को पिसे हुए चने के साथ या खोवे के साथ तैयार किया जाता है।
- तिलकुट - जिसे बौद्ध ग्रंथों में पलाला नाम से वर्णित किया गया है, तिल तथा चीनी गुड़ बनाया जाता है।
- चिवड़ा या चूड़ा - चावल को कूट कर या दबा कर पतले तथा चौड़ा कर बनाया जाता है। इसे प्रायः दही या अन्य चाजो के साथ ही परोसा जाता है।
- मखाना - (पानी में उगने वाली फली) इसकी खीर काफी पसन्द की जाती है।
- सत्तू - भूने हुए चने को पीसने से तैयार किया गया सत्तू, दिनभर की थकान को सहने के लिए सुबह में कई लोगो द्वारा प्रयोग किया जाता है। इसको रोटी के अन्दर भर कर भी प्रयोग किया जाता है जिसे स्थानीय लोग मकुनी रोटी कहते हैं।
- लिट्टी चोखा - लिट्टी जो आंटे के अन्दर सत्तू तथा मसाले डालकर आग पर सेंकने से बनता है, को चोखे के साथ परोसा जाता है। चोखा उबले आलू या बैंगन को गूंथने से तैयार होता है।
आमिष व्यंजन भी लोकप्रिय हैं। मछली काफी लोकप्रिय है और मुग़ल व्यंजन भी बिहारशरीफ में देखे जा सकते हैं।
आवागमन
- वायु मार्ग
यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पटना का जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है। जो यहां से ८० किलोमीटर दूर है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा संचालित लोकनायक जयप्रकाश हवाईक्षेत्र, पटना (IATA कोड- PAT) अंतर्देशीय तथा सीमित अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए इंडियन, किंगफिशर, जेट एयरवेज, जेट लाईट, गो एयर तथा इंडिगो की उडानें दिल्ली, रांची, कोलकाता, मुम्बई, लखनऊ तथा कुछ अन्य नगरों के लिए नियमित रूप से उपलब्ध है।
- रेल मार्ग
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और राज्य की राजधानी पटना के अतिरिक्त यहाँ से गया, नालंदा, राजगीर, कोलकाता तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध है।
- सड़क मार्ग
बिहारशरीफ सड़क मार्ग द्वारा राजगीर (२८ किमी), पटना (७० किमी), रांची, पावापुरी (१० किमी) तथा हिलसा (३० किमी) से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
बिहारशरीफ के आसपास
- पटना - बिहार की वर्तमान राजधानी जो प्राचीन मगध साम्राज्य की भी राजधानी थी यहाँ से लगभग ८० किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
- बोधगया - बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध की ज्ञानप्राप्ति स्थलि जो बौद्धधर्मावलंवियों के लिए अत्यंत पवीत्र स्थल है एवं जिसे 2002 में युनेस्को ने विश्व धरोहर स्थली घोषित किया है।
- नालंदा - प्राचीन बौद्ध ज्ञान-विज्ञान का केंद्र रहे नालंदा विश्वविद्यालय के धरोहर वाला यह शहर बिहारशरीफ के लगभग १५ किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
- पावापुरी - जैनधर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की नीर्वाणस्थली होने के कारण जैनधर्मावलंवियों के लिए अत्यंत पवित्र यह शहर बिहारशरीफ और नालंदा के बीच स्थित है।
- राजगीर - वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और कुशग्रपुर के नाम से भी प्रसिद्ध रहे राजगृह को आजकल राजगीर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य के अनुसार राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन तीर्थंकर महावीर और भगवान बुद्ध की साधनाभूमि रहा है। यह न सिर्फ़ एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है बल्कि एक खुबसूरत हेल्थ रेसॉर्ट के रूप में भी लोकप्रिय है। यहां हिन्दु, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं।
- गया - फल्गु नदी के तट पर बसा गया की प्रसिद्धी मुख्य रूप से एक धार्मिक नगरी के रूप में है। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ हजारो श्रद्धालु पिंडदान के लिये जुटते हैं। यहां का विष्णुपद मंदिर पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है।
- हिलसा - यह नालन्दा जिले का एक अनुमन्डल है। यह बिहारशरीफ से 30 k.m.दूर है। यह बिहार की राजधानी पटना के लगभग 45 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह अनेक स्वाधीनता सेनानीयों की जन्मभूमि और भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष के दौर में एक प्रमुख केंद्र रहा है।
- सिलाव - यह गांव नालंदा और राजगीर के मध्य स्थित है। यहां बनने वाली प्रसिद्ध मिठाई खाजा का स्वाद लिया जा सकता है।
- सूरजपुर बड़गांव - यहां भगवान सूर्य का प्रसिद्ध मंदिर तथा एक झील है। यहां वर्ष में दो बार मेले का आयोजन होता है। एक वैशाख (अप्रैल-मई) तथा दूसरा कार्तिक (अक्टूबर- नवंबर) महीने में। इन दोनों महीनों में यहां प्रसिद्ध छठ त्योहार मनाया जाता है। दूर-दूर से लोग छठ उत्सव मनाने यहां आते हैं।
इन्हें भी देखें
- नालंदा ज़िला
- नालन्दा महाविहार (प्राचीन विश्वविद्यालय)
सन्दर्भ
- ↑ "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
- ↑ "Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810