प्लेट विवर्तनिकी

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विश्व की प्रमुख प्लेट्स
पृथ्वी के गर्भ में मैंटल का भाग

प्लेट विवर्तनिकी (साँचा:lang-en) एक वैज्ञानिक(अल्फ्रेडvegenar) सिद्धान्त है जो पृथ्वी के स्थलमण्डल में बड़े पैमाने पर होने वाली गतियों की व्याख्या प्रस्तुत करता है। साथ ही महाद्वीपों, महासागरों और पर्वतों के रूप में धरातलीय उच्चावच के निर्माण तथा भूकम्प और ज्वालामुखी जैसी घटनाओं के भौगोलिक वितरण की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।

यह सिद्धान्त बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में अभिकल्पित महाद्वीपीय विस्थापन नामक संकल्पना से विकसित हुआ जब 1960 के दशक में ऐसे नवीन साक्ष्यों की खोज हुई जिनसे महाद्वीपों के स्थिर होने की बजाय गतिशील होने की अवधारणा को बल मिला। इन साक्ष्यों में सबसे महत्वपूर्ण हैं पुराचुम्बकत्व से सम्बन्धित साक्ष्य जिनसे सागर नितल प्रसरण की पुष्टि हुई। हैरी हेस के द्वारा सागर नितल प्रसरण की खोज से इस सिद्धान्त का प्रतिपादन आरंभ माना जाता है[१] और विल्सन, मॉर्गन, मैकेंज़ी, ओलिवर, पार्कर इत्यादि विद्वानों ने इसके पक्ष में प्रमाण उपलब्ध कराते हुए इसके संवर्धन में योगदान किया।

इस सिद्धान्त अनुसार पृथ्वी की ऊपरी लगभग 80 से 100 कि॰मी॰ मोटी परत, जिसे स्थलमण्डल कहा जाता है[२], और जिसमें भूपर्पटी और भूप्रावार के ऊपरी हिस्से का भाग शामिल हैं, कई टुकड़ों में टूटी हुई है जिन्हें प्लेट कहा जाता है। ये प्लेटें नीचे स्थित एस्थेनोस्फीयर की अर्धपिघलित परत पर तैर रहीं हैं और सामान्यतया लगभग 10-40 मिमी/वर्ष की गति से गतिशील हैं हालाँकि इनमें कुछ की गति 160 मिमी/वर्ष भी है।[३] इन्ही प्लेटों के गतिशील होने से पृथ्वी के वर्तमान धरातलीय स्वरूप की उत्पत्ति और पर्वत निर्माण की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है और यह भी देखा गया है कि प्रायः भूकम्प इन प्लेटों की सीमाओं पर ही आते हैं और ज्वालामुखी भी इन्हीं प्लेट सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं।

प्लेट विवर्तनिकी में विवर्तनिकी (लातीन:tectonicus) शब्द यूनानी भाषा के τεκτονικός से बना है जिसका अर्थ निर्माण से सम्बंधित है।[४][५] प्लेट शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कनाडा के भूविज्ञानी टुजो विल्सन (Wilson) ने किया था और प्लेट टेक्टोनिक्स शब्द का पहली बार प्रयोग मोर्गन (Morgan) द्वारा किया गया था।

परिचय

प्लेटों की संख्या

इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी परत के रूप में स्थित स्थलमण्डल, जिसमें क्रस्ट और ऊपरी मैंटल का कुछ हिस्सा शामिल है, कई टुकड़ों में विभाजित है जिन्हें प्लेट कहा जाता है। सामान्यतया इन प्लेटों में बड़ी प्लेटों की संख्या 06 मानी जाती है। इसके अलावा कुछ मझले और छोटे आकार की प्लेट्स भी हैं। इनकी एक सूची निम्नवत् है:

प्लेट

पृथ्वी का बाह्रा भाग (भुपर्पटी तथा पृवार का उपरी भाग ) दृंढ खंडो का बना है । इसकी मोटाई 100-150 किलोमीटर तक होती है। प्लेट शव्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1955 मे टूजो विल्सन ने किया था। सन 1967 मे मैकेन्जी एवं पारकर प्लेट के संचलन के वरे मे बताया। सन 1967 मे ही विद्वान आइजक एवं साईक्स ने मैकेंजी एवं पारकर के कर्यो का समर्थन किया । सन् 1968 मे प्लेट प्रक्रिया के वरे मे अध्यन प्रारंभ हुआ । इसी वर्ष वैज्ञानिक डब्ल्यू.जे.मॉर्गन एवं ली.पिचान ने प्लेट विवर्तनकि के विभिन्न पहलुओ का अध्यन् किया।

मध्यम और छोटी प्लेटें

Japan plate Medagaskar plate

  • ईरानी प्लेट }

कुछ विद्वान उत्तरी अमेरिकी प्लेट और दक्षिणी अमेरिकी प्लेट को एक ही मानते हुए बड़ी प्लेटों की संख्या छह मनाते हैं।[१] छोटी प्लेट्स की संख्या में भी कई मतान्तर हैं परन्तु सामान्यतः इनकी संख्या 100 से भी अधिक स्वीकार की जाती है।

प्लेटों की गतिशीलता

इतिहास

पर्वत निर्माण के सन्दर्भ में प्रथमतया दो मत प्रचलित थे, ऊर्ध्वाधर संचलन द्वारा और क्षैतिज संचलन द्वारा। अर्थात कुछ लोग यह मानते थे कि पृथ्वी का आकार उत्पत्ति के बाद संकुचन द्वारा छोटा हुआ और इस संकुचन के परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह में बल पड़ गये और मुड़ाव पर्वतों के रूप में स्थित है। यूरोप में सर्वप्रथम ऑस्ट्रियाई एडवर्ड स्वेस ने इस तरह की संकल्पना को प्रचारित किया था।[२] इसके विपरीत कुछ का मानना था कि महाद्वीपों का क्षैतिज स्थानातरण हुआ है और इनके टकराने से ऊपरी सतह में बल पड़ जाने से पर्वतों का निर्माण हुआ है। संकुचनवादियों को पहली चुनौती तभी मिली थी जब महाद्वीपों के क्षैतिज स्थानान्तरण की संकल्पना का उद्भव हुआ।

शुरूआती सोलहवीं सदी में ही विद्वानों ने अटलांटिक महासागर के दोनों किनारों की एक दूसरे से समानता को चिह्नित किया था।[६] अंग्रेज़ दार्शनिक फ्रांसिस बेकन (1561-1626) ने पहली बार सटीक नक्शों के अध्ययन से यह समानता चिह्नित की, मानचित्र विज्ञानी अब्राहम ओर्टेलियस ने 1596 में पहली बार यह कहा कि अमेरिका (दोनों) यूरोप और अफ़्रीका से टूट कर अलग हुए हैं और जर्मन धर्मशास्त्री थियोडोर लिलिएनथल ने 1756 में ओर्टेलियस के कथन की पुष्टि बाइबिल के एक कथन (First Book of Moses 10:25) के आधार पर करने का प्रयास किया।[६]

बाद में अमेरिकी भूवेत्ता एफ़॰ बी॰ टेलर ने 1908-10 में चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा महाद्वीपों के एक तरह के प्रवाह की बात कही, और इसे तृतीयक युग के पर्वतों की उत्पत्ति का कारण भी बताया।[७] पर उनकी बात पर किसी ने बहुत ध्यान नहीं दिया।

वैगनर ने, जो एक पुरा-वनस्पति विज्ञानी और पुरा-जलवायु विज्ञानी थे, यह विचार प्रस्तुत किया कि प्राचीन काल में जलवायु का वितरण प्रतिरूप व्याख्यायित हो सकता है यदि महाद्वीपों को गतिशील मान लिया जाय और उन्होंने 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त प्रतिपादित किया जो उनकी 1915 में छपी पुस्तक महाद्वीपों एवं महासागरों की उत्पत्ति में प्रकाशित हुआ।[८] वैगनर ने ही सबसे पहले "महाद्वीपीय विस्थापन" [९] शब्द का प्रयोग किया[१०] वैगनर के इसी सिद्धान्त से आगे चलकर प्लेट विवर्तनिकी का विकास संभव हो पाया हालाँकि लगभग आधी सदी तक उनके विचारों को भी विद्वानों द्वारा नकारा जाता रहा[११] जब तक 1960 के दशक में प्रमाण नहीं उपलब्ध हुए।

सागर तल प्रसरण

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। और महाद्वीपीय विस्थापन


प्लेट सीमायें

प्लेट सीमाओं के तीन प्रकार

प्लेटों की गतिशीलता के कारण इनके के किनारे या सीमायें तीन प्रकार के पाए जाते हैं[१२][१३]:

विनाशात्मक/अभिसारी किनारा

इस प्रकार के किनारों के सहारे दो प्लेटें एक दूसरे की ओर गति करती हैं और टकराकर उनमें से भारी प्लेट हलकी प्लेट के नीचे क्षेपित होती है। मुड़कर नीचे की ओर क्षेपित होने वाला यह हिस्सा गहराई में जा कर ताप और दाब की अधिकता के कारण पिघलकर मैग्मा में परिवर्तित होता है।[१३] जिस गहराई पर यह घटना होती है उसे क्षेपण मण्डल या बेनीऑफ़ ज़ोन कहते हैं। ऐसे किनारों के सहारे भूसन्नतियों के पदार्थ दबाव के कारण मुड़कर पर्वतों का निर्माण करते हैं। नीचे जाकर पिघला पदार्थ मैग्मा प्लूम के रूप में ऊपर उठ कर ज्वालामुखीयता भी उत्पन्न करता है।

रचनात्मक/अपसारी किनारा

अपसारी किनारे के सहारे एक रिफ्ट घाटी, आइसलैंड में

जहाँ दो प्लेटें एक दूसरे के विपरीत गतिशील होती हैं, अर्थात एक दूसरे से दूर हटती हैं वहाँ नीचे से मैग्मा ऊपर उठकर नयी प्लेट का निर्माण करता है। इन किनारों पर पाए जाने वाले सबसे प्रमुख स्थलरूप मध्य महासागरीय कटक हैं।[१३] जब यह किनारा किसी महाद्वीप पर स्थित होता है तो रिफ्ट घाटियों का निर्माण होता है।[१३] नयी प्लेट के निर्माण के कारण इसे रचनात्मक किनारा भी कहते हैं।

संरक्षणात्मक किनारा

संरक्षी किनारा वह है जिसके सहारे दो प्लेटे एक दूसरे को रगड़ते हुए गतिशील हों, अर्थात न तो अपसरण हो रहा हो न ही अभिसरण। सामान्यतः इस किनारे के सहारे एक दूसरे को रगड़ते हुये विपरीत दिशाओं में गतिशील होती हैं किन्तु यह अनिवार्य नहीं है, यदि दो प्लेटें एक ही दिशा में गतिशील हों और उनकी गति अलग-अलग हो तब भी उनके किनारे रगड़ते हुये संरक्षी किनारा बना सकते हैं। इनके सहारे ट्रांसफोर्म भ्रंश पाए जाते हैं। चूँकि इनके सहारे न तो प्लेट (क्रस्ट या स्थलमण्डल) का निर्माण होता है और न ही विनाश[१३], अतः इन्हें संरक्षी/संरक्षणात्मक किनारे कहते हैं जहाँ निर्माण/विनाश के सन्दर्भों में यथास्थिति संरक्षित रहती है।

प्लेट सीमाओं का वैश्विक निरूपण

प्लेट विवर्तनिकी और पर्वत निर्माण

दो महाद्वीपीय प्लेटों का टकराना और पर्वत निर्माण

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत वलित पर्वतों के निर्माण की सबसे नयी व्याख्या प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिये अल्पाइन पर्वत तन्त्र के पर्वतों की उत्पत्ति की व्यख्या को प्रस्तुत किया जा सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार यह माना जाता है कि भूमध्य सागर के उत्तरी और दक्षिणी ओर बने पर्वतों की शृंखलायें टर्शियरी युग में हुए विवर्तनिक घटनाओं का परिणाम हैं जिनमें टेथीज सागर में जमा अवसादों के अफ्रीकी और यूरोपीय प्लेटों के बीच संपीडन द्वारा इनका निर्माण हुआ।[१४] हिमालय की उत्पत्ति के बारे में भी इस सिद्धांत की यही मान्यता है कि इस पर्वतमाला की उत्पत्ति तिब्बत प्लेट (या यूरेशियन प्लेट) और भारतीय प्लेट के पास आने और टेथीज सागर या भूसन्नति में जमा अवसादों के संपीडन से हुआ है।[१५]

भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर खिसकाव

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सन्दर्भ

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  1. साँचा:cite web
  2. साँचा:cite book
  3. साँचा:cite web
  4. मरियम वेबस्टर शब्दकोश स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। में
  5. डिक्शनरी डॉट कॉम स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। पर
  6. साँचा:cite book
  7. साँचा:cite journalसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
  8. साँचा:cite web
  9. जर्मन में "die Verschiebung der Kontinente" – 1922 में अंग्रेज़ी में अनूदित "Continental drift" - अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुदित
  10. Wegener, Alfred (6 January 1912), ["Die Herausbildung der Grossformen der Erdrinde (Kontinente und Ozeane), auf geophysikalischer Grundlage", Petermanns Geographische Mitteilungen 63: 185–195, 253–256, 305–309.
  11. Earth Systems: Processes and Issues, Wallace Gary Ernst, pp. 82, Cambridge University Press, 2000, ISBN 978-0-521-47895-3, ... The idea of continental drift was proposed seriously approximately eighty years ago by Alfred Wegener; however, the concept was almost universally rejected by scientists and was ignored for nearly half a century ...
  12. Meissner, Rolf (2002). The Little Book of Planet Earth. New York: Copernicus Books. p. 202. ISBN 978-0-387-95258-1
  13. साँचा:cite web
  14. साँचा:cite web
  15. साँचा:cite web