प्रेमानन्द भट्ट
प्रेमानन्द भट्ट (1649–1714) गुजराती के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे 'प्रेमानन्द' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। गुजराती साहित्य में वे 'आख्यान' के लिए प्रसिद्ध हैं जो काव्य का एक विशेष प्रकार है।
प्रेमानंद के काव्य में गुजरात की आत्मा का पूर्णं प्रस्फुटन हुआ है। प्राचीन पौराणिक कथाओं और गुजराती जनता की रुचि के बीच जो कुछ व्यवधान शेष रह गया था उसे प्रेमानंद ने अपनी प्रतिभा एवं अद्वितीय आख्यान-रचना-कौशल द्वारा सर्वथा पूर दिया। मालण, नाकर आदि पूर्ववर्ती गुजराती आख्यानकारों ने जिस पथ का निर्माण किया था प्रेमानंद के कृतित्व में वह सर्वाधिक प्रशस्त अवस्था में दृष्टिगत होता है। वे निर्विवाद रूप से गुजराती के श्रेष्ठतम आख्यानकार हैं।
परिचय
प्रेमानंद मेवाड़ जाति के चौबीसा ब्राह्मण थे और उनका मूल निवासस्थान वडोदरा या बड़ौदा था। उनके पिता कृष्णराम भट्ट पौराणिक वृत्ति मिली। व्यावहारिक दृष्टि से उन्हें पुराण साहित्य का यथेष्ट ज्ञान था। बड़ौदा से सूरत और वहाँ से प्रवासित होकर नंदरवार पहुँचे जहाँ उन्हें देसाई शंकरदास का कृपापात्र बनकर अनेक ग्रंथ लिखने की सुविधा मिली। राजकृपा पाकर प्रेमानंद की काव्यप्रतिभा उत्तरोत्तर विकसित होती गई। बाद में साधुसंग से वैष्णव भावना विशेष रूप से जाग्रत हो उठी, परिणामत: 'दश्म स्कंध' और उसके पश्चात् रचे गए ग्रंथों में राजकृपा का उल्लेख नहीं मिलता। कवि अनन्य भाव से राम का उपासक बन गया। उसके रणयज्ञ तथा विवेक वणझारों का राम का इष्टदेव की तरह स्मरण किया गया है। मालण की तरह प्रेमानंद ने भी कृष्णभक्ति विषयक पदों के अंत में अपने इष्टदेव राम का ही स्मरण किया है। यहीं नहीं, उन्होंने कृष्ण के लिए सीतापति जैसे शब्दों का भी बराबर प्रयोग किया है।
कृतियाँ
प्रेमानंद के गीतिकाव्य का प्रस्फुटन विशेष रूप से उनके भागवत पर आधारित 'दशम स्कंध' में ही हुआ है।
दशम स्कंध के ५३वें अध्याय के १६५ वें कड़वे तक प्रेमानंद की रचना है, शेष भाग उनके शिष्य सुंदर का रचा हुआ है। इसके अतिरिक्त उनकी कृष्णचरित संबंधी अन्य रचनाएँ निम्नलिखित हैं -
- 'रुक्मिणीहरण', 'रुक्मिणीहरण ना सलोको', 'बाललीला', 'ब्रजवेलि', 'दाणलीला', 'भ्रमरगीता', 'भ्रमरपचीसी', 'मास' तथा 'सुदामाचरित'।
के.का. शास्त्री के अनुसार प्रेमानंद की २६ कृतियाँ शंकारहित, चार निर्णयरहित तथा १३ ऐसी हैं जिनकी पांडुलिपियाँ अभी तक अप्राप्य हैं। इनके अतिरिक्त २३ रचनाओं के नाममात्र का उल्लेख अंबालाल बुलाकीराम जान के द्वारा किया गया है। इस प्रकार प्रेमानंद की या उनके नाम पर प्रचलित बहुसंख्यक रचनाएँ सामने आती हैं। 'रोषदर्शिका सत्यभामाख्यान', 'पांचालीप्रसन्नाख्यान' तथा 'तपत्याख्यान' नामक तीन नाटकों को प्रेमानंद कृत सिद्ध करने के लिए कुछ विद्वानों ने भरसक प्रयत्न किया पर वे सफल न हुए। शंकारहित प्रामाणिक रचनाओं में से पूर्वोल्लिखित रचनाओं के अतिरिक्त जिनका उल्लेख किया जा सकता है उनमें 'ओखाहरण', 'अभिमन्युआख्यान', 'नलाख्यान', 'चंद्रहासाख्यान', 'मदालसाख्यान', 'सुधन्वाख्यान', 'नासिकेतोपाख्यान' आदि आख्यान हैं। 'हुंडी', 'मामेरु', तथा 'शामलदास नो' विवाह, नरसी मेहता के जीवन से संबद्ध मुख्य घटनाओं पर आधारित वर्णनात्मक काव्य हैं। 'वामनकथा', 'विष्णुसहस्त्रनाम' वैष्णव भाव की द्योतक रचनाएँ हैं। 'फुवडनो' 'फजेतो' लोकरुचि की प्रहसनात्मक कृति है। ग्रंथरचना में कवि ने प्रमुख प्रेरणा महाभारत, वाल्मीकि रामायण, भागवत पुराण, मार्कण्डेयपुराण तथा अन्य पौराणिक साहित्य से ग्रहण की है। प्रेमानंद में कथाकल्पना की अभूतपूर्व क्षमता थी तथा उनकी वर्णनशक्ति भी अद्वितीय थी।
गुजरात में विविध ऋतुओं, वारों तथा अवसरों पर उनकी अनेक रचनाओं का नियमित रूप से पाठ किया जाता है जिससे कवि की अत्यधिक लोकप्रियता सिद्ध होती है।