प्रस्ताव (संसदीय प्रक्रिया)

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प्रस्ताव (मोशन), संसदीय प्रक्रिया में, सदन के समक्ष चर्चा हेतु राखी गयी किसी औपचारिक बात को कहा जाता है। सदन लोक महत्व के विभिन्न मामलों पर अनेक फैसले करता है और अपनी राय व्यक्त करता है। कोई भी सदस्य एक प्रस्ताव के रूप में कोई सुझाव सदन के समक्ष रख सकता है। जिसमें उसकी राय या इच्छा दी गई हो। यदि सदन उसे स्वीकार कर लेता है तो वह समूचे सदन की राय या इच्छा बन जाती है। अंत: मोटे तौर पर ‘प्रस्ताव’ सदन का फैसला जानने के लिए सदन के सामने लाया जाता है।

प्रस्ताव वास्तव में संसदीय कार्यवाही का आधार होते हैं। लोक महत्व का कोई भी मामला किसी प्रस्ताव का विषय हो सकता है। प्रस्ताव भिन्न भिन्न सदस्यों द्वारा भिन्न भिन्न प्रयोजनों से पेश किए जा सकते हैं। प्रस्ताव मंत्रियों द्वारा पेश किए जा सकते हैं और गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा भी। गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा पेश किए जाने वाले प्रस्तावों का उद्देश्य सामान्यतः किसी मामले पर सरकार की राय या विचार जानना होता है।

उत्पत्ति

16 वीं और 17 वीं शताब्दी में, इंग्लैंड के प्रारंभिक संसदों में अनुशासन के नियम थे। 1560 के दशक में सर थॉमस स्मिथ ने स्वीकृत प्रक्रियाओं को लिखने की प्रक्रिया आरम्भ की और 1583 में हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए उनके बारे में एक पुस्तक प्रकाशित की।[१] संसदीय प्रक्रिया के उन समस्त नियमों का समूह है जो विधायन प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए सामान्य रूप से आवश्यक माने जाते हैं। यद्यपि देश-काल के अनुरूप ऐसे नियम कुछ विषयों में अलग-अलग हो सकते हैं किंतु संसदीय विधि का मूल स्रोत इंग्लैड की संसद् के वे नियम है जिनके अनुसार विधिनिर्माण, कार्यपालिका पर नियंत्रण तथा आर्थिक विषयों के नियमन हेतु ऐसी प्रक्रियाएँ बनाई जाती है जिनसे इन विषयों पर सदन का मत ज्ञात होता है। प्रारंभिक प्रक्रिया में निम्न नियम शामिल थे:

  • एक समय में एक विषय पर ही चर्चा होनी चाहिए (1581 को अपनाया गया)[१]
  • व्यक्तिगत हमलों को बहस में टाला जाना चाहिए (1604)[१]
  • चर्चा प्रश्न के गुणों तक सीमित होनी चाहिए (1610)[१]
  • जब प्रश्न के एकाधिक हिस्से हों तब प्रश्न का विभाजन होना चाहिए (1640)[१]

इसी व्यवस्थित प्रक्रिया से सदन के सामने प्रस्ताव पेश करने की प्रथा का आरम्भ हुआ।

उद्देश्य

एक प्रस्ताव कुछ करने के लिए एक सदस्य द्वारा एक औपचारिक विचार है।[२] इसका उद्देश्य सामूहिक निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया का आधार हैं। ये समूह के ध्यान को केंद्रित करने में सहायता करते है। ताकि बड़ी सभा में व्यवस्थित तरीके से, मुद्दा-दर-मुद्दा निर्णय लिया जा सके।[३]

आम तौर पर, एक प्रस्ताव को एक कार्रवाई करने या एक राय व्यक्त करने के लिए एक तरह से अभिव्यक्त किया जाना चाहिए। कुछ न करने की गति की पेशकश नहीं की जानी चाहिए यदि वही परिणाम कुछ भी किए बिना हो सकता है। अगर विधानसभा ऐसा नहीं करना चाहती तो इस तरह के प्रस्ताव से भ्रम पैदा हो सकता है।[४]

सदन का मत प्रस्ताव तथा उसपर मतगणना से भी ज्ञात किया जाता है। मुख्य रूप से प्रस्ताव दो प्रकार के होते हैं। प्रथम मुख्य प्रस्ताव, द्वितीय गौण प्रस्ताव। गौण प्रस्ताव उचित रूप से सूचित एवं अध्यक्ष की अनुज्ञा से उपस्थित किए गए मुख्य प्रस्ताव पर विवाद के समय रखे जाते हैं, जैसे कार्य स्थगित करने के लिए प्रस्ताव। यह प्रस्ताव मुख्य प्रस्ताव को छोड़कर किसी अन्य महत्वपूर्ण विषय पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। विवादांत प्रस्ताव का उद्देश्य किसी प्रश्न पर अनावश्यक विवाद को समाप्त करना होता है। इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर प्रश्न तुरंत सदन के समक्ष मतगणना के लिए रख दिया जाता है। मुख्य प्रस्ताव के संशोधन अथवा उसपर विचार करने हेतु निर्धारित समय को बढ़ाने हेतु भी गौण प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा सकते हैं। एक महत्वपूर्ण प्रकार का प्रस्ताव सदन के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा किसी मंत्री या मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी होता है। इस प्रस्ताव के उचित रूप से सूचित करने के पश्चात्‌ उसपर विचार किकया जाता है। प्रस्तावों पर नियमानुसार विचार के उपरांत मतगणना की जाती है। मतदान का कोई रूप प्रयुक्त किया जा सकता है, जैसे हाथ उठवाकर, प्रस्ताव के पक्ष एवं विपक्ष के सदस्यों को अलग अलग खड़ा करके, एक एक से बात करके अथवा गुप्त मतदान पेटी में मतदान करवा कर। यदि आवश्यक समझा जाए तो प्रथम तथा द्वितीय वाचन के बाद किंतु तृतीय वाचन के पूर्व विधेयक पर पूर्ण विचार करने के लिए प्रवर अथवा अन्य समितियों को विषय सौंप दिया जा सकता है।

प्रकार

प्रस्ताव विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमे निम्न मुख्य हैं:

स्थगन प्रस्ताव

इसके द्वारा लोक सभा के नियमित काम-काज को रोककर तत्काल महत्वूपर्ण मामले पर चर्चा कराई जा सकती है।

ध्यानाकर्षण

इसके द्वारा कोई भी सदस्य सरकार का ध्यान तत्काल महत्व के मामले की और दिला सकता है। मंत्री को उस मामले में बयान देना होता है। ध्यानाकर्षण करने वाले प्रत्येक सदस्य को एक प्रश्न पूछने का अधिकार होता है।

आपातकालीन चर्चाएं

इनके द्वारा तत्काल महत्व के प्रश्नों पर एक घंटे की चर्चा की जा सकती है। हालाँकि इस पर मतदान नहीं होता।

विशेष उल्लेख

हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि किस तरह ऐसे मामले उठाने का प्रयास करते हैं जिनका नियमों एवं विनियमों की व्याख्या से कोई संबंध नहीं होता। लेकिन ये मामले उस समय उन्हें और उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को उत्तेजित कर रहे होते हैं। जो मामले व्यवस्था के प्रश्न नहीं होते या जो प्रश्नों, अल्प-सूचना प्रश्नों, ध्यानाकर्षण प्रस्तावों आदि से संबंधित नियमों के अधीन नहीं उठाए जा सकते, वे इसके अधीन उठाए जाते हैं।

अविश्वास प्रस्ताव

मंत्रिपरिषद तब तक पदासीन रहती है जब तक उसे लोक सभा का विश्वास प्राप्त हो। लोक सभा द्वारा मंत्रिपरिषद में अविश्वास व्यक्त करते ही सरकार को संवैधानिक रूप से पद छोड़ना होता है। नियमों में इस आशय का एक प्रस्ताव पेश करने का उपबंध है जिसे ‘अविश्वास प्रस्ताव’ कहा जाता है। राज्यसभा को अविश्वास प्रस्ताव पर विचार करने की शक्ति प्राप्त नहीं है।

निंदा प्रस्ताव

निंदा प्रस्ताव अविश्वास के प्रस्ताव से भिन्न होता है। अविश्वास के प्रस्ताव में उन कारणों का उल्लेख नहीं होता जिन पर वह आधारित हो। परंतु निंदा प्रस्ताव में ऐसे कारणों या आरोपों का उल्लेख करना आवश्यक होता है। यह प्रस्ताव कतिपय नीतियों और कार्यों के लिए सरकार की निंदा करने के इरादे से पेश किया जाता है। निंदा प्रस्ताव मंत्रिपरिषद के विरूद्ध या किसी एक मंत्री के विरूद्ध या कुछ मंत्रियों के विरूद्ध पेश किया जाता है। उसमें किसी मंत्री या मंत्रियों की विफलता पर सदन द्वारा खेद, रोष या आश्चर्य प्रकट किया जाता है।

संकल्प (रेसोलुशन)

संकल्प भी एक प्रक्रियागत उपाय है यह आम लोगों के हित के किसी मामले पर सदन में चर्चा उठाने के लिए सदस्यों और मंत्रियों को उपलब्ध है। सामान्य रूप के प्रस्तावों के समान संकल्प, राय या सिफारिश की घोषणा के रूप में हो सकता है। या किसी ऐसे अन्य रूप में हो सकता है जैसा कि अध्यक्ष उचित समझे।

संसदीय प्रक्रिया

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। संसदीय प्रक्रिया, के उन समस्त नियमों का समूह है जो विधायन प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए सामान्य रूप से आवश्यक माने जाते हैं। यद्यपि देश-काल के अनुरूप ऐसे नियम कुछ विषयों में अलग-अलग हो सकते हैं किंतु संसदीय विधि का मूल स्रोत इंग्लैड की संसद् के वे नियम है जिनके अनुसार विधिनिर्माण, कार्यपालिका पर नियंत्रण तथा आर्थिक विषयों के नियमन हेतु ऐसी प्रक्रियाएँ बनाई जाती है जिनसे इन विषयों पर सदन का मत ज्ञात होता है। वेस्टमिंस्टर प्रक्रिया में सर्वप्रथम संसद् के सत्र को संप्रभु, राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल आहूत करता है। सत्र आरंभण के पश्चात्‌ सदन का कार्यसंचालन सदन का अध्यक्ष (जिसे सभापति भी कहते हैं) करता है। अध्यक्ष विभिन्न विषयों पर सदन का मत विभिन्न प्रकार के प्रश्नों, प्रस्तावों तथा उनपर मतगणना के परिणामों से ज्ञात करता है। अत: प्रस्तावों तथा संबंधित प्रश्नों और समुचित रूप से विचार करने के लिए एक कार्यसूची बनाई जाती है जिसके अनुसार प्रस्तावक अथवा प्रश्नकर्ता के लिए समय नियत किया जाता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. Robert 2011, पृष्ठ 104–105

बाहरी कड़ियाँ