पंडित सुन्दर लाल
छत्तीसगढ़ के कवि एवं समाजसुधारक पंडित सुन्दर लाल शर्मा के लिये संबन्धित लेख देखें।
पंडित सुन्दर लाल कायस्थ (26 सितम्बर सन 1885 - 9 मई 1981) भारत के पत्रकार, इतिहासकार तथा स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे। वे 'कर्मयोगी' नामक हिन्दी साप्ताहिक पत्र के सम्पादक थे। उनकी महान कृति 'भारत में अंग्रेज़ी राज' है।[१]
जन्म और जीवन
पं. सुंदर लाल कायस्थ का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की गाँव खतौली के कायस्थ परिवार में 26 सितम्बर सन 1885 को तोताराम के घर में हुआ था।[२] बचपन से ही देश को पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े देख कर उनके दिल में भारत को आजादी दिलाने का जज्बा पैदा हुआ। वह कम आयु में ही परिवार को छोड़ प्रयाग चले गए और प्रयाग को कार्यस्थली बना कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। पं॰ सुंदरलाल कायस्थ एक सशस्त्र क्रांतिकारी के रूप में गदर पार्टी से बनारस में संबद्ध हुए थे। लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष, लोकमान्य तिलक के निकट संपर्क उनका हौसला बढ़ता गया और कलम से माध्यम से देशवासियों को आजाद भारत के सपने को साकार करने की हिम्मत दी। उनकी प्रखर लेखनी ने 1914-15 में भारत की सरजमीं पर गदर पार्टी के सशस्त्र क्रांति के प्रयास और भारत की आजादी के लिए गदर पार्टी के क्रांतिकारियों के अनुपम बलिदानों का सजीव वर्णन किया है। लाला हरदयाल के साथ पं॰ सुंदरलाल कायस्थ ने समस्त उत्तर भारत का दौरा किया था। 1914 में शचींद्रनाथ सान्याल और पं॰ सुंदरलाल कायस्थ एक बम परीक्षण में गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। वह लार्ड कर्जन की सभा में बम कांड करने वालों में 'पंडित सोमेश्वरानंद' बन कर शामिल हुए थे, सन 1921 से 1942 के दौरान वह गाँधी जी के सत्याग्रह में भाग लेकर ८ बार जेल गए।
18 मार्च 1928 को प्रकाशित होते ही 22 मार्च को अंग्रेज सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गयी। गणेशशंकर 'विद्यार्थी' को पंडित जी से बहुत प्रेरणा मिली थी। अपने अध्ययन एवं लेखन के दौरान पंडित गणेश शंकर की भेंट पंडित सुन्दरलाल कायस्थ जी से हुई और उन्होंने उनको हिन्दी में लिखने के लिये प्रोत्साहित किया। पंडित सुन्दर लाल ने ही पंडित गणेश शंकर को 'विद्यार्थी' उपनाम दिया जो आगे चलकर उनके नाम में हमेशा-हमेशा के लिये जुड़ गया।
उनकी पुस्तक 'भारत में अंग्रेज़ी राज' के दो खंडों में सन 1661 ई. से लेकर 1857 ई. तक के भारत का इतिहास संकलित है। यह अंग्रेजों की कूटनीति और काले कारनामों का खुला दस्तावेज है, जिसकी प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए लेखक ने अंग्रेज अधिकारियों के स्वयं के लिखे डायरी के पन्नों का शब्दश: उद्धरण दिया है।
योगदान
पंडित सुंदरलाल पत्रकार, साहित्यकार, स्तंभकार के साथ ही साथ स्वतंत्रता सेनानी थे, वह कर्मयोगी एवं स्वराज्य हिंदी साप्ताहिक पत्र के संपादक भी रहे। उन्होंने ५० से अधिक पुस्तकों की रचना की। स्वाधीनता के उपरांत उन्होंने अपना जीवन सांप्रदायिक सदभाव को समर्पित कर दिया। वह अखिल भारतीय शांति परिषद् के अध्यक्ष एवं भारत-चीन मैत्री संघ के संस्थापक भी रहे। प्रधानमंत्री पं॰ जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें अनेक बार शांति मिशनों में विदेश भेजा।