धारा ३७७ (भारतीय दण्ड संहिता)
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भारतीय दण्ड संहिता की धारा-३७७, भारतीय दण्ड संहिता में ब्रिटिश शासनकाल में सन १८६१ में डाली गयी थी, जो १५३३ के बग्गरी ऐक्ट पर आधारित थी। इस धारा द्वारा उन यौन कार्यों को अपराध घोषित किया गया है जो 'प्रकृति के आदेश के प्रतिकूल' हैं। किन्तु भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने सितम्बर २०१८ में इस धारा का प्रयोग उन कार्यों के लिए असंवैधानिक घोषित कर दिया जिनमें दो वयस्क परस्पर सहमति से समलैंगिक आचरण करते हैं।[१] अर्थात भारत में परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक समबन्ध अब अपराध नहीं रहा। यह निर्णय भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 और दिल्ली समझौते 1952 के तहत जम्मू और कश्मीर राज्य पर भी लागू होता है, क्योंकि आईपीसी की धारा 377 और रणबीर दंड संहिता पार मटेरिया है और न्यायिक उच्चारण जम्मू और कश्मीर तक बढ़ा दी गई है।[२][३]