दिल अपना और प्रीत पराई
दिल अपना और प्रीत पराई | |
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चित्र:दिल अपना और प्रीत पराई.jpg दिल अपना और प्रीत पराई का पोस्टर | |
निर्देशक | किशोर साहू |
निर्माता | कमाल अमरोही |
लेखक |
किशोर साहू मधुसूदन |
अभिनेता |
राजकुमार, मीना कुमारी, नादिरा |
संगीतकार | शंकर जयकिशन |
प्रदर्शन साँचा:nowrap | 1960 |
समय सीमा | 155 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
दिल अपना और प्रीत पराई हिन्दी भाषा की नाट्य प्रेमकहानी फ़िल्म है जो 1960 में प्रदर्शित हुई। इसे किशोर साहू ने लिखा और निर्देशित किया था। फिल्म में राज कुमार, मीना कुमारी और नादिरा मुख्य भूमिका में हैं।
फिल्म का संगीत शंकर जयकिशन द्वारा दिया गया है, और इसमें लता मंगेशकर द्वारा गाया गया एक हिट गीत, "अजीब दास्ताँ है ये" है। 1961 में फिल्मफेयर पुरस्कार में इसने नौशाद के मुग़ल-ए-आज़म के लोकप्रिय संगीत को सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक श्रेणी में हराकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था।
कहानी
सुशील वर्मा (राज कुमार) शिमला अस्पताल में एक सर्जन (शल्य चिकित्सक) है। वो अस्पताल के मैदान में डॉक्टर के लिए बने घर में अपनी माँ और छोटी बहन मुन्नी के साथ रहता है। उसके पिता की मौत हो जाती है और उसके पिता के करीबी दोस्त उसके पढ़ाई का खर्च दे देते हैं, जिससे उनके ऊपर वो कर्ज के रूप में आ जाता है, जिसे उसकी माँ किसी भी तरह पूरा करने की सोचती है।
करुणा (मीना कुमारी) एक नर्स है, जो शिमला अस्पताल में आती है और उसकी मुलाक़ात डॉ॰ वर्मा से होती है। वे दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं, पर अपनी भावनाओं को बाहर आने से रोक लेते हैं। एक दिन करुणा की मुलाक़ात मुन्नी से होती है, जो खेलते हुए गिर जाती है। वो मुन्नी को उसके घर ले जाती है, ये जाने बगैर कि वो डॉ॰ वर्मा की बहन है। वो मुन्नी के जख्म में पट्टी लगा देती है और तभी देखती है कि घर में बहुत सारा काम अटका हुआ है और उसकी माँ भी काफी बीमार है और घर के कार्य नहीं कर सकती है। वो घर के सारे काम कर देती है और सभी की देखभाल भी करती है। जब सुशील कर लौट कर ये सब देखता है तो उसे करुणा से और भी ज्यादा प्यार हो जाता है।
हालांकि इसके बाद उसकी माँ सभी परिवार वालों के साथ कश्मीर जाने की योजना बनाती है। इसी दौरान वो सुशील को कुसुम (नादिरा) के साथ शादी के लिए राजी करा लेती है। उसकी माँ को लगता है कि जिसने सुशील के पढ़ाई के पैसे दिये थे, उसी की बेटी से शादी हो जाये तो वो कर्ज पूरा हो जाएगा।
वे लोग शिमला आ जाते हैं। जब करुणा को पता चलता है कि सुशील और कुसुम की शादी होने वाली है तो वो टूट सी जाती है। स्थिति और भी खराब तब हो जाती है, जब सुशील, कुसुम को ज्यादा भाव न देकर करुणा को अधिक महत्व देने लगता है। कुसुम को जलन होने लगती है और वो सुशील की माँ और बहन को करुणा के खिलाफ भड़काने लगती है, जब तक कि सुशील उसे घर से निकाल नहीं देता है। वो वापस कश्मीर चले जाती है।
सुशील की माँ को अपनी गलती का एहसास होता है और वो अब सुशील और करुणा की शादी के बारे में सोचती है। किसी प्रकार का विवाद खड़ा न हो, इस कारण करुणा उस अस्पताल से किसी और अस्पताल में चले जाती है। लेकिन कुसुम बदला लेने की सोचती रहती है और जब ये बात सुशील को पता चलती है तो वो करुणा को बचाने की कोशिश करता है। वे लोग तेजी से पहाड़ी में कार चलाते रहते हैं, और इस चक्कर में कुसुम की मौत हो जाती है। अंत में करुणा और सुशील एक दूसरे से मिल जाते हैं।
मुख्य कलाकार
- राज कुमार — डॉ॰ सुशील वर्मा
- मीना कुमारी — करुणा
- नादिरा — कुसुम
- ओम प्रकाश - गिरधारी
- रूबी मेयर — नर्स अध्यक्ष
- टुन टुन — हसीना
- हेलन — कैबरे नर्तकी
- शम्मी — शीला
- कुमार — डॉ॰ मल्होत्रा
- कुमारी नाज़ — मुन्नी
- प्रतिमा देवी — श्रीमती वर्मा
संगीत
सभी शंकर-जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध।
क्र॰ | शीर्षक | गीतकार | गायक | अवधि |
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1. | "अजीब दास्ताँ है ये" | शैलेन्द्र | लता मंगेशकर | 5:15 |
2. | "अंदाज़ मेरा मस्ताना" | शैलेन्द्र | लता मंगेशकर | 6:42 |
3. | "दिल अपना और प्रीत पराई" | शैलेन्द्र | लता मंगेशकर | 4:06 |
4. | "इतनी बड़ी महफ़िल" | हसरत जयपुरी | आशा भोंसले | 4:49 |
5. | "जाने कहाँ गई" | शैलेन्द्र | मोहम्मद रफ़ी | 4:37 |
6. | "मेरा दिल अब तेरा हो सजना" | शैलेन्द्र | लता मंगेशकर | 5:38 |
7. | "शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो" | हसरत जयपुरी | लता मंगेशकर | 4:36 |
नामांकन और पुरस्कार
प्राप्तकर्ता और नामांकित व्यक्ति | पुरस्कार वितरण समारोह | श्रेणी | परिणाम |
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किशोर साहू | फिल्मफेयर पुरस्कार | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार | साँचा:nom |
शंकर-जयकिशन | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार | साँचा:won | |
शैलेन्द्र ("दिल अपना और प्रीत पराई") | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार | साँचा:nom |