त्रिशूल (हथियार)
त्रिशूल (IAST: Triśūla, Trishool ) एक परम्परागत भारतीय हथियार है। यह एक हिन्दू चिन्ह की तरह भी प्रयुक्त होता है। यह एक तीन चोंच वाला धात्विक सिर का भाला या हथियार होता है, जो कि लकड़ी या बाँस के डण्डे पर भी लगा हो सकता है। यह हिन्दु भगवान शिव के हाथ में शोभा पाता है। यह शिव का सबसे प्रिय अस्त्र हैं शिव का त्रिशूल पवित्रता एवम् शुभकर्म का प्रतीक है । प्रायः सभी शिवालय (शिव का मन्दिर) में त्रिशूल अनिवार्य रूप से स्थापित किया जाता है जिसमें सोने चाँदी ओर लोहे की धातु से बने त्रिशूल ज्यादातर शिवालय में दिखाई देते हैं । बिना त्रिशूल के शिवालय अधूरा है। शिवरात्रि मे मन्नत पूरी होने पर भगवान शिव को त्रिशूल अर्पित किया जाता है। शारदीय नवरात्रि के समय घरों में भी घट स्थापना और जबारे लगाई जाती है जिसमे त्रिशूल के बाने (देवी दुर्गा का प्रतीक) से पूजा सम्पन्न होती हैं। शारदीय नवरात्रि के समय देवी दुर्गा की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करते समय इस अस्त्र की विशेष पूजा की जाती है। [[चैत्र]॰ और शारदीय नवरात्रि के समय नौ दिनों तक इसकी आराधना कर नवरात्रि की पूजा सम्पन्न की जाती है। इसी त्रिशूल से भगवान शिव ने उनके पुत्र गणेश का सिर अलग किया था।
त्रिशूल (हथियार) की पहाड़ी
मध्यप्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पचमढ़ी अपनी खूबसूत वादियों के साथ धार्मिक महत्व के लिए भी विख्यात है। पचमढ़ी से लगी सतपुड़ा की बादियो मे चौरागढ़ मंदिर में महाशिवरात्रि पर बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमे असख्या भक्त भगवान शिव को त्रिशूल भेट करते है चुकी पहाड़ी काफी उचि हैं जोकि 3 से 4 किलोमीटर की उचाई तक शिव भक्त भारी भरकम त्रिशूल को अपने कंधो मे ले जाते है त्रिशूल का वजन 1 किलो से 1000 किलो या इससे भी ज्यादा हो सकता हैं। महाशिवरात्रि पर हर साल लाखो की संख्या मे इस मंदिर मे त्रिशूल भेट करने से पूरा पहाड़ त्रिशूलो से ढक गया है। जो एक त्रिशूल की पहाड़ी के समान दिखती है। कुछ भक्त त्रिशूल को चौरागढ़ मंदिर मे शिव की प्रतिमा से भेट कराकर अपने घर के मंदिर या सार्वजनिक मंदिर मे त्रिशूल स्थापित कर शिव प्रतीक चिन्ह के रूप पूजा करते है।
त्रिशूल चिन्ह उकेरकर शिव वाहन नन्दी (साँड) बनाने की प्रथा
मानता पूरी होने पर महाशिवरात्रि मे कुछ लोगो शिव का वाहन नन्दी के प्रतिक समान बेलो के बच्चो को छोड़ते है ओर उनकी जंघों मे एक छोटा त्रिशूल चिन्ह उकेरने के लिए एक छोटे से त्रिशूल को गर्म अंगारो मे करने के बाद उसे बेलो के बच्चो की जंघों मे चिपका कर अलग कर देते है उतनी जगह जलने के बाद उस स्थान मे हमेशा के लिए त्रिशूल चिन्ह बन जाता है ओर उस त्रिशूल चिन्ह के दिखने के कारण कोई भी व्यक्ति या किसान उसे नही पकड़ता है। ओर ना मारता है आगे जाकर यही बैल साँड बन जाता है जिसे आप बड़े चौराहों अथवा मार्गों मे आसानी से देख सकते है।
त्रिशल के तीन तीन सिर का आशय
इसके तीन सिरों के कई अर्थ लगाए जाते हैं:
--यह त्रिगुण मई सृष्टि का परिचायक है,
--यह तीन गुण सत्व, रज, तम का परिचायक है,
इनके तीनों के बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्टि का संचालन कठिन हैं इसलिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण किया।
--यह त्रिदेव का परिचायक है।
भगवान शिव के त्रिशूल के बारें में कहा जाता है कि यह त्रिदेवों का सूचक है यानि ब्रम्हा,विष्णु,महेश इसे रचना,पालक और विनाश के रूप में देखा जाता है। इसे भूत,वर्तमान और भविष्य के साथ धऱती,स्वर्ग तथा पाताल का भी सूचक माना जाता हैं। यह दैहिक, दैविक एवं भौतिक ये तीन दुःख, त्रिताप के रूप मे जाना जाता है।
यह हिन्दु देवी दुर्गा के हाथों में भी शोभा पाता है। खासकर उनके महिषासुर मर्दिनी रूपमें, वे इससे महिषासुर राक्षस को मारती हुई दिखाई देतीं हैं। बिभिन्न देवी दुर्गा के मंदिरो की प्रतिमा मे त्रिशूल सोने चाँदी या पीतल
के देखे जा सकते है।
त्रिशूल चिन्ह का हस्तरेखा,मस्तिष्क रेखा, ओर योग का महत्व
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार हथेली में कुछ निशान बहुत ही शुभ माने जाते हैं। इन्हीं चिन्हों और रेखाओं के आधार पर तय किया जाता है कि सम्बन्धित व्यक्ति की किस्मत ओर व्यक्तित्व कैसा होगा प्रायः त्रिशूल चिन्ह हाथ की तर्जनी ओर मध्यमा के ठीक नीचे देखा जा सकता है। या फिर ये चिन्ह हथेली के ऊपरी या निचले भाग मे भी हो सकता है इसे हथेली के एक छोर से दूसरे छोर तक उँगलियों के पर्वतो तथा हृदय रेखा के समानान्तर जाने वाली रेखा को मस्तिष्क रेखा कहते हैं। योग मे इसे अंगुली शिव के त्रिशूल में इंसानी मस्तिष्क और शरीर में व्याप्त विभिन्न बुराइयों और नकारात्मकता को समाप्त करने की भी ताकत है। मनुष्य शरीर में भी त्रिशूल, जहाँ तीन नाड़ियाँ मिलती हैं, मौजूद है और यह ऊर्जा स्त्रोतों, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना को दर्शाता है। सुषुम्ना जो कि मध्य में है, को सातवाँ चक्र और ऊर्जा का केन्द्र कहा जाता है।