तुलसी पीठ
तुलसी पीठ सेवा न्यास जानकी कुंड, चित्रकूट, मध्य प्रदेश में स्थित एक भारतीय धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्था है। इसे हिंदू धार्मिक नेता जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा २ अगस्त १९८७ को स्थापित किया गया था।[१][२] रामभद्राचार्य का मानना है कि जहाँ पर यह पीठ स्थित है, उस जगह रामायण के अनुसार, राम ने अपने भाई भरत को अपनी चप्पले दी थी।[३] यह प्रसिद्ध कवि संत तुलसीदास के नाम पर है।
तुलसी पीठ के परिसर में जगद्गुरूजी का पावन निवास, राघव सत्संग भवन नामक एक संलग्न सभामण्डप सहित काँच मंदिर नामक एक देवालय, एक छोटी गौशाला, नेत्रहीन विकलांग छात्रों के लिए एक विद्यालय, मानस मंदिर नामक एक देवालय जिसकी अंदरूनी दीवारों पर रामचरितमानस उत्कीर्ण है और जिसमे रामचरितमानस के 16 दृश्यों के चल-प्रतिरूप की प्रदर्शनी है।[२][४] वहाँ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए एक छात्रावास भी है।[१]
तुलसी पीठ की गतिविधियों में संस्कृत और हिन्दी के हिंदू धार्मिक ग्रंथों का प्रसार और अध्ययन, गायों और साधुओं की सेवा, एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन और विकलांग व्यक्तियों के लिए सहायता प्रदान शिविरों की व्यवस्था शामिल है।[४] इस संस्थान ने रामभद्राचार्य द्वारा लिखित विभिन्न पुस्तकें को प्रकाशित किया है।[५][६]
स्थापना
१९८३ में रामभद्राचार्य (उस समय रामभद्रादास) ने, केवल दूध और फल का आहार लेते हुए और केवल संस्कृत बोलते हुए, चित्रकूट के स्फटिक शिला में, अपना दूसरा छह-माह पायोव्रत रखा। चित्रकूट के युवराज हेमराज सिंह चतुर्वेदी रामभद्राचार्य से प्रभावित हुए और उन्हे जानकी कुंड में मंदाकिनी नदी के साथ ही स्थित एक ८० फीट × ६० फीट की भूमि दान की।[७] गीता देवी, रामभद्रादास की ज्येष्ठ बहन, ने उन्हे उस भूखंड पर एक आश्रम बनाने के लिए सम्मत किया। रामभद्रादास ने वहाँ चार कमरों का निर्माण करवाया और वहाँ अक्सर जाना शुरू कर दिया। १९८६ में, उन्होंने इस नवनिर्मित आश्रम में नव-मास पायोव्रत रखा। उन्होंने यहाँ पर अपनी कथाएँ रखना भी शुरू कर दिया।[७]