तितालिया संधि

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तितालिया संधि सिक्किम के चोग्याल (राजा) और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुआ था। इस संधि को कैप्टेन बर्रे लैटर ने फरवरी 1817 में निपटाया था, इस संधि के तहत ब्रिटिश ने सिक्किम कि सुरक्षा कि गारंटी दी और नेपाल द्वारा सदियों पहले सिक्किम का कब्जा किया हुआ भू-भाग सिक्किम को वापस दिलाया। इस भू-भाग के लिए ब्रिटिशों को नेपाल से 1814-16 में अंग्रेज-नेपाल युद्ध लड़ना पड़ा था। बदले में सिक्किम ने अंग्रेजों को व्यापार करने का अधिकार दिया और तिब्बत सिमा तक पहुंचने के लिए उनके रास्ते को प्रयोग करने का अधिकार दिया था। इस संधि पर तितालिया नामक स्थान पर हस्ताक्षर किया गया था, जो अब तेतुलिया उपजिला नाम से जाना जाता है। यह स्थान अब बांग्लादेश के रंगपुर जिले में पड़ता है। सिक्किम का राजपत्र, 1894 द्वारा एचएच रिसले, में यह लिखा हुआ था कि "तितालिया संधि के द्वारा, ब्रिटिश भारत ने सिक्किम का सर्वोपरि का पद प्राप्त कर लिया है और तब से यह साफ-जाहिर रहा है कि उस राज्य में ब्रिटिशों का हि प्रमुख प्रभाव रहा।

प्रावधान

ईस्ट इंडिया कंपनी के तरफ से कैप्टेन बर्रे लैटर और सिक्किम के तरफ से तीन सिक्किमी अधिकारी नज़ीर चाइना तेंजिन, माचा तेंबाह और लामा दुचिम लूँगाडू ने हस्ताक्षर किये, संधि का मुख्य उद्देश्य अनुच्छेद 1 में था, जिसमें वो सारे भू-भाग जिसे पूर्व में गोरखा अधिराज्य ने अपने कब्जे में कर लिया था सिक्किम को वापस लौटना था। ये भू-भाग मेची नदी के पूर्व से टिस्टा नदी के पश्चिम के बीच फैला हुआ था, जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने अंग्रेज-नेपाल युद्ध के बाद हुए सुगौली संधि के तहत अपने अधीन कर लिया था।

बदले में, सिक्किमी चोग्याल गोरखाओं के प्रति आक्रमण करने से बचेंगे और यदि किसी पड़ोसी राज्य से मतभेद हो जाय तो मध्यस्थ होने के लिए अंग्रेजों को अनुमति देने पर सहमत हुए। आगे के अनुच्छेद ब्रिटिशों को आर्मी कि सहायता करने का वचन देता है, कि यदि ब्रिटिश न्याय से कोई भी व्यक्ति अपराधी हो या सामान्य नागरिक भाग कर सिक्किम आता है तो उसे सिक्किम में गिरफ्तार किया जायेगा और ईस्ट इंडिया कंपनी का कोई भी सामान यदि सिक्किम से होकर गुजरता है तो वह करमुक्त होगा।

प्रभाव

इस संधि ने सिक्किम को प्रभावी रूप से अंग्रेज-चीन कूटनीति का एक चैनल के रूप में बदल दिया। [१]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ