तहरीर चौक

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१९५८ में तहरीर चौक
ओमर मकरम मस्जिद के पास, ओमर मकरम की मूर्ति — तहरीर चौक, काहिरा

तहरीर चौक (साँचा:lang-ar साँचा:transl, IPA: [meˈdæːn ettæħˈɾiːɾ], साँचा:lang-en, साँचा:lang-hi जो की लिबरेशन स्क़्वाएर (बलिदानी चौराहा) के नाम से भी जाना जाता है, मिस्र की राजधानी काहिरा में स्थित शहर का एक बहुत बड़ा चौराहा है। यह काहिरा में राजनीतिक प्रदर्शनों व क्राँतियों का मुख्य केन्द्र है। यहीं पर २०११ में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ विद्रोह व उनका सत्ता से निर्वासन, और मिस्र में सैन्य तख्तापलट २०१३ हुआ। यह चौराहा इन क्रान्तियों का प्रमुख केन्द्र व गवाह रहा।

इतिहास

यह चौराहा शुरुवात में उन्नीसवीं शताब्दी के मिस्र के शाशक खेदिव इस्माईल के नाम पर इस्माईलिया चौक (ميدان الأسماعيليّة साँचा:transl) के नाम से जाना जाता था। उन्होंने ही शहर के नये ज़िले की संरचना नील नदी पर पेरिस को अधिकृत किया था। १९१९ में मिस्र की क्रान्ति के बाद से इसका नाम तहरीर चौक (अज़ाद चौक) पड गया। इसे बड़े पैमाने पर तहरीर चौक के नाम से जाना जाने लगा, लेकिन आधिकारिक तौर से इसका नाम १९५२ की मिस्र की क्रान्ति होने तक नहीं बदला। १९५२ की मिस्र की क्रान्ति ने मिस्र को एक लोकतान्त्रिक साम्राज्य से बदलकर तानाशाही गणराज्य में बदल दिया। यह चौराहा २०११ की मिस्र की क्रान्ति का मुख्य केन्द्र था।[१]

तलात हर्ब मार्ग के उत्तर पश्चिम की ओर, रात में तहरीर चौक का नज़ारा

विशेषताऍं

मोगम्मा अट्टालिका से दक्षिण की ओर ओमर अकरम की मूर्ति

तहरीर चौक के मध्य में एक अति व्यस्त यातायात परिपथ है। इसके पूर्वोत्तर की ओर एक और चौक है जहाँ राष्ट्र नायक ओमर मकरम की मूर्ति है। जिन्हें १८०७ में नेपोलियन के मिस्र पर आक्रमण के समय दिखाये गये अदम्य साहस के लिए जाना जाता है। उसके पास में ही ओमर मकरम मस्जिद है।[२]

यह चौराहा प्रसिद्ध कॉसर अल ऍन मार्ग (साँचा:lang-en) का उत्तरी अंत है, तलात हर्ब मार्ग का पश्चिमी अंत है और कॉसर एल्नील मार्ग (साँचा:lang-en) के रास्ते दक्षिणी भाग को जाते हुए सीधे क़ॉसर अल-नील पुल आता है जो नील नदी के ऊपर बना है।

तहरीर चौक के आसपास मिस्र का संग्रहालय, हाउस ऑफ फोकलोर, नैशनल डेमोक्रैटिक पार्टी-एनडीपी का मुख्यालय, मोग्गमा का सरकारी भवन, अरब लीग का मुख्यालय का भवन, नील होटल, कॉसर एल दोबारा इसाई गिरिजाघर और अमेरिकी विश्वविद्दालय (काहिरा) का परिसर है।

काहिरा मेट्रो तहरीर चौक पर सदात स्टेशन से चलती है, जो कि शहर के व्यापारिक क्षेत्र में मेट्रो प्रणाली के दो रेलमार्गों का संगम है। यह इसे गीज़ा, माडी, हेलवान व काहिरा के दूसरे जिलों से जोडता है। इसके भूमिगत मार्ग (सब वे) चौराहे की व्यस्त सडकों को पैदल चलकर पार करने वाले लोगों को सुरक्षित रास्ता मुहैया कराते हैं।

सार्वजनिक प्रयोग व प्रदर्शन

१९७७ में मिस्र के खाद्द दंगों (अंग्रेजी: Egyptian bread riots) से लेकर मार्च २००३ में इराक के खिलाफ अमेरिकी युद्ध के खिलाफ प्रदर्शनों तक तहरीर चौक वर्षों से तमाम सार्वजनिक व राजनीतिक प्रदशनों का परंपरागत केन्द्र बिन्दु रहा है।[३]

२०११ में हुई मिस्र की क्रान्ति

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२०११ में मिस्र की क्रान्ति के दौरान तहरीर चौक पर सेना के वाहन पर चढे हुए प्रदर्शनकारी

तहरीर चौक २०११ में मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ हुए प्रदर्शनों का केन्द्र स्थल था।[४] लगभग ५० हजार प्रदर्शनकारियों ने पहले २५ जनवरी को चौक पर कब्जा कर लिया जिसके दौरान बेतार संप्रेषण प्रणाली (अंग्रेजी: वायरलेस सर्विस) खराब होने की सूचना आई।[५] आने वाले दिनों में भी तहरीर चौक इस आंदोलन का प्रमुख केंद्र बना रहा।.[६] २९ जनवरी को मिस्र के लडाकू विमानों ने प्रदर्शनकारियों के ऊपर उडान भरी, लेकिन प्रदर्शनकारियों का हौसला बढता ही गया। मीडिया में खबरों के अनुसार ३० जनवरी तक प्रदर्शनकारियों की संख्या १ लाख तक पहुंच गई थी।,[७] ३१ जनवरी को अल ज़जीरा के पत्रकारों ने खबर दी कि प्रदर्शनकारियों की संख्या ढाई लाख तक पहुंच गई है।.[८] १ फरवरी को यह संख्या १० लाख को पार कर गई। हालॉंकि कुछ मीडिया समूहों द्वारा इतनी भारी संख्या में लोगो के जुटने कि खबरों को राजनैतिक कारणों से बढा चढा कर पेश किया गया हुआ माना गया। स्ट्रेटफॉर के अनुसन्धान के अनुसार प्रदर्शनकारियों कि संख्या कभी भी ३ लाख से ज्यादा नहीं हुई।[९][१०] हालॉंकि यह संख्या भी सत्ता के खिलाफ प्रदर्शनकारियों में व्याप्त असंतोष को दर्शाने के लिए पर्याप्त थी।

९ फरवरी २०११ को तहरीर चौक पर जुटी लोगों की भीड

तहरीर चौक मिस्र के लोकतन्त्र में विरोध प्रदर्शनों का केन्द्र के तौर पर स्थापित हो चुका था। २ फरवरी को होस्नी मुबारक के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसक झडपें शुरु हो गई।[११] जिसके बाद ३ फरवरी को शुक्रवार की विदाई के प्रदर्शन हुए। लगातार हिंसक हो रहे प्रदर्शनों और उसे विश्व के तमाम मीडिया समूहों से मिल रही अन्तरराष्ट्रिय प्रतिवेदना (रिपोर्टिग) की वजह से तहरीर चौक बहुत जल्द विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया।[१२]


इस क्रान्ति के दौरान "Tahrir Square" ميدان التحرير नामक एक फेसबुक पृष्ठ २० लोगों के एक समूह द्वारा चालू रखा गया जिसपर क्रान्ति संबन्धित निरंतर हो रही गतिविधियों की सूचनाऍं अद्दतन होती रहती थी ताकि क्रान्ति से जुडी खबरों को लोगों तक पंहुचाया जा सके जो कि सरकारी प्रेस द्वारा या छुपाई या दबाई जा सकती थीं। [१३]
१० फरवरी को लाखों कि संख्या में प्रदर्शनकारी मिस्र की संसद के सामने पहुंच गए।[१४] चौक पर केन्द्रित प्रदर्शनों ने मिस्र की सेनाओं को ११ फरवरी को मुबारक सरकार को अपदस्थ करने का एक मौका दे दिया था जिन्होने आधिकारिक तौर पर अपना त्यागपत्र दे दिया।[१५] नए उपराष्ट्रपति ओमर सुलेमान ने घोषणा की कि मुबारक ने अपने सारे अधिकार सैन्य परिषद को सौंप दिए हैं।[१६] शाम को हुई इस घोषणा के बाद तहरीर चौक रात भर चले जश्न में डूब गया। लोगों ने सिर ऊँचा रखो, तुम मिस्रवासी हो, जो भी मिस्र से प्यार करता है, आगे आए और मिस्र को बनाए जैसे नारे लगाए। अगले दिन काहिरा वासी पुरुष और महिलाएँ तहरीर चौक पर फिर इकठ्ठा हुए और चौक की सफाई की।[१७]

क्रान्ति के बाद

सुबह के समय तहरीर चौक का नज़ारा, नवंबर २०१२

लोकतंत्र की विजय के जश्न व विदेशी मेहमानों व गणमान्य व्यक्तियों के लगातार हो रहे आगमनों की वजह से तहरीर चौक २०११ में हुई मिस्र की क्रान्ति का प्रतीक बना रहा।[१८][१९] २०११ की मिस्र की क्रान्ति के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून, कैथरीन एश्टॉन, युरोपिय संघ के विदेश व रक्षा मामलों के शीर्ष प्रतिनिधि, अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन, अमेरिका की विदेशी मामलों कि संसदीय समिति के प्रमुख जॉन केरी, ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री केविन रुड, अमेरिकी फिल्म अभिनेता सीन पेन तहरीर चौक पँहुचने वाली प्रमुख हस्तियों में शुमार थे।

इज़रायल द्वारा गाज़ा की घेराबंदी को तोडने के लिए बनाए गए जहाजी बेडे (फ्रीडम फ्लोटिला II) के एक जहाज़ का नाम इसी चौक के नाम पर तहरीर रखा गया। इसके सवारियों में हारीत्ज़ अखबार की सँवाददाता अमीरा हॉस भी थीं। हालाँकि अंतत: यह बेडा रवाना नहीं हो सका।[२०]

जून २०१३ में हुए विरोध प्रदर्शन

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२९ जून २०१३ को तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी के त्यागपत्र की मांग करते हुए हज़ारों की संख्या में मिस्र वासी तहरीर चौक पर इकट्ठा हो गए। [२१][२२] वहाँ प्रदर्शनकारियों ने "लोग सत्ता परिवर्तन चाहते हैं," के नारे लगाए।[२३]
३० तारीख तक यह संख्या हज़ारों में पहुँच गई। काहिरा में २० से अधिक स्थानों पर प्रदर्शन हो रहे थे। ३ जुलाई २०१३ को सेना प्रमुख ज़नरल अब्दुल फ़तह अल-सीसी ने राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को हटा दिया और लगातार हो रहे प्रदर्शनों की वजह से मिस्र के संविधान को निरस्त कर दिया। मोर्सी के समर्थकों, अंतरराष्ट्रिय बिरादरी व मीडिया ने इसे सैन्य तख्तापलट का नाम दिया।[२४]

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

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