रुद्रम-१
रुद्रम-१ डीआरडीओ एंटी रेडिएशन मिसाइल DRDO Anti-Radiation Missile | |
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प्रकार | हवा से सतह में मार करने वाले वाली एंटी रेडिएशन मिसाइल[१] |
उत्पत्ति का मूल स्थान | साँचा:flag/core |
सेवा इतिहास | |
सेवा में | 2018 (अपेक्षित)[१][२] |
उत्पादन इतिहास | |
निर्माता | रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन |
निर्दिष्टीकरण | |
परिचालन सीमा | 100–125 किमी[१][३] |
प्रक्षेपण मंच | * सुखोई एसयू-३० एमकेआई |
रुद्रम-१ अथवा डीआरडीओ एंटी रेडिएशन मिसाइल (DRDO Anti-Radiation Missile) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा विकसित की जा रही एंटी रेडिएशन मिसाइल है। यह भारत की पहली एंटी रेडिएशन मिसाइल है। यह मिसाइल दुश्मन के राडार व ट्रांसिमट सिग्नलों को खराब कर देती है। जिससे दुसमन अपनी राडार व ट्रांसिमट सिग्नलों की क्षमता खो देता है। वर्तमान में यह टेक्नोलॉजी सिर्फ अमेरिका, रूस और जर्मनी के पास है।
विवरण
यह डीआरडीओ के रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला द्वारा विकसित एक अत्याधुनिक हवा से सतह में मार करने वाले वाली स्वदेशी एंटी रेडिएशन मिसाइल है। माना जाता है कि मिसाइल की सीमा 100-125 किलोमीटर है। और यह भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों जैसे कि सुखोई-30 एमकेआई और तेजस लाईट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट पर लगाया जाएगा।[१][३] साधक सहित पूरे मिसाइल को स्वदेशी तौर पर विकसित किया जा रहा है।[१] मिसाइल लक्ष्य को नष्ट करने के लिए पर रडार और संचार सुविधाओं और घरों के विकिरण या संकेत को उठाती है। जोर प्रणोदन के बजाय, मिसाइल बारक 8 की तरह दोहरी नाड़ी प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करता है। दोहरी नाड़ी प्रणोदन का लाभ यह है कि यह आवरण और साथ ही साथ मिसाइल की सहभागिता क्षमता को भी चौड़ा कर देगा।[१][२][३]
विकास और परीक्षण
परियोजना पर काम 2012 में शुरू हुआ।[४] भारत सरकार द्वारा परियोजना को आगे बढ़ाने के तुरंत बाद डीआरडीओ प्रयोगशालाओ में शुरू हुआ।[५]
फरवरी 2016 में, यह बताया गया कि इस वर्ष अप्रैल-मई के लिए विरोधी विकिरण मिसाइल के कैप्टिव उड़ान परीक्षण की योजना बनाई गई है। और डीआरडीओ के मिसाइल प्रौद्योगिकीविदों द्वारा साल के अंत तक प्रथम उड़ान परीक्षण की जा सकती है। डीआरडीओ के सूत्रों के मुताबिक वैज्ञानिक कैप्टिव उड़ान परीक्षणों के दौरान साधक, नेविगेशन और नियंत्रण प्रणाली, संरचनात्मक क्षमता और वायुगतिकीय कंपन के प्रदर्शन का मूल्यांकन करेंगे। इसे ग्राउंड टेस्टिंग द्वारा और वर्षीय अंत तक वास्तविक उड़ान परीक्षण के दौरान सुखोई एसयू-30 एमकेआई से मिसाइल तक किया जायेगा। कई विकासात्मक परीक्षणों के आयोजन के लगभग दो साल बाद मिसाइल को सेना में शामिल किया जाएगा।[१][२][३]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ इस तक ऊपर जायें: अ आ इ ई उ ऊ ए साँचा:cite news
- ↑ इस तक ऊपर जायें: अ आ इ साँचा:cite web
- ↑ इस तक ऊपर जायें: अ आ इ ई साँचा:cite web
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite news