ठक्कर बापा
ठक्कर बापा | |
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Born | अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर साँचा:birth date |
Died | साँचा:death date and age |
Nationality | भारतीय |
Education | L.C.E. (लाइसेन्स इन सिविल इंजीनियरिंग, आज के सिविल इंजीनियरी के स्नातक के तुल्य |
Occupation | सामजिक कर्यकर्ता |
Employer | साँचा:main other |
Organization | साँचा:main other |
Agent | साँचा:main other |
Notable work | साँचा:main other |
Opponent(s) | साँचा:main other |
Criminal charge(s) | साँचा:main other |
Spouse(s) | साँचा:main other |
Partner(s) | साँचा:main other |
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अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर (29 नवम्बर 1869 – 20 जनवरी 1951) भारत के एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होने गुजरात में जनजातीय लोगों के उत्थान के लिए कार्य किया। उन्हें प्रायः 'ठक्कर बापा' के नाम से जाना जाता है। वे भारतीय संविधान सभा के भी सदस्य थे।
वे सन १९०५ में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी के सदस्य बने। [१] सन १९२२ में उन्होने "भील सेवा मण्डल" की स्थापना की। सन १९३२ में वे महात्मा गांधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ के महासचिव बनाए गए। [२] उनके ही प्रयास से २४ अक्टूबर १९४८ को "भारतीय आदिमजाति सेवक संघ" की स्थापना की गयी। [३]
राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रश्न पर उन्होंने कहा था कि इस मसले पर मै गांधी जी का उसी तरह अनुसरण करूंगा जैसे मालिक के पीछे कुत्ता। वह गांधी जी से दो माह छोटे थे और अच्छी-भली नौकरी छोड़कर दलितों-शोषितों के उत्थान में लगे रहे। गांधीजी ने जब पूरे एक वर्ष तक अस्पृश्यता के विरुद्ध अभियान चलाया था तो इसका सुझाव ठक्कर बापा का था और इस अभियान की रूप रेखा भी ठक्कर बापा ने भी तैयार की थी। महात्मा गांधी इन्हें प्यार से ‘बापा’ कह कर पुकारते थे।
जीवन परिचय
ठक्कर बापा का जन्म 29 नवम्बर, 1869 को भावनगर (सौराष्ट्र) में हुआ था। इनका पूरा नाम अमृतलाल ठक्कर था। इनकी माता का नाम मुलीबाई और पिता का नाम विट्ठलदास ठक्कर था। उनके पिताजी एक व्यवसायी थे।
ठक्कर बापा ने 1886 में मेट्रिक परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किया था। वर्ष 1890 में पूना से सिविल इंजीनियरिंग उतीर्ण किया की। वर्ष 1890 -1900 में उन्होने काठियावाड़ राज्य में कई जगह नौकरी की। वर्ष 1900-1903 के दौरान पूर्वी अफ्रीका के युगांडा रेलवे में बतौर इंजीनियर अपनी सेवा दी। वे सांगली राज्य के मुख्य अभियन्ता (चीफ इंजीनियर) नियुक्त हुए। इसी समय आप गोपाल कृष्ण गोखले और धोंडो केशव कर्वे के सम्पर्क में आए।
जब वे मुम्बई नगरपालिका में आए तब कुर्ला में वे दलित बस्तियों में गए। यहाँ 'डिप्रेस्ड कास्ट मिशन' के रामजी शिंदे के सहयोग से उन बस्तियों में सफाईकर्मियों के बच्चों के लिए स्कूल खोला।
1914 में उन्होने नौकरी छोड़ दी और ‘सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसायटी’ से जुड़ कर पूरी तरह जन-सेवा में जुट गए। गोपाल कृष्ण गोखले ने उनकी मुलाकात गांधी जी से करवाई। वर्ष 1915-16 में ठक्कर बापा ने बाम्बे के सफाईकर्मियों के लिए को-ऑपरेटिव सोसायटी स्थापित की। इसी तरह अहमदाबाद में मजदूर बच्चों के लिए स्कूल खोला।
सन 1922-23 के अकाल में गुजरात में भीलों के बीच सेवा कार्य करते हुए आपने ‘भील सेवा मंडल’ स्थापित किया था। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान वे गिरफ्तार हुए थे। ठक्कर बापा वर्ष 1934-1937 तक ‘हरिजन सेवक संघ’ (अस्पृश्यता निवारण संघ) के महासचिव थे। वर्ष 1944 में ठक्कर बापा ने ‘कस्तूरबा गांधी नॅशनल मेमोरियल फण्ड’ की स्थापना की। इसी वर्ष इन्होने ‘गोंड सेवक संघ’ (वनवासी सेवा मंडल) की स्थापना की थी। ठक्कर बापा वर्ष 1945 में ‘महादेव देसाई मेमोरियल फण्ड’ के महासचिव बने थे।
अनुज कुमार सिन्हा ने "गांधी जी की झारखंड यात्रा" नामक अपनी पुस्तक में लिखा है कि ठक्कर बापा कुछ दिनों के लिए जमशेदपुर में भी थे और हरिजनों के लिए काम करते हुए महात्मा गांधी के सहयोगी थे।
1922 में ठक्कर बाबा ने छोटा नागपुर का दौरा किया था उस समय उनके साथ सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी पुणे के एस जी वाजे भी थे। वाजे ने ठक्कर बापा को श्रद्धाञ्जलि देते हुए उनके छोटानागपुर दौरे का जिक्र किया था। बाबा आदिवासियों के लिए बहुत सोचते थे। उसी समय उन्होंने मुंडा और उरांव जनजाति की अवस्था पर अध्ययन किया था। उन्होंने ईसाई मिशनरी के काम को भी देखा था।
गांधी जी ठक्कर बापा को कितना महत्व देते थे इस बात का प्रमाण सिर्फ एक घटना से मिल गया था। गांधी जी ने पूरे देश में हरिजनों के पक्ष में आन्दोलन चलाया। इस अभियान का आग्रह ठक्कर बापा ने ही गांधी जी से किया था। एक बार बाबा ने गांधीजी को एक पोस्टकार्ड लिखकर गांधी जी से छुआछूत प्रथा के विरोध में पूरे देश का 1 साल तक दौरा करने का आग्रह किया था। बापा को भरोसा नहीं था कि पत्र द्वारा किया गया उनका अनुरोध गांधीजी स्वीकार कर लेंगे। पोस्टकार्ड मिलते ही गांधी जी ने जवाब दिया था और बाबा को 1 साल का पूरा कार्यक्रम तय करने के लिए कह दिया।
अंतिम दिनों में बापा चाहते थे कि हरिजन सेवक संघ का काम काफी बढ़ गया है, इसलिए उन्हें इस कार्य से मुक्त कर दिया जाए, ताकि वे आदिवासियों के कल्याण के लिए कुछ कर सकें। गांधीजी ने बापा को लिखा था कि हरिजन सेवक संघ का काम मत रोकें और कुछ समय निकालकर आदिवासी कल्याण का भी काम करें। गांधीजी के आदेश को मानते हुए जीवन के अंतिम क्षणों तक उन्होंने काम किया।
समाजसेवा एवं समाजसुधार
1895 से 1900 तक जब ठक्कर बप पोरबन्दर में थे, तो उस समय भीषण अकाल पड़ा था। अकाल पीड़ितों पर से मिट्टी हटाते समय जब उन्होंने मरणासन्न अवस्था में पड़े मजदूर पति-पत्नी को जीवन के अन्तिम क्षणों में अपने तीन जीवित बच्चों को मिट्टी में गाड़ने का दुःखद दृश्य देखा, तो वे कांपकर रह गये थे। उन्होंने मिट्टी में गड़े हुए उन तीनों बच्चों को बाहर निकाला और उसके बाद तो उन्होंने मानव सेवा का जैसे संकल्प ही ले लिया। उन्होने गुजरात के अकाल-पीड़ितों के लिए न केवल धन एकत्र किया, वरन् एक भोजनालय भी खोल दिया, जिसमें 600-700 लोग प्रतिदिन भोजन करते थे ।
ठक्करबापा प्रतिदिन सुबह उठकर पूजा-पाठ से निवृत होकर भोजनालय पहुंच जाते। वे सब लोगों के भोजनोपरान्त ही भोजन करते। गांव-गांव जाकर कम्बल तथा वस्त्रों का वितरण करते। उन्होंने पाया कि शंकरपुरा गांव में तो एक महिला झोपड़ी से इसीलिए बाहर नहीं आ रही थी क्योंकि उसके तन पर एक भी वस्त्र नहीं था। भूख से पीड़ित उस महिला को देखकर ठक्करबापा का हृदय रो पड़ा। उन्होंने "भील सेवा संघ" की स्थापना की जहां आदिवासियों के लिए विद्यालय और आश्रम खोले।
सन् 1932 में वे झालौद की सीमा पर बसे एक आदिवासी ग्राम बारिया में 22 मील पैदल चलते इसलिए पहुंचे थे क्योंकि वहां के आदिवासी अपनी सारी जमा पूंजी शराब पीने में बरबाद कर देते थे । वहां जाकर उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं और विद्यार्थियों के साथ शराबबन्दी तथा अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध किया।
तख्तियों पर उन्होंने लिख रखा था: "शराब मत पियो, शराब पीने से बरबादी आयेगी, रोज नहाओ, रोज नहाने से शरीर साफ रहेगा, दाद, खुजली और नहरू नहीं निकलेंगे, जादू-टोना करने वाले ओझाओं से मत डरो, वे लुटेरे हैं, तुम्हें ठग लेंगे।"
भील सेवा सघ का कार्य करते हुए बापा ने हर बालक आश्रम के सामने जमा कूड़े-करकट को स्वयं साफ किया। यह देखकर अन्य भी उनके पीछे-पीछे हो लिये थे। टीलों के रूप में जमे हुए चूने के ढेर को स्वयं साफ किया ।
एक बार बाढ़ के समय अनाज बांटते ठक्करवापा ने 5 मील का रास्ता 7 घण्टे पैदल चलकर तय किया । 1943-44 के अकाल में तो कई गांवों में मुरदे जलाने के लिए भी लोग नहीं थे । बापा ने वहा जाकर भी भोजन, वस्त्र तथा दवाइयों का प्रबन्ध किया। रात-रात जागकर कार्य किया।
नोआखली में हरिजनों के मकानों को मुस्लिमो ने जला दिया था और हरिजनों का नरसंहार किया था। बापा ने वहां जाकर दीन-दुखियों की सहायता की। हरिजन सेवक संघ में गांधीजी के साथ सेवाकार्य में जुटे रहे। एक बार तो वे मैले कपड़ों का गट्ठर लिये बाजार से धोबी के घर तक ले आये। उनका कहना था कि सेवाकार्य में किसी भी प्रकार की हिचक नहीं होनी चाहिए ।