समाज कार्य
समाज-कार्य (social work) या समाजसेवा एक शैक्षिक एवं व्यावसायिक विधा है जो सामुदायिक सगठन एवं अन्य विधियों द्वारा लोगों एवं समूहों के जीवन-स्तर को उन्नत बनाने का प्रयत्न करता है। सामाजिक कार्य का अर्थ है सकारात्मक, और सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से लोगों और उनके सामाजिक माहौल के बीच अन्तःक्रिया प्रोत्साहित करके व्यक्तियों की क्षमताओं को बेहतर करना ताकि वे अपनी ज़िंदगी की ज़रूरतें पूरी करते हुए अपनी तकलीफ़ों को कम कर सकें। इस प्रक्रिया में समाज-कार्य लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने और उन्हें अपने ही मूल्यों की कसौटी पर खरे उतरने में सहायक होता है।
'समाजसेवा'वैयक्तिक आधार पर, समूह अथवा समुदाय में व्यक्तियों की सहायता करने की एक प्रक्रिया है, जिससे व्यक्ति अपनी सहायता स्वयं कर सके। इसके माध्यम से सेवार्थी वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में उत्पन्न अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने में सक्षम होता है। समाजसेवा अन्य सभी व्यवसायों से सर्वथा भिन्न होती है, क्योंकि समाज सेवा उन सभी सामाजिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक कारकों का निरूपण कर उसके परिप्रेक्ष्य में क्रियान्वित होती है, जो व्यक्ति एवं उसके पर्यावरण-परिवार, समुदाय तथा समाज को प्रभावित करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता पर्यावरण की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक शक्तियों के बाद व्यक्तिगत जैविकीय, भावात्मक तथा मनोवैज्ञानिक तत्वों को गतिशील अंत:क्रिया को दृष्टिगत कर ही सेवार्थी की सेवा प्रदान करता है, जैसे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर,वह सेवार्थी के जीवन के प्रत्येक पहलू तथा उसके पर्यावरण में क्रियाशील, प्रत्येक सामाजिक स्थिति से अवगत रहता है क्योंकि सेवा प्रदान करने की योजना बताते समय वह इनकी उपेक्षा नहीं कर सकता।
समाज-कार्य का अधिकांश ज्ञान समाजशास्त्रीय सिद्धांतों से लिया गया है, लेकिन समाजशास्त्र जहाँ मानव-समाज और मानव-संबंधों के सैद्धांतिक पक्ष का अध्ययन करता है, वहीं समाज-कार्य इन संबंधों में आने वाले अंतरों एवं सामाजिक परिवर्तन के कारणों की खोज क्षेत्रीय स्तर पर करने के साथ-साथ व्यक्ति के मनोसामाजिक पक्ष का भी अध्ययन करता है। समाज-कार्य करने वाले कर्त्ता का आचरण विद्वान की तरह न होकर समस्याओं में हस्तक्षेप के ज़रिये व्यक्तियों, परिवारों, छोटे समूहों या समुदायों के साथ संबंध स्थापित करने की तरफ़ उन्मुख होता है। इसके लिए समाज-कार्य का अनुशासन पूर्ण रूप से प्रशिक्षित और पेशेवर कार्यकर्ताओं पर भरोसा करता है।
परिचय
इंग्लैण्ड और संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले चर्च के माध्यम से ही जन-कल्याणकारी कार्य किये जाते थे। धीरे-धीरे स्थिति बदली और जन-सहायता को विधिक रूप प्रदान किया जाने लगा। इंग्लैण्ड में 1536 में एक कानून बना जिसमें निर्धनों की सहायता के लिए कार्य-योजना बनायी गयी। अट्ठारहवीं सदी में औद्योगिक क्रांति के बाद इंग्लैण्ड और अमेरिका में सरकारों द्वारा निर्धनों व अशक्तों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई कानूनों का निर्माण किया गया। व्यक्तियों का मनोसामाजिक पक्ष सुधारने हेतु 1869 में लंदन चैरिटी संगठन तथा अमेरिका में 1877 में चैरिटी ऑर्गनाइजेशन सोसाइटी ने पहल ली। इन संस्थाओं ने समुचित सहायता करने के लिए ज़रूरतों की पड़ताल तथा संबंधित व्यक्तियों का पंजीकरण करना प्रारम्भ किया। इस प्रक्रिया में मनोसामाजिक स्थिति सुधारने के लिए बातचीत करना एवं भौतिक सहायता को भी शामिल किया। यह एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसके ज़रिये संस्था के कार्यकर्त्ता अपने पास आये व्यक्ति अर्थात् सेवार्थी को स्वावलम्बी बनाते थे। धीरे- धीरे इस प्रक्रिया ने सुचिंतित प्रणालीबद्ध रूप ग्रहण कर लिया। 1887 में न्यूयॉर्क में कार्यकर्त्ताओं को इन कामों के लिए प्रशिक्षण देना प्रारम्भ किया गया। अमेरिका में इस प्रकार के प्रशिक्षण हेतु 1910 में दो वर्ष का पाठ्यक्रम शुरू हुआ।
भारत में भी समाज-कल्याण हेतु राजाओं द्वारा दान देने का चलन था, यज्ञ करवाये जाते थे एवं धर्मशालाओं इत्यादि का निर्माण होता था। अट्ठारहवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप होने वाले सुधार कार्यक्रमों ने भारतीय जनमानस को प्रभावित किया और ईश्वरचंद विद्यासागर तथा राजा राममोहन राय वग़ैरह के प्रयासों द्वारा विधवा विवाह प्रारम्भ हुआ और सती प्रथा पर रोक लगी। इसके अतिरिक्त गोपाल कृष्ण गोखले, एनी बेसेंट आदि ने भारत में आधुनिक समाज सुधारों को नयी दिशा दी। 1905 में गोखले ने सर्वेंट्स ऑफ़ इण्डिया की स्थापना करके स्नातकों को समाज सेवा के लिए प्रशिक्षण देना प्रारम्भ किया। इन प्रशिक्षुओं को वेतन भी दिया जाता था। इस तरह इंग्लैण्ड, अमेरिका तथा भारत में समाज-कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु समाज-कार्य की नींव पड़ी जिसके तहत सामाजिक कार्यकर्त्ता व्यक्ति की पूर्ण सहायता हेतु प्रशिक्षण प्राप्त करता है। 1936 में भारत में समाज-कार्य के शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु बम्बई में सर दोराब जी टाटा ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ सोशल वर्क की स्थापना हुई। आज देश में सौ से भी अधिक संस्थानों में समाज-कार्य की शिक्षा दी जाती है। समाज-कार्यकर्ता केवल उन्हीं को कहा जाता है जिन्होंने समाज-कार्य की पूरी तरह से पेशेवर शिक्षा प्राप्त की हो, न कि उन्हें जो स्वैच्छिक रूप से समाज कल्याण का कार्य करते हैं। स्वैच्छिक समाज- कल्याण के प्रयासों को समाज-सेवा की संज्ञा दी जाती है और इन गतिविधियों में लगे लोग समाज-सेवी कहलाते हैं।
1926 में एलिस चेनी ने समाज-कार्य की गतिविधि परिभाषित करते हुए कहा कि इसके तहत ऐसी आवश्यकताओं, जो सामाजिक संबंधों से संबंधित हैं तथा जो वैज्ञानिक ज्ञान एवं ढंगों का उपयोग करती हैं, के संदर्भ में लाभ प्रदान करने के सभी ऐच्छिक प्रयास सम्मिलित हैं। इसके पश्चात् कई विद्वानों ने समाज-कार्य को अपने-अपने शब्दों में परिभाषित करने का प्रयास किया। जुलाई, 2000 में अंतर्राष्ट्रीय फ़ेडेरशन ऑफ़ सोशल वर्क ने समाज-कार्य की नवीनतम परिभाषा देते हुए कहा कि समाज-कार्य का काम सामाजिक परिवर्तन, मानव-संबंधों में समस्या समाधान, व्यक्तियों के सशक्तीकरण और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। मानव-व्यवहार एवं सामाजिक व्यवस्था के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए समाज-कार्य उस बिंदु पर हस्तक्षेप करता है जहाँ व्यक्ति अपने पर्यावरण के साथ अंतःक्रिया करते हैं। मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांत समाज-कार्य के लिए बुनियादी महत्त्व के हैं। अतः कहा जा सकता है कि समाज-कार्य व्यक्ति के सामाजिक पर्यावरण से तारतम्य स्थापित करने के प्रयास का नाम है। वह ध्यान रखता है कि यदि इस पर्यावरण से व्यक्ति का सामंजस्य स्थापित नहीं होता, तो समाज टूटने की स्थिति में पहुँच जाएगा। आजकल समाज-कार्य के कार्यक्षेत्र में बहुत वृद्धि हो चुकी है। अब वह व्यक्ति के प्राकृतिक और भौतिक पर्यावरण में होने वाली समस्याओं के निराकरण में भी हस्तक्षेप करता है।
समाज-कार्य के तहत व्यावसायिक दृष्टि से विकसित छह प्रणालियों के माध्यम से लोगों की मदद की जाती है। ये हैं : सामाजिक वैयक्तिक कार्य, समूह समाज-कार्य, सामुदायिक संगठन, समाज-कल्याण प्रशासन, समाज-कार्य शोध और सामाजिक क्रिया।
सामाजिक वैयक्तिक कार्य के तहत एक समय में केवल एक व्यक्ति ही सेवा-कार्य का केंद्र होता है। इसमें व्यक्ति की आंतरिक एवं बाहरी क्षमताओं का पता लगाकर उसका उसके पर्यावरण से समायोजन स्थापित कराया जाता है। समूह समाज-कार्य में व्यक्ति की सहायता समूह के माध्यम से की जाती है। हालाँकि समूह-कार्य एक प्राचीन विधा होने के बावजूद इसे व्यावसायिकता के प्रतिमानों पर विकसित करके नयी तकनीक से सम्पन्न किया गया है। इसमें समूह में लोकतांत्रिक गुणों का विकास कर नेतृत्व तैयार किया जाता है ताकि समूह के सदस्य अपनी समस्याओं का समाधान लोकतांत्रिक तरीके से कर सकें। समूह-कार्यकर्त्ता संस्था के माध्यम से समूह का विकास विभिन्न स्तरों पर करता है। वह सदस्यों में मैं के बजाय हम की भावना का विकास करता है। सामुदायिक संगठन एक प्रक्रिया है जिसका तात्पर्य किसी समुदाय या समूह में लोगों द्वारा आपस में मिल कर कल्याण कार्यों की योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करना है। समुदाय एक नगर का, क्षेत्र का या पूरा नगर, राज्य, देश या सभी कुछ हो सकता है। समाज-कार्यकर्त्ता समुदाय को संसाधनों की खोज़ करने में सहायता करता है एवं समस्या विशेष के समाधान हेतु उनका मार्गदर्शन करता है। समाज-कल्याण प्रशासन का तात्पर्य ऐसी प्रक्रिया से है जिसके तहत समाज कल्याण क्षेत्र की सार्वजनिक और निजी संस्थाओं का संगठन एवं उनका प्रबंधन किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक विकास हेतु लोकतांत्रिक नियोजन द्वारा कल्याणकारी समाज की स्थापना करना है। समाज-कल्याण प्रशासक न केवल संस्था के कार्यों को सम्पादित करता है बल्कि वह संस्थाओं को निरंतर उन्नति की दिशा में बढ़ाने का प्रयास करता है। समाज-कार्य शोध किसी भी संबंधित समस्या के पीछे छिपे कारणों का पता लगता है और फिर उनका समाधान प्रस्तुत करता है। समाज- कार्य शोध एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से समाज-कार्य की प्रणालियों का परीक्षण के तौर पर प्रयोग किया जाता है। परीक्षण सफल होने पर वह नज़ीर बनता है और भविष्य में समस्या विशेष हेतु उसी प्रणाली विशेष का उपयोग किया जाता है। जहाँ समाजशास्त्रीय शोध मात्र समस्या के कारणों की खोज करता है वहाँ समाज-कार्य शोध कारणों की खोज़ के साथ-साथ उनका निरोधात्मक और सुधारात्मक समाधान भी प्रस्तुत करता है। सामाजिक क्रिया के तहत आवश्यकतानुसार सामाजिक संस्थाओं, परिस्थितिओं तथा सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने का प्रयास करने के साथ ही साथ अवांछित परिवर्तन रोकने का प्रयास भी किया जाता है। सामाजिक क्रिया का उद्देश्य सामाजिक उन्नति, सामाजिक परिवर्तनों का सूत्रपात, सामाजिक विधानों तथा समाज कल्याण संबंधी नीतियों के निर्माण में सहयोग देना है। सामाजिक क्रिया के अंतर्गत उठाया गया कोई भी कदम मानवीय और व्यावसायिक मूल्यों पर आधारित होता है।
समाज-कार्य को इसलिए एक व्यवसाय की संज्ञा दी जाती है क्योंकि वह मुख्यतः यह एक व्यवस्थित और क्रमबद्ध ज्ञान आधारित है। इसकी अपनी कुछ विशेष प्रणालियाँ, प्रविधियाँ तथा यंत्र हैं। विश्व भर में इसके शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु संस्थानों की स्थापना हो चुकी है और निरंतर इनमें वृद्धि हो रही है। समाज-कार्य के विकास के साथ-साथ इसके व्यावसायिक संगठन भी बन रहे हैं, जिनसे इसका स्तर ऊँचा उठ रहा है। समाज-कार्य एक व्यवसाय के रूप में सरकार द्वारा अनुमोदित है। इसकी एक निश्चित आचार संहिता है जिसका पालन सभी कार्यकर्ताओं के लिए बहुत आवश्यक है। समाज-कार्य भी समाज-विज्ञान है परन्तु इसकी प्रकृति अन्य विषयों से भिन्न है। इसकी विशेषताएँ ही इसे अन्य समाज-विज्ञानों से अलग करती है। समाज-कार्य प्रभावपूर्ण सामाजिक क्रिया एवं सामाजिक अनुकूलन के मार्ग में आने वाली सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से समाधान प्रस्तुत करता है।
उद्देश्य
समाजसेवा का उद्देश्य व्यक्तियों, समूहों और समुदायों का अधिकतम हितसाधन होता है। अत: सामाजिक कार्यकर्ता सेवार्थी को उसकी समस्याओं का समाधान करने में सक्षम बनाने के साथ उसके पर्यावरण में अपेक्षित सुधार लाने का प्रयास करता है और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के निमित्त सेवार्थी की क्षमता तथा पर्यावरण की रचनात्मक शक्तियों का प्रयोग करता है। समाजसेवा सेवार्थी तथा उसके पर्यावरण के हितों में सामजस्य स्थापित करने का प्रयास करती है।
समाजसेवा का वर्तमान स्वरूप निम्नलिखित जनतांत्रिक मूल्यों के आधार पर निर्मित हुआ है :
(1) व्यक्ति की अंतनिर्हित क्षमता, समग्रता एवं गरिमा में विश्वास-समाजसेवा सेवार्थी की परिवर्तन और प्रगति की क्षमता में विश्वास करती है।
(2) स्वनिर्णय का अधिकार - सामाजिक कार्यकर्ता सेवार्थी को अपनी आवश्यकताओं और उनकी पूर्ति की योजना के निर्धारण की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है। निस्संदेह कार्यकर्ता सेवार्थी को स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में सहायता करता है जिससे वह वास्तविकता को स्वीकार कर लक्ष्यप्राप्ति की दिशा में उन्मुख हो।
(3) अवसर की समानता में विश्वास - समाज सेवा सबको समान रूप से उपलब्ध रहती है और सभी प्रकार के पक्षपातों और पूर्वाग्रहों से मुक्त कार्यकर्तासमूह अथवा समुदाय के सभी सदस्यों को उनकी क्षमता और आवश्यकता के अनुरूप सहायता प्रदान करता है।
(4) व्यक्तिगत अधिकारों एवं सामाजिक उत्तरदायित्वों में अंतः सम्बन्ध् व्यक्ति के स्वनिर्णय एवं समान अवसरप्राप्ति के अधिकार, उसके परिवार, समूह एवं समाज के प्रति उसके उत्तरदायित्व से संबंद्ध होते हैं। अत: सामाजिक कार्यकर्ता व्यक्ति की अभिवृत्तियों एवं समूह तथा समुदाय के सदस्यों की अंत:क्रियाओं, व्यवहारों तथा उनके लक्ष्यों के निर्धारण को इस प्रकार निदेशित करता है कि उनके हित के साथ उनके बृहद् समाज का भी हितसाधन हो।
समाजसेवा इस प्रयोजन के निमित्त स्थापित विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से वहाँ नियुक्त प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदान की जाती है। कार्यकर्ताओं का ज्ञान, अनुभव, व्यक्तिगत कुशलता एक सेवा करने की उनकी मनोवृत्ति सेवा के स्तर की निर्धारक होती है। कार्यकर्ता में व्यक्तिविकास की संपूर्ण प्रक्रिया एवं मानव व्यवहार तथा समूह व्यवहार की गतिशीलता तथा उनके निर्धारक तत्वों का सम्यक् ज्ञान समाजसेवा की प्रथम अनिवार्यता है। इस प्रकार ज्ञान पर आधारित समाजसेवा व्यक्ति की समूहों अथवा समुदाय की सहज योग्यताओं तथा सर्जनात्मक शक्तियों को उन्मुक्त एवं विकसित कर स्वनिर्धारित लक्ष्य की दिशा में क्रियाशील बनती है, जिससे वे अपनी संवेगात्मक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक, एवं सामाजिक समस्याओं का समाधान ढूँढने में स्वयं सक्रिय रूप से प्रवृत्त होते हैं। सेवार्थी अपनी दुर्बलताओं-कुंठा, नैराश्य, हीनता, असहायता एवं असंपृक्तता की भावग्रंथियों और मानसिक तनाव, द्वंद्व तथा विद्वेषजनित आक्रमणात्मक मनोवृत्तियों का परित्याग कर कार्यकर्ता के साथ किस सीमा तक सहयोग करता है, यह कार्यकर्ता और सेवार्थ के मध्य स्थापित संबंध पर निर्भर करता है। यदि सेवाथीं समूह या समुदाय है तो लक्ष्यप्राप्ति में उसके सदस्यों के मध्य वर्तमान संबंध का विशेष महत्व होता है। समाजसेवा में संबंध ही संपूर्ण सहायता का आधार है और यह व्यावसायिक संबंध सदैव साभिप्रय होता है।
प्रकार
समाजसेवा के तीन प्रकार होते हैं-
(1) वैयक्तिक समाजसेवा - इस प्रक्रिया के माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की सहायता वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में उत्पन्न उसकी कतिपय समस्याओं के समाधान के लिए करता है जिसमें वह समाज द्वारा स्वीकार्य संतोषपूर्ण जीवन व्यतीत कर सके।
(2) सामूहिक समाजसेवा - एक विधि है जिसके माध्यम से किसी सामाजिक समूह के सदस्यों की सहायता एक कार्यकर्ता द्वारा की जाती है, जो समूह के कार्यक्रमों और उसके सदस्यों की अंत:क्रियाओं को निर्देशित करता है। जिससे वे व्यक्ति की प्रगति एवं समूह के लक्ष्यों की प्राप्ति में योगदान कर सकें।
(3) सामुदायिक संगठन - वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक संगठनकर्ता की सहायता से एक समुदाय के सदस्य को समुदाय और लक्ष्यों से अवगत होकर, उपलब्ध साधनों द्वारा उनकी पूर्ति आवश्यताओं के निमित्त सामूहिक एवं संगठित प्रयास करते हैं।
इस प्रकार समस्त सेवा की तीनों विधियों का लक्ष्य व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति है। उनकी सहायता इस प्रकार की जाती है कि वे अपनी आवश्यकताओं, व्यक्तिगत क्षमता तथा प्राप्य साधनों से भली-भाँति अवगत होकर प्रगति कर सके तथा स्वस्थ समाज व्यवस्था के निर्माण में सहायक हों।
भारत के प्रमुख समाजसेवी
समाजसेवा करने वाले व्यक्तियों को समाजसेवी अथवा सामाजिक कार्यकर्ता कहा जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता व्यक्ति एवं अन्य जीव जन्तुओं के हित के लिए कार्य करते हैं। वे मानव अधिकारों एवं उसकी उन्नति के लिए कार्य करते हैं। कुछ भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता निम्न है:-
- महात्मा गाँधी
- डॉ भीम राव अंबेडकर
- महात्मा ज्योतिराव फ़ुले
- अण्णा हजारे
- बाबा आम्टे
- विनोबा भावे
- सुंदरलाल बहुगुणा
- मेधा पाटकर