ज्योतिप्रसाद आगरवाला
ज्योतिप्रसाद आगरवाला | |
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Born | साँचा:birth date तामुलबरी चाय बागान, बंगाल प्रेसीडेन्सी |
Died | 17 January 1951साँचा:age) | (उम्र
Nationality | भारतीय |
Other names | 'रूपकुंवर' |
Occupation | फिल्म निर्मता, निर्देशक, संगीतकार, कवि, नाटककार, लेखक |
Years active | 1932–1951 |
Employer | साँचा:main other |
Organization | साँचा:main other |
Agent | साँचा:main other |
Notable work | साँचा:main other |
Opponent(s) | साँचा:main other |
Criminal charge(s) | साँचा:main other |
Spouse(s) | देवजानी भुयानसाँचा:main other |
Partner(s) | साँचा:main other |
Children | 7 |
Parent(s) | स्क्रिप्ट त्रुटि: "list" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main other |
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रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद आगरवाला (17 जून 1903 – 17 जनवरी 1951) एक बहुआयामी और विलक्षण प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। उनकी महानता, लोकप्रियता और व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हुए राज्य की एक लोकप्रिय पत्रिका ने एक हजार साल के दस 'सर्वश्रेष्ठ असमिया' में उन्हें भी स्थान दिया है। ज्योतिप्रसाद का शुभ आगमन उस सन्धिक्षण में हुआ जब असमिया संस्कृति तथा सभ्यता अपने मूल रूप से विछिन्न होती जा रही थी। प्रगतिशील विश्व की साहित्यिक और सांस्कृ्तिक धारा से असम का प्रत्यक्ष संपर्क नहीं रह गया था। यहां का बुद्धिजीवी वर्ग अपने को उपेक्षित समक्षकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो रहा था। उन दिनों भारतीय साहित्य, संस्कृति, कला और विज्ञान आदि क्षेत्रों में एक अभिनव परिवर्तन आने लगा था, परन्तु असम ऐसे परिवर्तन से लाभ उठाने में अक्षम हो रहा था। इसी काल में ज्योति प्रसाद ने अपनी प्रतिभा से, असम की जनता को नई दृष्टि देकर विश्व के मानचित्र पर असम के संस्कृ्ति को उजागर कर एक ऎसा कार्य कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी उन दिनों कोई नहीं कर सकता था।
जिन महानुभावों के अथक प्रयासों से असम ने आधुनिक शिल्प-कला, साहित्य आदि के क्षेत्र में प्रगति की है, उनमें सबसे पहले ज्योतिप्रसाद का ही नाम गिनाया जायेगा। सबसे दिलचस्प बात यह है कि मारवाड़ी समाज से कहीं ज्यादा असमिया समाज उन्हें अपना मानता है। "रूपकुंवर" के सम्बोधन से ऎसा मह्सूस होता है कि यह किसी नाम की संज्ञा हो, यह शब्द असमिया समाज की तरफ से दिया गया सबसे बड़ा सम्मान का सूचक है जो असम के अन्य किसी भी साहित्यकार को न तो मिला है और न ही अब मिलेगा।
अठारहवीं शताब्दी में राजस्थान के जयपुर रियासत के अन्तर्गत "केड़" नामक छोटा सा गांव (वर्तमान में झूंझूंणू जिला) जहां से आकर इनके पूर्वज - केशराम, कपूरचंद, चानमल, घासीराम 'केडिया' किसी कारणवस राजस्थान के ही दूसरे गांव 'गट्टा' आकर बस गये, फिर वहां से 'टांई' में अपनी बुआ के पास बस गये और वाणिज्य-व्यापार करने लगे। सन् 1820-21 के आसपास यह परिवार चूरू आया। परिवार में कुल 4 प्राणी - 10 वर्ष का बालक नवरंगराम, माता व दो छोटे भाई, पिता का साया सर से उठ चुका था। बालक नवरंगराम की उम्र जब 15-16 साल की थी तब उन्हें परदेश जाकर कुछ कमाने की सूक्षी सन् 1827-28 में ये कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, बंगाल होते हुये असम में विश्वनाथ चारिआली नामक स्थान पर बस गये और रतनगढ़ के एक फर्म 'नवरंगराम रामदयाल पोद्दार' के यहां बतौर मुनिम नौकरी की। सन् 1932-33 के आसपास नौकरी छोड़कर " गमीरी " नामक स्थान पर आ अपना निजी व्यवसाय आरंभ कर दिये और यहीं अपना घर-बार बसा कर स्थानिय असमिया परिवार में कुलुक राजखोवा की बहन सादरी से विवाह कर लिया। सादरी की अकाल मृ्त्यु हो जाने के पश्चात उन्होंने पुनः दूसरा विवाह कलंगपुर के चारखोलिया गांव के लक्ष्मीकांत सैकिया की बहन सोनपाही से किया। सादरी से दो पुत्र - हरिविलास (बीपीराम) एवं थानुराम तथा सोनपाही से काशीराम प्राप्त हुये। हरिविलास धार्मिक प्रवृ्ति के व्यक्ति थे। इन्होंने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी थी जो असमिया साहित्य में एक मूल्यवान दस्तावेज के रूप में मौजूद है।
उनके 5 पुत्र हुए- विष्णुप्रसाद, चंद्रकुमार, परमानंद, कृ्ष्णाप्रसाद तथा गोपालचंद्र। चंद्रकुमार अगरवाला असमीया साहित्य में ' जोनाकी" युग के प्रमुख तीन कवियों में से एक माने जाते हैं। काशीराम के पुत्र आनन्दचन्द्र अगरवाल भी असमिया साहित्य में अमर कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। और "रूपकंवर" प्रसिद्ध संगीतज्ञ के पुत्र हैं। ज्योतिप्रसाद का जन्म 17 जून 1903 को डिब्रुगढ़ जिले में स्थित तामुलबारी चायबागान में हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी ज्योतिप्रसाद अगरवाल न सिर्फ एक नाटककार, कथाकार, गीतकार, पत्र संपादक, संगीतकार तथा गायक सभी कुछ थे। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही 'शोणित कुंवरी' नाटक की रचना कर आपने असमिया साहित्य को समृ्द्ध कर दिया। 1935 में असमिया साहित्यकार लक्ष्मीकांत बेजबरूआ के ऎतिहासिक नाटक ' ज्योमति कुंवारी' को आधार मानकर प्रथम असमिया फिल्म बनाई। वे इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक, पटकथाकार, सेट डिजाइनर, संगीत तथा नृ्त्य निर्देशक सभी कुछ थे। ज्योति प्रसाद ने दो सहयोगियों बोडो कला गुरु विष्णु प्रसाद सभा (1909-69) और फणि शर्मा (1909-69) के साथ असमिया जन-संस्कृ्ति को नई चेतना दी। यह असमिया जातिय इतिहास का स्वर्ण युग है। ज्योतिप्रसाद की संपूर्ण रचनाएं असम की सरकारी प्रकाशन संस्था ने चार खंडों में प्रकाशित की है। उनमें 10 नाटक और लगभग अतनी ही कहानियां, एक उपन्यास,20 से ऊपर निबंध, तथा 359 गीतों का संकल्न है। जिनमें प्रायः सभी असमिया भाषा में लिखे गये हैं तीन-चार गीत हिन्दी और कुछ अंग्रेजी मे नाटक भी लिखे गये हैं। असम सरकार प्रत्येक वर्ष 17 जनवरी को ज्योतिप्रसाद की पुण्यतिथि को शिल्पी दिवश के रूप में मनाती है। इस दिन पूरे असम प्रदेश में सार्वजनिक छुट्टी रहती है। सरकारी प्रायोजनों के अतिरिक्त शिक्षण संस्थाओं में बड़े उत्साह से कार्यक्रम पेश किये जाते हैं। जगह- जगह प्रभात फेरियां निकाली जाती है, साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित की जाती है। आजादी की लड़ाई में ज्योतिप्रसाद के योगदानों की चर्चा नहीं की जाय तो यह लेख अधुरा रह जायेगा इसके लिये सिर्फ इतना ही लिखना काफी होगा कि आजादी की लड़ाई में जमुनालाल बजाज के पहले इनके योगदानों को लिखा जाना चाहिये था। अपने जीवन के अंतिम दिनों तक आपने नाटक, गीत, कविता, जीवनी, शिशु कविता, चित्रनाट्य, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि के माध्यम से असमिया भाषा- साहित्य और संस्कृ्ति में अतुलनीय योगदान देकर खुद तो अमर हो गये साथ ही मारवाड़ी समाज को भी अमर कर गये।
असम के एक कवि शंकरलाल पारीक ने अपने शब्दों में इस प्रकार पिरोया है रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद अग्रवाला को :
- असम मातृ के आंगन में, जन्म हुआ ध्रुव-तारे का;
- नाम था उसका 'ज्योतिप्रसाद'
- यथा नाम तथा गुण का, था उसमें सच्चा प्रकाश
- जान गया जग उसको सारा
- गीत रचे और गाये उसने, नाटक के पात्र बनाये उसने; जन-जन तक पहुंचाये उसने,
- स्वतंत्रता की लड़ी लड़ाई, घर-घर अलख जगाई
- असम की माटी की गंध में, फूलों की सुगंध में
- लोहित की बहती धारा की कल-कल में, रचा-बसा है नाम 'ज्योति' का
- असम संस्कृ्ति को महकाने वाला, आजादी का बिगुल बजाने वाला।
साहित्य रचना
गल्प
- रूपही
- बगीतरा
- सोणतरा
- सोणटिर अभिमान
- युँजारु
- सतीर सोँवरणि
- सन्ध्या
- शिलाकुटि
- नीलाचराइ आदि।
कविता
उपन्यास
- आमार गाँओ
अन्यान्य ग्रन्थ
- ज्योतिर्धारा[१]
- चन्द्रकुमार आगरवाला[१]
- Background of Assamese Architecture
शिशु-साहित्य
कला-संस्कृति में योगदान
चलचित्र
ज्योतिप्रसाद आगरवाला को असमीया चलचित का जनक कहा जाता है।[२]
- जयमती (१९३५)
- इन्द्रमालती (१९३९)
गीत
ज्योतिप्रसाद ने प्रायः ३०० मान गीतों की रचना करके उन्हें स्वयं संगीतबद्ध किया। इनको ही ज्योति संगीत कहा जाता है।
नाटक
- सम्पूर्ण नाटक
- शोणित कुँवरी (१९२५)[१]
- कारेङर लिगिरी (१९३o)
- लभिता (१९४८)
- रूपालीम (१९३८)
- निमाती कइना (१९६४)
- खनिकर (१९७७)
- असम्पूर्ण नाटक
- कनकलता
- सुन्दरकुंवर
- सोणपखिली
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;Bhushan2005
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ साँचा:cite web