ज़िन्द कौल

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ज़िन्द कौल
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ज़िन्द कौल (1884-1965) भारतीय कवि, लेखक और शिक्षक थे। उन्होंने पारसी, हिन्दी, उर्दू और कश्मीरी में रचनाएँ की।[१] कौल ने कश्मीरी कार्यों का पारसी, अंग्रेज़ी और देवनागरी में अनुवाद भी किया। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह सुमरन के लिये उन्हें सन् १९५६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कश्मीरी) से सम्मानित किया गया।[२]

व्यक्तिगत जीवन

ज़िन्द कौल को उनके शिष्यों और दोस्तों में मास्टरजी के नाम से भी जाना जाता था।[३] उनको यह नाम इसलिए मिला क्योंकि वो विद्यालय और घर में बहुत कश्मीरियों को पढ़ाया करते थे।

कौल का जन्म कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। उनके पिता लक्ष्मण पंडित उनकी अनौपचारिक शिक्षा के प्रति तटस्थ थे और कौल को जीवन में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वो एक लम्बे समय के लिए विद्यालय शिक्षक थे। उसके बाद, उन्होंने एक लिपिक के रूप में कार्य किया। सन् 1939 में कौल कश्मीर प्रचार कार्यालय से एक अनुवादक के रूप में सेवानिवृत हुए।[३] उनका १९६५ में जम्मू में निधन हुआ।

साहित्यिक कार्य

ज़िन्द कौल प्रथम कश्मीरी हैं जिन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता, उन्हें सुमरन नामक कविता संकलन पुस्तक की रचना के लिए वर्ष 1956 में यह पुरस्कार मिला।[४] इसका प्रथम संस्करण देवनागरी में प्रकाशित हुआ और बाद में सरकार ने इसे पारसी-अरबी लीपियों में छपवाया। साहित्य अकादमी ने कौल को इस पुस्तक के लिए पुरस्कार राशी ₹ 500 दिये।

कौल ने शुरु में पारसी, हिन्दी और उर्दू में लिखा। उनकी प्रथम कविता यूनिटी एण्ड सेमपैथी (Unity and Sympathy) थी जिसकी रचना 1896 में की और इसे श्रीनगर में सनातन धर्म सभा में सुनाया।[५] मास्टरजी ने 1942 में कश्मीरी में लेखन आरम्भ कर दिया।[३] उन्होंने अपनी कश्मीरी कविताओं में प्रारम्भ में भक्ति, दर्शन और शान्ति गीत लिखे।[६] मास्टरजी की कविताएँ सभी चार भाषाओं में प्रकाशित हुई। यद्यपि उन्होंने कश्मीरी लेखने में नाम कमाया।

अनुवाद

ज़िन्द कौल ने रहस्यवादी कश्मीरी लेखक और कवि नन्द राम परमानन्द के सभी तीन भागों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया।[७]

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ