जटावर्मन् वीर पांड्य प्रथम
जटावर्मन् वीर पांड्य प्रथम (१२५३ - १२७५ ई.) ने प्रसिद्ध पांड्य नरेश जटावर्मन् सुंदर प्रथम (१२५१-१२६८ ई.) के राज्यकाल में दीर्घकाल तक संयुक्त उपराजा की भाँति राज्य किया। मारवर्मन् कुलशेखर प्रथम (१२६८-१३१०) भी वीर पांड्य के साथ पहले संयुक्त उपराजा और बाद में प्रमुख शासक के रूप मे सम्बंधित था।
वीर पांड्य के कुछ अभिलेख कांचीपुरम् और कोयंबटूर से भी उपलब्ध हुए हैं, लेकिन प्राय: वे तिन्नेवेल्लि, मथुरा, रामनाड और पुदुक्कोट्टै में मिलते हैं। उसके अभिलेखों में भी उल्लिखित हैं जिससे संभावना है कि उसने सुंदर पांड्य के राज्यकाल में उसकी ओर से अनेक अभियानों में भाग लिया। उसके अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उसने कोंगु, चोल और लंका की विजय की; वडुग लोगों की पहाड़ी को नष्ट किया, गंगा और कावेरी के तट पर अधिकार किया, वल्लान् को पराजित किया और चिंदबरम् में पड़ाव डाला जहाँ उसने काडव से कर वसूल किया और उसका अभिषेक हुआ। इन उल्लेखों में से कई का रूप स्पस्ट नही है। लंका पर आक्रमण उसने लंका के एक मंत्री की प्रार्थना पर ही किया था। लंका के राजकुमार को पराजित कर और मारकर उसने दूसरे राजकुमार और मलय प्रायद्वीप के चंद्रभानु के एक पत्र को अपनी अधीनता स्वीकार करने पर बाध्य किया। उसके अभिलेखों से तत्कालीन शासनव्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है, यथा, न्यायव्यवस्था और फाल द्वारा परीक्षा, सभा के भूमिप्रबंध और कर संबंधी अधिकार और कार्य, तथा प्रचलित सिक्के।