जटावर्मन् वीर पांड्य द्वितीय
जटावर्मन् वीर पाण्ड्य द्वितीय मारवर्मन् कुलशेखर पांड्य का अनौरस (illegitimate) किंतु प्रिय रानी का पुत्र था। मारवर्मन् कुलशेखर ने उसे अपने शासन के अंतिम वर्षों में १२९६ ई. से शासन में संयोजित किया था और संभवत: यह प्रकट किया था कि यही राज्य का भावी अधिकारी है। यह बात उसके ज्येष्ठ और औरस पुत्र जटावर्मन् सुंदर पांड्य तृतीय की बुरी लगी। उसने अपने पिता की हत्या करके १३१० ई में सिंहासन पर बलात् अधिकार कर लिया। किंतु वीर पांड्य ने उसे पराजित कर मदुरा छोड़ने पर विवश किया। सुंदर पांड्य ने अलाउद्दीन खिलजी अथवा मलिक काफूर से सहायता के लिये प्रार्थना की। वीर पांड्य ने होयसल नरेश वल्लाल तृतीय की, मलिक काफूर के विरुद्ध सहायता करके मलिक काफूर को अप्रसन्न कर दिया। किंतु यह सब जो बहाने मात्र थे। वीर वल्लाल ने काफूर की अधीनता स्वीकार कर उसकी आक्रमणकारी सेना की सहायता की। किंतु वीर पांड्य और सुंदर पांड्य ने आपसी कलह भूलकर आक्रमणकारी का विरोध किया और बिना खुलकर युद्ध किए उसे परेशान किया। काफूर ने वीर पांड्य की राजधानी वीरधूल पर आक्रमण किया। मुसलमानों का अधिकार होने से पहले ही वीर पांड्य कंदूर भाग गया। काफूर, वीर पांड्य की राजधानी मदुरा पर आक्रमण करता हुआ दिल्ली लौट गया। उसके लौटते ही वीर पांड्य और सुंदर पांड्य का कलह फिर आरंभ हो गया। मुसमलमानों ने सुंदर पांड्य की पूरी सहायता नहीं की। इसी समय परिस्थिति का लाभ उठाकर केरल के शासक रविवर्मन् कुलशेखर ने पांड्यदेश पर आक्रमण कर कांची तक अधिकार कर लिया। वीर पांड्य उससे मिल गया। काकतीय नरेश प्रतापरुद्र द्वितीय ने सुदंर पांड्य के पक्ष में रविवर्मन् कुलशेखर और वीर पांड्य का पराजित किया और सुंदर पांड्य को बीरधूल के सिंहासन पर बैठाया। इसी समय खुसरों का आक्रमण हुआ जिसे कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली। इन आक्रमणों से वीर पांड्य की शक्ति क्षीण तो अवश्य ही हुई किंतु पांड्य देश के बड़े भूभाग पर उसका अधिकार बाद तक बना रह। उसके राज्यकाल के ४६वें वर्ष (१३४१ ई.) के अभिलेख भी उपलब्ध होते हैं।