छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल
साँचा:ambox काँकेर का प्राचीन नाम शीला व तामपत्र लेखों में काकरय, काकैर्य, कंकर व काँकेर अंकित है। कुछ विद्वानों का मत है कि प्राचीन समय में कांकेर कंकर ऋषि, श्रृंगी ऋषी, कांकेर नगर के मध्य में दूधनदी प्रवाहित होती है। इस नगर के दक्षिण में स्थित मढ़ियापहाड़ पुरातात्विक महत्त्व लिए हुये हैं। पहाड़ के ऊपर पत्थरों से निर्मित सिंहद्वार व किला यहां के समृद्ध इतिहास की एक झलक दिखाते हैं।
दुर्ग जिला
राजधानी रायपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर,जिला दुर्ग से 10 किलोमीटर दूर स्थित भिलाई एक औद्योगिक नगरी है। देश का पहला सार्वजनिक इस्पात कारखाना अपनी उन्नत तकनीकी, कौशल व उपकरणों के कारण विशेष दर्शनीय है। भिलाई में 100 एकड़ में एक अत्यन्त सुन्दर उद्यान व चिड़िया घर मैत्रीबाग पर्यटकों को रोमांचित करता है।
दुर्ग जिले में बालोद के पास बना विशाल बांध है। जिसका निर्माण तान्दुला नदी पर हुआ है। यहाँ पर लोग एक पिकनिक स्पॉट की तरह घूमने आते है।
बिलासपुर
बिलासपुर जिले में स्थित पुरातात्विक महत्त्व का यह ग्राम है। उत्खनन से प्राप्त देउरी मन्दिर, पातालेश्वरी मन्दिर, डिंडेश्वरी मन्दिर यहां पर उल्लेखनीय हैं। देश की प्राचीनतम चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा भी यहां देखने को मिलती है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख पुरातात्विक स्थल में से एक तालाग्राम बिलासपुर से 30किलोमीटर दूर मनियारी नदी के तट पर अवस्थित है। देवरानी-जेठानी मन्दिर के अलावा यहां विष्णु की एक विलक्षण प्रतिमा प्राप्त हुई है, जिसके प्रत्येक अंग में जलचर, नभचर व थलचर प्राणियों को दर्शाया गया है।
बिलासपुर से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर खारंग नदी पर बना विशाल बांध है। जिसके बीचो-बीच एक टापू स्थित है। यह एक पिकनिक स्थल है।
सरगुजा जिला
इसे छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। यह सरगुजा जिले में स्थित एक पठार है। यह प्राकृतिक रूप से अत्यधिक समृद्ध है। तिब्बती शरणार्थियों के एक बड़े समुदाय को यहां सन् 1962 में बसाया गया है।
सरगुजा जिले में स्थित चांग-भखार कलचुरी व चौहानकालीन मठों व मन्दिर के पुरावशेषों के लिए प्रसिद्ध है।
जशपुर जिला
यह जशपुर जिला के फरसाबहार ब्लाक में आता है यह ओडिशा की सिमा से लगा है यह ईब नदी के िकनारे में स्थित है।
अन्य स्थल
सेतगंगा भारत के छत्तीसगढ़ प्रान्त का एक प्राचीन धार्मिक नगर है। सेतगंगा जिला मुख्यालय मुंगेली से 15 किलोमीटर दुरी पर बिलासपुर-जबलपुर राष्ट्रीय मार्ग 130A पर स्थित है।
आप लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि भारतवर्ष में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां रावण भगवान राम के द्वारपाल के रूप में पूजे जाते हैं। 10वीं 11वीं शताब्दी में निर्मित श्रीरामजानकी मंदिर अपनी कई खूबियों के चलते प्रसिद्ध है। काले पत्थर में खूबसूरत शिल्प के साथ-साथ रावण की प्रतिमा के चलते मंदिर की चर्चा देशभर में होती है।
पुराणों में भगवान राम और रावण की शत्रुता का उल्लेख है। यह बैर इस मंदिर में मिट गया है। रावण की प्रतिमा को द्वारपाल के रूप में स्थापित करने के पीछे मंशा यही है कि कोई भी व्यक्ति ज्ञानी रावण की अच्छाइयों को जानने और अपने भीतर के अहंकार को मिटाने के बाद ही मंदिर में प्रवेश करें।
भोरमदेव से आधा किलोमीटर दूर चौराग्राम के पास पत्थरों से निर्मित शिव मन्दिर है। यह 14वीं शताब्दी का जीर्ण-शीर्ण मन्दिर है। इसकी बाह्य दीवारों पर मैथुन मूर्तियां बनी हुई हैं।
11 वीं सदी का चन्देल शैली में बना भोरमदेव मन्दिर अपने उत्कृष्ट शिल्प एवं भव्यता की दृष्टि से उच्च कोटि का है। भोरमदेव के प्राचीन मन्दिर इतिहास, पुरातत्व एवं धार्मिक महत्त्व के स्थल हैं। चारों ओर से सुरम्य पहाड़, नदी एवं वनस्थली की प्राकृतिक शोभा के मध्य स्थित यह मन्दिर अगाध शांति का केन्द्र है। इस मन्दिर का निर्माण नागवंशी राजा रामचन्द्र ने कराया था। भोरमदेव मन्दिर को उत्कृष्ट कला शिल्प एवं भव्यता के कारण छत्तीसगढ़ का खजुराहों कहा जाता है।
राजनांदगांव जिले में स्थित है। यहां एशिया का एकमात्र कला व संगीत विश्वविद्यालय स्थित है। जहां संगीत एवं कला की शिक्षा दी जाती है।
धमतरी से 12 किलोमीटर दूर गंगरेल बांचध के पास बना बांध है। जिसका निर्माण महानदी पर हुआ है। इसे कांकेर नरेश राजा रुद्रदेव ने बनवाया था। यह कबीर पंथीयों का धार्मिक स्थल है। यहां का कुद्रेश्वर महादेव यज्ञ मन्दिर प्रसिद्ध है।
यहां पर भारत का सबसे बड़ा ताप विद्युत गृह एवं एल्युमीनियम का कारखाना स्थित है।
बस्तर जिले में स्थित बैलाडीला की खदानें विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां का लोहा जापान को निर्यात किया जाता है।
कोरबा जिला पुरातत्व
कोरबा से ५० की। मी. दूर स्थित नगर पाली में भगवान शिव जी का मंदिर है जिसकी स्थापना सन ११वि सदी में राजा विक्रम द्वारा हुई। यह मंदिर अद्भुत कलाक्रीती द्वारा दर्शया गया है। मंदिर में अनेको देवताओं का उल्लेख है जिसे देख मन संतुष्ट हो जाता है। . साँचा:reflist
बाहरी कड़ियाँ
- राज्य के पुरातात्विक वैभव को जानने के प्रमुख साधन हैं - उत्कीर्ण । लेख , सिक्के , स्थापत्य और शिल्प । पुरातत्त्व ने राज्य के इतिहास की कडियों को जोड़ने का काम किया है । शिलालेखों से न केवल राजनीतिक स्थिति की जानकारी मिलती है , अपितु तत्कालीन लिपि और भाषा पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल
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