चैत्रगौरी
| चैत्रगौरी | |
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| अनुयायी | हिन्दू |
| प्रकार | हिन्दू |
| उत्सव | १ महीना |
| अनुष्ठान | व्रत |
| आरम्भ | चैत्र शुक्ल तृतीयासे |
| समापन | वैशाख शुक्ल तृतीया तक |
| तिथि | एप्रिल |
| समान पर्व | चैत्रगौरी |
चैत्रगौरी यह महाराष्ट्र में किया जानेवाला प्रसिद्ध व्रत है। महिला एवं युवती यह व्रत ; त्योहार के स्वरूप में मनाती है।[१]
स्वरूप
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथीसे इस व्रत की शुरुआत होती है। वैशाख महिनेकीं तृतीय तिथी तक यह व्रत किया जाता है। इस व्रतका मुख्य उपचार है गौरी देवीको झुलेमें स्थापित करना और एक महीना उनकी पूजा करना।[२]
व्रत का स्वरूप
झुलेमें बैठी देवी गौरी के पूजा हेतू कच्चे आमका शरबत और चनेकी दालसे बना हुआ भोग ख़ास तौरसे बनाया जाता है। वसंत ऋतुमें जो फल मिलते है वह देवीको भोगके स्वरूपमें चढ़ाए जाते है। विवाहित महिला को भोजनमें निमंत्रित किया जाता है। हल्दी, कुमकुम और चंदन लगाकर इस महिलाके देवीस्वरूप पूजा की जाती है। शामके समय पड़ोसी महिलाओंको निमन्त्रित किया जाता है और उन्हें हल्दी कुमकुम लगाकर कच्चे आमका शरबत दिया जाता है। [३]भीगे हुए चने उन्हें भेट दिए जाते है। देवीका वर्णन करनेवाले भक्तिपूर्ण गीत गाएँ जाते है।[४]
रंगोली
इस व्रतके अवसर पर महाराष्ट्र में नई नवेली दुल्हन पाँच साल तक अपने आंगनमें है विशिष्ट रंगोली बनाती है। उसे चैत्रागण नामसे संबोधित किया जाता है। इस रंगोलीमें भारतवर्ष के त्यौहार तथा भारतीय संस्कृतिके प्रतीक चित्रित किये जाट है। स्वस्तिक, ओमकार, तुलसी का पौधा, गाय के चरण चिह्न , गणेशजी , कृष्ण भगवान, चंद्र, सूर्य इनके चित्र इस रंगोलीमें बनाए जाते है।